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आईबीसी से अनुशासन तो आया, लेकिन सुस्ती ने बढ़ाई चिंता
Posted Date : 23-Jan-2019 12:01:52 pm

आईबीसी से अनुशासन तो आया, लेकिन सुस्ती ने बढ़ाई चिंता

दिल्ली ,23 जनवरी । इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी) पर संसद की मुहर लगे हुए दो साल से ज्यादा समय बीतने के साथ बैंकरों और वकीलों को आईबीसी से जुड़ी कार्यवाही में सुस्ती की चिंता सता रही है क्योंकि 270 दिनों की टाइमलाइन बनी रहने की उम्मीद ध्वस्त हो गई है। हालांकि इस कोड से जुड़े सभी प्रतिभागियों की यह एकराय है कि इस नए कानून ने बड़े कर्जदारों में कर्ज चुकाने के बारे में अनुशासन बढ़ाया है।
असल में आईबीसी का आगाज जून 2017 में हुआ, जब आरबीआई ने बैंकों को निर्देश दिया कि वे 12 बड़े कर्जदारों का मामला नेशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल में ले जाएं। बैंकों के बकाया 8 लाख करोड़ रुपये का करीब 25 प्रतिशत हिस्सा इन 12 कंपनियों पर बाकी था। इनमें से केवल पांच का मामला अब तक सुलझ पाया है। वेदांता ने इलेक्ट्रोस्टील स्टील्स को खरीदा, एयॉन-जेएसडब्ल्यू स्टील ने मॉनेट इस्पात की बोली जीती, टाटा स्टील ने भूषण स्टील को खरीदा जबकि लैंको इंफ्रा अब कुर्की की राह पर है।
बार्कलेज के सीईओ (एशिया पैसिफिक) जयदीप खन्ना ने कहा, देर तो हो रही है, लेकिन ज्यादा अहम बात यह है कि आईबीसी से कर्जदारों का रवैया बदलने लगा है। पेमेंट से जुड़ा अनुशासन बेहतर हुआ है क्योंकि रेगुलेटर ढिलाई बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है। आईबीसी लागू हो जाने और गड़बड़ी करने पर कंपनी पर ओनर्स का कंट्रोल खत्म हो सकने की स्थिति के कारण बर्ताव बदल रहा है। यह अच्छी बात है। प्रक्रिया में देर हो रही है, लेकिन बॉरोअर अब यह मानकर नहीं चल सकता कि क्रेडिटर उसका कुछ भी नहीं कर पाएंगे। 
इस कोड से जुड़े वकीलों का कहना है कि सबसे बड़ी चिंता देरी को लेकर है क्योंकि एनसीएलटी का इंफ्रास्ट्रक्चर उस तरह नहीं बढ़ा है, जिस तरह मामले बढ़े हैं। इंडियालॉ एलएलपी के मैनेजिंग पार्टनर के पी श्रीजीत ने कहा, मामला स्वीकार किए जाने में ही तीन महीने से लेकर एक साल का समय लग रहा है जबकि कानून में कहा गया है कि एप्लिकेशन 15 दिनों में स्वीकार किया जाए। इसी तरह एनसीएलटी की कुछ बेंच रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल को बदलने के लिए दाखिल किए गए एप्लिकेशन पर आदेश जारी करने में एक महीना से ज्यादा समय लगा देती हैं और वे रिजॉल्यूशन पीरियड से यह समय घटाती भी नहीं हैं। 180 प्लस 90 दिनों का पीरियड अब कई महीनों तक खिंच जा रहा है। 
सरकार ने बेंचों के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारने का कदम उठाया है। हालांकि एनसीएलटी को दूसरे कॉरपोरेट मामले भी देखने होते हैं, लिहाजा उन पर काम का बोझ काफी बढ़ गया है। 
वकीलों को डर है कि मामले दाखिल होने के साथ ही शुरू हो रही देर इस नए कानून को इससे पहले के डेट रिकवरी ट्राइब्यूनल की तरह बेकार बना सकती है। 
शार्दूल अमरचंद मंगलदास के नेशनल हेड (बैंकिंग एंड फाइनेंस प्रैक्टिस) सपन गुप्ता ने कहा, बैंकरों सहित सभी प्रोफेशनल्स ने इस कोड की अपनी खासियत और स्पीड से तालमेल बना लिया है, लेकिन शुरुआती रफ्तार के बाद कामकाज काफी धीमा हो गया है। यह इस कोड की सफलता के लिए शुभ संकेत नहीं है। अगर फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारा नहीं गया और टाइमलाइन का पालन नहीं किया गया तो इसका हाल डीआरटी जैसा हो सकता है। 
इंडिया लॉ के श्रीजीत ने भी कहा कि इंडिविजुअल्स, खासतौर से कॉरपोरेट बॉरोअर्स के गारंटरों की बैंकरप्सी के लिए प्रावधानों को नोटिफाई करने में देर हो रही है, जिसके कारण लेंडर आईबीसी के तहत इंडिविजुअल गारंटरों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं ले पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि ये इंडिविजुअल गारंटर मुख्य रूप से कर्ज लेने वाली कंपनियों के प्रमोटर ही हैं। 

