नईदिल्ली,26 अगस्त । सरकारी बैंक बैंक ऑफ महाराष्ट्र ने अपने ग्राहकों को बड़ा तोहफा दिया है. बैंक ने भी एसबीआई की तरह से अपने लोन को रेपो रेट से जोड़ दिया है. इससे ग्राहकों के ईएमआई कम हो जाएगी. अगर आसान शब्दों में समझें तो मतलब साफ है कि आरबीआई के ब्याज दरें घटाने पर तुरंत आपकी ईएमआई कम हो जाएगी. वहीं, ब्याज दरें बढ़ाने पर ईएमआई महंगी हो जाएगी. बैंक ऑफ महाराष्ट्र की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि फेस्टिव सीजन को देखते हुए नई दर एक सितंबर 2019 से प्रभावी होगी. मौजूदा समय में रेपो रेट से लिंक्ड रिटेल लोन का फायदा नए ग्राहकों को मिलेगा. वहीं, जल्द मौजूदा ग्राहकों के लिए भी इसे लागू किया जाएगा.
आपको बता दें कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को घोषणा की थी कि ज्यादातर बैंक रेपो रेट और अन्य कारकों से जुड़े लोन प्रॉडक्ट पेश करेंगे. इससे आवास, वाहन और रिटेल लोन के लिए ईएमआई घटेंगी.
नईदिल्ली,25 अगस्त । विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने घरेलू पूंजी बाजारों से इस महीने अब तक 3,014 करोड़ रुपये की निकासी की है। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार द्वारा एफपीआई पर कर-अधिभर हटाए जाने से वह वापस स्थानीय शेयर बाजारों में निवेश का रुख कर सकते हैं। डिपॉजिटरीज के आंकड़ों के अनुसार एक से 23 अगस्त के बीच एफपीआई ने शेयर बाजारों से 12,105.33 करोड़ रुपये की निकासी की। लेकिन बांड बाजार में 9,090.61 करोड़ रुपये का निवेश किया। इस प्रकार उन्होंने समीक्षावधि में घरेलू पूंजी बाजार (शेयर और बांड) से कुल 3,014.72 करोड़ रुपये की निकासी की है। ग्रो के मुख्य परिचालन अधिकारी और सह-संस्थापक हर्ष जैन ने कहा, ‘‘15 कारोबारी सत्रों में से केवल दो सत्र में ही विदेशी निवेशकों ने शुद्ध लिवाली की। अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध, ऊंची आय वाले निवेशकों पर बजट में कर की दर बढ़ाने और अमेरिकी फेडरल रिजर्व के नीतिगत दरों में कटौती जैसे मिश्रित कारणों के चलते एफपीआई की शेयर बाजार में बिकवाली जारी रही। आर्थिक वृद्धि को सहारा देने के उद्देश्य से सरकार ने शुक्रवार को कई कदम उठाए जाने की घोषणा की थी। इसमें धनाढ्य घरेलू और विदेशी निवेशकों पर बजट में लगाए गए कर-अधिभार को वापस लेना अहम रहा। जुलाई में 2019-20 के बजट में यह प्रावधान किए जाने से पहले एफपीआई देश में लगातार शुद्ध लिवाल बने हुए थे। एफपीआई ने घरेलू पूंजी बाजार में जून में 10,384.54 करोड़ रुपये, मई में 9,031.15 करोड़ रुपये, अप्रैल में 16,093 करोड़ रुपये, मार्च में 45,981 करोड़ रुपये और फरवरी में 11,182 करोड़ रुपये का निवेश किया था। हालांकि जुलाई में एफपीआई ने 2,985.88 करोड़ रुपये की बिकवाली थी। जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेस के मुख्य निवेश रणनीतिकार वी. के. विजयकुमार ने कहा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की शुक्रवार की घोषणाओं से निवेशक वापस लौटने और सरकार के और सुधार लाने की उम्मीद है।
मुंबई ,25 अगस्त । लगातार दो सप्ताह गिरावट में रहने के बाद केंद्र सरकार द्वारा गत शुक्रवार को की गयी वित्तीय घोषणाओं के कारण आने वाले सप्ताह में शेयर बाजार में रौनक लौट सकती है।
कमजोर निवेश धारणा के कारण गत सप्ताह बीएसई का सेंसेक्स 649.17 अंक यानी 1.74 प्रतिशत टूटकर सप्ताहांत पर 36,701.16 अंक पर बंद हुआ। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी 218.45 अंक यानी 1.98 प्रतिशत की गिरावट में शुक्रवार को 10,829.35 अंक पर आ गया। मझौली और छोटी कंपनियों में भी निवेशकों ने बिकवाली की और बीएसई का मिडकैप 2.14 प्रतिशत तथा स्मॉलकैप 3.17 प्रतिशत की साप्ताहिक गिरावट में रहा।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को विदेशी और घरेलू निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए घोषणाओं की झड़ी लगा दी। इससे बजट के बाद से ही मुख्य रूप से बिकवाल बने रहे विदेशी संस्थागत निवेशकों की विश्वास वापस लौटाने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि घरेलू निवेशकों और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों पर पडऩे वाले अतिरिक्त बोझ को वापस लिया जा रहा है। इसके तहत दीर्घकालिक या अल्पकालिक पूंजीगत लाभ पर वर्ष 2018-19 के लिए जारी कर व्यवस्था ही प्रभावी होगी। इस निर्णय से सरकार के राजस्व में 1400 करोड़ रुपये की कमी आयेगी।
