नईदिल्ली। साल 2023 में लगभग स्थिर रहने वाले रुपये के लिए 2024 की शुरुआत बहुत अच्छी हुई है। जनवरी में अब तक यह 0.1 फीसदी की बढ़त के साथ एशिया में सबसे अच्छे प्रदर्शन वाली मुद्रा रही है जबकि इस दौरान डॉलर इंडेक्स में 2 फीसदी की बढ़त हुई है।
जनवरी में अन्य सभी एशियाई मुद्राओं में 1.4 फीसदी से लेकर 4 फीसदी तक की गिरावट देखी गई है। बाजार के जानकारों का कहना है कि विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के निवेश की वजह से अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत हुआ है।
येस बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री इंद्रनील पैन कहते हैं, ‘बॉन्ड समावेशन से संभावित प्रवाह के दम पर बाजार आगे चल रहे हैं। यह संभवत: एक वजह हो सकती है कि रुपया काफी हद तक स्थिर रहा।’शुक्रवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 83.11 पर बंद हुआ।
घरेलू ऋण बाजार में जनवरी महीने में अब तक करीब 15,793 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश हुआ है। जेपी मॉर्गन ने भारत को अपने शीर्ष जीबीआई-ईएम ग्लोबल डायवर्सिफाइड इंडेक्स में शामिल करने का फैसला किया है। भारत इस सूचकांक में 1 फीसदी भार के साथ जून में शामिल होगा। इसके बाद हर महीने भारत का भार बढ़ेगा और अप्रैल 2025 तक यह बढक़र 10 फीसदी तक हो जाएगा।
इसके अलावा, ब्लूमबर्ग इंडेक्स सर्विसेज लिमिटेड ने भी ब्लूमबर्ग इमर्जिंग मार्केट लोकल करेंसी इंडेक्स में भारत के पूर्ण सुगम्य मार्ग (एफएआर) वाले बॉन्डों को शामिल करने के बारे में फीडबैक के लिए परामर्श पत्र जारी किया है।
गत दिसंबर में डॉलर इंडेक्स में 2 फीसदी से ज्यादा की उल्लेखनीय गिरावट आई है, जो कि मुख्यत: इस उम्मीद में हुई कि अमेरिका का केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व मार्च से दरों में कटौती कर सकता है। हालांकि, अब हालात बदल गए हैं क्योंकि हाल में जो आंकड़े आए हैं, उनसे यह पता चलता है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था मजबूत है। इससे ऐसा लगता है कि अभी दरों में कटौती टल जाएगी।
सीएमई ग्रुप के फेडवॉच टूल के मुताबिक कारोबारियों की सोच में बदलाव आया है और अब 42 फीसदी को ही यह लगता है कि मार्च महीने में फेडरल रिजर्व 25 आधार अंक की कटौती करेगा। इसके पहले दिसंबर महीने में करीब 75 फीसदी कारोबारी यह उम्मीद कर रहे थे कि फेड मार्च में दरों में कटौती करेगा।
पीएनबी गिल्ट्स के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्याधिकारी विकास गोयल ने कहा, ‘रुपये में किसी तरह की गिरावट को रिजर्व बैंक रोक रहा है। दूसरी एशियाई मुद्राएं डॉलर के अनुरूप चल रही हैं, जबकि भारतीय रुपया, डॉलर में जो कुछ हो रहा है उसके विपरीत चल रहा है।’
गोयल ने कहा, ‘रिजर्व बैंक ने इस पर अंकुश लगा दिया है और काफी पूंजी प्रवाह भी हो रहा है, खासकर ऋण सेग्मेंट में। इसलिए रुपये में जहां ऊपर जाने की गुंजाइश भी सीमित है, वहीं यह साफ है कि यह गिरावट के दौर में थोड़ी दखल देगा। डॉलर की तुलना में रुपये के 83 से नीचे जाने पर रिजर्व बैंक बहुत सक्रिय हो जाता है। इस वजह से रुपया बहुत सीमित दायरे में रहता है।’
येस बैंक के इंद्रनील ने कहा, ‘अगर निवेश प्रवाह मजबूत बना रहा तो हमारे पास वाजिब स्तर का भुगतान संतुलन अधिशेष हो जाएगा, जिसकी रिजर्व बैंक को चाहत होगी। लेकिन अगले साल के लिए हमारी नजर इस बात पर है कि डॉलर के मुकाबले रुपया 82.50 से नीचे जाए।’
