नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनट की बैठक ने बुधवार को किसानों को सस्ती कीमतों पर डीएपी की लगातार उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए 1 जनवरी, 2025 से अगले आदेश तक डाय-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) पर एनबीएस सब्सिडी से अलग 3,500 रुपये प्रति मीट्रिक टन (एमटी) के एकमुश्त विशेष पैकेज के विस्तार के फर्टिलाइजर डिपार्टमेंट के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।
कैबिनेट द्वारा जारी किए गए बयान में कहा गया कि इस फैसले से किसानों को सब्सिडी वाली, सस्ती और उचित कीमतों पर डीएपी की अधिक उपलब्धता सुनिश्चित होगी।
बयान में आगे कहा गया है कि किसानों को सस्ती कीमतों पर डीएपी फर्टिलाइजर की सुचारू उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए स्वीकृत एनबीएस सब्सिडी के अलावा 3,500 रुपये प्रति मीट्रिक टन की दर से डीएपी पर विशेष पैकेज 1 जनवरी, 2025 से अगले आदेश तक प्रदान किया जाएगा।
सरकार फर्टिलाइजर निर्माताओं और आयातकों के माध्यम से किसानों को सब्सिडी वाले मूल्यों पर पीएंडके फर्टिलाइजर के 28 ग्रेड उपलब्ध कराती हैं। पीएंडके फर्टिलाइजर पर सब्सिडी 1 अप्रैल, 2010 से एनबीएस योजना द्वारा दी जा रही है।
बयान में कहा गया है, किसानों के कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए, भारत सरकार ने डाइ-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) उर्वरक की कीमत को अपरिवर्तित रखते हुए किसानों को बड़ी राहत दी है।
भू-राजनीतिक बाधाओं और वैश्विक बाजार स्थितियों की अस्थिरता के बावजूद, सरकार ने खरीफ और रबी 2024-25 के लिए किसानों को सस्ती कीमतों पर डीएपी की उपलब्धता सुनिश्चित करके किसान-हितैषी दृष्टिकोण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता बनाए रखी है।
जुलाई 2024 में कैबिनेट ने एनबीएस सब्सिडी से अलग डीएपी पर एकमुश्त विशेष पैकेज को 1 अप्रैल 2024 से 31 दिसंबर 2024 तक 3,500 रुपये प्रति मीट्रिक टन की दर से मंजूरी दी थी, जिसका अनुमानित वित्तीय लागत 2,625 करोड़ रुपये था।
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, चालू सीजन में अब तक विभिन्न रबी फसलों के तहत देश में बोया गया कुल कृषि क्षेत्र बढक़र 614.94 लाख हेक्टेयर हो गया है, जो पिछले वर्ष की समान अवधि में 611.8 लाख हेक्टेयर था।
गेहूं की बुआई का रकबा पिछले साल की इसी अवधि के 313.00 लाख हेक्टेयर से बढक़र 319.74 लाख हेक्टेयर हो गया है, जिससे इस सीजन में अनाज का उत्पादन बढऩे की उम्मीद है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, सर्दियों की बारिश से भी फसल को लाभ मिलने की उम्मीद है।
दलहनों के तहत कुल रकबा 136.13 लाख हेक्टेयर बताया गया है, जबकि श्रीअन्न और मोटे अनाज के तहत 48.55 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बुआई की गई है और तिलहन के तहत 96.15 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर किया गया है।
कुल बुआई क्षेत्र में वृद्धि से आवश्यक खाद्य वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि होने की उम्मीद है और इससे अर्थव्यवस्था में महंगाई को कम करने में मदद मिलेगी।
नई दिल्ली , । हाल ही में जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार, नवंबर में सीमेंट और स्टील उत्पादन में मजबूत वृद्धि के कारण भारत के आठ कोर सेक्टर उद्योगों का उत्पादन सालाना आधार पर 4.3 प्रतिशत बढ़ा।
नवंबर के आंकड़े अक्टूबर में बुनियादी ढांचे के उत्पादन में रिवाइज्ड 3.7 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में तेजी को दर्शाते हैं।
नवंबर में सीमेंट उत्पादन में 13 प्रतिशत की जोरदार वृद्धि हुई, जबकि स्टील उत्पादन में 4.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो पिछले महीने की रिवाइज्ड 5.2 प्रतिशत वृद्धि से थोड़ा कम है।
बिजली उत्पादन में 3.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो अक्टूबर में रिवाइज्ड 2 प्रतिशत वृद्धि से बेहतर है।
