संपादकीय

विरोध और समर्थन के बीच जीएसटी
Posted Date : 07-Jul-2017 3:35:53 pm

विरोध और समर्थन के बीच जीएसटी

सरकार पूरे धूमधाम के साथ वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को आज एक जुलाई से पूरे देश में लागू करने जा रही है। लेकिन इसकी लॉन्चिंग के लिए आयोजित कार्यक्रम अब शायद थोड़ा फीका रह जाए, क्योंकि देश की प्रमुख विपक्षी पार्टियां इससे बाहर रहने का निर्णय कर चुकी हैं। सरकार द्वारा तय की गई रूपरेखा के मुताबिक 80 मिनट का यह कार्यक्रम शुक्रवार को रात करीब 10.45 पर शुरू होगा। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के संबोधन से पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली एक परिचयात्मक भाषण देंगे। रात को ठीक 12 बजे जीएसटी को लॉन्च किया गया। तय हुआ था कि मंच पर राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के अलावा उप-राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और एचडी देवगौड़ा मौजूद रहेंगे। लेकिन अब मनमोहन सिंह मंच पर नहीं होंगे, क्योंकि कांग्रेस ने कार्यक्रम से दूर रहने का फैसला किया है। ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस की नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इसे केंद्र सरकार की ऐतिहासिक भूल बताते हुए कार्यक्रम के बहिष्कार की घोषणा पहले ही कर चुकी हैं। अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का भी यही स्टैंड है। इन्होंने जीएसटी के विरोध में टेक्सटाइल इंडस्ट्री के प्रदर्शन का हवाला देते हुए कहा है कि सरकार इसे टाल दे क्योंकि फिलहाल देश इसके लिए पूरी तरह तैयार नहीं है। काग्रेस भी मानती है कि इससे छोटे व्यापारियों और बुनकरों को नुकसान हो सकता है। लेकिन इसके साथ ही कार्यक्रम के स्वरूप पर भी उसे एतराज है। उसका कहना है कि राष्ट्रपति के मौजूद रहते जीएसटी को प्रधानमंत्री लॉन्च करें, यह ठीक नहीं है। यह प्रेजिडेंट की गरिमा के अनुकूल नहीं है। सचाई यह है कि जीएसटी को पास कराने में सत्ता पक्ष के साथ-साथ विपक्ष का भी हाथ भी रहा है। लेकिन अब अचानक उसका पैर पीछे खींचना अटपटा लग रहा है। जहां तक जीएसटी के विरोध का प्रश्न है, तो यह अप्रत्याशित भी नहीं है। हर नई योजना का विरोध तो होता ही है। फिर हर वर्ग की शिकायत सुनने की जिम्मेदारी जीएसटी परिषद की है। वह समय के साथ सबकी शिकायतें दूर करने की कोशिश करेगा। ऐसे में बेहतर होता कि अपोजिशन भी इस अभूतपर्व अवसर का हिस्सा बनता। दरअसल सत्ता पक्ष का रवैया उसे दुविधा में डाल रहा है। आज सत्ता पक्ष सीमा पर की गई सैनिक कार्रवाई से लेकर विदेश नीति तक अपनी हर पहल का एकतरफा फायदा लेता है। वह सामूहिक कार्यों को भी अपनी निजी उपलब्धि की तरह पेश कर रहा है। जीएसटी किसी एक सरकार का नहीं बल्कि हमारी व्यवस्था द्वारा जनता को दिया गया एक तोहफा है। बेहतर होगा कि सरकार कोशिश करके सभी दलों को इस आयोजन में शामिल होने के लिए प्रेरित करे।

