नई दिल्ली । भारत में 2025 की पहली तिमाही में विलय और अधिग्रहण (एमएंडए) और प्राइवेट इक्विटी (पीई) डील्स की वैल्यू में सालाना आधार पर बड़ा 204 प्रतिशत का उछाल दर्ज किया गया है। जनवरी-मार्च अवधि में 67 डील हुई हैं और इनकी वैल्यू 5.3 बिलियन डॉलर रही है। यह जानकारी गुरुवार को जारी हुई ग्रांट थॉर्नटन भारत की रिपोर्ट में दी गई। रिपोर्ट के मुताबिक, इस तिमाही में 100 मिलियन डॉलर से अधिक के छह हाई-वैल्यू लेन-देन भी हुए, जिनकी कुल वैल्यू 4.3 बिलियन डॉलर थी। पिछली तिमाही में 100 मिलियन डॉलर से अधिक की केवल चार डील हुई थी और इनकी वैल्यू 534 मिलियन डॉलर थी।
रिपोर्ट में बताया गया कि यह रुझान निवेशकों के बीच नए सिरे के आत्मविश्वास को दर्शाता है, जो वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भारत को पूंजी निवेश के लिए एक पसंदीदा गंतव्य के रूप में स्थापित करता है। ग्रांट थॉर्नटन भारत के विशाल अग्रवाल ने कहा, वैश्विक चुनौतियों और पूंजी बाजार में उतार-चढ़ाव के बावजूद, भारत की विकास दर आशाजनक बनी हुई है। बजट 2025 में विनियामक सरलीकरण और सहयोगात्मक विकास पर जोर दिए जाने के साथ, हम उम्मीद करते हैं कि पूंजीगत व्यय में तेजी आएगी, जिससे नए सिरे से पूंजी प्रवाह को बढ़ावा मिलेगा।
2025 की पहली तिमाही में एमएंडए सेगमेंट में 28 डील हुई हैं और इनकी वैल्यू 4 अरब डॉलर से अधिक थी। तिमाही आधार पर यह डील वॉल्यूम का अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा और वैल्यू का तीसरा सबसे बड़ा आंकड़ा है। पीई सेगमेंट में मार्च तिमाही में 37 डील हुई हैं और इनकी वैल्यू करीब एक अरब डॉलर रही। पिछली तिमाही के मुकाबले डील वैल्यू में 2 प्रतिशत की मामूली बढ़ोतरी हुई है।
रिपोर्ट में बताया गया कि पूंजी बाजारों ने 2025 की पहली तिमाही में सुस्त प्रदर्शन किया, जिसमें आईपीओ गतिविधि में कमी देखी गई। इस दौरान 316 मिलियन डॉलर के कुल दो क्यूआईपी जारी हुए थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्राथमिक बाजार गतिविधि में मंदी से पता चलता है कि कंपनियां प्रतीक्षा और निगरानी का दृष्टिकोण अपना रही हैं और संभावित रूप से अधिक अनुकूल बाजार स्थितियों के लिए लिस्टिंग और पूंजी जुटाने को टाल रही हैं।
नई दिल्ली । इस्पात मंत्रालय ने शुक्रवार को बताया कि तीन दिवसीय कार्यक्रम ‘इंडिया स्टील 2025’ में विभिन्न हितधारकों को भारतीय इस्पात क्षेत्र में मौजूद संभावनाओं, चुनौतियों और अवसरों का पता लगाने के लिए एक मंच पर लाया गया है। यह कार्यक्रम मुंबई में 24 – 26 अप्रैल तक आयोजित किया गया है।
उद्घाटन सत्र को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को एक वीडियो संदेश के माध्यम से संबोधित किया, जिसमें उन्होंने घरेलू इस्पात उत्पादन को बढ़ाने, कार्बन उत्सर्जन को कम करने और ‘मेक इन इंडिया’ को बढ़ावा देने के लिए भारत की रणनीतिक दृष्टि पर जोर दिया।
मंत्रालय के अनुसार, दिन के दौरान कई महत्वपूर्ण सत्र आयोजित किए गए। ‘विकसित भारत: भारतीय अर्थव्यवस्था में इस्पात क्षेत्र की भूमिका’ पर सत्र में वरिष्ठ नीति निर्माताओं, अर्थशास्त्रियों और उद्योग जगत के नेताओं के एक उच्च स्तरीय पैनल ने भारत की 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को साकार करने में इस्पात की महत्वपूर्ण भूमिका पर चर्चा की।
