संपादकीय

भीतरी समृद्धि का भी हो अहसास
Posted Date : 26-Mar-2019 11:30:40 am

भीतरी समृद्धि का भी हो अहसास

रेनू सैनी
व्यक्ति जिस परिवर्तन एवं अंदाज के साथ अपना जीवनयापन करता है, वही उसकी जीवनशैली कहलाती है। जीवनशैली अधिकतर परिवेश एवं परिस्थितियों पर निर्भर करती है। लेकिन जीवट, सुसंस्कृत एवं विवेकयुक्त मनुष्य हर तरह की प्रतिकूल परिस्थिति से लडऩे में सक्षम होते हैं। वे प्रतिकूल परिस्थितियों के बहाव में बहते नहीं हैं, बल्कि संघर्ष करके प्रतिकूल परिस्थितियों के बहाव को दूसरी ओर मोड़ देते हैं।
वहीं ढुलमुल लोग हवा के झोंके की भांति प्रतिकूल परिस्थितियों के बहाव में बहते चलते हैं। उनकी जीवनशैली परिवेश के अनुरूप बनती जाती है क्योंकि वे अपने मस्तिष्क का प्रयोग नहीं करते। वे इतने दृढ़ निश्चय के भी नहीं होते कि इस बात को जान लें कि विपरीत परिस्थितियां व्यक्तियों को कुछ देर के लिए डरा सकती हैं लेकिन मंजिल तक पहुंचने से नहीं रोक सकतीं। समाज का तानाबाना और संरचना इसी प्रकार की बनी हुई है कि जो लोग निरर्थक प्रवृत्ति के होते हैं, उन्हें कोई महत्व नहीं देता। ऐसे व्यक्ति जीवन की पाठशाला में अनुत्तीर्ण ही रहते हैं।
चाणक्य कहते हैं कि जीवन व्यक्तियों को बहुत-सी बातें सिखाता है। बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक व्यक्ति को अनेक तरह के अनुभव होते हैं। उन अनुभवों को दूसरों को बांटना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ी लाभान्वित हो सके और एक समृद्ध जीवनशैली की ओर बढ़ सके। समृद्ध जीवनशैली का अर्थ केवल धनार्जन करना ही नहीं होता बल्कि यह जानना भी है कि जीना कैसे है
कुछ लोग अपने इर्दगिर्द बेहद खूबसूरत चीजों को देखते हैं लेकिन इसके बावजूद वे हृदय से खुश नहीं होते। वहीं अनेक ऐसे लोग भी होते हैं, जिनके पास धन की कोई सीमा नहीं होती लेकिन धन से परिपूरित होने के बाद भी उनके मनमस्तिष्क में अनेक चिंताएं एवं बातें उमड़-घुमड़ रही होती हैं। कुछ लोग बेहद अमीर होने के बाद भी हृदय से खाली होते हैं वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनके पास अर्थ बहुत अधिक नहीं होता परंतु फिर भी वे एक संतुष्टि का बोध करते हुए संपन्नता के साथ जीवनयापन करते हैं।
समृद्ध जीवनशैली का सबसे बड़ा स्रोत यह है कि व्यक्ति को संचित धन को दान द्वारा रिक्त करने रहना चाहिए। इससे एक ओर मनुष्य जहां लोक में यश एवं मान सम्मान प्राप्त करते हैं, वहीं उन्हें अंतर्मन से भी समृद्धि के अहसास होते हैं। यहां इसका केवल यह अर्थ नहीं है कि व्यक्ति को अर्थ के माध्यम से ही मदद करनी चाहिए अपितु यह किसी भी स्वरूप में हो सकती है। हां, जब आप मदद करें तो नि:स्वार्थ भाव से अपनी कल्पना से थोड़ी-सी अधिक कर दें। आपकी थोड़ी-सी अधिक मदद आपको पूरा दिन समृद्धि का अहसास कराएगी।
कल्पना कीजिए आप गाड़ी में सफर कर रहे हैं। ट्रैफिक लाइट पर गाड़ी रुक जाती है। एक 14-15 वर्षीय बालिका आपकी गाड़ी की ओर आती है। उसके हाथों में रंगबिरंगे गुब्बारे हैं। वह उन्हें बेचने के लिए आपसे पूछती है। आप 10 गुब्बारे ले लेते हैं और उनका दाम पूछते हैं। बालिका उत्साहपूर्वक सौ रुपए बताती है। आप अपनी जेब से 110 रुपए बालिका को देते हैं। 110 रुपए पाकर बालिका का चेहरा चमक उठता है और वह उत्साहित होकर आपका धन्यवाद करती है। इसके बाद आपके हृदय में भी एक आत्मसंतुष्टि, आत्मविश्वास एवं प्रसन्नता के चिन्ह छलकने लगते हैं। केवल 10 रुपए अधिक देने से व्यक्ति की मानसिकता में जबरदस्त उछाल आ जाता है जो उसकी जीवनशैली को परिपक्व और सुखी-समृद्ध बनाने में मदद करता है।
अगर व्यक्ति जीवनशैली और प्रसन्नता की कला में महारत हासिल कर लेता है तो अधिक अर्थ उसकी खुशी और आंतरिक दौलत को बढ़ा देता है। उसके चेहरे पर आत्मविश्वास की गरिमा झलकने लगती है, उत्साह से चेहरे पर चमक आ जाती है। अच्छी जीवनशैली का अर्थ यह भी है कि व्यक्ति हर उत्कृष्टता को पुरस्कृत करे। जब वह हर उत्कृष्टता को पुरस्कृत करता है तो स्वयं भी बार-बार पुरस्कृत होता रहता है।
छोटी-छोटी बातों पर खुश होना चाहिए क्योंकि पलट कर देखने पर महसूस होता है कि वही बड़ी चीजें थीं। स्वयं को समृद्ध और खुश रखने के लिए आपको ही प्रयास करने होंगे। कोई भी व्यक्ति सदा के लिए किसी को खुश, सुख और यश प्रदान नहीं कर सकता। समृद्ध जीवनशैली का आनंद लेना कोई मुश्किल काम नहीं है। बस इसके लिए आपको पुस्तकों, लोगों और रोमांचकारी अनुभवों के प्रभाव से अपने ज्ञान और अनुभव का विस्तार करना है। ये सब बातें आपको एक अच्छा एवं कामयाब जीवन प्रदान करती हैं। आज से ही कोई ऐसा काम सोचें, जिसे आप कर सकते हों। आप पाएंगे कि जीवन पहले से ज्यादा सुखी, प्रसन्न एवं समृद्ध हो रहा है।