विनिर्माण क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद में करीब 50 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले ऑटो सेक्टर में पिछले एक साल से जारी मंदी को देखते हुये इस क्षेत्र के लिए भी वित्त मंत्री ने घोषणाएं की। अगले वर्ष 01 अप्रैल से नयी व्यवस्था अर्थात बीएस-6 के लागू होने के मद्देनजर ग्राहकों के मन में बीएस-4 वाहनों को लेकर जो आशंकायें थीं उन्हें दूर करते हुये श्रीमती सीतारमण ने कहा कि 31 मार्च 2020 तक खरीदे गये सभी बीएस-4 वाहन पूर्ण पंजीयन अवधि तक के लिए वैध रहेंगे। इसके साथ ही वाहनों के पंजीयन पर लगने वाले एक मुश्त शुल्क की होने वाली समीक्षा को 31 मार्च 2020 तक के लिए टाल दिया गया है। अब से लेकर 31 मार्च 2020 तक खरीदे जाने वाले वाहनों पर मूल्य में कमी से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए इस कमी को 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 30 प्रतिशत किया जा रहा है।
वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार पुराने वाहनों के स्थान पर नये वाहन खरीदने पर लगी रोक को हटायेगी और पुराने वाहनों के लिए स्क्रैप नीति लाने के साथ ही विभिन्न उपायों पर भी विचार करेगी।
इन सभी घोषणाओं से अगले सप्ताह बाजार में लिवाली का जोर रहने की पूरी उम्मीद है। इसके अलावा शुक्रवार को चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़े भी शुक्रवार शाम जारी होने हैं। निवेशकों की नजर इस महत्त्वपूर्ण आंकड़े पर भी होगी।
नईदिल्ली,25 अगस्त । देशभर में मानसून की प्रगति के साथ खरीफ फसलों की बुवाई में भी सुधार हुआ है, खासतौर से प्रमुख खरीफ दलहन अरहर और तिलहनों में सोयाबीन का बुवाई क्षेत्र पिछले साल के मुकाबले ज्यादा हो गया है, हालांकि सीजन की सबसे प्रधान फसल धान का रकबा अभी तक घटा हुआ है। कपास का रकबा शुरू से ही पिछले साल से ज्यादा बना हुआ है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की ओर से इस सप्ताह जारी बुवाई के आंकड़ों के अनुसार, देशभर में खरीफ फसलों की बुवाई 975.16 लाख हेक्टेयर हो चुकी है, जबकि पिछले साल अब तक 997.67 लाख हेक्टेयर में खरीफ फसलों की बुवाई हो चुकी थी। इस प्रकार सभी खरीफ फसलों की बुवाई का कुल रकबा पिछले साल से 22.51 लाख हेक्टेयर कम है।
किसानों ने पिछले साल अब तक कुल 357.97 लाख हेक्टेयर जमीन में धान की फसल लगाई थी, लेकिन इस साल अब तक धान का रकबा 334.92 लाख हेक्टेयर है। मतलब, धान का रकबा पिछले साल से 23.04 लाख हेक्टेयर पिछड़ा हुआ है।
दलहनों की बुवाई 124.56 लाख हेक्टेयर में हुई, जबकि पिछले साल की समान अवधि में दलहनों का रकबा 128.53 लाख हेक्टेयर था। इस प्रकार दलहनों की बुवाई पिछले साल से छह लाख हेक्टेयर यानी 3.97 फीसदी कम है। लेकिन अरहर का रकबा 43.43 लाख हेक्टेयर हो गया है जबकि पिछले साल 43.26 लाख हेक्टेयर था।
तिलहनों की बुवाई करीब 167.89 लाख हेक्टेयर में हुई है, जबकि पिछले साल अब तक तिलहनों की बुवाई का रकबा 167.55 लाख हेक्टेयर हो चुका था। तिलहनों में सोयाबीन का रकबा 112.51 लाख हेक्टेयर हो चुका है जबकि पिछले साल 111.50 लाख हेक्टेयर था।
मोटे अनाजों की बुवाई 165.03 लाख हेक्टेयर में हुई है, जबकि पिछले साल अब तक 164.09 लाख हेक्टेयर में मोटे अनाजों की बुवाई हो चुकी थी। किसानों ने पिछले साल अब तक 116.85 लाख हेक्टेयर में कपास की बुवाई की थी जबकि इस साल 123.54 लाख हेक्टेयर में कपास की फसल लग चुकी है। इस प्रकार कपास का रकबा पिछले साल से 6.70 लाख हेक्टेयर बढ़ा है।