‘सीईओ राउंड टेबल’ की अध्यक्षता इस्पात और भारी उद्योग मंत्रालय के राज्य मंत्री भूपति राजू श्रीनिवास वर्मा ने की, जिसमें भारतीय इस्पात क्षेत्र के लिए मौजूदा चुनौतियों और विकास पर चर्चा की गई। ‘इंडिया-रूस राउंडटेबल’ दोनों देशों के प्रमुख हितधारकों के बीच द्विपक्षीय जुड़ाव के लिए एक रणनीतिक मंच रहा।
यह चर्चा, इस्पात और खनन क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने, संयुक्त उद्यमों को बढ़ावा देने और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और व्यापार सुविधा के लिए नए रास्ते तलाशने पर केंद्रित थी। ‘इंडिया स्टील 2025’ के दूसरे दिन वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल; शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान; रेलवे और इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव; नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री प्रहलाद जोशी और ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी की उपस्थिति रही।
पहले दिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शून्य आयात के लक्ष्य की आवश्यकता और इस्पात क्षेत्र के लिए शुद्ध निर्यात पर ध्यान केंद्रित करने पर जोर दिया। भारत वर्तमान में 25 मिलियन टन इस्पात निर्यात करने और वर्ष 2047 तक उत्पादन क्षमता को 500 मिलियन टन तक बढ़ाने के लक्ष्य की दिशा में काम कर रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस्पात क्षेत्र को नई प्रक्रियाओं, ग्रेड और स्केल के लिए तैयार करने के महत्व पर जोर दिया और उद्योग से भविष्य के लिए तैयार मानसिकता के साथ विस्तार और अपग्रेड करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, हमें गर्व है कि आज भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक बन गया है। हमने राष्ट्रीय इस्पात नीति के तहत 2030 तक 300 मिलियन टन इस्पात उत्पादन का लक्ष्य रखा है।
नई दिल्ली । विश्व बैंक समूह ने अपने प्राइवेट सेक्टर इन्वेस्टमेंट लैब (पीएसआईएल) के अगले चरण को लॉन्च करने की घोषणा की है। यह चरण बड़े पैमाने पर बेहतरीन समाधानों को लागू करने पर केंद्रित है और इसके नए सदस्यों में भारती एंटरप्राइजेज के संस्थापक और अध्यक्ष सुनील भारती मित्तल शामिल हैं। इस नए चरण में लैब की मेंबरशिप का विस्तार किया गया है। इसमें विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में रोजगार सृजन का अनुभव रखने वाले उद्योग जगत के नेताओं को शामिल किया गया है। उद्योग जगत के इन नेताओं के अनुभव के साथ विश्व बैंक रोजगार सृजन पर ध्यान केंद्रित कर सकेगा।
विश्व बैंक समूह के अध्यक्ष अजय बंगा ने कहा, मेंबरशिप बढ़ाने के साथ हम अपने संचालन में इस काम को मुख्यधारा में ला रहे हैं और इसे सीधे रोजगार एजेंडे से जोड़ रहे हैं। बंगा ने कहा, यह कदम प्राइवेट सेक्टर को निवेश का रास्ता दिखाने में मददगार होगा। परिणामस्वरूप निवेश से रिटर्न मिलेगा और अर्थव्यवस्थाओं को समान रूप से ऊपर उठने में मदद मिलेगी। यह हमारे जनादेश का केंद्र है।