हिंदुस्तान को समझने वाली सोच
Posted Date : 01-Jul-2017 8:54:58 pm

हिंदुस्तान को समझने वाली सोच

हिंदुस्तान को समझने वाली सोच
हिंदुस्तानी संस्कृति में अति को कोई पसंद नहीं करता। यह बुद्ध, कबीर और "ांधी की धरती है जहां अति को हर स्थान पर रोका गया है। संस्कृत में एक कहावत है कि 'अति सर्वत्र वर्जयेत।Ó यानी अति का हर जगह निषेध होता है। पर आज देखिए हर जगह अति ही व्याप्त है। कबीर का वह दोहा किसी काम का नहीं रहा जिसमें बताया गया है :-
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप।
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप॥
आज हमारी राजनीति, धर्मनीति सभी ज"ह अति ही हावी है और यही कारण है कि अतिवादी आज की राजनीति का प्रतिफलन हैं। कहीं बहुसंख्यक अतिवादी हैं तो कहीं अल्पसंख्यक। यह डर और डराने का रिश्ता है इससे बचना ही श्रेयस्कर है। जब भी मैं अतिवाद को पढ़ता व समाज में इसे फैलते देखता हूं मुझे दो शख्सियतें याद आती हैं। एक पंडित जवाहरलाल नेहरू और दूसरे कवि दिनकर।
रामधारी सिंह दिनकर की एक पुस्तक है संस्कृति के चार अध्याय। इसमें दिनकरजी ने भारतीय संस्कृति के इसी समरसता वाले सिद्धांत पर ध्यान खींचा है। इसमें उन्होंने कहा है कि भारतीय संस्कृति पर किसी एक धर्म या एक नस्ल अथवा एक जाति का अधिकार नहीं है। वह सबकी है क्योंकि भारत में सब रचे-बसे हैं। इस पुस्तक की खास बात यह है कि इसकी प्रस्तावना तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लिखी थी। मैं उस प्रस्तावना के कुछ हिस्से यहां दे रहा हूं। इससे पता चलता है कि हमारी आज़ादी के राजनेता भारतीय जनता और उसकी संस्कृति के बारे में कितना रचनात्मक सोच रखते थे। अब न तो वैसे नेता रहे न वैसे साहित्यकार। लेकिन इस पुस्तक का जो अभिनव योगदान है वह है प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की वह प्रस्तावना जिसे मैं अक्सर पढ़ता हूं और हर बार उसमें कुछ नयापन पाता हूं। इस प्रस्तावना में नेहरू जी लिखते हैं :- मेरे मित्र और साथी दिनकर ने अपनी पुस्तक के लिए जो विषय चुना है, वह बहुत ही मोहक व दिलचस्प है। यह एक ऐसा विषय है जिससे, अक्सर, मेरा अपना मन भी ओतप्रोत होता रहा है और मैंने जो कुछ लिखा है, उस पर इस विषय की छाप, आप-से-आप पड़ "यी है। अक्सर मैं अपने आप से सवाल करता हूं, भारत है क्या? उसका तत्त्व या सार क्या है? वे शक्तियां कौन-सी हैं जिनसे भारत का निर्माण हुआ है तथा अतीत और वर्तमान विश्व को प्रभावित करने वाली प्रमुख प्रवृत्तियों के साथ उनका क्या संबंध है? यह विषय अत्यंत विशाल है, और उसके दायरे में भारत और भारत के बाहर के तमाम मानवीय व्यापार आ जाते हैं। और मेरा ख्याल है कि किसी भी व्यक्ति के लिए यह संभव नहीं है कि वह इस संपूर्ण विश्व के साथ अकेला ही न्याय कर सके। कम-से-कम, यह तो संभव है ही कि हम अपने भारत को समझने का प्रयास करें, यद्यपि सारे संसार को अपने सामने न रखने पर भारत-विषयक जो ज्ञान हम प्राप्त करेंगे, वह अधूरा होगा। भारत आज जो कुछ है, उसकी रचना में भारतीय जनता के प्रत्येक भाग का योगदान है। यदि हम इस बुनियादी बात को नहीं समझ पाते तो फिर हम भारत को समझने में भी असमर्थ रहें"े। और यदि भारत को नहीं समझ सके तो हमारे भाव, विचार और काम, सबके सब अधूरे रह जायेंगे और हम देश की ऐसी कोई सेवा नहीं कर सकेंगे जो ठोस और प्रभावपूर्ण हो। मेरा विचार है कि दिनकर की पुस्तक इन बातों के समझने में, एक हद तक, सहायक होगी। यह पूरी प्रस्तावना नहीं है इसकी कुछ लाइनेंभर हैं। आप इसे पढ़ें। पंडितजी ने इसे स्वयं हिंदुस्तानी व नागरी लिपि में लिखा है। उनकी भाषा बड़ी मोहक व बांधे रखने वाली थी तथा उनकी लिखावट गांधीजी की तुलना में ज्यादा साफ और बहिर्मुखी थी। गांधीजी जहां कई दफे अपनी लेखनी से झुंझलाहट पैदा करते थे वहीं नेहरूजी की हिंदुस्तानी हिंदुस्तान के दिल के अधिक करीब थी।

 

