संपादकीय

परायी हवा में उडऩा नहीं अच्छा
Posted Date : 13-Jan-2019 12:08:53 pm

परायी हवा में उडऩा नहीं अच्छा

सहीराम
रवायतों के खिलाफ जाने और बोलने का जिम्मा कायदे से विद्रोहीजनों का होता है जो अंतत: सूली पर लटकाए जाते हैं। बाद में बेशक कवि और शायर उनके गीत गाते रहते हैं। हालांकि प्रेमीजन भी ऐसे जोखिम अक्सर उठा लेते हैं, लेकिन अंतत: उनकी लाशें भी यहां-वहां पायी जाती हैं। उनके गीत कोई नहीं गाता।
खैर, नेताओं का यह काम नहीं है। उनका काम है वे वैसे ही अपने नेता के गुण गाते रहें, जैसे कि भक्तजन प्रभु के गुण गाते रहते हैं। लोगों का कहना है कि ऐसे भक्त अब होने लगे हैं। हालांकि विद्रोह तो राजनीति में भी होता है,पर वास्तव में और कम से कम आज की राजनीति में तो वह विद्रोह का प्रहसन ही ज्यादा होता है। राजनीतिक पार्टियों में पहले असंतुष्ट भी हुआ करते थे। लेकिन जब से भाजपा का राज आया है, यह प्रजाति लुप्तप्राय है। क्योंकि जो असंतुष्ट होते हैं, वे अपने को पूर्णरूपेण संतुष्ट दिखाते रहते हैं और मौका लगते ही दूसरे पाले में छलांग लगा देते हैं। पहले ऐसे छलांग लगाने वाले अक्सर भाजपा के पाले में आकर गिरते थे। लेकिन इधर भाजपा की बजाय दूसरे पाले में ज्यादा गिर रहे हैं। कम से कम असंतुष्ट दल तो उधर ही गिर रहे हैं। पर कुल मिलाकर रवायतों के खिलाफ जाने का काम नेताओं का नहीं है।
फिर भी गडकरीजी यह जोखिम ले रहे हैं, पता नहीं क्यों। जैसे इधर उन्होंने इंदिराजी की तारीफ कर दी। मोदीजी के रहते गांधी-नेहरू परिवार के किसी सदस्य की कोई यूं तारीफ करे, यह तो गुनाह है न। उन्होंने अगर विजय माल्या की तारीफ कर दी थी तो समझ में आता है क्योंकि आखिर तो राहुलजी उसे मोदी जी के दोस्तों में शुमार करते हैं। पर इंदिराजी की तारीफ? इससे पहले उन्होंने तीन राज्यों में भाजपा की हार की जिम्मेदारी भी मोदीजी और अमित शाह पर डालने की कोशिश की थी। उन्होंने तो पार्टी के विधायकों तथा सांसदों के निकम्मेपन तक के लिए पार्टी अध्यक्ष को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की। फिर एक दिन अचानक उन्होंने केजरीवालजी और आप वालों की भी तारीफ कर दी। जबकि राहुल जी की तरह ही केजरीवाल जी भी भाजपा को फूटी आंख नहीं सुहाते, ऐसा लोगों का आरोप है।
ऐसा लगता है भाजपा नेताओं के अलावा आजकल वे सबकी तारीफ कर रहे हैं। उन्हें समझना होगा कि पार्टी में यह रवायत नहीं है भाई। कहीं उन्होंने बगावत का झंडा तो नहीं उठा लिया है? लोग बताते हैं कि वे संघ के काफी करीब हैं। उनके चहेते तो उन्हें मोदी जी की जगह प्रधानमंत्री तक बनाने पर आमादा हैं। लेकिन परायी हवा में उडऩ़ा कोई अच्छी बात थोड़े ही है। कुछ तो खौफ खाइए!

 

