मैक्सिको सिटी । मैक्सिको में तेपिक-ग्वाडलजारा राजमार्ग पर सोमवार को गैस से भरे टैंकर की एक वाहन के साथ टक्कर के बाद विस्फोट होने से कम से कम 14 लोगों की मौत हो गई। नायारिट राज्य अभियोक्ता कार्यालय ने यह जानकारी दी है। कार्यालय ने सोमवार को ट्वीट किया, हम इस समय एक और व्यक्ति की मृत्यु की पुष्टि कर रहे हैं, आज सुबह तेपिक-ग्वाडलजारा राजमार्ग पर सड़क दुर्घटना में कुल 14 लोगों की जान चली गई। उन्होंने बताया कि यह दुर्घटना कल उस समय हुई जब गैस से भरे टेंकर की एक अन्य वाहन की भिडंत हो गयी। टैंकर के पलट जाने से उसमें विस्फोट हो गया। हादसे के बाद लगभग दो हेक्टयर इलाके में आग फैल गई और तीन अन्य वाहन जलकर खाक हो गये।
काबुल । अफगानिस्तान के बदाक्षन प्रांत में सोमवार को तालिबान आतंकवादियों के हमले में एक कमांडिंग ऑफिसर समेत कम से कम 12 पुलिसकर्मी मारे गये और 10 अन्य घायल हो गए। टोलो न्यूज ब्रोडकास्टर ने मंगलवार को बताया कि आतंकवादियों ने कल प्रांत के जुरम जिले की एक सुरक्षा चौकी पर हमला किया। इस हमले में एक कमांडर समेत 12 पुलिसकर्मियों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया और 10 अन्य घायल हो गये। तालिबान की ओर से अभी तक इस घटना पर किसी तरह की टिप्पणी नहीं आई है।
अफगान सरकार पिछले कई सालों से तालिबान आतंकवादियों के हमलों का सामना कर रही है। आतंकवादियों ने पहले ग्रामीण इलाकों में काफी जमीन जब्त कर ली थी और देश के प्रमुख शहरों पर हमला किया था। इस बीच, कतर की राजधानी दोहा में अंतर-अफगान वार्ता हो रही है। वार्ता सफल होने पर देश में लगभग दो दशकों के हिंसक संघर्ष के बाद राजनीतिक समाधान का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को महामारी अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और याचिकाकर्ता को सुझाव दिया कि इस मुद्दे पर हाईकोर्ट का रुख किया जा सकता है, क्योंकि उनके पास भी केंद्रीय अधिनियमों को खत्म करने की शक्ति है।
न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा और इंदिरा बनर्जी के साथ न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता ने कहा कि आपने किस तरह की याचिका दायर की है, क्या आपके पास महामारी अधिनियम को चुनौती देने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट नहीं है? याचिकाकर्ता ने दलील दी कि याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी, क्योंकि यह एकमात्र अदालत है, जो एक केंद्रीय कानून को रद्द कर सकती है। इस पर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने जवाब दिया कि याचिकाकर्ता को अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट की शक्तियों को पढऩा चाहिए। पीठ ने याचिकाकर्ता एच.एन. मिराशी से कहा कि अगर आप दिल्ली हाईकोर्ट की दूसरी मंजिल या फिर भूतल पर स्थित पुस्तकालय में जाते हैं और डी.डी. बसु की शॉर्टर कांस्टीट्यूशन नामक एक पुस्तक का उपयोग करते हैं, तो आप पाएंगे कि हाईकोर्ट के पास शक्ति है। पीठ ने याचिकाकर्ता को शीर्ष अदालत से याचिका वापस लेने और संबंधित हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए कहा। याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत से कहा कि वह इसे हाईकोर्ट को स्थानांतरित करने के लिए एक निर्देश जारी करे। इस पर पीठ ने जवाब दिया कि अदालत को निर्देश क्यों देना चाहिए, याचिकाकर्ता खुद कानून के अनुसार उपयुक्त प्राधिकारी से संपर्क कर सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता की यह धारणा पूरी तरह से गलत है कि हाईकोर्ट को केंद्र के अधिनियम को रद्द करने का अधिकार नहीं है। शीर्ष अदालत ने दोहराया कि देश के सभी हाईकोर्ट के पास एक कानून को खत्म करने की शक्ति है। मामले में एक संक्षिप्त सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता ने याचिका वापस ले ली।
