सैन फ्रांसिस्को ,31 जनवरी । विवादों में फंसने के बाद भी सोशल मीडिया वेबसाइट फेसबुक के यूजर्स की संख्या में वृद्धि हुई है। इसके दम पर फेसुबक का मुनाफा दिसंबर तिमाही में 61 प्रतिशत बढक़र 6.9 अरब डॉलर पर पहुंच गया। कंपनी ने बुधवार को इसकी जानकारी दी।
कंपनी ने कहा की वर्ष की चौथी तिमाही में उसका राजस्व सालाना आधार पर 30 प्रतिशत बढक़र 16.90 अरब डॉलर पर पहुंच गया। इस दौरान कंपनी के यूजर्स की संख्या नौ प्रतिशत बढक़र 2.32 अरब पर पहुंच गयी। कंपनी के मुख्य कार्यकारी मार्क जकरबर्ग ने परिणाम पर कहा, हमारी कम्युनिटी और कारोबार की वृद्धि जारी है।
कंपनी का शेयर परिणाम जारी होने के बाद 7.70 प्रतिशत उछल गया और 161.99 डॉलर पर पहुंच गया। जनवरी-मार्च की तिमाही के दौरान कंपनी के कर्मचारियों की संख्या 42 प्रतिशत बढक़र 35,587 पर पहुंच गई।
नई दिल्ली ,31 जनवरी । 16वीं लोकसभा अपने कार्यकाल की समाप्ति की ओर पहुंच रही है। आज से शुरू होने वाला संसद का बजट सत्र मोदी सरकार का आखिरी संसद सत्र होगा। राष्ट्रपति के अभिभाषण से शुरू होने वाला आखिरी सत्र 13 फरवरी तक चलेगा। 1 फरवरी को मोदी सरकार का अंतरिम बजट पेश किया जाएगा। लोकसभा चुनाव से पहले होने वाले इस आखिरी संसद सत्र के काफी हंगामेदार रहने की संभावना है। जहां एक ओर सरकार का अजेंडा अपने अंतरिम बजट को पास कराना रहेगा, वहीं उनकी प्राथमिकता अपने महत्वाकांक्षी बिल तीन तलाक और नागरिकता संशोधन बिल पास कराना रहेगी। दरअसल, चुनाव से ठीक पहले होने वाले सत्र में लोकसभा चुनाव की छाया दिखेगी। सरकार और विपक्ष दोनों की कोशिश होगी कि अपने-अपने अजेंडे जोरदार तरीके से देश के सामने रख सकें।
चर्चा है कि इस बजट में किसानों और मध्यम वर्ग को ध्यान में रखते हुए सरकार कुछ अहम घोषणाएं कर सकती है। सूत्रों के मुताबिक, इसमें आयकर छूट की सीमा बढ़ाने, गरीबों के लिये न्यूनतम आय योजना और किसानों के लिए सहायता पैकेज सहित कई तरह की लोक लुभावन घोषणाएं की जा सकती हैं। हालांकि, बजट सत्र के दौरान मात्र चार महीने के लेखानुदान को ही मंजूरी दी जाएगी। चुनाव के बाद सत्ता में आने वाली नई सरकार ही पूर्ण बजट पेश करेगी।
उल्लेखनीय है कि आखिरी बजट वित्त मंत्रालय का कामकाज देख रहे केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल पेश करेंगे। गौरतलब है कि बजट को लेकर विपक्ष की निगाहें लगी हैं। कांग्रेस किसानों, राफेल, युवाओं में बेरोजगारी जैसे मुद्दों को सत्र में उठाएगी। कांग्रेस ने जिस तरह से अभी से अपना एजेंडा साफ किया है, उसे देखते हुए आज से शुरू हो रहे सत्र के हंगामेदार रहने की पूरी संभावना है। चर्चा यह भी है कि सरकार इस सत्र में राफेल पर कैग की रिपोर्ट को भी संसद में रख सकती है।
नई दिल्ली ,31 जनवरी । सरकार देश के असंगठित क्षेत्र में सबसे कमजोर 25 प्रतिशत हिस्से के लिए एक फाइनैंशियल सिक्यॉरिटी स्कीम शुरू करने पर विचार कर रही है। इसके तहत असंगठित क्षेत्र के 10 करोड़ कामगारों को रिटायरमेंट के बाद एक न्यूनतम पेंशन की गारंटी दी जाएगी। यह पेंशन उन्हीं कामगारों को देने की योजना है जिनकी मंथली सैलरी 15000 रुपये से कम हो।