विज्ञान और मिथक
Posted Date : 13-Jan-2019 12:08:25 pm

विज्ञान और मिथक

देश के चुनिंदा विज्ञान शिक्षाविदों ने भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन को पत्र लिखकर 106वीं विज्ञान कांग्रेस में अवैज्ञानिक दावों के प्रति विरोध जताया है। ऐसे दावों को स्तब्ध करने वाला व चिंताजनक बताते हुए कहा गया है कि इससे विज्ञान व मिथकों का घालमेल होता है, जिससे दुनिया में भारतीय विज्ञान की प्रतिष्ठा को आंच आती है। विज्ञान कांग्रेस की प्रतिष्ठा का हवाला देते हुए कहा गया कि ऐसे प्रयासों से वैश्विक स्तर पर भारतीय वैज्ञानिक प्रयासों को हेय दृष्टि से देखा जायेगा। पत्र में कहा गया है कि पौराणिक ग्रंथों की कथाएं काव्यात्मक सौंदर्य, आनन्ददायक व नैतिक मूल्यों, कल्पनाशीलता की दृष्टि से उपयोगी हो सकती हैं मगर उन पर वैज्ञानिकता का मुलम्मा चढ़ाना अतार्किक है। आगाह किया गया कि यह फोरम वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने वाला है, भविष्य में इसका उपयोग विज्ञान और मिथकों के घालमेल के लिये न होने पाये। दरअसल, पिछले दिनों जालंधर में संपन्न विज्ञान कांग्रेस में आंध्र यूनिवर्सिटी के कुलपति जी. नागेश्वर राव ने दावा किया था कि महाभारत में कौरवों का जन्म स्टेम सेल और टेस्ट ट्यूब तकनीक से हुआ था। भारत में हजारों साल पहले इस तकनीक को खोजा गया था।
राव ने साथ ही दावा किया कि देवताओं के पास ऐसे अस्त्र यानी गाइडेड मिसाइलें थीं, जो लक्ष्य को भेदकर वापस आ जाती थीं। यह भी कि रावण के पास पुष्पक ही नहीं, 24 तरह के विमान थे। इन बयानों को लेकर खासा विवाद हुआ। इतना ही नहीं, अलबर्ट आइंस्टीन व स्टीफन हॉकिंग के बाबत भी सवाल खड़े किये गये। इसके चलते हाल में विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन ने ?फैसला लिया है कि भविष्य में वक्ताओं से उनका वक्तव्य पहले ही लिखित में लिया जायेगा ताकि मंच से कोई विवादित वक्तव्य न दिया जा सके। विज्ञान शिक्षाविदों का मानना है कि ऐसे आयोजन वैज्ञानिक व तार्किक चिंतन को बढ़ावा देने वाले होने चाहिए। मिथकीय बातों को विज्ञान के सबूतों के तौर पर पेश नहीं किया जा सकता। ?इनका न कोई वैज्ञानिक आधार होता है और न ही वैज्ञानिक कल्पना से इन्हें सही सिद्ध किया जा सकता है। वहीं कुछ वैज्ञानिकों का दावा है कि यदि किसी सभ्यता के पास स्टेम सेल, टेस्ट ट्यूब बेबी, गाइडेड मिसाइल और वैमानिकी जैसी तकनीकें थीं तो इससे संबंधित बिजली, धातु विज्ञान और यांत्रिकी के प्रमाण भी तो मिलने चाहिए। विज्ञान का प्रवाह किसी समाज में लगातार उन्नत होता है। आज जरूरत नयी खोजों की है, न कि अपनी धरोहर का दंभ भरने की। ऐसे प्रयासों से मिथकीय सौंदर्य भी क्षीण होता है।

 