 

बहादुर मां का जांबाज बेटा
Posted Date : 09-Mar-2019 10:06:11 am

बहादुर मां का जांबाज बेटा

अरुण नैथानी
वह ध्रुव तारे की तरह भारतीय आकाश पर उदय हुआ और हरदिल अजीज बन गया। अब तक उसका नाम भी अधिकांश लोग नहीं जानते थे। मगर नब्बे सेकेंड की ?आकाशीय मुठभेड़ में उसने न केवल दुश्मन के गरूर और अमेरिका के तकनीकी सर्वोच्चता के भ्रम को ध्वस्त किया, बल्कि वीरता-साहस की नई इबारत भी लिखी। वास्तव में कोई ऐसा अभिनंदन सदियों में पैदा होता है। अभिनंदन के पिता पूर्व एयर मार्शल ने जहां उन्हें आकाश की ऊंचाइयां नापने का हौसला दिया, वहीं मां ने वीरता-साहस के ऐसे अद्भुत संस्कार दिये कि आज देश को सही मायनों में हीरो मिला, जिसने अपने विमान से दुश्मन की जमीन पर गिरने के बाद ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाये। दुश्मन की गिरफ्त में आने के बावजूद वे कभी आत्मबल से कमजोर नजर नहीं आये। दो टूक नपे-तुले शब्दों में जवाब देते नजर आये।
अभिनंदन से पहले उनकी वीरांगना मां को नमन् करने का मन करता है, जिसने बुद्धिमत्ता और वीरता के संस्कार ?अभिनंदन की रक्त शिराओं में भरे। अभिनंदन की मां डॉ.?शोभा ने मानवता के सेवा के लिए बम धमाकों व एके-47 की बारिश के बीच घायलों व पीडि़तों की मदद की अनूठी मिसाल कायम की। उन्होंने दुनिया के कई युद्धग्रस्त देशों इराक, साइबेरिया, आइवरी कोस्ट, पापुआ न्यू गिनी, और लाओस में युद्ध पीडि़तों की मदद की। युद्धों में यौन हिंसा की शिकार हजारों महिलाओं के शारीरिक व मानसिक उपचार तथा हजारों बच्चों के चेहरे में मुस्कान लाने का महत्वपूर्ण कार्य किया।
कई बार उनका जीवन खतरे में पड़ा, मगर मानवता की सेवा से पीछे नहीं हटीं। दरअसल, डॉ. शोभा युद्धग्रस्त व अशांत देशों में मुफ्त सेवाएं देने वाले समूह मेडिसेन्स सैन्स फ्रंटीयर्स की सदस्य थीं, जिनके लिये भौगोलिक सीमाओं के मायने नहीं थे। खाड़ी युद्ध के दौरान उन्होंने दूसरा जीवन पाया जब इराक में फिदायीन हमले से बाल-बाल बचीं। युद्ध की विभीषिका से ग्रस्त इराकियों की चिकित्सा उपचार के साथ ही वह प्राणायाम से उन्हें युद्ध के अवसाद से निकालने का प्रयास करतीं।