केंद्र सरकार के जवाब से संतुष्ट नहीं शीर्ष अदालत
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कोविड-19 महामारी का प्रकोप शुरू होने के दौरान राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित तबलीगी जमात के समागम से संबंधित मीडिया रिपोर्टिंग से जुड़े मामले में केंद्र द्वारा पेश हलफनामे पर अप्रसन्नता जाहिर की और कहा कि टेलीविजन पर इस तरह की सामग्री से निपटने के लिए केंद्र को नियामक प्रणाली बनाने पर विचार करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को ऐसी प्रणाली बनाने और इस बारे में अदालत को सूचित करने का निर्देश दिया।
प्रधान न्यायाधीश एस.ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, पहले तो आपने उचित हलफनामा दाखिल नहीं किया और अब आपने ऐसा हलफनामा पेश किया जिसमें दो महत्वपूर्ण सवालों के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। यह कोई तरीका नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा, हम आपके जवाब से संतुष्ट नहीं है। न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमयण्म भी इस पीठ का हिस्सा थे। पीठ ने कहा, हम यह जानना चाहते हैं कि टीवी पर इस प्रकार की सामग्री से निपटने के लिए किस तरह की व्यवस्था है। यदि कोई नियामक प्रणाली नहीं है तो आप ऐसी प्रणाली बनाएं। नियामक का काम एनबीएसए जैसे संगठनों के जिम्मे नहीं छोड़ा जा सकता। पीठ जमायत उलेमा ए हिंद और अन्य की ओर से दायर याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी जिनमें आरोप लगाए गए हैं कि मीडिया का एक धड़ा तबलीगी जमात समागम को लेकर सांप्रदायिक नफरत फैला रहा था। शीर्ष न्यायालय ने केंद्र को केबल टीवी नेटवर्क कानून के तहत इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के नियमन की प्रणाली से संबंधित नया हलफनामा दायर करने का भी निर्देश दिया।
69 शिकारी गिरफ्तार, आरटीआई से खुलासा
नई दिल्ली। वर्ष 2018 में लगाई गई एक आरटीआई से बड़ा खुलासा हुआ था के पिछले दस वर्षों में 102 एक सींघ वाले गैंडों का शिकार देश भर में हुआ था, इसके बाद मीडिया के माध्यम से देश भर में उसकी चर्चा रही। यहाँ तक की काज़ीरंगा राष्ट्रिय उद्यान में तो 100 से ज़्यादा वन रेंजरों की भर्ती भी की गई, जिससे इनके शिकार पर लगाम लग सके।
सामाजिक कार्यकर्ता रंजन तोमर ने 2018 के बाद की स्तिथि को जानने के लिए वन्यजीव अपराध नियन्त्र ब्यूरो में एक आरटीआई लगाई थी, जिसमें पिछले दो वर्षों में इन गैंडों के शिकार सम्बन्धी जानकारी मांगी गई थी, इसके जवाब में ब्यूरो कहता है के इस दौरान 32 गैंडों को मौत के घात उतार दिया गया , इसके साथ ही पिछले दो वर्षों में 69 शिकारियों को भी इस जुर्म में पकड़ा गया है। भारतीय गैण्डा, जिसे एक सींग वाला गैण्डा भी कहते हैं, विश्व का चौथा सबसे बड़ा जलचर जीव है। आज यह जीव अपने आवासीय क्षेत्र के घट जाने से संकटग्रस्त हो गया है। यह पूर्वोत्तर भारत के असम और नेपाल की तराई के कुछ संरक्षित इलाकों में