लड़ाकू विमानों की कमी
Posted Date : 01-Jul-2017 8:53:46 pm

लड़ाकू विमानों की कमी

लड़ाकू विमानों की कमी
स्वदेशी कंपनी टाटा ने अमेरिका की लॉकहीड मार्टिन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। समझौते के तहत अत्याधुनिक एफ-16 लड़ाकू विमान भारत में ही बनाए जा सकेगे। विदेशी सैन्य विमानन आपूर्ति शृंखला को सामान सप्लाई करने वाली टाटा कंपनी को अब अडानी समूह से दो-दो हाथ करने होंगे। लड़ाकू विमान बनाने के लिए अडानी समूह ने स्वीडन की कंपनी से हाथ मिलाया है। अंबानी बंधुओं और महिंद्रा समूह समेत कई अन्य कारपोरेट घराने भी लड़ाकू विमानों के 20 अरब स्टर्लिंग पौंड के सौदे के लिए विदेशी विमानन कंपनियों के साथ साझेदारी कर सकते हैं। भारतीय कंपनियों के बीच इस होड़ की वजह यह है कि भारतीय वायुसेना के बेड़े में लड़ाकू विमानों की भारी कमी के चलते भारत सरकार चिंतित है। भारतीय वायुसेना प्रमुख साफ तौर पर स्वीकार कर चुके हैं कि दो-दो मोर्चों पर एक साथ लडऩे के लिए वायुसेना के पास पर्याप्त लड़ाकू विमान नहीं हैं। भारतीय वायुसेना के बेड़े में लड़ाकू विमानों की रिकार्ड कमी अचानक नहीं हुई है। कोई एक दशक से ज्यादा समय से ऐसे विमानों की कमी महसूस की जाने लगी थी। जहां एक ओर डीआरडीओ निर्मित हल्के लड़ाकू विमान तेजस में अभी भी कुछ खामियां हैं, वहीं मोदी सरकार बहु-उद्देश्यीय लड़ाकू विमान खरीद सौदे को सिरे नहीं चढ़ा सकी। भारतीय वायुसेना मुख्यत: सुखोई-30 लड़ाकू विमानों पर आश्रित है। चीन समेत कई देश अपनी वायुसेना में स्टेल्थ तकनीक वाले लड़ाकू विमान शामिल कर रहे हैं परंतु भारत अभी तक अगली पीढ़ी के लड़ाकू विमानों के लिए रूस के साथ साझदेारी को अंतिम रूप नहीं दे पाया है। पूर्णकालिक रक्षामंत्री न होना तथा भारत की अमेरिका के साथ बढ़ती सामरिक नजदीकी भी ऐसे पूरक कारण हैं जिनके चलते भारतीय वायुसेना की जरूरतों की अनेदखी लगातार जारी है। भारत के सैन्य विमानन ने निगरानी और भारी वजन ढुलाई क्षेत्र में ऊंची छलांग लगाई है। परंतु ये साधारण श्रेणी के खरीद सौदे थे और विक्रेताओं ने भी खुशी-खुशी ये सौदे किए। उन्नत किस्म के लड़ाकू विमानों का निर्माण बहुत ही पेचीदा और मुश्किल काम है। इस काम में बड़े पैमाने पर कलपुर्जों की जरूरत होती है और कलपुर्जे आयात करने की राह में कड़े अंतर्राष्ट्रीय कानून भी आड़े आते हैं। लड़ाकू विमानों के लिए स्टेल्थ तकनीक का हस्तांतरण उसी सूरत में हो सकता है जब दो देशों के बीच घनिष्ठ राजनयिक-सैन्य संबंध हों। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अमेरिका के आगामी दौरे के दौरान इस पहलू को खुलकर और सूझबूझ के साथ उठाना होगा। कोशिश हो कि इस सबसे भारत-रूस रक्षा संबंधों को आंच न आने 