ऐसी मां के पुत्र का आज देश अभिनंदन कर रहा है तो इसका श्रेय इस वीरांगना मां को भी। 21 जून, 1983 को जन्मे अभिनंदन को वायुसेना में जाने की प्रेरणा पिता एसके वर्तमान से मिली। यहां तक कि उनकी पत्नी तन्वी मारवाह भी वायुसेना में स्क्वाड्रन लीडर रही हैं। उनके मित्र बताते हैं कि अपनी स्कूली सहपाठी तन्वी मारवाह से ही उन्होंने शादी की। आज उनके दो बच्चे हैं। उनके भाई भी भारतीय वायुसेना में हैं। अभिनंदन ने स्कूल की पढ़ाई बेंगलुुरु के केंद्रीय विद्यालय से की और उच्च शिक्षा दिल्ली से हािसल की, जहां उनके पिता सेवारत रहे। कालांतर में वे खडग़वासला स्थित राष्ट्रीय रक्षा ?अकादमी के छात्र भी रहे। उनका परिवार तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई में रहता है। अभिनंदन ने भारतीय वायुसेना में एक फाइटर पायलट के रूप में अपना करिअर वर्ष 2004 में शुरू किया।
दरअसल, सुर्खियों में आने से पहले अभिनंदन मिग-21 बाइसन विमानों की स्क्वाड्रन का नेतृत्व कर रहे थे। इसके अलावा उन्हें सुखई लड़ाकू विमान उड़ाने का भी लंबा अनुभव है। अभिनंदन के दोस्त बताते हैं कि शुरुआत से ही अभिनंदन बड़े दिलेर किस्म के रहे हैं। यही वजह है कि विंग कमांडर अभिनंदन ने पाकिस्तान के एफ-16 के पायलट को नब्बे सेकेंड की आकाशीय मुठभेड़ में शिकस्त दे दी। जिस 90 सेकेंड में किसी निर्णय के बार में सोच रहे होते हैं, उस समय में उन्होंने दो पाकिस्तान मिसाइलों और एक अत्याधुनिक फाइटर प्लेन को ध्वस्त कर दिया। वह भी एक पुरानी तकनीक वाले मिग-21 और आधुनिक तकनीक वाले एफ-16 फाइटर प्लेन के बीच मुकाबले में। अपनी जान की परवाह न करके उन्होंने एक ?इतिहास रच दिया। यह उनका साहस ही है कि अंदरूनी चोट होने के बावजूद वह फिर युद्धक विमान के कॉकपिट में बैठने को बेताब हैं। तभी वे हाल के वर्षों में सेना के सबसे बड़े नायक बनकर लोगों के दिलों में राज कर रहे हैं।
नि:संदेह अपने विशिष्ट व्यक्तित्व के कारण अभिनंदन देश में वीरता के नये प्रतीक बनकर उभरे हैं। ?उनकी मूंछों का स्टाइल लोगों को खूब रास आ रहा है। कभी बॉलीवुड के खलनायकों व तस्करों की पसंद की स्टाइल वाली मंूछों को अभिनंदन ने नई गरिमा दे दी है। उन्होंने वीरता व सम्मान के प्रतीक कहे जाने वाले मुहावरे को सार्थक करते हुए देश की मंूछें ?ऊंची कर दी। देश के कई भागों में लोग अभिनंदन जैसी मूंछ बनवा रहे हैं और उनके हेयर स्टाइल को अपना रहे हैं। इतना ही नहीं, अभिनंदन के प्रति गौरव का भाव रखने वाले कई सैलून तो छह सौ से अधिक लोगों की मूंछें व बाल मुफ्त बना चुके हैं। सही मायनों में अभिनंदन ने देश को ओज व वीरता का सुखद अहसास कराया है। यही वजह है कि जब वे देश लौटे तो लोग सुबह से रात तक खड़े होकर पाकिस्तानी सीमा पर उनकी प्रतीक्षा करते रहे। सही मायनों में अभिनंदन देश के सच्चे नायक हैं।