पाया जाता है जहाँ इसकी संख्या हिमालय की तलहटी में नदियों वाले वन्यक्षेत्रों तक सीमित है। इतिहास में भारतीय गैण्डा भारतीय उपमहाद्वीप के सम्पूर्ण उत्तरी इलाके में पाया जाता था जिसे सिंधु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान कहते हैं। यह सिन्धु, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदियों के मैदानी क्षेत्रों में, पाकिस्तान से लेकर भारतीय-बर्मा सरहद तक पाया जाता था और इसके आवासीय क्षेत्र में नेपाल, आज का बांग्लादेश और भूटान भी शामिल थे। ऐसा माना जाता है कि यह बर्मा, दक्षिणी चीन तथा इंडोचाइना में भी विचरण करता हो लेकिन यह सिद्ध नहीं हो पाया है। यह जाति सन् 1600 तक उत्तर-पश्चिमी भारत और पाकिस्तान में आसानी से देखी जा सकती थी, लेकिन इसके तुरन्त बाद इस इलाके से विलुप्त हो गई। अपने अन्य आवासीय क्षेत्रों में भी यह सन् 1600 से 1900 तक तेज़ी से घटे और बीसवीं सदी की शुरुआत में यह विलुप्तता की कगार में खड़ा था। एक अनुमान के मुताबिक आज जंगली हालात में केवल 3000 से कुछ अधिक भारतीय गैण्डे बचे हैं जिसमें से लगभग 2000 तो केवल भारत के असम में ही पाये जाते हैं।
गृह मंत्री का बयान 'भ्रामक और सरासर झूठ: कांग्रेस
नई दिल्ली। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मंगलवार को जम्मू-कश्मीर की पार्टियों के बीच हुए गुपकार गठबंधन को लेकर सिलसिलेवार ट्वीट करते हुए उन्हें गुपकार गैंग की संज्ञा दे दी । वहीं एक ट्वीट में उन्होंने कांग्रेस से भी पूछा कि क्या राहुल और सोनिया भी गुपकार गैंग की हिस्सा हैं?
अब इस आरोप का जवाब देते हुए कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि हमारी पार्टी किसी भी तरह से गुपकार गठबंधन का हिस्सा नहीं है। सुरजेवाला ने कहा कि कांग्रेस पीएजीडी में शामिल नहीं है और वह जम्मू-कश्मीर में जिला विकास परिषद का चुनाव लड़ रही है ताकि भाजपा का 'जनविरोधी चेहराÓ बेनकाब हो सके। सुरजेवाला ने कहा कि आए दिन झूठ बोलना, कपट फैलाना और नए भ्रमजाल गढऩा मोदी सरकार का चाल, चेहरा और चरित्र बन गया है। शर्म की बात तो यह है कि देश के गृहमंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा की अपनी जिम्मेदारी को दरकिनार कर जम्मू, कश्मीर तथा लद्दाख पर सरासर झूठी, भ्रामक व शरारतपूर्ण बयानबाजी कर रहे हैं।
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि कांग्रेस कड़े शब्दों में अमित शाह व मोदी सरकार के मंत्रियों के आचरण की निंदा करती है तथा याद दिलाती है कि जम्मू, कश्मीर और लद्दाख को लेकर उनका आचरण ऐसा ही है, जैसा कि 'नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चलीÓ। सुरजेवाला ने इस बात पर जोर दिया कि कांग्रेस पार्टी 'पीएजीडीÓ का हिस्सा नहीं है। उन्होंने कहा कि देश के लिए कुर्बानी और बलिदान की परिपाटी कांग्रेस के नेतृत्व ने अपने लहू से लिखी है। अंग्रेज के गुलाम और पि_ू दलों के लोग शायद न तो देश और न ही तिरंगे के लिए कुर्बानी का जज्बा समझ सकते हैं। सुरजेवाला ने कहा कि कांग्रेस पार्टी यह कभी स्वीकार नहीं करेगी कि राष्ट्र की अस्मिता, अखंडता या तिरंगे को कोई आंच आए। उन्होंने कहा कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने जम्मू-कश्मीर सहित भारत के आंतरिक मामलों में कोई विदेशी दखलंदाजी कभी भी स्वीकार नहीं की है और न ही करेगी। 70 वर्षों तक भारत का गौरवशाली इतिहास कांग्रेस के इस संकल्प का गवाह है।