लैब के नए सदस्यों में बेयर एजी के सीईओ बिल एंडरसन, डांगोटे ग्रुप के प्रेसिडेंट और सीईओ अलिको डांगोटे, हयात होटल्स कॉर्पोरेशन के प्रेसिडेंट और सीईओ मार्क होपलामाजियन शामिल हैं। मित्तल ने कहा, विश्व बैंक समूह दुनिया भर में उभरते बाजारों में अर्थव्यवस्थाओं को विकसित करने और अवसर पैदा करने की पहल के साथ आगे बढ़ रहा है। जैसा कि प्रेसिडेंट बंगा ने कहा है कि प्राइवेट सेक्टर परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उन्होंने कहा कि मुझे अन्य प्रतिष्ठित व्यावसायिक नेताओं के साथ पीएसआईएल में शामिल होने पर खुशी है।
मित्तल ने आगे कहा, मैंने कनेक्टिविटी की पावर को प्रत्यक्ष रूप से देखा है, जो व्यवसायों को बढऩे और समुदायों को फलने-फूलने के अवसर पैदा कर जीवन को बदल सकती है। मुझे उम्मीद है कि दूरसंचार क्षेत्र की सफलताएं मूल्यवान होंगी क्योंकि पीएसआईएल अपने महत्वपूर्ण कार्य के अगले चरण में प्रवेश कर रहा है। पिछले 18 महीनों में लैब ने विकासशील देशों में निजी क्षेत्र के निवेश में सबसे अधिक दबाव वाली बाधाओं की पहचान करने और कार्रवाई किए जाने वाले समाधानों का परीक्षण करने के लिए वैश्विक वित्तीय संस्थानों के लीडर्स को एक साथ लाने पर काम किया है।
नई दिल्ली । हुंडई मोटर ग्रुप ने गुरुवार को बताया कि कंपनी ने भविष्य की मोबिलिटी टेक्नोलॉजी को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से भारत में एक नया रिसर्च सेंटर स्थापित करने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली के साथ साझेदारी की है। नए रिसर्च सेंटर के लिए इस साझेदारी में इलेक्ट्रिफिकेशन और बैटरी सिस्टम पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। इस साझेदारी समझौते के तहत दोनों पक्ष हुंडई सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की स्थापना करेंगे। हुंडई सेंटर ऑफ एक्सीलेंस एक लॉन्ग-टर्म एकेडमिक-इंडस्ट्री कॉर्पोरेशन फ्रेमवर्क के तहत जॉइंट रिसर्च प्रोजेक्ट के लिए केंद्र के रूप में काम करेगा।
हुंडई मोटर और किआ ने भविष्य की मोबिलिटी टेक्नोलॉजी में रिसर्च को आगे बढ़ाने के लिए दो वर्षों में लगभग 5 बिलियन वॉन (3.5 मिलियन डॉलर) का निवेश करने की योजना बनाई है। समूह ने आईआईटी दिल्ली के साथ नौ सहयोगी परियोजनाओं की पहचान की है, जो बैटरी सेल और सिस्टम, बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम, सेफ्टी, ड्यूरेबिलिटी और डायग्नोस्टिक टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों को कवर करती हैं।
केंद्र बैटरी डिजाइन और परफॉर्मेंस को और बेहतर बनाने के लिए नई मटेरियल और कंपोनेंट्स की भी खोज करेगा। नई दिल्ली में एक आधिकारिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर समारोह आयोजित किया गया, जिसमें हुंडई के अनुसंधान और विकास प्रभाग के अध्यक्ष और प्रमुख यांग हेई-वोन और आईआईटी दिल्ली के निदेशक रंगन बनर्जी सहित अन्य लोग शामिल हुए।
यांग ने कहा, हम बैटरी इनोवेशन में भारत के सबसे प्रतिभाशाली लोगों के साथ काम करने के लिए उत्साहित हैं। यह साझेदारी भारत की अनूठी बाजार जरूरतों को पूरा करते हुए फ्यूचर मोबिलिटी सॉल्यूशन विकसित करने में अहम होगी। साथ ही यह साझेदारी से भारत की अर्थव्यवस्था और समाज में योगदान करने की हमारी प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है।