संबंधों की आंच
Posted Date : 01-Jul-2017 8:52:43 pm

संबंधों की आंच

संबंधों की आंच
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के ठीक पहले अमेरिका ऐसे कई कदम उठा रहा है, जिनसे संकेत यही निकलता है कि वह भारत के साथ अपने रिश्ते और गहरे करना चाहता है। गुरुवार को उसने भारत को 22 गार्जियन ड्रोन की बिक्री को मंजूरी दे दी है। इस हाई-टेक उपकरण की यह पहली डील है, जो अमेरिका ने किसी गैर नाटो देश के साथ की है। ये ड्रोन न सिर्फ खुफिया निगरानी और टोही गतिविधियों के लिए बेहद उपयोगी साबित होंगे, बल्कि इनसे हथियारबंद दुश्मन को ढेर भी किया जा सकता है। एक साथ 22 विमान आने से सीमावर्ती क्षेत्रों और हिंद महासागर में भारत की समुद्री ताकत बढ़ जाएगी। यह प्रेडटर ड्रोन का अपडेटेड वर्जन है और अमेरिकी एयरफोर्स में इसे 'एमक्यू-9 रीपरÓ कहा जाता है। दूर से संचालित यह विमान 50,000 फीट यानी दस मील से ज्यादा ऊंचाई पर उड़ सकता है और 27 घंटे तक हवा में रह सकता है। इसमें डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक इंजन कंट्रोल सिस्टम लगा है जो इसकी क्षमता को कई गुना बढ़ा देता है। अभी अमेरिका के अलावा इटली, फ्रांस और स्पेन इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। जनरल एटॉमिक्स कंपनी द्वारा बनाए गए इस ड्रोन का भारतीय सौदा दो से तीन अरब डॉलर यानी 130 से 195 अरब रुपये का बैठेगा। इस सौदे पर अमल के साथ ही भारत को अमेरिका द्वारा दिया गया 'मेजर डिफेंस पार्टनरÓ का दर्जा प्रभाव में आ जाएगा। यह दर्जा देने का फैसला ओबामा प्रशासन का है और इसे अमेरिकी संसद में पास कराया जा चुका है। डॉनल्ड ट्रंप के शुरुआती रवैये को देखकर भारत में यह अटकलें लगाई जाने लगी थीं कि शायद अमेरिका के भीतर भारत को लेकर पहले वाली गर्मजोशी न रह जाए। पर ट्रंप प्रशासन ने यह दुविधा समाप्त कर दी है। उसने साफ संकेत दिया है कि व्यापार से लेकर कूटनीति तक वह भारत को अपना अहम साझेदार मानता है। उसने हमारी सुरक्षा चिंताओं को संजीद"ी से लिया है, इसका एक प्रमाण "ार्जियन ड्रोन का सौदा भी है। आतंकवाद पर हमारी राय को अहम मानते हुए उसने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त रवैया अपनाने के संकेत दिए हैं। दो वरिष्ठ अमेरिकी सांसदों ने द्विपक्षीय बिल पेश किया है, जिसमें पाकिस्तान के साथ अमेरिकी संबंधों में कटौती की बात है। रिपब्लिकन टेड पो तथा डेमोक्रेट रिक नोलन ने शुक्रवार को यह बिल पेश किया, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान का 'मेजर नॉन-नाटो एलाईÓ (अहम गैर-नाटो सहयोगी) दर्जा रद्द करना है। विधेयक में कहा गया है कि पाकिस्तान आतंकवादियों को शरण देता है और आतंकवाद से लडऩे, उसे खत्म करने के लिए दी गई रकम के प्रति जवाबदेही नहीं दिखाता। यह बात भारत ने कई बार कही है। उम्मीद करें कि दोनों देशों की बढ़ती समझदारी आगे और रंग लाएगी।

 