फ्री कैश फ्लो देखकर बाजार में लगाएं बाजी
Posted Date : 23-Jan-2019 12:01:15 pm

फ्री कैश फ्लो देखकर बाजार में लगाएं बाजी

मुंबई ,23 जनवरी । कोई कंपनी अच्छी है या नहीं, इसे परखने के लिए मार्केट एनालिस्ट मुनाफे में बढ़ोतरी की रफ्तार देखते हैं। नेट प्रॉफिट का संबंध अर्निंग पर शेयर (ईपीएस) और प्राइस टु अर्निंग (पीई) रेशियो से भी होता है, जिनसे किसी शेयर के सस्ता या महंगा होने का पता लगाया जाता है। हालांकि नेट प्रॉफिट से यह पता नहीं चलता कि किसी कंपनी के पास कितना कैश है। हो सकता है कि कोई कंपनी उधार लेकर बिजनस बढ़ा रही हो और वह ग्राहकों के भुगतान करने से पहले इनकम स्टेटमेंट में आमदनी और नेट प्रॉफिट दिखा रही हो। इसलिए इनकम स्टेटमेंट में नेट प्रॉफिट दिखाने के बावजूद कंपनी को कैश की कमी हो सकती है, जिससे उसके वर्किंग कैपिटल मैनेजमेंट पर असर पड़ सकता है। इसलिए अगर आप सिर्फ नेट प्रॉफिट के भरोसे रहे तो किसी कंपनी की सॉल्वेंसी और फाइनेंशियल स्ट्रेंथ की वास्तविक तस्वीर पता नहीं चलेगी।
फ्री कैश फ्लो (एफसीएफ) से पता चलता है कि किसी कंपनी के पास कितना सरप्लस कैश है। इससे नेट प्रॉफिट के बरक्स कंपनी की प्रॉफिटेबिलिटी की सही तस्वीर सामने आती है। यह वह पैसा होता है, जिसका इस्तेमाल कंपनी कर्ज घटाने, डिविडेंड देने और ग्रोथ के लिए कर सकती है। कंपनी के ऑपरेटिंग कैश फ्लो में से कैपिटल एक्सपेंडिचर की रकम घटाने के बाद आपको एफसीएफ मिलता है। कैपिटल एक्सपेंडिचर वह रकम होती है, जिसका इस्तेमाल कोई कंपनी प्लांट, मशीनरी और दूसरे इच्पिमेंट में करती है। कहने का मतलब यह है कि कंपनी इससे फिक्स्ड एसेट्स तैयार करती है।
नेट प्रॉफिट की तरह एक तय अवधि में एफसीएफ को देखकर किसी कंपनी की वित्तीय सेहत के बारे में राय बनानी चाहिए। एफसीएफ में बढ़ोतरी अच्छा संकेत होता है। इससे पता चलता है कि कंपनी सरप्लस कैश जेनरेट कर रही है, जिसे वह बिजनेस में लगा सकती है। नेगेटिव एफसीएफ से पता चलता है कि कंपनी बिजनेस को सपोर्ट करने के लिए कैश जेनरेट नहीं कर पा रही है, लेकिन यह हमेशा बुरा नहीं होता। कई बार कंपनियां बड़ा निवेश करती हैं, जिसके चलते कुछ समय तक उनका एफसीएफ नेगेटिव हो सकता है। हालांकि, इससे लॉन्ग टर्म में वह अच्छा रिटर्न जेनरेट कर सकती है। अगर एफसीएफ लंबे समय तक नेगेटिव है तो उसकी बारीक पड़ताल करनी चाहिए क्योंकि इससे कंपनी के वजूद पर सवालिया निशान लग जाता है।
आयशर मोटर्स 
