संपादकीय

02-Mar-2019 10:54:11 am
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टमाटर नहीं, अबकी बार बम बरसे

ललित शौर्य
वे पिछले चार सालों से इंच टेप लेकर छाती का माप लेते रहे। उन्हें कई बार फीता छप्पन इंच से ऊपर चढ़ता दिखाई दिया, लेकिन उन्होंने झट से फीता हटा लिया। वे नहीं चाहते थे कि किसी को पता चले कि अगला वास्तव में छप्पन इंची है। इंच-इंच मापने की और मीटरों लम्बे बयानों से कोसने की साजिश चलती रही।
जिस मुगालते में विपक्ष था, कुछ वही हाल आतंकियों और पाकिस्तानी सरकार का था। वे भी इस आशा में चैन की बंसी बजा रहे थे, कि अगला बावन-तिरेपन इंची है। क्या बिगाड़ लेगा अपना। जब आजादी के इतने वर्षों तक कोई न उजाड़ पाया, कोई न उखाड़ पाया। आतंकवाद की फसल लहलहाती चली जा रही है। अब भला कौन इसमें तेजाब फेंकने की हिम्मत दिखायेगा।
आतंकियों ने छेडऩे का क्रम जारी रखा। लेकिन इस बार छेडऩे पर न छोडऩे की धमकी मिली। छप्पन इंची संस्कृति आक्रोशित थी। छेडऩे की हद लांघी जा चुकी थी। हर बार की तरह इस बार कड़ी निंदा की गई। और एक्शन लेने की बात को जोर से उछाला गया। अगले के कानों में केवल कड़ी निंदा का स्वर गूंजा, क्योंकि वह दशकों से यही सुनता आ रहा था। हमले दर हमलों के बाद उसे कड़ी निंदा सुनना अच्छा लगता था। उसे कैमरे के सामने चहकते बयानवीर बहुत भाते थे। उसे लगा इस बार भी निंदा बम फोड़ा जायेगा। बयानों के जेट उड़ाये जाएंगे। नई सरकार थी। उसे लगा शायद थोड़ा-बहुत कुछ बदलाव हो सकता है। उसे प्रारम्भिक एक्शन से लगने भी लगा था। अब कड़ी निंदा की जगह टमाटर वार होगा। टमाटर के गोले छोड़े जाएंगे। बात थोड़ा आगे बड़ी। टमाटर से बढक़र बात पानी के साथ बहनी शुरू हुई।
आतंकियों और सीमा पार वालों को लगा छप्पन इंच पानी की टोंटी बंद करके बदला लेगा। फिर पानी पर बहस होने लगी। सीमा के इस पार आक्रोश के स्वर बुलन्द हुए। विपक्षी बयानी तीर छोडऩे लगे। तंज कसने लगे।
इस बार सेना और सरकार दोनों के छप्पन इंची सीने डोलने लगे। आतंकियों की पाठशाला मिटाने की तैयारी शुरू हुई। कड़ी निंदा के साथ एक्शन का डोज पिलाया गया। आतंकियों के आकाओं के कान खड़े हो गए। वायुसेना के विमानों से गिरे बम के गोलों ने आतंकियों के ठिकानों को नेस्तनाबूत कर दिया।
टमाटर वर्षा की आशा लगाये आतंकियों की समर्थक सरकार बम के गोलों की वर्षा से डरी-सहमी दिखाई दे रही है। न उगलते बन रहा है न निगलते। वे कुछ कहने की हिम्मत जुटा नहीं पा रहे हैं। कड़ी निंदा की आशा में बड़ी कार्यवाही से अब स्तब्ध है।
इधर सीमा के इस पार भी टुकड़े-टुकड़े गैंग के सीने पर सांप लौट रहा है। न कुछ कहते बन रहा है, न चुप रहते। कायर सरकार कहने वाले सरकार को शाबासी देने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। अवार्ड वापसी गैंग गहरे सदमे में हैं, जिन्हें भारत में डर लगता था वे अब शांत हैं। लोगों में सुगबुगाहट है छप्पन इंची, एक सौ छप्पन इंच की रफ्तार में है। आतंकियों के ठिकानों पर बम वर्षा से हर भारतीय का सीना छप्पन इंच की सीमा तोड़ चुका है।

 

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