केयरएज रेटिंग्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक रुपया इस साल यानी 2024 में मजबूत होकर डॉलर के मुकाबले 82 के स्तर तक जा सकता है। हालांकि, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि विदेशी मुद्रा भंडार तैयार करने के लिए रिजर्व बैंक जो हस्तक्षेप कर रहा है वह रुपये की बढ़त पर अंकुश लगा सकता है। रिजर्व बैंक के हाल के आंकड़ों के मुताबिक 19 जनवरी तक देश का विदेशी मुद्रा भंडार 616 अरब डॉलर का रहा है।
मुंबई । बाजार ने कैलेंडर वर्ष 2023 में शानदार प्रदर्शन किया। क्या वे 2024 में अपना प्रदर्शन दोहरा सकते हैं? असंभव लगता है। हमारे पास कई असंभव चीजें हैं, भू-राजनीतिक समाचार, अनिश्चितता और निश्चित रूप से अप्रैल-मई 2024 में होने वाले आम चुनाव।
चिंताओं के सागर में दो सकारात्मक तथ्य यह है कि वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में हम ज्यादातर मामलों में कहीं बेहतर हैं और यहीं उम्मीद की किरण है। क्या यह आशा की किरण एक और कठिन वर्ष के लिए पर्याप्त है?
बहुत स्पष्ट रूप से नहीं। उतार-चढ़ाव के साथ अच्छा वर्ष और वैश्विक स्तर पर अधिकांश देशों की तुलना में बेहतर रहने की संभावना है। लेकिन एक बेहतरीन साल, इसकी संभावना बहुत कम है।
आइए सामने आने वाली कुछ घटनाओं पर नजर डालें। ऐसा लगता है कि रूस-यूक्रेन संघर्ष कभी न ख़त्म होने वाला है। सभी को उम्मीद थी कि यह छोटा होगा और लोग अनुमान लगा रहे थे कि यह झड़प से कुछ अधिक होगा। यह 23 महीने हो चुका है और 24 फरवरी, 2022 को दो साल पूरे कर लेगा।
इसके ख़त्म होने से पहले ही, हमारे सामने इजराइल-हमास संघर्ष है, जो लगभग चार महीने से जारी है। कैलेंडर वर्ष 2024 की शुरुआत से, हमारे सामने हौथी मुद्दा बड़ा होता जा रहा है और इसके बढऩे की संभावना है। इसमें पहले से ही संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, ईरान और इजऱाइल सहित अन्य देश शामिल हैं।
कितना अधिक और किस कीमत पर यह फिलहाल बहस का विषय है। इसका पहले से ही व्यापार और शिपिंग पर असर पड़ा है और माल ढुलाई दरों में वृद्धि हुई है, इससे शिपिंग और संसाधनों की उपलब्धता प्रभावित हो रही है। यह कहां और कब समाप्त होगा अज्ञात है। इसमें वर्तमान में मु_ी भर देशों की तुलना में कई अधिक देशों को शामिल करने की क्षमता है।
अमेरिका बढ़ती मुद्रास्फीति और बढ़ी हुई ब्याज दरों का अनुभव कर रहा है और यह 2023 के अधिकांश भाग के लिए हुआ। फिर भी, उनके बाजार भी जीवनकाल के उच्चतम स्तर पर हैं। माना जा रहा है कि चालू कैलेंडर वर्ष में ब्याज दरों में नरमी आएगी, लेकिन महंगाई का डर अब भी सता रहा है।
वर्तमान में दुनिया भर में तीन स्थानों पर संघर्ष चल रहा है, सोना अपने उच्चतम स्तर पर है और चिंता का कारण बन रहा है क्योंकि सोने के साथ-साथ कच्चे तेल का भी उच्च स्तर पर है।
स्व-उत्पादन और खपत के मामले में भारत तुलनात्मक रूप से एक अच्छी स्थिति में है। दो वस्तुएं जहां हम आयात पर निर्भर हैं वे हैं कच्चा तेल और खाद्य तेल। हालाँकि दोनों का उत्पादन बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन अभी इस पर केवल काम ही प्रगति पर है और हमें अभी लंबा रास्ता तय करना है।