हुंडई मोटर इंडिया ने हाल ही में भारत से निर्यात के 25 साल पूरे किए हैं, जिससे इस क्षेत्र में सबसे बड़े निर्यातक के रूप में इसकी स्थिति मजबूत हुई है। 1999 में निर्यात शुरू करने के बाद से, कंपनी ने दुनिया भर में 3.7 मिलियन से अधिक वाहन भेजे हैं। कंपनी के निर्यात डेटा ने भारत के आत्मनिर्भर और वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी ऑटोमोबाइल उत्पादन के लिए प्रयास की सफलता को दर्शाया। पिछले कुछ वर्षों में, हुंडई ने 150 से अधिक देशों को कारों का निर्यात करते हुए अपनी वैश्विक पहुंच का विस्तार किया है।
नई दिल्ली । भारत अब एक आकर्षक बाजार बनता जा रहा है, जो वैश्विक उपभोक्ता उत्पाद कंपनियों को अच्छा मुनाफा देते हुए अपनी पिछली छवि को बदल रहा है। यह जानकारी गुरुवार को आई एक रिपोर्ट में दी गई। भारत की सहयोगी कंपनियां कुछ प्रमुख बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एमएनसी) के लिए अपने ग्लोबल पैरेंट कंपनियों की तुलना में दो से छह गुना के बीच कुल शेयरधारक रिटर्न देती हैं। बेन एंड कंपनी की रिपोर्ट के अनुसार, 100 मिलियन डॉलर के भारतीय राजस्व योगदान वाली कंपनियों पर ध्यान देने से जानकारी मिलती है कि 60 प्रतिशत भारतीय सहयोगी कंपनियों का राजस्व उनकी पैरेंट कंपनियों की वृद्धि दर से कम से कम दोगुना है।
भारत में बेन के कंज्यूमर प्रोडक्ट प्रैक्टिस के प्रमुख रवि स्वरूप ने कहा, भारत में पहले से निवेश करने वाली कंपनियों को विकास, उच्च शेयरधारक रिटर्न और वैश्विक रूप से प्रासंगिक उत्पादों को आकार देने के अवसरों का लाभ मिल रहा है। उन्होंने कहा कि जिन बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने बाजार में प्रवेश नहीं किया है, उन्हें अभी कार्रवाई करनी चाहिए। अगर वे ऐसा नहीं करती हैं तो उन्हें विकास और लॉन्ग टर्म रणनीतिक लाभ से चूकना पड़ सकता है। पिछले दशक में उभरते बाजारों में भारत उपभोक्ता उत्पादों की वृद्धि में तीसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता रहा है।
अगले 5-6 वर्षों में देश वैश्विक स्तर पर कामकाजी आयु वर्ग की आबादी में सबसे अधिक वृद्धि दर्ज करेगा। साथ ही टॉप पांच उभरते उपभोक्ता उत्पादों के बाजारों में प्रति व्यक्ति आय में सबसे तेज वृद्धि देखेगा, जिसमें चीन, ब्राजील, मैक्सिको और रूस जैसे देशों के नाम भी शामिल होंगे। भारत को पारंपरिक रूप से बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए एक कठिन बाजार माना जाता रहा है। बावजूद इसके देश ने बाधाओं को दूर कर तेजी से सुधार किए हैं। तेजी से डिजिटल तकनीक अपनाने, स्मार्टफोन और इंटरनेट की व्यापक पहुंच ने कंपनियों को भारत की विविध आबादी तक प्रभावी ढंग से पहुंचने में सक्षम बनाया है।
रिपोर्ट के अनुसार, ई-कॉमर्स और क्विक कॉमर्स पारंपरिक और आधुनिक व्यापार चैनलों की तुलना में 2-3 गुना तेजी से बढ़े हैं, जिससे बाजार में प्रवेश करने के लिए व्यापक पारंपरिक व्यापार नेटवर्क की आवश्यकता कम हो गई है। डिजिटल पेमेंट भी लोकप्रियता प्राप्त कर रहे हैं, इसे 45 प्रतिशत इंटरनेट यूजर्स लेनदेन के लिए अपना रहे हैं। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में बेन स्ट्रैटेजी प्रैक्टिस के प्रमुख निखिल ओझा ने कहा, हम एक ऐसा बाजार देख रहे हैं, जहां पुराने और नए खिलाड़ी दोनों ही बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं, लेकिन ऐसा तभी होगा, जब वे अपने दृष्टिकोण को वास्तव में भारत-केंद्रित बनाएंगे।