कंपनी ऑटोमोबाइल सेक्टर में है और यह रॉयल एनफील्ड बाइक्स भी बनाती है। देश के प्रीमियम मोटरसाइकल सेगमेंट में यह मार्केट लीडर है। ब्रोकरेज फर्म एंबिट कैपिटल का मानना है कि एक्सपोर्ट मार्केट में कंपनी की प्राइसिंग पावर बढ़ी है, उसका स्केल बड़ा हो रहा है और कंपोनेंट के लोकर प्रॉडक्शन से कंपनी के ऑपरेटिंग मार्जिन में बढ़ोतरी होगी। सिस्टेमेटिक इनवेंटरी कंट्रोल और जनवरी-मार्च तिमाही के सीजनली मजबूत रहने की वजह से कंपनी के प्रॉडक्ट्स की रिटेल डिमांड बढ़ेगी। ब्लूमबर्ग के कंसेंसस एस्टिमेट के मुताबिक, कंपनी की आमदनी और एडजस्टेड ईपीएस ग्रोथ 2018-19 में क्रमश: 13.9 और 23.8 पर्सेंट बढ़ सकती है। 
मारुति सुजुकी इंडिया 
यह जापान की सुजुकी मोटर कॉरपोरेशन की सब्सिडियरी है। कंपनी पैसेंजर कार, कंपोनेंट और स्पेयर पार्ट्स बनाती है। वे2वेल्थ रिसर्च के मुताबिक, मारुति लॉन्ग टर्म स्ट्रक्चरल ग्रोथ की तरफ बढ़ रही है। देश में प्रति व्यक्ति कार चीन और विकसित देशों की तुलना में काफी कम है। इसलिए मारुति की ग्रोथ लंबे समय तक काफी अच्छी रह सकती है। ब्लूमबर्ग के कंसेंसस एस्टिमेट के मुताबिक, 2018-19 में कंपनी की आमदनी में 12.5 पर्सेंट और एडजस्टेड ईपीएस में 3.7 पर्सेंट की बढ़ोतरी होगी। 
टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज 
यह आईटी सर्विसेज, कंसल्टिंग और बिजनेस सॉल्यूशन कंपनी है, जो मार्जिन के मोर्चे पर दिसंबर 2018 तिमाही में एनालिस्टों की उम्मीद पर खरी नहीं उतरी है। हालांकि, एमके ग्लोबल का मानना है कि नई डील्स और अलग पोजिशनिंग की दौलत टीसीएस के शेयर प्राइस में दूसरी बड़ी आईटी कंपनियों की तुलना में अधिक तेजी आ सकती है। सबसे बड़ी बात यह है कि मैक्रो इकनॉमी संबंधी चिंताओं और मार्केट डायनेमिक्स के खराब रहने पर भी लंबे समय में इसकी ग्रोथ जारी रहेगी। ब्लूमबर्ग के कंसेंसस एस्टिमेट के मुताबिक, इस वित्त वर्ष में कंपनी की आमदनी में 19 पर्सेंट और एडजस्टेड ईपीएस में 24.3 पर्सेंट की बढ़ोतरी हो सकती है। 
जीएसके कंज्यूमर हेल्थकेयर 
कंपनी हेल्थ फूड ड्रिंक्स इंडस्ट्री में ऑपरेट करती है और उसके पास हेल्थकेयर फूड और फार्मास्युटिकल्स ड्रग का बड़ा पोर्टफोलियो है। जेपी मॉर्गन कंपनी पर प्राइसिंग पावर, कॉम्पिटीटिव एडवांटेज, डिस्ट्रीब्यूशन एक्सपैंशन इनीशिएटिव और एक्सपैंडेड प्रॉडक्ट पोर्टफोलियो की वजह से बुलिश है। ब्रोकरेज हाउस का मानना है कि प्रॉडक्ट के दाम बढ़ाने से कंपनी के मार्जिन में इजाफा होगा। उसे इनोवेशन और लागत कम करने संबंधी पहल का भी लाभ होगा। ब्लूमबर्ग के कंसेंसस एस्टिमेट के मुताबिक, कंपनी की आमदनी में 10.3 पर्सेंट और एडजस्टेड ईपीएस में इस वित्त वर्ष में 24.9 पर्सेंट की बढ़ोतरी होगी।

आरबीआई चाहता है, रिटेल पेमेंट सिस्टम में और प्राइवेट कंपनियां आएं
Posted Date : 23-Jan-2019 12:00:27 pm