इस कदम से घरेलू नौकरानियों, ड्राइवरों, प्लबंर, बिजली का काम करने वालों, नाइयों और उन दूसरे कामगारों को फायदा हो सकता है, जो इस स्कीम के तहत तय सैलरी से कम कमाई कर पाते हों।
एक सीनियर सरकारी अधिकारी ने बताया कि लेबर मिनिस्ट्री ने यह प्रस्ताव फाइनेंस मिनिस्ट्री को दिया है। उन्होंने बताया, लेबर मिनिस्ट्री इस पर काफी जोर दे रही है। सरकार का मानना है कि वर्कफोर्स के इस हिस्से को कोई सोशल सिक्यॉरिटी दी जानी चाहिए क्योंकि रिटायरमेंट की उम्र के आसपास पहुंचने पर वे अपनी आजीविका का इंतजाम नहीं कर सकते। अधिकारी ने कहा कि इस प्रस्ताव को फाइनैंस मिनिस्ट्री जल्द मंजूरी दे सकती है।
यह स्कीम लागू होने पर सालाना 1200 करोड़ रुपये की जरूरत होगी और यह देश के 50 करोड़ वर्कर्स को यूनिवर्सल सोशल सिक्यॉरिटी देने के सरकार के विजन की दिशा में एक कदम हो सकता है। अभी न्यूनतम पेंशन 1000 रुपये महीने की है।
इस स्कीम की जानकारी रखने वाले अधिकारियों के अनुसार, 18 साल की उम्र से काम शुरू करने वाले किसी वर्कर को 20-25 साल के काम के दौरान मामूली मासिक अंशदान करना होगा और इस स्कीम के लिए उतना ही अंशदान केंद्र की ओर से आएगा। अधिकारी ने बताया, यह स्कीम कई चरणों में लागू की जाएगी और इसके पहले चरण के तहत आंशिक कवरेज दी जाएगी।
भारत में करीब 50 करोड़ की वर्कफोर्स है, जिसमें से 90 प्रतिशत हिस्सा असंगठित क्षेत्र में काम करता है। ऐसे वर्कर्स को प्राय: सरकारों की ओर से तय न्यूनतम वेतन भी नहीं मिलता और न ही पेंशन या हेल्थ इंश्योरेंस जैसी सोशल सिक्यॉरिटी मिल पाती है। 15000 रुपये महीने से ज्यादा सैलरी वाले एंप्लॉयीज प्रॉविडेंट फंड ऑर्गनाइजेशन या एंप्लॉयीज स्टेट इंश्योरेंस कॉरपोरेशन के तहत कवर्ड हैं, लिहाजा पहले चरण में उन्हें प्रस्तावित स्कीम के दायरे से बाहर रखा जाएगा।
आरएसएस से जुड़ी ट्रेड यूनियन भारतीय मजदूर संघ के महासचिव वृजेश उपाध्याय ने कहा कि कैबिनेट मिनिस्टर अरुण जेटली ने जनवरी के पहले सप्ताह में बीएमएस के साथ बैठक में ऐसे कामगारों के लिए सोशल सिक्योरिटी की मांग पर सैद्धांतिक सहमति जताई थी।
यह स्कीम एक व्यापक यूनिवर्सल सोशल सिक्यॉरिटी सिस्टम बनाने की लेबर मिनिस्ट्री की पहले की कोशिशों से कुछ अलग है जिसमें 50 करोड़ वर्कर्स को एसईसीसी डेटा के आधार पर चार स्तरों में बांटा गया था और सबसे नीचे वाले 25 प्रतिशत वर्कर्स के लिए अंशदान सरकार को ही करना था, उसके ऊपर के 25 प्रतिशत हिस्से के लिए सब्सिडी दी जानी थी जबकि इससे ऊपर के स्तरों वालों को या तो खुद अंशदान करना था या उनके एंप्लॉयर्स को इसमें हाथ बंटाना था।
नई दिल्ली,31 जनवरी । अंतरिम बजट में कई दिलचस्प घोषणाएं हो सकती हैं। इनमें संभवत: कृषि क्षेत्र के संकट को दूर करने के साथ-साथ मध्यवर्ग को टैक्स में राहत देने के प्रयास शामिल होंगे। दरअसल सरकार के सामने अगले आम चुनाव की चुनौती है जिसे किसानों एवं मध्यवर्ग की विशाल आबादी का दिल जीतकर आसान बनाया जा सकता है।
टैक्स पर छूट, लेकिन किस तरह?