खराब हवा और लाजवाब बंदे
Posted Date : 10-Jan-2019 11:55:49 am

खराब हवा और लाजवाब बंदे


गोविंद शर्मा
अब तक तो हम यही सुनते रहे हैं कि अब उसकी हवा है, अब उसकी हवा खराब है, उधर वाले की हवा, पहले लहर थी, अब आंधी बन गई है। अब सुनने में आ रहा है कि दिल्ली की हवा की गुणवत्ता खराब है। दिल्ली मत आना। हो सकता है, विदेशी पर्यटकों पर यह चेतावनी असर कर जाए। हम पर तो नहीं। तमाशा घुसकर देखने की तमन्ना के साथ दिल्ली पहुंच गये। पता लगा कि गुणवत्ता को खराब बताने की खबर वैज्ञानिकों ने फैलाई है। हमें तो विज्ञान पर नहीं, गुरुज्ञान पर विश्वास है। राजनीति वाले गुरु और साहित्य वाले गुरु गली-गली में मिल जायेंगे, चेले-चेलियां ढूंढ़ते, जिसे दलबदल कहा जाता है, वास्तव में गुरु बदल ही होता है। चेलों-चेलियों से ही गुरु को मान्यता मिलती है। इसीलिये तो कहते हैं— मान गये गुरुज्।
हम भी किस हवा में उडऩे लगे। बात हवा की होनी है। दिल्ली गये। एक जगह सडक़ किनारे खड़े हो गये। देखा, लोग भाग रहे हैं। कोई पैदल तो कोई रिक्शा, ऑटो, कार या बस में सवार होकर। कोई इधर तो कोई उधर। जब काफी देर तक यह तांता नहीं टूटा तो हमने अपने पास खड़े एक सज्जन की तरफ देखा ही था कि वह बोला— सडक़ पार करना चाहता हूं। पता नहीं कब यह आवागमन रास्ता देगा।
वह अंडर पास, फुट ब्रिज, सडक़ पर सफेद पट्टियां किस लिये हैं?
वह तुम जैसे कायरों के लिये हैं। अपन तो बहादुर हैं।
यह कहकर वह समरांगण (सडक़) में कूद पड़ा। पता नहीं उस पार कब पहुंचा। मैंने पास खड़े एक और सज्जन से पूछा—क्यों भाई साहब, जिस तरह से लोग भाग रहे हैं, उससे यह नहीं लगता कि शाम तक दिल्ली खाली हो जायेगी? हवा खराब है न यहां की।
उसने मुझे सिर से पांव तक निहारा, फिर पूछा— दरवाजा खुला रह गया था या दीवार कूद कर बाहर आये हो?
कहां से?
पागलखाने से।
नहीं, नहीं, मैं वह नहीं हूं, जो आप समझे हैं। दिल्ली की हवा खराब है, इसलिये देखो, लोग दिल्ली छोड़ कर भाग रहे हैं।
बोले, हवा खराब हो या न हो, हवा ने चलना बंद कर दिया हो तो भी न तो यह आवागमन बंद होगा, न दिल्ली खाली होगी।
क्यों? क्यों? यहां के लोग खराब हवा से डरते नहीं?
हवा खराब है ही नहीं यह खबर जिसने भी फैलाई, उसकी खुद की हवा खराब होगी अभी। जिस दिन मैं यह सुनूंगा कि पांच अफसरों ने दिल्ली से बाहर तबादला की अर्जी दी है,उस दिन मानूंगा कि यहां की हवा खराब है। जिस दिन दिल्ली का कोई मुख्यमंत्री, विधायक, सांसद यह बयान देगा कि हम तो चले अपने प्रदेश यहां की हवा खराब है, तब मैं भी मानूंगा। अभी तो उन्हें देखो, दिल्ली पहुंचने के लिये सौ किस्म के जोड़तोड़ करते हैं। कोई गठबंधन बना रहा है, कोई किसी बहाने दिल्ली पहुंचने की टिकट का जुगाड़ कर रहा है। यहां तक कि लोग अपने प्रदेश में मुख्यमंत्री बनते ही प्रधानमंत्री बनने का सपना देखने लगते हैं।
ऐसा माहौल है दिल्ली के चाहवान हवाबाजों का, फिर भी कहते हैं। दिल्ली की हवा खराब है। हद हो गई हवाई फेंकने वालों की।
००

 

अब किसान पेंशन योजना
Posted Date : 07-Jan-2019 11:01:00 am

अब किसान पेंशन योजना

दीर्घकालीन हित हों प्राथमिकता 
किसानों की आय डबल करने का नारा, एमएसपी को लेकर आश्वासनों और कर्जमाफी प्रतिबद्धताओं के बाद, किसान को लुभाने के प्रयासों में नवीनतम है किसान पेंशन योजना। हरियाणा में खट्टर सरकार किसानों के लिए पेंशन योजना पर विचार कर रही है। योजना उन किसानों को अपनी ओर खींचने का नया दांव है, जिनकी निगाहें अब तक फसल मूल्य और बाजार, पानी और सुविधाओं या स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लेकर चलने वाले धरने-प्रदर्शनों के बीच अपना सच्चा खैरख्वाह तलाश रही हैं। किसान पेंशन योजना, सत्ता विरोधी लहरों को दूर करने के लिए एक चतुर प्रयास है और लोकसभा और विधानसभा चुनावों से पहले विपक्ष की ऋण माफी के वादे के मुकाबले जवाबी दांव भी। राज्य सरकार के योगदान से किसानों के लिए पेंशन हरियाणा के किसानों के लिए लुभावना आफर हो सकता है। हरियाणा को किसानों के समग्र विकास के लिए ओडिसा की 10,000 करोड़ रुपये की कृषक सहायता का अध्ययन करना चाहिए, जिसमें लगभग 92 प्रतिशत लघु व सीमांत किसानों को लाभ पहुंचाने का दावा है।
उल्लेखनीय है कि तेलंगाना सरकार ने रिथु बंधु कार्यक्रम के तहत सभी भूमि-स्वामी किसानों को रबी और खरीफ सीजन की तैयारी के लिए प्रति एकड़ 4,000 रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की है, मतलब 8 हजार रुपये प्रति एकड़ प्रतिवर्ष। दरअसल, हालिया चुनावों में किसानों की वोट ताकत का अहसास होने के बाद सभी दलों में किसानों की कर्जमाफी से लेकर आर्थिक सहायता के नए-नए उपाय तलाशने और किसानों को लुभाने की होड़ लगी है। यह बात अलग है कि अधिकांश लोकलुभावन योजनाएं किसानों के सीमित वर्ग को मदद करने वाली हैं, वह भी छोटी अवधि में। एक मजबूत और स्थायी समाधान के लिए, एक सर्व-समावेशी व्यापक योजना आवश्यक है। हरियाणा को भी अपनी नई योजना और उसे लागू करने के तौर-तरीकों को व्यवहार्यता की कसौटी पर बारंबार कसना चाहिए और दीर्घकालिक व वास्तविक लाभ के लिए ही सरकारी खजाने का उपयोग करना चाहिए। आम धारणा है कि कर्जमाफी जैसी योजनाओं के चलते आज किसानों को मुश्किल वक्त में भी नया कर्ज मिलना टेढ़ी खीर साबित होने लगा है।

