संपादकीय

13-Jan-2019 12:08:25 pm
Posted Date

विज्ञान और मिथक

देश के चुनिंदा विज्ञान शिक्षाविदों ने भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन को पत्र लिखकर 106वीं विज्ञान कांग्रेस में अवैज्ञानिक दावों के प्रति विरोध जताया है। ऐसे दावों को स्तब्ध करने वाला व चिंताजनक बताते हुए कहा गया है कि इससे विज्ञान व मिथकों का घालमेल होता है, जिससे दुनिया में भारतीय विज्ञान की प्रतिष्ठा को आंच आती है। विज्ञान कांग्रेस की प्रतिष्ठा का हवाला देते हुए कहा गया कि ऐसे प्रयासों से वैश्विक स्तर पर भारतीय वैज्ञानिक प्रयासों को हेय दृष्टि से देखा जायेगा। पत्र में कहा गया है कि पौराणिक ग्रंथों की कथाएं काव्यात्मक सौंदर्य, आनन्ददायक व नैतिक मूल्यों, कल्पनाशीलता की दृष्टि से उपयोगी हो सकती हैं मगर उन पर वैज्ञानिकता का मुलम्मा चढ़ाना अतार्किक है। आगाह किया गया कि यह फोरम वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने वाला है, भविष्य में इसका उपयोग विज्ञान और मिथकों के घालमेल के लिये न होने पाये। दरअसल, पिछले दिनों जालंधर में संपन्न विज्ञान कांग्रेस में आंध्र यूनिवर्सिटी के कुलपति जी. नागेश्वर राव ने दावा किया था कि महाभारत में कौरवों का जन्म स्टेम सेल और टेस्ट ट्यूब तकनीक से हुआ था। भारत में हजारों साल पहले इस तकनीक को खोजा गया था।
राव ने साथ ही दावा किया कि देवताओं के पास ऐसे अस्त्र यानी गाइडेड मिसाइलें थीं, जो लक्ष्य को भेदकर वापस आ जाती थीं। यह भी कि रावण के पास पुष्पक ही नहीं, 24 तरह के विमान थे। इन बयानों को लेकर खासा विवाद हुआ। इतना ही नहीं, अलबर्ट आइंस्टीन व स्टीफन हॉकिंग के बाबत भी सवाल खड़े किये गये। इसके चलते हाल में विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन ने ?फैसला लिया है कि भविष्य में वक्ताओं से उनका वक्तव्य पहले ही लिखित में लिया जायेगा ताकि मंच से कोई विवादित वक्तव्य न दिया जा सके। विज्ञान शिक्षाविदों का मानना है कि ऐसे आयोजन वैज्ञानिक व तार्किक चिंतन को बढ़ावा देने वाले होने चाहिए। मिथकीय बातों को विज्ञान के सबूतों के तौर पर पेश नहीं किया जा सकता। ?इनका न कोई वैज्ञानिक आधार होता है और न ही वैज्ञानिक कल्पना से इन्हें सही सिद्ध किया जा सकता है। वहीं कुछ वैज्ञानिकों का दावा है कि यदि किसी सभ्यता के पास स्टेम सेल, टेस्ट ट्यूब बेबी, गाइडेड मिसाइल और वैमानिकी जैसी तकनीकें थीं तो इससे संबंधित बिजली, धातु विज्ञान और यांत्रिकी के प्रमाण भी तो मिलने चाहिए। विज्ञान का प्रवाह किसी समाज में लगातार उन्नत होता है। आज जरूरत नयी खोजों की है, न कि अपनी धरोहर का दंभ भरने की। ऐसे प्रयासों से मिथकीय सौंदर्य भी क्षीण होता है।

 

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