इसके अलावा अच्छी बात यह है कि ब्याज दरें चरम पर पहुंच गई हैं और हालांकि दरों में कटौती में कुछ समय लग सकता है, लेकिन बहुत स्पष्ट रूप से, हम तत्काल भविष्य में दरों में कटौती के करीब नहीं हैं। सबसे अधिक संभावना यह है कि फिलहाल ब्याज दरें मौजूदा स्तर पर ही रहेंगी।
भारत उन कुछ देशों में से एक है, जहां जीडीपी में अच्छी वृद्धि देखी जा रही है और जहां तक विकास की बात है तो हम वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में शीर्ष 5 प्रतिशत में शामिल हो सकते हैं।
वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में हमारी रैंक बढ़ रही है और हमने हाल ही में या नवीनतम दौर में हांगकांग को पीछे छोड़ दिया है। हालांकि यह वृद्धि अच्छी है और देश की छवि और प्रतिष्ठा में मदद करती है, हमें यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि हम सभी मोर्चों पर मजबूत हो सकें।
अगले तीन से चार महीनों में लोकसभा के चुनाव होने हैं और उपलब्ध संकेत वर्तमान सरकार की वापसी की ओर इशारा कर रहे हैं। शेयर बाज़ारों का मानना है कि तत्कालीन सरकार दोबारा सत्ता में आएगी।
इससे बुनियादी ढांचे के नेतृत्व वाली वृद्धि और विकास में स्थिरता और निरंतरता आएगी, जो समय की मांग है।
हालांकि इससे बाज़ारों को तत्काल अल्पावधि में लाभ मिलेगा, हमें मौजूदा मूल्यांकनों को ध्यान में रखना होगा जो अब सस्ते नहीं हैं और यह तथ्य कि बाज़ारों में न केवल पर्याप्त वृद्धि हुई है, बल्कि बोर्ड भर में वृद्धि हुई है।
छोटी से मध्यम अवधि में बाजार में स्थिति सकारात्मक दिख रही है। चुनाव के बाद बड़े पैमाने पर अपरिहार्य सुधार आसन्न है। ऐसा तब होगा जब तत्कालीन सरकार जीतेगी या हारेगी। यदि वह जीतती है, तो उत्साह और उसके बाद सुधार और यदि वह हार जाती है, तो निराशा, इसलिए तीव्र गिरावट।
बाजार ने आपकी रणनीति की योजना बनाने के लिए पहले से स्पष्ट दिशा के साथ तीन से चार महीने का समय दिया है। यदि कोई इसका लाभ उठाने में विफल रहता है, तो इसके लिए स्वयं के अलावा कोई और दोषी नहीं रह जाता है।
मुंबई । आरबीआई के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, जनवरी 2024 के पहले पखवाड़े में बैंकों की ऋण और जमा वृद्धि के बीच का अंतर सितंबर 2023 के आखिरी पखवाड़े की तुलना में बढ़ गया है। 12 जनवरी, 2024 तक साल-दर-साल क्रेडिट और जमा वृद्धि क्रमश: 19.93 प्रतिशत और 12.84 प्रतिशत थी, जो कि 7.09 प्रतिशत अंकों के अंतर को दर्शाती है, जैसा कि भारत में अनुसूचित बैंकों की स्थिति के बारे में आरबीआई के आंकड़ों से पता चलता है। बयान के अनुसार, 12 जनवरी, 2024 को समाप्त समीक्षा पखवाड़े के दौरान अनुसूचित बैंकों का बकाया ऋण 10,277 करोड़ रुपये बढ़ गया, जबकि जमा में 98,848 करोड़ रुपये की गिरावट आई।
आरबीआई ने अपनी आखिरी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) में कहा, स्वस्थ बैलेंस शीट ने बैंकों द्वारा ऋण देने में व्यापक-आधारित विस्तार की सुविधा प्रदान की है। मांग की निरंतर गति के कारण बैंक ऋण वृद्धि जमा वृद्धि से आगे निकल रही है।
आरबीआई ने कहा कि बढ़ती ब्याज दरों से बैंकों को फायदा हुआ है और उनके शुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) में सुधार हुआ है, क्योंकि परिसंपत्तियों पर उपज का हस्तांतरण धन की लागत की तुलना में तेज है।