 

जीत कर भी हार, हार कर जीत
Posted Date : 07-Mar-2019 12:11:18 pm

जीत कर भी हार, हार कर जीत

प्रदीप उपाध्याय
कहते हैं कि जो जीता वही सिकन्दर लेकिन लोकतंत्र के तथाकथित मन्दिर में क्या तो पतित और क्या पावन क्योंकि उसमें किसकी घटस्थापना हुई और कौन विराजित हुआ, इस पर संशय हमेशा से बना रहा है। कारण यही है कि लोकतंत्र में जीत-हार का गणित चुनावी गोरखधन्धे से तय होता है। इसी में मूरत भी तय होती है। अत: यह तय कर पाना भी जरा मुश्किल ही है कि चुनाव करना/करवाना अनिवार्य है या फिर मजबूरी!
एक तरफ चुनाव आयोग के लिए यह अनिवार्यता हो सकती है तो दूसरी ओर मतदाता के लिए यह अनिवार्यता है या मजबूरी, यह शोध का विषय हो सकता है। कारण स्पष्ट है कि चुनाव जनता के लिए करवाए जाते हैं, चुनाव जनता के लिए ही लड़े जाते हैं, जनता के कल्याण के लिए ही लड़े जाते हैं! यही कहा, देखा और सुना गया है। किसी और ने कुछ अलग सुना या देखा हो तो बता दें।
खैर, जहां लड़ाई होती है, वहां हार-जीत भी होती है क्योंकि यह दो पक्षों के बीच होती है किन्तु लोकतंत्र के दंगल में यह समझ से परे है कि जब दो पक्ष चुनाव मैदान में उतरते हैं, एक पक्ष को सत्ता मिलती है और दूसरे पक्ष को मन मसोसकर विपक्ष में बैठना पड़ता है जबकि लड़ते दोनों ही जनता के लिए और जनता के नाम पर। एक जीतकर कहता है कि यह जनता की जीत है और दूसरा पक्ष हारकर कहता है कि यह जनता की हार है! ऐसे में कैसी हार और कैसी जीत। तब भी जीतने वाले जीत गए और हारने वाले हार गए!
पक्ष-विपक्ष अपनी जीत-हार के बहुतेरे कारण गिना देते हैं लेकिन बात वहीं आकर ठहर जाती है कि जब मतदाता ही जीता और मतदाता ही हारा, जिताने वाला भी मतदाता और हराने वाला भी मतदाता, जीतकर भी मतदाता परेशान हाल और हारकर तो रहता ही है परेशान हाल। तब मतदाता यानी आम जनता कैसे तो जीत का जश्न मनाए और कैसे हार की रुदाली गाए!
जिन्हें जीत का जश्न मनाना आता है, वे जश्न मनाते ही हैं और जो सत्ता से वंचित रह जाते हैं, उनकी रुदाली फूटते हुए अलग ही दिखाई दे जाती है। तब फिर जनता के लिए वही बात कि कैसी जीत, यहां तो हार ही हार।