उर्वरक उत्पादन में 2 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो अक्टूबर में 0.4 प्रतिशत की वृद्धि से शानदार सुधार है।
हालांकि, कच्चे तेल के उत्पादन में 2.1 प्रतिशत की गिरावट आई, जबकि अक्टूबर में इसमें 4.8 प्रतिशत की गिरावट आई थी। प्राकृतिक गैस उत्पादन में 1.9 प्रतिशत की गिरावट आई, जो पिछले महीने दर्ज की गई 1.2 प्रतिशत की गिरावट से थोड़ा अधिक है।
कोयला उत्पादन में अक्टूबर में 7.8 प्रतिशत की तुलना में 7.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई। रिफाइनरी उत्पाद उत्पादन में पिछले महीने में 5.2 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में 2.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
अप्रैल-नवंबर की अवधि के लिए, बुनियादी ढांचे के उत्पादन में 4.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में देखी गई 8.7 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में धीमी है।
इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन में शामिल वस्तुओं के भार का 40.27 प्रतिशत आठ कोर इंडस्ट्री से बनता है। यह नवंबर में औद्योगिक विकास दर के लिए एक अच्छा संकेतक बने हुए हैं।
आईसीआरए की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा, नवंबर 2024 में कोर सेक्टर की वृद्धि दर बढक़र 4.3 प्रतिशत हो गई, जो अक्टूबर 2024 में रिवाइज्ड 3.7 प्रतिशत थी। इसके 8 घटकों में से आधे में सुधार हुआ है। वहीं कोर सेक्टर के प्रदर्शन में उछाल विशेष रूप से सीमेंट उत्पादन की तेज वृद्धि से जुड़ा था।
नई दिल्ली , । हाल ही में जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से नवंबर तक के पहले 8 महीनों के लिए भारत का राजकोषीय घाटा 8.47 लाख करोड़ रुपये दर्ज किया गया। जो वित्त वर्ष के लिए पूरे साल के अनुमान लक्ष्य का 52.5 प्रतिशत है।
यह एक मजबूत व्यापक आर्थिक वित्तीय स्थिति को दर्शाता है क्योंकि राजकोषीय घाटा पूरी तरह नियंत्रण में है और सरकार कंसोलिडेशन पाथ पर बनी हुई है।
आंकड़ों से पता चलता है कि चालू वित्त वर्ष के पहले आठ महीनों के लिए शुद्ध कर प्राप्तियां 14.43 लाख करोड़ रुपये या वार्षिक लक्ष्य का 56 प्रतिशत रहीं, जो पिछले साल की समान अवधि के 14.36 लाख करोड़ रुपये से अधिक है।
आठ महीनों के लिए कुल सरकारी व्यय 27.41 लाख करोड़ रुपये रहा, जो केंद्रीय बजट में निर्धारित वार्षिक लक्ष्य का 57 प्रतिशत है। पिछले साल इसी अवधि में सरकार ने 26.52 लाख करोड़ रुपये खर्च किए थे।
सरकार का लक्ष्य चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटे को 2023-24 के 5.6 प्रतिशत से घटाकर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 4.9 प्रतिशत पर लाना है। सरकार का लक्ष्य चालू वित्त वर्ष के दौरान राजकोषीय घाटे को 16.13 लाख करोड़ रुपये पर सीमित रखना है।
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) द्वारा जारी लेटेस्ट आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्त वर्ष के दौरान 1 अप्रैल से 10 नवंबर तक भारत का शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह, जिसमें कॉर्पोरेट कर और व्यक्तिगत आयकर शामिल हैं, 15.4 प्रतिशत बढक़र 12.1 लाख करोड़ रुपये हो गया। इसी तरह, बढ़ती आर्थिक गतिविधियों के कारण जीएसटी संग्रह में भी जोरदार वृद्धि हुई है।
कर संग्रह में उछाल से सरकार के खजाने में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए धन उपलब्ध होता है। साथ ही गरीबों के लिए कल्याणकारी योजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश करने के लिए भी धन जुड़ता है।
इससे राजकोषीय घाटे को नियंत्रित रखने में भी मदद मिलती है और अर्थव्यवस्था के आर्थिक बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाता है।
कम राजकोषीय घाटे का मतलब है कि सरकार को कम उधार लेना पड़ता है जिससे बैंकिंग सिस्टम में बड़ी कंपनियों के लिए उधार लेने और निवेश करने के लिए अधिक पैसा बचता है।
इसके परिणामस्वरूप, उच्च आर्थिक विकास दर और अधिक नौकरियों का सृजन होता है।
इसके अलावा, कम राजकोषीय घाटा मुद्रास्फीति दर को नियंत्रित रखता है जो अर्थव्यवस्था के बुनियादी ढांचे को मजबूत करता है और स्थिरता के साथ विकास सुनिश्चित करता है।