आरबीआई ने कहा, फिर भी, जैसे-जैसे दर चक्र अपने चरम पर पहुंच रहा है, बढ़ते मूल्यांकन घाटे, परिसंपत्ति गुणवत्ता के लिए बढ़ते जोखिम और ऋण वृद्धि में कमी के कारण बैंकों की लाभप्रदता दबाव में आने की उम्मीद है।
मुंबई । विश्व बाजार के मिलेजुले रुख के बीच स्थानीय स्तर पर बैंकिंग और टेक कंपनियों में हुई भारी बिकवाली के दबाव में बीते सप्ताह एक प्रतिशत से अधिक लुढक़े शेयर बाजार की अगले सप्ताह अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की होने वाली मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक में ब्याज दरों को लेकर होने वाले फैसले पर नजर रहेगी।
बीते सप्ताह बीएसई का तीस शेयरों वाला संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 982.56 अंक अर्थात 1.4 प्रतिशत का गोता लगाकर सप्ताहांत पर 70700.67 अंक रह गया। इसी तरह नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का निफ्टी 269.8 अंक यानी 1.25 प्रतिशत की गिरावट लेकर 21352.60 अंक पर आ गया।
समीक्षाधीन सप्ताह में दिग्गज कंपनियों की तरह मझौली और छोटी कंपनियों के शेयरों पर भी बिकवाली का दबाव रहा। इससे बीएसई का मिडकैप 458.48 अंक अर्थात 1.2 प्रतिशत लुढक़कर 37746.29 अंक और स्मॉलकैप 76.95 अंक यानी 0.2 प्रतिशत उतरकर 44363.74 अंक रह गया।
विश्लेषकों के अनुसार, वैश्विक बाजार के मिश्रित रुझान के बीच आईटी और बैंकिंग शेयरों में भारी बिकवाली से बाजार में गिरावट देखी गई। भारत के पीएमआई मजबूत आंकड़ों के बावजूद बाजार को तेजी के लिए संघर्ष करना पड़ा। यह गिरावट यूरोपीय केंद्रीय बैंक (ईसीबी) के आसन्न दर निर्णयों के बारे में आशंकाओं के कारण थी।
अगले सप्ताह 30-31 जनवरी को फेड रिजर्व की होने वाली नीतिगत बैठक में ब्याज की मौजूदा दरों को यथावत बनाए रखने की संभावना से अमेरिकी बांड यील्ड में तेजी और बाजार में एफआईआई की बिकवाली हो सकती है। हालांकि अमेरिका में जारी मज़बूत पीएमआई आंकड़ों के बीच सभी की निगाहें अमेरिकी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और बेरोजगारी के आंकड़ों पर हैं, जो अमेरिकी अर्थव्यवस्था और संभावित नीतिगत दरों पर होने वाले निर्णय को प्रभावित कर सकते हैं। विशेष रूप से विकास और वित्तीय तरलता को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से पीबीओसी की आरक्षित अनुपात में 0.5 प्रतिशत की कटौती ने बीते सप्ताह घरेलू बाजार को अल्पकालिक समर्थन किया। हालांकि निवेशक चीन की व्यापक प्रोत्साहन योजनाओं पर अतिरिक्त विवरण की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
वित्तीय सलाह देने वाली कंपनी जीओजित फाइनेंशियल सर्विसेज के शोध प्रमुख विनोद नायर ने बताया कि बीते सप्ताह ऊंचे भाव, कंपनियों के कमजोर तिमाही नतीजों और मध्य-पश्चिम में जारी भू-राजनीतिक तनाव के कारण बाजार बढ़त बनाए रखने में असमर्थ रहा। साथ ही मासिक वायदा सौदा निपटान का भी बाजार पर असर रहा। अगले सप्ताह प्रमुख देशों के नीतिगत दरों पर निर्णय जैसे वैश्विक कारकों पर बाजार की नजर रहेगी।