 

टमाटर नहीं, अबकी बार बम बरसे
Posted Date : 02-Mar-2019 10:54:11 am

टमाटर नहीं, अबकी बार बम बरसे

ललित शौर्य
वे पिछले चार सालों से इंच टेप लेकर छाती का माप लेते रहे। उन्हें कई बार फीता छप्पन इंच से ऊपर चढ़ता दिखाई दिया, लेकिन उन्होंने झट से फीता हटा लिया। वे नहीं चाहते थे कि किसी को पता चले कि अगला वास्तव में छप्पन इंची है। इंच-इंच मापने की और मीटरों लम्बे बयानों से कोसने की साजिश चलती रही।
जिस मुगालते में विपक्ष था, कुछ वही हाल आतंकियों और पाकिस्तानी सरकार का था। वे भी इस आशा में चैन की बंसी बजा रहे थे, कि अगला बावन-तिरेपन इंची है। क्या बिगाड़ लेगा अपना। जब आजादी के इतने वर्षों तक कोई न उजाड़ पाया, कोई न उखाड़ पाया। आतंकवाद की फसल लहलहाती चली जा रही है। अब भला कौन इसमें तेजाब फेंकने की हिम्मत दिखायेगा।
आतंकियों ने छेडऩे का क्रम जारी रखा। लेकिन इस बार छेडऩे पर न छोडऩे की धमकी मिली। छप्पन इंची संस्कृति आक्रोशित थी। छेडऩे की हद लांघी जा चुकी थी। हर बार की तरह इस बार कड़ी निंदा की गई। और एक्शन लेने की बात को जोर से उछाला गया। अगले के कानों में केवल कड़ी निंदा का स्वर गूंजा, क्योंकि वह दशकों से यही सुनता आ रहा था। हमले दर हमलों के बाद उसे कड़ी निंदा सुनना अच्छा लगता था। उसे कैमरे के सामने चहकते बयानवीर बहुत भाते थे। उसे लगा इस बार भी निंदा बम फोड़ा जायेगा। बयानों के जेट उड़ाये जाएंगे। नई सरकार थी। उसे लगा शायद थोड़ा-बहुत कुछ बदलाव हो सकता है। उसे प्रारम्भिक एक्शन से लगने भी लगा था। अब कड़ी निंदा की जगह टमाटर वार होगा। टमाटर के गोले छोड़े जाएंगे। बात थोड़ा आगे बड़ी। टमाटर से बढक़र बात पानी के साथ बहनी शुरू हुई।
आतंकियों और सीमा पार वालों को लगा छप्पन इंच पानी की टोंटी बंद करके बदला लेगा। फिर पानी पर बहस होने लगी। सीमा के इस पार आक्रोश के स्वर बुलन्द हुए। विपक्षी बयानी तीर छोडऩे लगे। तंज कसने लगे।
इस बार सेना और सरकार दोनों के छप्पन इंची सीने डोलने लगे। आतंकियों की पाठशाला मिटाने की तैयारी शुरू हुई। कड़ी निंदा के साथ एक्शन का डोज पिलाया गया। आतंकियों के आकाओं के कान खड़े हो गए। वायुसेना के विमानों से गिरे बम के गोलों ने आतंकियों के ठिकानों को नेस्तनाबूत कर दिया।
टमाटर वर्षा की आशा लगाये आतंकियों की समर्थक सरकार बम के गोलों की वर्षा से डरी-सहमी दिखाई दे रही है। न उगलते बन रहा है न निगलते। वे कुछ कहने की हिम्मत जुटा नहीं पा रहे हैं। कड़ी निंदा की आशा में बड़ी कार्यवाही से अब स्तब्ध है।
इधर सीमा के इस पार भी टुकड़े-टुकड़े गैंग के सीने पर सांप लौट रहा है। न कुछ कहते बन रहा है, न चुप रहते। कायर सरकार कहने वाले सरकार को शाबासी देने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। अवार्ड वापसी गैंग गहरे सदमे में हैं, जिन्हें भारत में डर लगता था वे अब शांत हैं। लोगों में सुगबुगाहट है छप्पन इंची, एक सौ छप्पन इंच की रफ्तार में है। आतंकियों के ठिकानों पर बम वर्षा से हर भारतीय का सीना छप्पन इंच की सीमा तोड़ चुका है।