आरबीआई चाहता है, रिटेल पेमेंट सिस्टम में और प्राइवेट कंपनियां आएं

बेंगलुरु ,23 जनवरी । रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) चाहता है कि देश में आईएमपीएस और यूपीआई जैसे रिटेल पेमेंट सिस्टम को डिवेलप करने के लिए कुछ और प्राइवेट फर्म्स सामने आएं। इसके लिए केंद्रीय बैंक ने कुछ नियम तय किए हैं। इसके आधार पर प्राइवेट पार्टी इसे विकसित करने के लिए आवेदन कर सकती हैं। आरबीआई ने एक नोट में लिखा है कि तेजी से उभरते इस सेक्टर में अभी कुछ ही प्लेयर्स हैं और वह कॉम्पिटीशन को बढ़ावा देने के लिए कई कंपनियों को देश में पेमेंट्स सिस्टम तैयार करने की इजाजत दे सकता है।
आरबीआई ने कहा है कि रिटेल डिजिटल पेमेंट सिस्टम को मजबूत करने के लिए कई स्तरों पर पहल की जरूरत है। नोट में लिखा है कि पेमेंट सिस्टम के लिए एंट्री नॉर्म्स और प्रक्रियाओं को आसान बनाया जा सकता है। रेगुलेटर ने इस मामले पर आम लोगों की राय लेने के लिए पेमेंट सिस्टम की अपनी योजनाओं को सार्वजनिक करते हुए उस पर 20 फरवरी 2019 तक टिप्पणियां मंगाई हैं। 
आरबीआई ने इसकी वजह बताई, बहुत सारे पेमेंट्स सिस्टम के लिए सिर्फ गिने-चुने ऑपरेटर्स ही मौजूद हैं, जिससे सिस्टम में कंसंट्रेशन रिस्क की आशंका बढ़ गई है। उसने इसके लिए नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) का उदाहरण दिया, जो चेक पेमेंट्स, स्मार्टफोन आधारित यूपीआई, आईएमपीएस और यहां तक की फीचर फोन यूजर्स के लिए यूएसएसडी की निगरानी करती है। 
यह प्लेटफॉर्म देश के कुल रिटेल पेमेंट्स के 48 पर्सेंट हिस्से की निगरानी करता है, जो पिछले साल अक्टूबर में हुए कुल ट्रांजैक्शन का 15 पर्सेंट था। इस सेगमेंट में कंसंट्रेशन के कुछ फायदे भी हैं। जैसे निगरानी की कम लागत या गवर्नेस में आसानी। हालांकि इससे मोनोपॉली (एकाधिकार) की स्थिति बनती है, जिसके लगातार इनोवेशन या अपग्रेडेशन नहीं होने पर पूरे सिस्टम के बैठने का खतरा रहता है। 
इसलिए आरबीआई ने ओपन इन्वाइरनमेंट का सुझाव दिया है, जिसमें कई कंपनियां एक दूसरे से मुकाबला करेंगी। इसके तहत कंपनियां अपने प्रॉडक्ट्स के साथ मार्केट में आएंगी और आगे उसमें इनोवेशन करती रहेंगी। हालांकि आरबीआई नोट में कहा गया है कि इसके लिए इन सभी प्लेटफॉर्म के बीच इंटर-ऑपरेबिलिटी सिस्टम की जरूरत होगी।

एसबीआई ने अपने ग्राहकों को दी चेतावनी, अगर ऐसे मैसेज मिले तो रहे सावधान
Posted Date : 23-Jan-2019 11:59:57 am