नई दिल्ली । अंतरिम बजट 2024 की तैयारी अंतिम चरण में पहुंच गई है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों की उनकी टीम इसे अंतिम रूप दे रही है। ‘हलवा समारोह’ के बाद पूर्ण गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए नॉर्थ ब्लॉक को लॉक-डाउन में डाल दिया गया है। सूत्रों के मुताबिक, प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पीके मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीएमओ अधिकारियों की टीम और वित्त मंत्रालय के अधिकारियों की टीम के बीच बजट को लेकर दिन रात चर्चा चल रही है। ये चर्चाएं सुनिश्चित करती हैं कि प्रधानमंत्री द्वारा जमीनी हकीकतों की गहरी समझ के साथ तैयार की गई योजनाओं का जोर बजट के फाइन-प्रिंट में पर्याप्त रूप से प्रस्तुत किया जाए।
वित्त सचिव टीवी सोमनाथन, तमिलनाडु कैडर के अधिकारी, जिन्होंने वित्त मंत्रालय में शामिल होने से पहले प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में अतिरिक्त सचिव के रूप में कार्य किया, दोनों टीमों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं। मंत्रालय में बजट बनाने की कवायद का नेतृत्व करने वाली वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की टीम के शीर्ष सदस्यों में राजस्व सचिव संजय मल्होत्रा, आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव अजय सेठ, निवेश और सार्वजनिक संपत्ति विभाग के सचिव तुहिन कांता पांडे, वित्तीय सेवा विभाग के सचिव विवेक जोशी और मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन शामिल हैं। नॉर्थ ब्लॉक में केंद्रीय बजट की छपाई के दौरान, अधिकांश अधिकारियों को बजट से पहले के दिनों में बाहरी दुनिया से बिना किसी संपर्क के कार्यालय में रहना पड़ता है। एक फरवरी को बजट पेश होने के बाद ही उन्हें घर जाने की अनुमति मिलेगी।
अंतिम सप्ताह 6 महीने की बजट तैयारी अभ्यास का समापन है जिसमें कृषि, ग्रामीण विकास, उद्योग, बिजली, राजमार्ग और बंदरगाह जैसे सभी मंत्रालय अपने अनुमान तैयार करते हैं और उन्हें वित्त मंत्रालय को प्रस्तुत करते हैं। वित्त मंत्री अपनी टीम की सहायता से प्रस्तावों पर गौर करती हैं और समग्र राजकोषीय घाटे और विकास और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकारी नीतियों के साथ किए जाने वाले आवंटन को ध्यान में रखते हुए उन्हें पीएमओ के साथ निकट परामर्श में रखती हैं। सीतारमण 1 फरवरी को वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए अंतरिम बजट पेश करेंगी, जिससे वह मोरारजी देसाई के बाद लगातार छठी बार संसद में बजट पेश करने वाली देश की दूसरी वित्त मंत्री बन जाएंगी।
2024 के आम चुनाव के बाद नई सरकार के गठन के बाद 2023-24 का पूर्ण बजट पेश किया जाएगा। अंतरिम बजट उस सरकार द्वारा प्रस्तुत किया जाता है जो लोकसभा चुनाव से पहले अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष में होती है। अंतरिम बजट की आवश्यकता इसलिए होती है क्योंकि सरकार चलाने के लिए भारत की संचित निधि से धन निकालने के लिए संसद से नए सिरे से मंजूरी की जरूरत होती है। मौजूदा 2023-24 बजट इस वर्ष 31 मार्च तक ही वैध है। चूंकि इस साल अप्रैल-मई में लोकसभा चुनाव हो रहे हैं, इसलिए नई सरकार के सत्ता संभालने तक देश को चलाने के लिए धन की आवश्यकता होगी। अंतरिम बजट एक व्यावहारिक व्यवस्था है जो सरकार को इस अंतर को भरने में सक्षम बनाती है।