शारीरिक भाषा से जीत की लय
Posted Date : 01-Jun-2017 8:58:42 pm

शारीरिक भाषा से जीत की लय

हर व्यक्ति की खाने और पहनने के संदर्भ में पसंद अलग-अलग होती है। किसी को करेले की सब्जी बहुत अच्छी लगती है तो किसी को उसे देखते ही घृणा होने लगती है। कुछ लोगों का मूंगफली और चने खाते ही पेट दर्द होने लगता है तो वहीं कुछ लोगों को चने और मूंगफली खाकर अपने अंदर असीम ऊर्जा की अनुभूति होती है। कुछ समय बाद प्रत्येक व्यक्ति का शरीर उनकी दैनिक क्रियाओं और खानपान के अनुसार उनका अभ्यस्त हो जाता है। ठीक ऐसा ही व्यक्ति की मानसिक क्रियाओं के साथ भी होता है। विद्यार्थी जीवन में एक विद्यार्थी को हिन्दी का विषय बहुत अच्छा लगता है तो दूसरे को हिन्दी पढ़ते ही नींद आने लगती है। इसी तरह धीरे-धीरे सकारात्मक एवं नकारात्मक विचार व्यक्ति के व्यक्तित्व का एक अंग बनते चले जाते हैं। यदि बचपन से ही बच्चे के अंदर यह भावना बलवती की जाए कि चाहे कुछ भी हो जाए, असंभव जैसा कुछ नहीं होता और कोई विषय मुश्किल नहीं होता तो असंभव से 'अÓ मिट जाता है और सब संभव बन जाता है। पैगानीनी एक बहुत ही प्रतिभाशाली वायलिन वादक थे। वे स्वयं से ही यह दोहराते थे कि कुछ भी असंभव या मुश्किल नहीं है। इसलिए उनके व्यक्तित्व की शारीरिक एवं मानसिक प्रक्रियाएं हर बाधा से टकराने के लिए एक मजबूत चट्टान बन जाती थीं। एक बार उन्हें एक संगीत समारोह में आमंत्रित किया गया। उन्होंने अपने मन में ठान लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए, वे अपने प्रदर्शन से सबको चकित कर देंगे। ठसाठस भरे हाल में उन्होंने एकाग्रचित्त होकर आंखें बंद कर वायलिन के तारों को बजाना शुरू किया। दर्शक मधुर स्वर की लहरियों में खो गए। अचानक पैगानीनी को महसूस हुआ कि वायलिन के स्वर में अंतर आ गया है। उन्होंने देखा तो पाया कि वायलिन का एक तार टूट गया है। यह देखकर उन्होंने समूची भीड़ पर नजऱ डाली और टूटे तार के साथ ही वायलिन बजाने लगे। कुछ समय बाद दूसरा तार भी टूट गया। पैगानीनी ने संगीत बजाना बंद कर दिया। वे दर्शकों से बोले, 'एक तार और पैगानीनी।Ó इसके बाद उन्होंने वाद्ययंत्र को अपनी ठोड़ी के नीचे रखा और उससे इतना भव्य संगीत निकाला कि दर्शक दांतों तले अंगुली दबाते रह गए। सभी कुर्सियों से खड़े होकर उनके भव्य और मधुर संगीत के साथ करतल ध्वनि करते रहे। संगीत खत्म होने के बाद पैगानीनी बोले, 'सफलता का एकमात्र सूत्र है आत्मविश्वास के साथ सच्चे मन से अपने कार्य को करना। आप लोग देख ही चुके हैं कि वायलिन के दो तार टूटने पर भी आपने संगीत का आनंद लिया है। यह सिर्फ कार्य के प्रति सच्ची भावना और इस बात के कारण संभव हो पाया है कि कुछ भी असंभव नहीं होता।Óजब भी व्यक्ति कोई महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए कदम बढ़ाता है तो उसे कुछ शारीरिक प्रतिक्रियाओं की अनुभूति होती है। इन्हीं अनुभूतियों को व्यक्ति अपने अनुसार सकारात्मक एवं नकारात्मक बनाता है। मसलन एक व्यक्ति को मंच पर बोलने जाना है। अपना नाम पुकारे जाने पर यदि उसके पैर कांपने लगते हैं, पसीने आने लगते हैं और भीड़ को देखते ही यह एहसास होने लगता है कि सभी उसके बोलने का मजाक उड़ाएंगे तो शारीरिक प्रतिक्रियाएं नकारात्मक अनुभव कराती हैं। यदि इस स्थिति में वक्ता भीड़ को देखकर यह अनुभव करे कि उसे जीवन में एक महत्वपूर्ण पहचान बनाने का अवसर मिल रहा है तो उसके अंदर जोश एवं आत्मविश्वास का संचार होने लगता है। ऐसे में वह अपने मूल प्रदर्शन से कई गुना बेहतर प्रदर्शन करता है और कामयाबी प्राप्त करता है। संज्ञावादी मनोवैज्ञानिक सिंगर शेश्टर का कहना है कि किसी दशा में आप उसी प्रकार के मनोभावों को महसूस करते हैं, जैसा आप स्थिति के अनुसार अपनी शारीरिक प्रतिक्रियाओं को नाम देते हैं। वास्तव में बहुत से भावों के शारीरिक चिन्ह एक से होते हैं लेकिन यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह उन शारीरिक चिन्हों पर किस तरह से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। याद रखिए जिस तरह सकारात्मक शारीरिक प्रक्रियाओं की अनुकूलता व्यक्ति की मित्र होती है, उसी तरह प्रतिकूलता शत्रुता भाव से व्यक्ति की साख, स्वास्थ्य और मस्तिष्क को प्रभावित करती है। इस दुनिया में कोई भी कार्य ऐसा नहीं है जिसे अंजाम तक न पहुंचाया जा सके। आज यदि मनुष्य ने चन्द्रमा पर कदम रखने के साथ ही मंगल ग्रह पर जीवन बसाने के स्वप्न संजोने शुरू कर दिए हैं तो इसलिए क्योंकि विश्व के अनेक बुद्धिजीवियों ने अपनी शारीरिक प्रतिक्रियाओं के साथ ही अपने अवचेतन मन को हर दृष्टि में सकारात्मक और केवल सकारात्मक बना लिया है। यकीन मानिए जब व्यक्ति तन-मन से सकारात्मक बन जाता है तो जादू उसके हाथ की कठपुतली बन जाता है।