मुंबई,23 अगस्त । देश की अर्थव्यवस्था के हालात को लेकर बनी अनिश्चिता के माहौल के बीच घरेलू शेयर बाजार में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की बिकवाली के दबाव से रुपये में लगातार कमजोरी देखी जा रही है। डॉलर के मुकाबले रुपया शुक्रवार को लुढक़ कर 72 रुपये प्रति डॉलर से नीचे आ गया जोकि इस साल का सबसे निचला स्तर है। बाजार विश्लेषकों की माने तो मौजूदा घरेलू और वैश्विक परिस्थितियों को देखते हुए रुपये में और कमजोरी बढऩे की संभावना है और देसी करेंसी 74 रुपये प्रति डॉलर के मनोवैज्ञानिक स्तर को तोड़ सकता है।
इस साल की शुरूआत में घरेलू इच्टिी और डेब्ट बाजार में डॉलर की आमद बढऩे के कारण रुपये में जबरदस्त मजबूती रही, लेकिन अब विपरीत स्थिति पैदा हो गई है। इसके अलावा, कच्चे तेल के दाम में नरमी रहने से भी रुपये को सपोर्ट मिला क्योंकि तेल का दाम बढऩे से आयात के लिए ज्यादा डॉलर की जरूरत होती है।
कार्वी कॉमट्रेड लिमिटेड के सीईओ रमेश वरखेडकर ने बताया कि कुछ समय पहले दुनिया में भारत को सबसे तेजी से विकास करने वाली अर्थवस्था के रूप में देखा जाता था और देश में स्थिर सरकार बनने की संभावना पहले से ही जताई जा रही थी जिससे विदेशी निवेशक भारत की ओर आकर्षित हुए।
इस साल जून में व्यापार घाटा पिछले साल के इसी महीने के मुकाबले घटकर 15.28 अरब डॉलर रहा। पिछले साल जून में देश का व्यापार घाटा 16.60 अरब डॉलर था। मगर निर्यात और आयात दोनों में गिरावट आने से देशी अर्थव्यस्था की सेहत को लेकर आशंका जताई जाने लगी और अब नीति निमार्ता भी मानने लगे हैं कि अर्थव्यवस्था से सेहत खराब है।
एंजेल ब्रोकिंग के डिप्टी वाइस प्रेसिडेंट ( इनर्जी व करेंसी रिसर्च) अनुज गुप्ता भी रुपये में और कमजोरी बढऩे की संभावना जता रहे हैं, लेकिन उनका मानना है कि चालू वित्त वर्ष की चैथी तिमाही में रुपया 74 के मनोवैज्ञानिक स्तर को तोड़ सकता है।
पिछले साल अक्टूबर मे देसी करेंसी 74.47 रुपये प्रति डॉलर के ऊंचे स्तर पर चला गया था। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में मई 2014 में रुपया का निचला स्तर 58.33 रुपये प्रति डॉलर था। अनुज गुप्ता के अनुसार, रुपये में कमजोरी की मुख्य वजह घरेलू अर्थव्यवस्था में मंदी की आहट और विदेशी निवेशकों का निराशाजनक रुझान है जिसके कारण वे भारतीय बाजार में लगातार बिकवाली कर रहे हैं जिससे निफ्टी छह महीने के निचले स्तर पर आ गया है।
नईदिल्ली,23 अगस्त । साल 2019 की दूसरी तिमाही में शोधकर्ताओं ने 16,017 नए रैंसमवेयर का पता लगाया है, जिसमें आठ नए मालवेयर परिवार के हैं, जो कि साल 2018 की दूसरी तिमाही में पाए गए नए नमूनों की संख्या (7,620) से दोगुने हैं। रूसी साइबर सिक्योरिटी फर्म कास्परस्की ने गुरुवार को यह जानकारी दी।
कास्परस्की की आईटी थ्रेट इवोल्यूशन क्यू2 2019 रिपोर्ट के मुताबिक, समीक्षाधीन तिमाही में 2,30,000 से ज्यादा हमले किए गए। कास्परस्की के सुरक्षा शोधार्थी फेडर सिनिटसन ने एक बयान में कहा, इस तिमाही में हमने नए रैंसमवेयर की संख्या में बढ़ोतरी का पता लगाया है।
ये रैंसमवेयर निजी और कार्पोरेट दोनों तरह के कंप्यूटरों पर हमला करते हैं और उनकी फाइलों को लॉक कर देते हैं। उन फाइलों को दुबारा खोलने के लिए फिरौती की मांग करते हैं और मिलने के बाद ही वे अपनी महत्वपूर्ण फाइलों को वापस प्राप्त कर पाते हैं।
रिपोर्ट में बताया गया कि 2019 की दूसरी तिमाही में कुल 2,32,292 यूजर्स पर इस प्रकार का हमला किया गया, जोकि एक साल पहले की तुलना में 46 फीसदी अधिक है। 2018 की दूसरी तिमाही में यह संख्या 1,58,921 यूजर्स की थी। जिन देशों में सबसे ज्यादा हमला हुआ, उसमें बांग्लादेश (9 फीसदी), उजबेकिस्तान (6 फीसदी) और मोजांबिक (4 फीसदी) शामिल है।