 

तेल के खेल का फायदा उठाये भारत
Posted Date : 27-Feb-2019 11:51:03 am

तेल के खेल का फायदा उठाये भारत

भरत झुनझुनवाला
बीते दिनों में अमेरिका ने वेनेजुएला से ईंधन तेल का आयात बंद कर दिया है और भारत जैसे तमाम देशों पर भी दबाव डाला है कि वे वेनेजुएला से ईंधन तेल न खरीदें। वेनेजुएला के सत्ताधारी राष्ट्रपति पर भ्रष्टाचार आदि के तमाम आरोप हैं और अमेरिका उन्हें हटाने को उद्यत है। इससे पहले अमेरिका ने ईरान पर भी इसी प्रकार के प्रतिबंध लगाये थे। अमेरिका ने व्यवस्था की थी कि ईरान के तेल के निर्यातों का पेमेंट किसी भी अमेरिकी बैंक द्वारा नहीं किया जायेगा। अमेरिका ने भारत जैसे देशों को भी आगाह किया था कि ईरान से तेल की खरीद कम कर दे। लेकिन वेनेजुएला और ईरान भारत के प्रमुख तेल आपूर्तिकर्ता हैं। इसलिए अमेरिका के कहे अनुसार इन देशों से तेल का आयात न करने से हमारी ईंधन सप्लाई कम होगी और हमारी अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। हमें इन देशों के सस्ते तेल के स्थान पर सऊदी अरब अथवा अन्य देशों से महंगे तेल को खरीदना पड़ेगा। ऐसे में हमको तय करना है कि अमेरिका का साथ देते हुए वेनेजुएला एवं ईरान से तेल की खरीद बंद करेंगे अथवा अमेरिका का सामना करते हुए इन देशों से तेल की खरीद जारी रखेंगे।
इस निर्णय को करने के लिए हमें यह समझना होगा कि अमेरिका द्वारा लगाये गए प्रतिबंधों की सफलता की क्या स्थिति है। जैसा ऊपर बताया गया है अमेरिका ने आदेश दिया है कि किसी भी अमेरिकी बैंक के माध्यम से ईरान के तेल का पेमेंट नहीं हो सकेगा। ईरान के तेल को खरीदा जा सकता है यदि उसका पेमेंट अमेरिकी बैंकों के माध्यम से न हो बल्कि दूसरे बैंकों से हो। अत: यदि यूरो के माध्यम से ईरान के तेल का पेमेंट होता है तो इसमें अमेरिका द्वारा लगाये गये प्रतिबंध आड़े नहीं आते हैं। वर्तमान में विश्व बाजार में तेल के व्यापार का 40 प्रतिशत पेमेंट अमेरिकी बैंकों के माध्यम से होता है जबकि 35 प्रतिशत यूरोपीय बैंकों से होता है। ऐसे में अमेरिकी सरकार ने अमेरिकी बैंकों को यह लेन-देन करने से मना कर दिया है। इसका सीधा परिणाम यह होगा कि तेल का पेमेंट अब डॉलर के स्थान पर यूरो के माध्यम से होगा, जिस पर अमेरिका का कोई प्रतिबंध नहीं है। इस परिप्रेक्ष्य में आने वाले समय में विश्व बाजार में तेल का अधिकाधिक लेन-देन डॉलर के स्थान पर दूसरी मुद्राओं में होने लगेगा। ऐसा होने पर अमेरिका की मंशा निष्फल होगी क्योंकि वेनेजुएला और ईरान से तेल का निर्यात होता रहेगा और उन्हें इसका पेमेंट डॉलर के स्थान पर यूरो में मिलता रहेगा।
अमेरिका की घरेलू वित्तीय हालत भी डावांडोल होती जा रही है। राष्ट्रपति ट्रम्प ने चुनावी वादा किया था कि वे अमेरिकी सरकार का वित्तीय घाटा नियंत्रित करेंगे। वित्तीय घाटा वह रकम होती है जो कि सरकार आय से अधिक खर्च करती है। यदि सरकार की आय 100 अरब डॉलर है और सरकार ने खर्च 150 अरब डॉलर का किया तो वित्तीय घाटा 50 अरब डॉलर होता है। इस घाटे की पूर्ति सरकारें बाजार से ऋण उठाकर करती हैं। वित्तीय घाटा बढऩे का सीधा परिणाम मुद्रा पर पड़ता है। यदि सरकार भारी मात्रा में ऋण लेती है तो उसका पेमेंट करने के लिए सरकार को अंतत: घरेलू उद्यमों पर टैक्स लगाना पड़ता है और ऐसा करने से घरेलू उद्यमों की आर्थिक स्थिति बिगड़ती है जैसे ऋण से दबी हुई कंपनी के शेयर का मूल्य बाजार में गिरता है। इसी प्रकार ऋण से दबे हुए देश की मुद्रा विश्व बाजार में गिरती है। राष्ट्रपति ओबामा के कार्यकाल के आखिरी वर्ष में अमेरिकी सरकार का वित्तीय घाटा 600 अरब डॉलर था। राष्ट्रपति ट्रम्प के कार्यकाल में इस वर्ष में यह बढक़र 900 अरब डॉलर हो गया है। वित्तीय घाटा बढऩे का अर्थ हुआ कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था अंदर से कमजोर हो रही है और मुद्रा कभी भी लडख़ड़ा कर गिर सकती है।