 

आसपास हों बदलाव के अहसास
Posted Date : 05-Jan-2019 11:59:28 am

आसपास हों बदलाव के अहसास

ओम वर्मा
राम ने रहीम को और रहीम ने राम को सोशल मीडिया पर दी नववर्ष की शुभकामनाएं, वर्षभर दोनों मगर रहे एक-दूसरे से सदा डरे-डरे, घबराए-घबराए ख़ौफ़ खाए-खाए।
हे प्रभु! अब तो खोल देना सबके लिए सबरीमाला के द्वार, भक्तिनों को भी मिल जाए दर्शन का अधिकार। महज तीन शब्द बोलकर न त्यागी जा सके कोई नारी, एक कानून अब बने ऐसा क्रांतिकारी। न बदला जाए फिर कोई और नाम, जनता चाहती है काम, काम, बस काम। जैसे घोटाले के बिना बीता है पिछला साल, वैसे ही रहे इस साल भी घोटालों का अकाल। संसद में नहीं हो फिर आंख मारने का तमाशा, कम से कम इतनी तो रख सकता हूं मैं उनसे नववर्ष में आशा।
आने वाले चुनाव में, हे मेरे भगवान! काबू में रखना नेताओं की जुबान। सुन लेना पुकार हे मेरे परमात्मा! पड़ोस से परोसे जा रहे आतंक का कर देना खात्मा। केसर की क्यारियों में हो कुछ ऐसा असर, आकाश में उडऩे लगें सारे सफेद कबूतर। पत्थरबाज़ों तक पहुंचा दे कोई ये पैगाम, ईश्वर की नजऱ में पत्थर मारना है हराम। दुश्मन को गले लगाकर जो बनना चाहते हैं महान, काश! वे फूलों में छुपे खंजरों की भी कर सकें पहचान।
फिर खदानों में फंसे नहीं कोई मजदूर, सबको इतनी शक्ति देना मेरे हुजूर। सभी साइंसदानों में भर देना इतना दम, पड़ जाएं चांद पे हमारे भी कदम। बार-बार गिरे नहीं रुपये के दाम, लगी रहे पेट्रोल के मूल्य पर भी लगाम। चाहे खिले ‘कमल’ या छाएं कमलनाथ, नहीं हों किसानों के बेटे और अब अनाथ। पाते हैं जो देश में मान और सम्मान, डर का भय बताकर न कर पाएं संविधान का अपमान। फिर दिखा दें कोहली के लडक़े चमत्कार, ले के आएं वर्ल्ड कप फिर एक बार। है मेरी यह हार्दिक अभिलाषा, बन जाए हिंदी संयुक्त राष्ट्र की भी भाषा। महापुरुष के बुत की ऊंचाई से न तय हो राष्ट्रभक्ति, जगा दो प्रभु उनके उसूलों में आसक्ति। अब जब भी कोई बनाए और रिलीज़ करे ‘पद्मावत’, तो न छिड़े कोई विवाद और न हो कोई बगावत।
चाहे बुलेट ट्रेन देश में आए या न आए, मगर आतंकवादियों की बुलेट इस साल चल न पाए। गाय को भी मिले इस देश में पूरी सुरक्षा, साथ में ज़रूरी है हर मानव की भी रक्षा। एट्रोसिटी एक्ट में हो सरकार की जिम्मेदारी, बिना जांच के न हो किसी की गिरफ्तारी। भडक़े नहीं और अब आरक्षण की आग, सभी योग्य बच्चों की किस्मत जाए जाग। तन-मन से रहे हर शख्स भला-चंगा, निर्मल रहे हर नदी चाहे यमुना हो या गंगा। किसानों को मिले फसलों के सही दाम, कज़ऱ्माफ़ी पर लग सके विराम। ट्रंप और जोंग में न हो जुबानी जंग, ताकि न हो अन्य देशों की शांति अब भंग।
और अंत में यह कि हे नववर्ष! माल्या और नीरव मोदी को ले आना तुम पकड़ के, और शांति और सद्भाव को रखना खूब जकड़ के। चौकीदार को नहीं कहे अब कोई चोर, ये भी जान लें कि वे भी नहीं रहे ‘पप्पू’ एनी मोर।

