संपादकीय

01-Jun-2017 8:58:42 pm
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शारीरिक भाषा से जीत की लय

हर व्यक्ति की खाने और पहनने के संदर्भ में पसंद अलग-अलग होती है। किसी को करेले की सब्जी बहुत अच्छी लगती है तो किसी को उसे देखते ही घृणा होने लगती है। कुछ लोगों का मूंगफली और चने खाते ही पेट दर्द होने लगता है तो वहीं कुछ लोगों को चने और मूंगफली खाकर अपने अंदर असीम ऊर्जा की अनुभूति होती है। कुछ समय बाद प्रत्येक व्यक्ति का शरीर उनकी दैनिक क्रियाओं और खानपान के अनुसार उनका अभ्यस्त हो जाता है। ठीक ऐसा ही व्यक्ति की मानसिक क्रियाओं के साथ भी होता है। विद्यार्थी जीवन में एक विद्यार्थी को हिन्दी का विषय बहुत अच्छा लगता है तो दूसरे को हिन्दी पढ़ते ही नींद आने लगती है। इसी तरह धीरे-धीरे सकारात्मक एवं नकारात्मक विचार व्यक्ति के व्यक्तित्व का एक अंग बनते चले जाते हैं। यदि बचपन से ही बच्चे के अंदर यह भावना बलवती की जाए कि चाहे कुछ भी हो जाए, असंभव जैसा कुछ नहीं होता और कोई विषय मुश्किल नहीं होता तो असंभव से 'अÓ मिट जाता है और सब संभव बन जाता है। पैगानीनी एक बहुत ही प्रतिभाशाली वायलिन वादक थे। वे स्वयं से ही यह दोहराते थे कि कुछ भी असंभव या मुश्किल नहीं है। इसलिए उनके व्यक्तित्व की शारीरिक एवं मानसिक प्रक्रियाएं हर बाधा से टकराने के लिए एक मजबूत चट्टान बन जाती थीं। एक बार उन्हें एक संगीत समारोह में आमंत्रित किया गया। उन्होंने अपने मन में ठान लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए, वे अपने प्रदर्शन से सबको चकित कर देंगे। ठसाठस भरे हाल में उन्होंने एकाग्रचित्त होकर आंखें बंद कर वायलिन के तारों को बजाना शुरू किया। दर्शक मधुर स्वर की लहरियों में खो गए। अचानक पैगानीनी को महसूस हुआ कि वायलिन के स्वर में अंतर आ गया है। उन्होंने देखा तो पाया कि वायलिन का एक तार टूट गया है। यह देखकर उन्होंने समूची भीड़ पर नजऱ डाली और टूटे तार के साथ ही वायलिन बजाने लगे। कुछ समय बाद दूसरा तार भी टूट गया। पैगानीनी ने संगीत बजाना बंद कर दिया। वे दर्शकों से बोले, 'एक तार और पैगानीनी।Ó इसके बाद उन्होंने वाद्ययंत्र को अपनी ठोड़ी के नीचे रखा और उससे इतना भव्य संगीत निकाला कि दर्शक दांतों तले अंगुली दबाते रह गए। सभी कुर्सियों से खड़े होकर उनके भव्य और मधुर संगीत के साथ करतल ध्वनि करते रहे। संगीत खत्म होने के बाद पैगानीनी बोले, 'सफलता का एकमात्र सूत्र है आत्मविश्वास के साथ सच्चे मन से अपने कार्य को करना। आप लोग देख ही चुके हैं कि वायलिन के दो तार टूटने पर भी आपने संगीत का आनंद लिया है। यह सिर्फ कार्य के प्रति सच्ची भावना और इस बात के कारण संभव हो पाया है कि कुछ भी असंभव नहीं होता।Óजब भी व्यक्ति कोई महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए कदम बढ़ाता है तो उसे कुछ शारीरिक प्रतिक्रियाओं की अनुभूति होती है। इन्हीं अनुभूतियों को व्यक्ति अपने अनुसार सकारात्मक एवं नकारात्मक बनाता है। मसलन एक व्यक्ति को मंच पर बोलने जाना है। अपना नाम पुकारे जाने पर यदि उसके पैर कांपने लगते हैं, पसीने आने लगते हैं और भीड़ को देखते ही यह एहसास होने लगता है कि सभी उसके बोलने का मजाक उड़ाएंगे तो शारीरिक प्रतिक्रियाएं नकारात्मक अनुभव कराती हैं। यदि इस स्थिति में वक्ता भीड़ को देखकर यह अनुभव करे कि उसे जीवन में एक महत्वपूर्ण पहचान बनाने का अवसर मिल रहा है तो उसके अंदर जोश एवं आत्मविश्वास का संचार होने लगता है। ऐसे में वह अपने मूल प्रदर्शन से कई गुना बेहतर प्रदर्शन करता है और कामयाबी प्राप्त करता है। संज्ञावादी मनोवैज्ञानिक सिंगर शेश्टर का कहना है कि किसी दशा में आप उसी प्रकार के मनोभावों को महसूस करते हैं, जैसा आप स्थिति के अनुसार अपनी शारीरिक प्रतिक्रियाओं को नाम देते हैं। वास्तव में बहुत से भावों के शारीरिक चिन्ह एक से होते हैं लेकिन यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह उन शारीरिक चिन्हों पर किस तरह से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। याद रखिए जिस तरह सकारात्मक शारीरिक प्रक्रियाओं की अनुकूलता व्यक्ति की मित्र होती है, उसी तरह प्रतिकूलता शत्रुता भाव से व्यक्ति की साख, स्वास्थ्य और मस्तिष्क को प्रभावित करती है। इस दुनिया में कोई भी कार्य ऐसा नहीं है जिसे अंजाम तक न पहुंचाया जा सके। आज यदि मनुष्य ने चन्द्रमा पर कदम रखने के साथ ही मंगल ग्रह पर जीवन बसाने के स्वप्न संजोने शुरू कर दिए हैं तो इसलिए क्योंकि विश्व के अनेक बुद्धिजीवियों ने अपनी शारीरिक प्रतिक्रियाओं के साथ ही अपने अवचेतन मन को हर दृष्टि में सकारात्मक और केवल सकारात्मक बना लिया है। यकीन मानिए जब व्यक्ति तन-मन से सकारात्मक बन जाता है तो जादू उसके हाथ की कठपुतली बन जाता है।

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