अमेरिकी डालर आज विश्व की प्रमुख मुद्रा है। विश्व के अधिकाधिक वित्तीय लेन-देन डॉलर के माध्यम से किये जाते हैं। यदि आपको 100 रुपये किसी जापानी को भेजने हैं तो आप उन 100 रुपये से पहले डॉलर खरीदते हैं और फिर डॉलर को जापान भेजते हैं और जापानी व्यक्ति उन डॉलर को बेचकर यह रकम येन में प्राप्त करता है। डॉलर की इस विश्व मुद्रा की भूमिका के चलते विश्व के तमाम देश अपने विदेशी मुद्रा भंडार को अमेरिकी डॉलर में परिवर्तित करके अमेरिकी बैंकों में जमा करा देते हैं, जिससे कि जरूरत पडऩे पर वे इस मुद्रा को तत्काल निकाल कर अपनी जरूरतों की पूर्ति कर सकें। यह रकम अमेरिका को एक मुक्त ऋण के रूप में प्राप्त होती है। जैसे यदि आपने किसी साहूकार को एक हजार रुपये दे दिए कि जरूरत पडऩे पर ले लेंगे तो साहूकार उस एक हजार रुपये का उपयोग अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए कर सकता है जब तक कि आप उन्हें वापस न मांगें। इसी प्रकार विश्व के तमाम देशों ने 21 हजार अरब डॉलर अमेरिकी बैंकों में जमा करा रखे हैं। यह विशाल राशि अमेरिका को मुफ्त ऋण के रूप में मिल रही है। अमेरिका की आर्थिक ताकत का कारण या एक आधार यह विशाल मुद्रा है। जैसे यदि आपको कोई बीस व्यक्ति एक-एक करोड़ रुपये सुरक्षित रखने के लिए दे दें तो आपके पास बीस करोड़ रुपये सहज ही आ जायेंगे और आप बाजार में बड़े हो जायेंगे। लेकिन अमेरिका की यह ताकत अब कमजोर होने को है। जैसा ऊपर बताया गया है कि तेल के वित्तीय लेन-देन के लिए तमाम देश डॉलर को छोडक़र यूरो अथवा दूसरी मुद्रा में लेन-देन, शुरू करने का प्रयास कर रहे हैं। चीन भी एक वैकल्पिक विश्व मुद्रा बनाने का प्रयास कर रहा है। साथ-साथ अमेरिकी सरकार का वित्तीय घाटा बढ़ रहा है, जिससे कि अमेरिकी डॉलर की साख घट रही है। इन दोनों कारणों से अमेरिकी डॉलर की विश्व मुद्रा की भूमिका पर आंच आ सकती है, अमेरिका को मुफ्त मिल रहा ऋण कम हो सकता है और अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर संकट आ सकता है।
इस परिस्थिति में हमें देखना होगा कि अमेरिका द्वारा वेनेजुएला तथा ईरान से तेल बंद करने की धमकी का हम पर क्या प्रभाव पड़ सकता है। यदि अमेरिकी अर्थव्यवस्था कमजोर हो रही है और इन प्रतिबंधों से और अधिक कमजोर होने को है तो हमें वेनेजुएला तथा ईरान से तेल का आयात करते रहना चाहिए। ऐसे में हम अमेरिका का साथ देकर दोगुना नुकसान करेंगे। एक तरफ वेनेजुएला और ईरान से तेल न खरीद कर महंगा तेल खरीदेंगे और दूसरी तरफ अमेरिका भी हमारी मदद नहीं कर सकेगा। इसके विपरीत यदि हम वेनेजुएला और ईरान से तेल खरीदना जारी रखें तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था के संकट को बढ़ा सकते हैं, जिससे विश्व अर्थव्यवस्था में हमारी साख में सुधार होगा। इसलिए अमेरिका की धमकी का सामना करते हुए वेनेजुएला और ईरान से तेल की खरीद जारी रखनी चाहिए, जिससे हमारी अर्थव्यवस्था सुदृढ़ रहे और अमेरिका यदि इस कार्रवाई में टूटता है तो इससे हमें कोई नुकसान होने की संभावना नहीं है।
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बड़े जिगर के देशभक्त
Posted Date : 15-Feb-2019 11:36:07 am