एसबीआई ने अपने ग्राहकों को दी चेतावनी, अगर ऐसे मैसेज मिले तो रहे सावधान

नई दिल्ली ,23 जनवरी । भारत तेजी से डिजिटलाइजेशन की तरफ आगे बढ़ रहा है। देश में अधिकतक पैसों का लेनदेन आनलाइन माध्यम से ही हो रहा है। तो दूसरी तरफ ठगी भी काफी हो रही है। पुलिस स्टेशनों में ठगी के कई मामले दर्ज हुए पड़े है। अब चोरों ने लोगों के अकाउंट से पैसा चोरी करने के लिए नया हथकंडा अपनाया है। 
देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया ने अपने ग्राहकों को चेतावनी देते हुए कहा है कि आजकल इंटरनेट पर चोरी के जरिए लोगों के बैंक खाते खाली किए जा रहे है। बैंक ने अपनी वेबसाइट पर बताया है कि फिशिंग एक सामान्य किस्म की इंटरनेट चोरी है। इसका प्रयोग गोपनीय वित्तीय जानकारी, जैसे- बैंक खाता संख्या, नेट बैंकिंग पासवर्ड, क्रेडिट कार्ड संख्या, व्यक्तिगत पहचान का ब्योरा आदि चुराने के लिए किया जाता है। जिसके बाद हैकर सीधा आपके अकाउंट को निशाना बनाते है। इंटरनेट बैंकिंग उपयोगकर्ता (यूजऱ) को धोखाधड़ी वाला ई - मेल प्राप्त होता है जो वैध इंटरनेट पते से प्राप्त हुआ प्रतीत होता है। ई–मेल में उपयोगकर्ता को मेल में उपलब्ध करवाए गए हाइपरलिंक पर क्लिक करने के लिए कहा जाता है। फिर एक नकली वेब साइट खुल जाती है जोकि असली इंटरनेट बैंकिंग साइट के समान प्रतीत होती है। आमतौर पर ई-मेल में या तो कुछ प्रक्रिया पूरी करने पर इनाम या प्रक्रिया पूरी न करने पर दंड लगाने की चेतावनी दी जाती है। फिर यूजर डर के कारण सभी जानकारी फिल कर देता है। इसके लिए आर पहले से ही सतर्क रहे। अगर आपकों ऐसे लिंक मिलते है तो आप उसपर क्लिक न करें। कभी अपना फोन नंबर, अकाउंट नंबर, ईमेल किसी प्रकार की जानकारी न दें। ऐसा कोई मैसेज मिलने पर आप अपने बैंक से संपर्क करें।  

अमूल ने चुनिंदा बाजारों में लांच किया ऊंटनी का दूध
Posted Date : 23-Jan-2019 11:59:18 am

अमूल ने चुनिंदा बाजारों में लांच किया ऊंटनी का दूध

अहमदाबाद ,23 जनवरी । अमूल डेयरी का मालिकाना हक रखने वाली कंपनी, गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड ने मंगलवार को ऊंटनी का दूध लांच किया। अमूल कैमल मिल्क ब्रांड वाला यह दूध अहमदाबाद, गांधीनगर और कच्छ में उपलब्ध होगा।
आधिकारिक प्रेस रिलीज के अनुसार, ऊंटनी का दूध आसानी से पच जाता है और स्वास्थ्य के लिहाज से इसके कई फायदे हैं। सबसे ज्यादा यह मधुमेह के रोगियों के लिए गुणकारी है। बयान में कहा गया है कि यह दूध उन लोगों के लिए भी गुणकारी है, जिन्हें डेयरी एलर्जी है, क्योंकि इसमें कोई एलर्जी कारक नहीं है।

आईएलऐंडएफएस के पावर प्लांट के बैड असेट में बदलने का खतरा मंडराया
Posted Date : 22-Jan-2019 9:32:56 am

आईएलऐंडएफएस के पावर प्लांट के बैड असेट में बदलने का खतरा मंडराया

मुंबई ,22 जनवरी । वित्तीय मुश्किलों में फंसे आईएलऐंडएफएस के एक पावर प्लांट के सामने ‘गुड’ एसेट से ‘बैड’ में बदलने का खतरा पैदा हो गया है। कोर्ट के कर्ज के भुगतान पर रोक लगाने से लेंडर्स कंपनी को मिल रहे फंड का इस्तेमाल नहीं कर सकते और इस वजह से बैंक इसे और वर्किंग कैपिटल नहीं देना चाहते।
आईएलऐंडएफएस को कैश फ्लो हासिल कर रहे अच्छे एसेट्स के फंड्स का इस्तेमाल करने की भी अनुमति नहीं है और इस वजह से इसके ये असेट्स भी नुकसान में जा सकते हैं। आईएलऐंडएफएस ने अपनी ट्रस्टीशिप को कर्ज चुकाने के लिए एस्क्रो एकाउंट से और रकम निकालने को बंद करने के लिए पत्र लिखा है। कंपनी के एक एग्जिक्यूटिव ने अपना नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया, ‘लोन चुकाने और लोन से संबंधित अन्य मामलों पर लेंडर्स से बातचीत की जा रही है।’
नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्राइब्यूनल (एनसीएलएटी) के कर्ज के भुगतान पर मोराटोरियम के पक्ष में फैसला देने के बाद आईएलऐंडएफएस ग्रुप कंपनियां और स्पेशल पर्पज व्हीकल कुछ कंपनियों से कैश फ्लो मिलने के बावजूद लेंडर्स को भुगतान नहीं कर रहे। एनसीएलएटी ने अगले आदेश तक मोराटोरियम की अनुमति दी है। इस मामले की अगली सुनवाई 28 जनवरी को होगी।