श्रीनगर । जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में सैलानियों पर हुआ ताज़ा आतंकी हमला सिर्फ मासूम पर्यटकों पर किया गया हमला नहीं है, बल्कि यह कश्मीर की सांस्कृतिक विरासत, उसकी आत्मा और यहां के लाखों लोगों की रोज़ी-रोटी पर सीधा और गहरा प्रहार है। हर साल बड़ी संख्या में पर्यटक कश्मीर घूमने आते हैं और यही पर्यटन यहां की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। इस हमले ने इस महत्वपूर्ण उद्योग को गंभीर रूप से प्रभावित किया है।
कश्मीर, जिसे ‘धरती का स्वर्ग’ कहा जाता है, का पर्यटन उद्योग लगभग 12,000 करोड़ रुपये का है। यह राज्य की जीडीपी में 7-8 प्रतिशत की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी रखता है। उम्मीद थी कि 2030 तक यह उद्योग बढक़र 25,000 से 30,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा, लेकिन इस आतंकी वारदात ने उस विकास यात्रा पर एक गंभीर ब्रेक लगा दिया है।
कश्मीर में पर्यटन से जुड़ी विभिन्न गतिविधियां जैसे होटल, हाउस बोट, टैक्सी सेवाएं, गाइड और हस्तशिल्प सीधे तौर पर लगभग 2.5 लाख लोगों के लिए जीविका का साधन हैं। डल झील में चलने वाली 1500 से अधिक हाउस बोट, 3000 से ज्यादा होटल के कमरे और अनगिनत कैब सेवाएं अब अनिश्चितता और सन्नाटे का सामना कर सकती हैं।
हमले के तुरंत बाद से ही कश्मीर के लिए हुई बुकिंग्स में भारी मात्रा में कैंसिलेशन की खबरें आ रही हैं। फ्लाइट टिकट से लेकर होटल और टैक्सी तक, सब कुछ रद्द कराया जा रहा है, जिससे पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों में निराशा और चिंता है।
गुलमर्ग, सोनमर्ग, पहलगाम और डल झील जैसे प्रमुख पर्यटन स्थलों पर हर साल लाखों सैलानी आते हैं। वर्ष 2024 में रिकॉर्ड 2.36 करोड़ पर्यटकों ने कश्मीर का दौरा किया था, जिनमें 65,000 से अधिक विदेशी पर्यटक भी शामिल थे। अकेले गुलमर्ग से ही पिछले साल 103 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था। लेकिन, अब ये सारे पर्यटन केंद्र डर और अनिश्चितता के साये में हैं।
कश्मीर न केवल सामान्य पर्यटकों की पसंद रहा है, बल्कि यह बॉलीवुड और ओटीटी प्रोड्यूसर्स के लिए भी शूटिंग का एक पसंदीदा डेस्टिनेशन रहा है। इसके अलावा, डेस्टिनेशन वेडिंग की बढ़ती मांग ने भी हाल के वर्षों में यहां के पर्यटन को गति दी थी। लेकिन, अब फिल्म यूनिट्स और वेडिंग प्लानर्स भी अपनी योजनाओं पर पुनर्विचार कर रहे हैं।
केंद्र सरकार ने भी कश्मीर में पर्यटन के विकास और इसे फिर से पटरी पर लाने के लिए 1000 करोड़ रुपये की विशेष योजना बनाई थी। एयर कनेक्टिविटी में सुधार किया जा रहा था, वंदे भारत जैसी आधुनिक ट्रेनें शुरू होने वाली थीं, और विदेशी सैलानियों को आकर्षित करने के लिए ऑन-अराइवल वीज़ा जैसी योजनाएं भी चलाई जा रही थीं। 75 नए टूरिस्ट डेस्टिनेशन, हेरिटेज साइट्स और धार्मिक स्थलों को विकसित करने का काम भी चल रहा था। लेकिन, आतंकवाद की इस एक वारदात ने इन सभी प्रयासों और कश्मीर के सुनहरे भविष्य की उम्मीदों को धुंधला कर दिया है। यह हमला सिर्फ बेकसूर लोगों पर नहीं, बल्कि कश्मीर के विकास और यहां के लोगों के आर्थिक भविष्य पर किया गया है।