अंतरिम बजट केंद्रीय बजट के समान होता है जिसमें सत्तारूढ़ सरकार संसद में अपने व्यय, राजस्व, राजकोषीय घाटे और वित्तीय प्रदर्शन और आगामी वित्तीय वर्ष के अनुमान पेश करती है। हालांकि प्रमुख कर प्रस्ताव नहीं किए गए हैं, सत्तारूढ़ सरकार कुछ करों में बदलाव कर सकती है जैसा उसने तब किया था जब उसने 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले वेतनभोगी पेशेवरों को कुछ राहत देने के लिए आयकर कटौती सीमा बढ़ा दी थी। सरकार अंतरिम बजट के दौरान कोई बड़ी नीतिगत घोषणा नहीं करती है जिससे पूर्ण केंद्रीय बजट पेश करने वाली अगली निर्वाचित सरकार पर वित्तीय बोझ पड़ सकता है। चुनाव आयोग की आचार संहिता के मुताबिक सरकार अंतरिम बजट में कोई बड़ी योजना शामिल नहीं कर सकती क्योंकि इससे मतदाता प्रभावित हो सकते हैं। सरकार अंतरिम बजट के साथ आर्थिक सर्वेक्षण भी पेश नहीं करती है जो मुख्य बजट पेश होने से एक दिन पहले किया जाता है।
नई दिल्ली । टीनएजर को सोशल मीडिया पर गलत संपर्क से बचाने के लिए, और पेरेंट्स के लिए अपने बच्चों के ऑनलाइन एक्सपीरियंस को सीमित करने की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए, मेटा ने गुरुवार को इंस्टाग्राम और फेसबुक पर स्ट्रिक्ट प्राइवेट मैसेजिंग सेटिंग्स की घोषणा की। इस नई सेटिंग के तहत, टेक जांयट ने अब 19 साल से ज्यादा उम्र के एडल्ट्स को उन टीनएजर को मैसेज भेजने से प्रतिबंधित कर दिया है जो उनको फॉलो नहीं करते हैं। इन लोगों द्वारा किसी ऐसे व्यक्ति को भेजे जा सकने वाले डायरेक्ट मैसेज (डीएम) के टाइप और नंबर्स को टेक्स्ट-ऑनली मैसेज तक सीमित कर दिया है।
मेटा ने कहा, आज हम टीनएजर्स को गलत संपर्क से बचाने में मदद करने के लिए एक अतिरिक्त कदम की घोषणा कर रहे हैं, जिसके तहत वे किसी ऐसे व्यक्ति से डीएम करने पर रोक लगा देंगे, जिन्हें वे इंस्टाग्राम पर फॉलो नहीं करते हैं या उनसे जुड़े नहीं हैं, जिसमें डिफ़ॉल्ट रूप से अन्य टीनएजर्स भी शामिल हैं। इस नई डिफॉल्ट सेटिंग के तहत, टीनएजर्स को केवल वे लोग ही मैसेज भेज सकते हैं या ग्रुप चैट में जोड़ सकते हैं जिन्हें वे पहले से फॉलो करते हैं या जिनसे वे जुड़े हुए हैं। कंपनी ने कहा कि अकाउंट में टीनएजर्स को इस सेटिंग को बदलने के लिए अपने पेरेंट्स की अनुमति लेनी होगी।
यह डिफॉल्ट सेटिंग 16 साल से कम उम्र (या कुछ देशों में 18 साल से कम) के सभी टीनएजर्स पर लागू होगी। टीनएजर्स की डिफॉल्ट सेटिंग्स में ये नए बदलाव मैसेंजर पर भी लागू होते हैं, जहां 16 साल से कम (या कुछ देशों में 18 साल से कम) को केवल फेसबुक फ्रेंड्स, या उन लोगों से मैसेज प्राप्त होंगे जिनसे वे फोन के माध्यम से जुड़े हुए हैं। इसके अलावा, टेक जांयट एक नया फीचर लॉन्च करने की योजना बना रहा है, जो टीनएजर्स को उन लोगों से उनके मैसेज में अवांछित और संभावित रूप से इमेज को देखने से बचाने में मदद करेगी, जिनसे वे पहले से जुड़े हुए हैं।
मेटा ने कहा, हमारे पास इस फीचर पर शेयर करने के लिए और भी बहुत कुछ होगा, जो इस साल के आखिर में एन्क्रिप्टेड चैट में भी काम करेगा। माता-पिता को अपने बच्चों के ऑनलाइन एक्सपीरियंस को सीमित करने में मदद करने के लिए, मेटा अब पेरेंट्स को टीनएजर्स (16 वर्ष से कम) के डिफ़ॉल्ट सेफ्टी और प्राइवेसी सेटिंग्स को कम स्ट्रिक्ट स्थिति में बदलने के अनुरोध को स्वीकार या अस्वीकार करने की अनुमति देता है।
कनेक्ट सेफली के सीईओ लैरी मैगिड ने एक बयान में कहा, माता-पिता को अपने बच्चों की डिफॉल्ट सेफ्टी और प्राइवेसी सेटिंग्स को बदलने के अनुरोधों को स्वीकार करने या अस्वीकार करने का अधिकार देने से जरुरी टूल्स मिलते हैं।