टैक्स पर छूट की रूपरेखा क्या होगी, यह तो अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन सूत्रों ने संकेत दिया है कि 1 फरवरी को पेश होने जा रहे बजट में वित्त वर्ष 2019-20 के पहले कुछ महीनों के दौरान टैक्स छूट का ऐलान संभव है। बजट में यह वादा किया जा सकता है कि अगर मोदी सरकार दोबारा सत्ता में आई तो इस राहत की अवधि बढ़ाई जाएगी।
कौन सा विकल्प अपनाएगी सरकार?
अभी वित्त मंत्रालय का कामकाज देख रहे केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल अपने पहले बजट भाषण के बड़े हिस्से में सरकार की विभिन्न पहलों एवं भविष्य के अजेंडे का बखान कर सकते हैं। अटकलें लग रही हैं कि गोयल टैक्स पर राहत देने के लिए स्लैब में बदलाव करेंगे या फिर स्टैंडर्ड डिडक्शन की सीमा 40 हजार रुपये से बढ़ाने का ऐलान होगा। चर्चा इस बात की भी है कि वह मेडिकल इंश्योरेंस लेने पर छूट के ऐलान तक ही सीमित रह सकते हैं।
जेटली का संकेत
बहरहाल, मोदी सरकार से इस बजट में बड़े-बड़े ऐलान की उम्मीद की जा रही है, लेकिन आशंका यह भी है कि अंतरिम बजट की बाध्याताओं के कारण ऐसा संभव नहीं हो। हालांकि, अमेरिका में इलाज करा रहे निवर्तमान वित्त मंत्री अरुण जेटली ने हाल ही में संकेत दिया था कि सरकार अर्थव्यवस्था की तात्कालिक चुनौतियों से निपटने के लिए कदम उठा सकती है। इसलिए, उम्मीद की जा रही है कि इस बार के कृषि संकट और इसका अर्थव्यवस्था पर असर जैसे मुद्दे बजट की प्राथमिकता में शामिल रह सकते हैं।
सरकार की मुश्किल
पिछले बजट में भी टैक्स दरों में बदलाव की बड़ी उम्मीद जताई गई थी, लेकिन वित्तीय अनुशासन में बंधे होने के कारण सरकार ने ऐसा कोई ऐलान नहीं किया था। हालांकि, सरकार लगातार कहती रही है कि टैक्सपेयर के पॉकेट में ज्यादा पैसे रहने से अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ती है। सरकार के सामने मुश्किल यह है कि आयुष्मान भारत जैसी विशाल योजना को सुचारू तरीके से चलाने के लिए मोटी रकम की जरूरत है जबकि जीएसटी के तहत टैक्स कलेक्शन अब भी लक्ष्य से कम हो रहा है।
नई दिल्ली ,31 जनवरी । रेस्टोरेंट्स ने सरकार से पूछा है कि क्या जोमैटो, स्विगी और उबरईट्स जैसी ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग कंपनियां भी ई-कॉमर्स से जुड़ी एफडीआई पॉलिसी के दायरे में आएंगी? यह सवाल देश के एक लाख से ज्यादा रेस्टोरेंट्स का प्रतिनिधित्व करने वाले नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रमोशन (डीआईपीपी) से इसी महीने किया था।
एसोसिएशन ने डीआईपीपी से यह स्पष्ट करने को कहा था कि क्या ऑनलाइन फूड कंपनियों को भी ई-कॉमर्स एफडीआई पॉलिसी की गाइडलाइंस का पालन करना होगा। इस पॉलिसी के हिसाब से इन कंपनियों पर प्राइसिंग को कंट्रोल करने, इनवेंटरी बेस्ड मॉडल पर ऑपरेट करने और अपना किचन चलाने पर रोक है।