मुबंई , । भारतीय शेयर बाजार के लिए 2024 ऐतिहासिक रहा। इस दौरान नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का मार्केट कैप 31 दिसंबर, 2024 तक सालाना आधार पर 21 प्रतिशत बढक़र 438.9 लाख करोड़ रुपये (5.13 ट्रिलियन डॉलर) हो गया है, जो कि 29 दिसंबर, 2023 को 361.05 लाख करोड़ रुपये (4.34 ट्रिलियन डॉलर) था।
एनएसई द्वारा मंगलवार को जारी किए गए डेटा में बताया गया कि 2024 में एनएसई पर कुल 301 कंपनियां लिस्ट हुई हैं। इसमें से 90 मेनबोर्ड और 178 एसएमई कंपनियां थी। वहीं, 33 कंपनियों की डायरेक्ट लिस्टिंग हुई है।
2024 में 90 मेनबोर्ड कंपनियों का आईपीओ आया था। इन सभी कंपनियों ने कुल मिलाकर 1.59 लाख करोड़ रुपये की राशि जुटाई है। मेनबोर्ड कंपनियों में औसत आईपीओ साइज 1,772 करोड़ रुपये था। इस साल सबसे बड़ा आईपीओ हुंडई मोटर इंडिया ने पेश किया था। इसका साइज 27,859 करोड़ रुपये था। सबसे छोटा 72 करोड़ रुपये का आईपीओ विभोर स्टील ट्यूब द्वारा पेश किया गया था।
इस साल 178 एसएमई कंपनियों ने आईपीओ के जरिए 7,348 करोड़ रुपये जुटाए हैं। एसएमई आईपीओ का औसत साइज 41 करोड़ रुपये था। सबसे बड़ा एसएमई आईपीओ दानिश पावर ने पेश किया था। इसका इश्यू साइज 198 करोड़ रुपये था।
साल का सबसे छोटा एसएमई आईपीओ एचओएसी फूड्स इंडिया लिमिटेड द्वारा पेश किया गया था। इसका साइज 6 करोड़ रुपये था। 2024 में निफ्टी-50 ने सालाना आधार पर 8.8 प्रतिशत का रिटर्न दिया है।
31 दिसंबर, 2024 को कारोबार बंद होने के बाद इसकी वैल्यू 23,645 थी, जो कि 29 दिसंबर, 2023 को 21,731 थी।
एनएसई के सूचकांकों में सबसे अधिक 27.4 प्रतिशत का रिटर्न निफ्टी नेक्स्ट 50 इंडेक्स ने दिया है। वहीं, निफ्टी स्मॉलकैप 50 और निफ्टी मिडकैप 50 ने क्रमश: 25.3 प्रतिशत और 21.5 प्रतिशत का रिटर्न दिया है।
एनएसई का मार्केट कैप टू जीडीपी रेश्यो 31 दिसंबर, 2024 को 145 प्रतिशत था, जो कि 29 दिसंबर, 2023 को 117 प्रतिशत पर था, जो इसमें 29 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है।
नई दिल्ली । नए साल की शुरुआत में बैंकिंग सेवाओं में बाधा आ सकती है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (क्रक्चढ्ढ) के अनुसार, जनवरी 2025 में देश भर के बैंक कुल 15 दिनों के लिए बंद रहेंगे। ये बैंक बंद विभिन्न राज्यों और धर्मों के त्योहारों और राष्ट्रीय अवकाशों के कारण रहेंगे। उदाहरण के लिए, मकर संक्रांति, पोंगल, गुरु गोबिंद सिंह जयंती आदि जैसे त्योहारों के कारण बैंक बंद रहेंगे।
किन तारीखों को रहेंगे बैंक बंद?
1, 2, 5 और 6 जनवरी
1 जनवरी को नया साल है इसलिए कुछ राज्यों में बैंकों की छुट्टी रहेगी। जबकि, 2 जनवरी को नया साल और मन्नम जयंती के कारण बैंक बंद रहेंगे।
5 जनवरी को रविवार है जिसके कारण पूरे देश भर में बैंक बंद रहेंगे। वहीं, 6 जनवरी को गुरु गोबिंद सिंह जयंती के मौके पर हरियाणा और पंजाब में बैंक बंद रहेंगे।
11, 12, 14 और 15 जनवरी
11 जनवरी को महीने का दूसरा शनिवार होने की वजह से देश के सभी बैंकों में अवकाश रहेगा। दूसरी तरफ 12 जनवरी को रविवार की वजह से और स्वामी विवेकानंद जयंती होने की वजह से बैंकों में अवकाश रहेगा।
14 जनवरी को मकर संक्रांति और पोंगल के कारण कुछ राज्यों के बैंक बंद रहेंगे। वहीं, 15 जनवरी को तिरुवल्लुवर दिवस, माघ बिहू की वजह से असम में और मकर संक्रांति के चलते भी बैंक की छुट्टी रहेगी।
16, 19, 22 और 23 जनवरी
16 जनवरी को कनुमा पंडुगु के कारण अरुणाचल प्रदेश के बैंक में छुट्टी होगी और 19 जनवरी को रविवार की वजह से बैंकों में अवकाश रहेगा।
22 जनवरी को इमोइन के कारण और 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती पर बैंकों की छुट्टी रहेगी।
25, 26 और 30 जनवरी
25 जनवरी को महीने के चौथे शनिवार के कारण बैंकों में काम नहीं होगा। जबकि, 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस का राष्ट्रीय अवकाश होने के कारण बैंक बंद रहें।
30 जनवरी को सोनम लोसर होने की वजह से सिक्किम में बैंकों की छुट्टी रहेगी।
क्या करें अगर बैंक बंद हैं?