बड़े जिगर के देशभक्त

न्यायाधीश कार्नडेफ ने जब कठघरे में खड़े युवक को फांसी की सजा सुनाई तो वह हंस रहा था। न्यायाधीश ने सोचा कि शायद इसने अपनी फांसी की सजा सुनी न हो। यह सोचकर उसने उस युवक को दोबारा कहा, ‘सुना, तुमने, पुलिस इंस्पेक्टर सैंडर्स पर बम फेंकने के जुर्म में तुम्हें फांसी की सजा दी जाती है।’ युवक मुस्कराया और बोला, ‘बस, साहब, फांसी? हम भारतीय मौत से नहीं डरा करते। यह तो मेरे लिए खुशी की बात है कि मुझे फांसी के फंदे पर झूल कर भारत मां की सेवा करने का अवसर मिलेगा।’ जज ने कहा, ‘तुम्हें उच्च न्यायालय में अपील करने के लिए एक सप्ताह का समय दिया जाता है।’ युवक तिलमिला उठा, ‘नहीं-नहीं, इसकी कोई जरूरत नहीं। यदि आपके मन में जरा भी दया है तो मुझे 5 मिनट का समय दीजिए ताकि मैं अदालत में बैठे अपने साथियों को बता सकूं कि बम कैसे बनाया जाता है।’ न्यायाधीश झल्लाया और कुर्सी छोडक़र चला गया। 11 अगस्त, 1908 को भगवद्गीता हाथ में लेकर 18 वर्षीय युवक धैर्य के साथ खुशी-खुशी फांसी चढ़ गया। यह वीर कोई और नहीं बल्कि प्रसिद्ध क्रांतिकारी महान देशभक्त खुदीराम बोस थे।
प्रस्तुति : मनीशा देवी