डीआईपीपी ने एफडीआई पॉलिसी में क्लैरिटी के लिए दिसंबर 2018 के अंत में जो नॉर्म्स जारी किए थे, वे 1 फरवरी से लागू होने वाले हैं। इस मामले में फिलहाल सबकी नजरें ऑनलाइन मार्केटप्लेस एमेजॉन और फ्लिपकार्ट पर हैं, जो बड़ी संख्या में ग्राहकों को लुभा रही थीं। ऑनलाइन मार्केटप्लेस ऑपरेटर्स ने नियमों के पालन के लिए ज्यादा समय मांगा है।
ई-कॉमर्स एफडीआई नॉर्म्स के मुताबिक ऑनलाइन मार्केटप्लेस, वेंडर कंपनियों में हिस्सेदारी नहीं रख सकते। वे अपने प्लेटफॉर्म पर बिकने वाले सामान और उनके दाम पर कंट्रोल नहीं रख सकते। कुछ ऑनलाइन फूड कंपनियां मार्केटप्लेस की तरह काम कर रही हैं, जबकि बाकी इनवेंटरी बेस्ड हैं और कुछ कंपनियां दोनों मॉडल का इस्तेमाल कर रही हैं।
एनआरएआई ऑनलाइन फूड कंपनियों पर कंज्यूमर्स को डिस्काउंट की लत लगाने का आरोप लगा चुका है। एसोसिएशन के प्रेसिडेंट राहुल सिंह कहते हैं, रेस्टोरेंट सेक्टर में छोटे कारोबारियों और परिवारों के हाथों चल रहे लाखों छोटे बिजनेस हैं, जिनके हितों का ध्यान पूरा रखा जाना चाहिए। पॉलिसी में निष्पक्ष और बिना भेदभाव वाला फ्रेमवर्क होना चाहिए। दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनियों में किसी भी कीमत पर कस्टमर्स हासिल करने की होड़ और उनके बीच चल रहे कड़े मुकाबले में हमें देखना होगा कि रेस्टोरेंट चलाने वालों को नुकसान न हो।
मैनेजमेंट कंसल्टिंग फर्म एटी कियर्नी के पार्टनर देबाशीष मुखर्जी कहते हैं, पॉलिसी को स्पष्ट किया जाना चाहिए। कारोबारियों के हितों और कस्टमर्स की चॉइस और उनकी सुविधा पर टेक्नोलॉजी के असर और इससे हो रहे रोजगार सृजन के अलावा इकनॉमिक वैल्यू एडिशन के बीच संतुलन बनाने के लिए सोच-समझकर काम करना चाहिए। डीआईपीपी अधिकारियों ने इस मामले में कमेंट करने से मना कर दिया। स्विगी और जोमैटो को भेजी गई ईमेल का जवाब खबर लिखे जाने तक नहीं मिल पाया था।
डीआईपीपी की गाइडलाइंस के मुताबिक, बायर्स और सेलर्स के लिए प्लेटफॉर्म का काम करने वाले ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस में 100 प्रतिशत एफडीआई की इजाजत है लेकिन यह इनवेंटरी बेस्ड मॉडल पर लागू नहीं होता, जिसमें कंपनी अपने पास से सामान सीधे कस्टमर्स को बेचती हैं।
मुंबई ,30 जनवरी । रीयल एस्टेट से लेकर कंज्यूमर गुड्स सेक्टर तक में दखल रखने वाले एसपी मिस्त्री परिवार ने 153 साल पुराने अपने कारोबारी साम्राज्य में नई पीढ़ी के लोगों को शामिल किया है। शापूरजी पालोनजी मिस्त्री के 26 साल के बेटे पालोन को होल्डिंग कंपनी शापूरजी पालोनजी एंड कंपनी प्राइवेट लिमिटेड (एसपीसीपीएल) के बोर्ड में शामिल किया गया है। उनकी बहन तान्या ग्रुप की सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी ऐक्टिविटीज की जिम्मेदारी उठाएंगी। पालोन और तान्या के पिता शापूर पालोनजी मिस्त्री की अपने भाई सायरस के साथ टाटा ग्रुप की होल्डिंग कंपनी टाटा संस में भी 18.6 पर्सेंट हिस्सेदारी है।