आज के डिजिटल युग में बैंकिंग सेवाएँ अधिक सुलभ और सुविधाजनक हो गई हैं। अधिकांश बैंकिंग कार्य आप ऑनलाइन कर सकते हैं, जहाँ नेट बैंकिंग या मोबाइल ऐप के माध्यम से आप आसानी से पैसे ट्रांसफर, बिल पेमेंट आदि कर सकते हैं। इसके अलावा, नकदी निकालने के लिए आप एटीएम का उपयोग कर सकते हैं, जो किसी भी समय उपलब्ध होता है। यदि आपको किसी जरूरी काम के लिए बैंक शाखा में जाना हो, तो आप शाखा के खुलने के समय का पता लगा सकते हैं और उसी समय पर जाकर अपने कार्य पूरे कर सकते हैं। इस प्रकार, ऑनलाइन बैंकिंग, एटीएम सुविधाएँ और शाखा समय की जानकारी मिलकर बैंकिंग को सरल और सुविधाजनक बनाते हैं।
मुंबई । भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा सोमवार को जारी की गई फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत अर्थव्यवस्था और घरेलू फाइनेंसियल सिस्टम मजबूत आर्थिक आधार, कंपनियों और बैंकों की स्वस्थ बैलेंसशीट और दशकीय उच्च स्तर पर मौजूद रिटर्न ऑन एसेट्स आधारित है।
रिपोर्ट में कहा गया कि मजबूत आधार के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि जारी रहेगी।
रिपोर्ट में बताया गया कि शेड्यूल कमर्शियल बैंकों में मजूबती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बैंक का मुनाफा मजबूत बना हुआ है। नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) कई दशकों के निचले स्तर पर पहुंच गया है। रिटर्न ऑन एसेट्स (आरओए) और रिटर्न ऑन इक्विटी (आरओई) कई दशकों के उच्चतम स्तर पर हैं।
केंद्रीय बैंक ने बताया कि मैक्रो स्ट्रेस से पता चला कि सभी बैंकों के पास पर्याप्त कैपिटल मौजूद है और विपरित परिस्थितियों का सामाना कर सकते हैं। स्ट्रेस टेस्ट में म्यूचुअल फंड और क्लियरिंग कॉरपोरेशन की स्थिति भी मजबूत थी।
गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) की स्थिति पर्याप्त पूंजी बफर, मजबूत ब्याज मार्जिन और आय एवं बेहतर परिसंपत्ति गुणवत्ता के साथ स्वस्थ बनी हुई हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि बीमा क्षेत्र का कंसोलिडेटेड सॉल्वेंसी रेश्यो भी न्यूनतम सीमा से ऊपर बना हुआ है।
रिपोर्ट में आगे बताया गया कि वैश्विक अर्थव्यवस्था और वित्तीय प्रणाली अनिश्चितता बढऩे के बावजूद मजबूत बनी हुई है।
हालांकि, निकट अवधि के जोखिम कम हो गए हैं, लेकिन एसेट के मूल्यांकन में वृद्धि, उच्च सार्वजनिक ऋण, लंबे समय तक भू-राजनीतिक संघर्ष और उभरती टेक्नोलॉजी से जोखिम जैसे कारक वित्तीय स्थिरता के लिए मध्यम अवधि के जोखिम पैदा करते हैं।
आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि इक्विटी मूल्यांकन में वृद्धि, माइक्रोफाइनेंस और उपभोक्ता ऋण खंडों में तनाव की स्थिति और बाहरी स्पिलओवर से जोखिम जैसी कमजोरियों पर कड़ी निगरानी की आवश्यकता है।
वैश्विक विनियामक पहलों ने तकनीकी प्रगति, साइबर सुरक्षा खतरों और तीसरे पक्ष पर निर्भरता से उत्पन्न होने वाले जोखिमों को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि गैर-बैंक वित्तीय मध्यस्थों और सीमा पार भुगतान प्रणालियों में कमजोरियों को दूर करना प्राथमिकता बनी हुई है।