 

 

एक बार फिर हसीना
Posted Date : 02-Jan-2019 11:34:28 am

एक बार फिर हसीना

प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग ने बांग्लादेश में रविवार को हुए आम चुनाव में लगातार तीसरी बार शानदार जीत दर्ज की है। सत्तारूढ़ अवामी लीग के नेतृत्व वाले महागठबंधन ने 266 सीटें जीतीं जबकि उसकी सहयोगी जातीय पार्टी को 21 सीटें हासिल हुईं। विपक्षी नेशनल यूनिटी फ्रंट (यूएनएफ) को सिर्फ सात सीटों पर जीत मिली। यूएनएफ में केंद्रीय भूमिका पूर्व प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की थी।
गौरतलब है कि बांग्लादेश की ‘जातीय संसद’ की सदस्य संख्या 350 है, जिनमें 300 सीटों के लिए मतदान होता है, बाकी 50 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। इन 50 सीटों के लिए निर्वाचित 300 प्रतिनिधि एकल समानुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर वोट डालते हैं। विपक्ष का आरोप है कि चुनाव में जबर्दस्त धांधली हुई है। निर्वाचन आयोग ने कहा है कि वह इसकी जांच करेगा। बांग्लादेश की राजनीति एक लंबे अर्से से शेख हसीना और खालिदा जिया के इर्द-गिर्द ही घूम रही है। बीएनपी की अध्यक्ष बेगम खालिदा जिया भ्रष्टाचार के मामलों में दोषी ठहराए जाने के बाद जेल में सजा काट रही हैं। उनके बेटे तारिक रहमान को शेख हसीना को जान से मारने के षड्यंत्र में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है और वे लंदन में आत्म निर्वासन में रह रहे हैं। बेगम जिया के कारावास के बाद उनकी पार्टी की बागडोर तारिक रहमान संभाल रहे है। पिछले कुछ वर्षों में अवामी लीग के नेतृत्व में बांग्लादेश ने आर्थिक रूप से अपनी स्थिति में उल्लेखनीय सुधार किया है। अभी उसकी हालत पाकिस्तान से बेहतर है। यह चुनाव भी शेख हसीना ने विकास के मुद्दे पर ही लड़ा। 
उन्होंने ‘डिवेलपमेंट एंड डेमोक्रेसी फर्स्ट’ के साथ स्थायी विकास का नारा दिया था। हालांकि उन पर राजनीतिक हिसाब चुकता करने के आरोप भी लगते रहे हैं। इस चुनाव की मुश्किल यह है कि इसमें विपक्ष का लगभग सफाया हो गया है, जो बांग्लादेश के लिए काफी मुश्किलें पैदा कर सकता है। पिछले कुछ समय से वहां इस्लामिक कट्टरपंथियों का तेज उभार देखा गया है। उन्होंने आधुनिकता की वकालत और इस्लामी कट्टरपंथ की आलोचना करने वाले कई प्रोग्रेसिव ब्लॉगरों की हत्या की, जिनमें मुस्लिम और हिंदू दोनों शामिल थे। दुर्भाग्यवश, हसीना सरकार ने ऐसे तत्वों के खिलाफ कठोर कदम नहीं उठाए। 1971 के मुक्तियुद्ध के गद्दारों को उन्होंने फांसी जरूर दिलवाई पर इस्लामी कट्टरपंथियों पर हाथ डालने से बचती रहीं। संसदीय प्रतिनिधित्व के अभाव में यह कट्टरवादी तबका आगे और उत्पात मचा सकता है। ऐन पड़ोस में ऐसे तत्वों का सक्रिय होना हमारे लिए चिंता का विषय रहेगा। शेख हसीना से भारत के रिश्ते बहुत अच्छे हैं, फिर भी बांग्लादेश गए भारतीय नेता वहां के विपक्षी लीडरों से भी मिलते रहे हैं। वहां की आंतरिक राजनीति को लेकर तटस्थता ही हमारी स्थायी नीति होनी चाहिए। हमारी भलाई इसी में है कि यह पड़ोसी मुल्क अमन-चैन के साथ विकास की राह पर आगे बढ़े।