इस मामले से वाकिफ एक सूत्र ने बताया, ‘परिवार के जिन लोगों को कंपनी से जोड़ा गया है, उन्हें डिजिटलाइजेशन और शेयरहोल्डर्स के साथ बेहतर संवाद में ग्रुप कंपनियों की मदद करने को कहा गया है।’ पालोन पहले ग्रुप की कंपनियों में दुनिया भर में काम कर चुके हैं। अब वह बोर्ड का हिस्सा होंगे, जिस पर लॉन्ग टर्म रणनीतिक फैसले लेने की जिम्मेदारी है। पालोन जब 18 साल के थे, तब से गर्मी की छुट्टियों के दौरान उन्होंने कंपनी में काम करना शुरू किया था। उन्होंने बिजनेस के सबक अपने पिता, चाचा सायरस और ग्रुप के दूसरे बड़े अधिकारियों से सीखे हैं।
एक सीनियर अफसर ने बताया, ‘पालोन ग्रुप की कंपनियों में टेक्नॉलजी और डिजिटल का इस्तेमाल बढ़ाने के सुझाव देंगे। उनका मानना है कि कॉन्स्ट्रक्शन सेक्टर में रोबॉटिक टेक्नॉलजी जैसे डिसरप्शन की गुंजाइश है।’ उन्हें बिजनेस बढ़ाने के लिए और लोगों को हायर करने की जिम्मेदारी भी दी गई है। वह कंपनियों को फुर्तीला बनाने के लिए भी काम करेंगे।
एसपीसीपीएल के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर केकू कोला ने बताया, ‘अब तक इस ग्रुप ने जो नाम कमाया है, नई पीढ़ी के परिवार के सदस्यों पर इसे बनाए रखने के साथ हमारे पारंपरिक और नए बिजनेस में टिकाऊ ग्रोथ हासिल करने की जिम्मेदारी होगी।’ रीयल एस्टेट से रीन्यूएबल एनर्जी सेक्टर में दखल रखने वाले पावर ग्रुप ने इंजीनियरिंग सॉल्यूशन देने वाली कंपनी के तौर पर भी पहचान बनाई है। वह कॉम्प्लेक्स प्रॉजेक्ट्स को पूरा करने की क्षमता रखती है। खासतौर पर रोड, पोर्ट और रिन्यूएबल सेक्टर में उसके पास ऐसे प्रोजेक्ट्स का अच्छा तजुर्बा है।
फैमिली बिजनेस एडवाइजर इच्ेशन एडवाइजर्स की डायरेक्टर मित्ता दीक्षित ने बताया, ‘पिछली पीढिय़ों ने जिस माहौल में काम किया है, उसके मुकाबले आज की दुनिया बिल्कुल बदली हुई है। आज टेक्नोलॉजी किसी भी बिजनेस सेगमेंट में खलबली मचा सकती है। ग्लोबल बिजनेस करने की चुनौतियां भी बढ़ गई हैं।’ उन्होंने बताया, ‘इसलिए फैमिली बिजनेस के जो लोग लीडर बनना चाहते हैं, उन्हें अच्छा पेशेवर होने के साथ परिवार के मूल्यों को भी आगे ले जाना होगा। इसके साथ गुड कॉरपोरेट गवर्नेंस का भी ख्याल रखना बेहद जरूरी है।’ पालोन के पिता शापूर मिस्त्री ने जब ग्रुप की कमान संभाली थी, तब इसका टर्नओवर 4 अरब डॉलर था। आज यह 6 अरब डॉलर हो चुका है। ग्रुप का बिजनेस 60 देशों में फैला हुआ है। इस ग्रोथ को बनाए रखना पालोन के लिए बड़ी चुनौती होगी। एसपी इंफ्रा, स्टर्लिंग एंड विल्सन, एसपी पोर्ट्स की होल्डिंग कंपनी एसपीपीसीएल है। इस ग्रुप को आरबीआई, बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और मुंबई में होटल ताज जैसी आइकॉनिक इमारतें बनाने का श्रेय हासिल है।