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दिल्ली पुलिस को क्लीन चिट, 5 जनवरी को कैंपस में हुई थी मारपीट
Posted Date : 19-Nov-2020 1:00:40 pm

दिल्ली पुलिस को क्लीन चिट, 5 जनवरी को कैंपस में हुई थी मारपीट

जेएनयू हिंसा मामला
नईदिल्ली। जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी परिसर के अंदर 5 जनवरी को हुई हिंसा के मामले की जांच कर रही दिल्ली पुलिस की एक कमेटी ने स्थानीय पुलिस को क्लीन चिट दे दी है। जनवरी के पहले सप्ताह में विश्वविद्यालय परिसर में हुई हिंसा की घटनाओं और इन घटनाओं को रोकने में स्थानी पुलिस की लापरवाही के आरोपों की जांच के लिए एक दिल्ली पुलिस ने एक तथ्वान्वेषी समिति बनाई थी। अब इस समिति ने इस हिंसा मामले में दिल्ली पुलिस को क्लीन चिट दे दी है।
बता दें कि जेएनयू कैंपस में गत तीन से 5 जनवरी के बीच छात्रों के उपद्रव एवं हिंसा की घटनाएं सामने आईं। कैंपस में दाखिल हुए करीब 100 नकाबपोशों ने जमकर हिंसा और उपद्रव किया। नकाबपोश अपने साथ डंडे एंव रॉड लेकर आए थे। पांच जनवरी को कैंपस में करीब चार घंटे तक उत्पात होता रहा। इस हिंसा में करीब 36 छात्र, अध्यापक और कर्मचारी घायल हुए। इस मामले में दिल्ली पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू की। बाद में इस मामले को क्राइम ब्रांच को सुपुर्द कर दिया गया। हालांकि, पुलिस ने किसी की गिरफ्तारी नहीं की। हिंसा मामले में दिल्ली पुलिस ने जेएनयू छात्रसंघ की अध्यक्ष आइशी घोष एवं अन्य से भी पूछताछ की।
कैंपस में इस हिंसा को लेकर दिल्ली पुलिस की भूमिका पर सवाल उठे। यह बात सामने आई कि कैंपस में जिस समय हिंसा हो रही थी उस समय दिल्ली पुलिस कैंपस के बाहर खड़ी थी लेकिन वह विश्वविद्यालय के अंदर दाखिल नहीं हुई। हालांकि, पुलिस ने अपने बचाव में कहा कि विश्वविद्यालय के अधिकारियों की अनुमति उसके पास नहीं थी, इसलिए वह कैंपस में दाखिल नहीं हुई। पुलिस पर लगे आरोपों की जांच के लिए पश्चिम क्षेत्र की ज्वाइंट कमिश्नर शालिनी सिंह की अगुवाई में एक समिति बनाई गई। इस समिति में चार इंस्पेक्टर और दो एसीपी शामिल हैं। अपनी जांच में इस समिति ने पांच जनवरी को जेएनयू कैंपस में तैनात पुलिस अधिकारियों से पूछताछ की।
रिपोर्टों के मुताबिक समिति ने कहा है कि कैंपस से शाम 3.45 बजे से 4.15 तक पीसीआर को कॉल की गई। इनमें से ज्यादातर कॉल परियार छात्रावास में छात्रों को पीटे जाने से जुड़ी थीं। इसके अलावा 14 पीसीआर कॉल्स आपसी झगड़े और कैंपस में लोगों के जुटने के बारे में थीं। समिति का कहना है कि पांच जनवरी को कैंपस में दिनभर स्थिति तनावपूर्ण रही और पुलिस के दखल से स्थिति को सामान्य बनाया जा सका।

सीबीआई जांच के लिए संबंधित राज्य से अनुमति लेना होगा अनिवार्य
Posted Date : 19-Nov-2020 1:00:15 pm

सीबीआई जांच के लिए संबंधित राज्य से अनुमति लेना होगा अनिवार्य

सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला
नईदिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया है। अब सीबीआई जांच के लिए संबंधित राज्य से अनुमति लेना अनिवार्य होगा। जानकारी के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने वीरवार को कहा है कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को किसी भी मामले की जांच करने से पहले उस राज्य की सहमति अनिवार्य तौर पर लेनी होगी। आठ राज्यों द्वारा सामान्य सहमति वापस लिए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया है। एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि ये प्रावधान संविधान के संघीय चरित्र के अनुरूप है। कोर्ट ने कहा है कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना  (डीएसपीई) अधिनियम के तहत वर्णित शक्तियों और अधिकार क्षेत्र के लिए सीबीआई को किसी भी मामले की जांच से पहले संबंधित राज्य सरकार से सहमति की आवश्यकता जरूरी है।
कोर्ट ने कहा कि डीएसपीई अधिनियम की धारा 5 केंद्र सरकार को केंद्र शासित प्रदेशों से परे सीबीआई की शक्तियों और अधिकार क्षेत्र का विस्तार करने में सक्षम बनाती है, लेकिन जब तक कि डीएसपीई अधिनियम की धारा 6 के तहत राज्य संबंधित क्षेत्र के भीतर इस तरह के विस्तार के लिए अपनी सहमति नहीं देता है, तब तक यह स्वीकार्य नहीं है। जाहिर है, प्रावधान संविधान के संघीय चरित्र के अनुरूप हैं, जिसे संविधान की बुनियादी संरचनाओं में से एक माना गया है। 
जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने ये फैसला उत्तर प्रदेश में फर्टिको मार्केटिंग एंड इनवेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड और अन्य के खिलाफ सीबीआई द्वारा दर्ज मामले में सुनाया है। अभियुक्त द्वारा इस मामले में कहा गया था कि धारा 6 के तहत राज्य सरकार की सहमति के अभाव में सीबीआई के पास निहित प्रावधानों के मद्देनजऱ जांच कराने की कोई शक्ति नहीं हैं। फैसले में आगे कहा गया कि एफआईआर दर्ज करने से पहले सहमति प्राप्त करने में विफलता पूरी जांच को समाप्त कर देगी।

मुठभेड़ में जैश-ए-मोहम्मद के 4 आतंकी ढेर, नेशनल हाईवे बंद
Posted Date : 19-Nov-2020 12:59:39 pm

मुठभेड़ में जैश-ए-मोहम्मद के 4 आतंकी ढेर, नेशनल हाईवे बंद

श्रीनगर। जम्मू और कश्मीर के नगरोटा इलाके में आज सुबह सुरक्षाबलों ने चार आतंकियों को मार गिराया। ये चारों आतंकी जैश ए मोहम्मद थे। जानकारी के अनुसार ये मुठभेड़ सुबह 5 बजे शुरू हुई। ये इलाका जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर नगरोटा के बान इलाके में है। अब तक चार आतंकियों के मारे जाने की पुष्टि की जा चुकी है।
नगरोटा मुठभेड़ में मारे गए चारों आतंकी जैश-ए-मोहम्मद आतंकी संगठन से जुड़े हुए थे। सूत्रों के अनुसार चारों आतंकी भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा से बीती रात घुसपैठ करके सांबा पहुंचे थे। यहां पहले से इंतजार कर रहा इनका एक कोरियर जो ट्रक लेकर आया था वह इनको लेकर कश्मीर जाने की फिराक में था। सुबह लगभग 4:45 बजे के करीब ये ट्रक नगरोटा बंद टोल प्लाजा पर पहुंचा वहां पर जम्मू-कश्मीर पुलिस की स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने इन्हें घेर लिया। पुलिस को पहले से ही इनके इनपुट मिले थे कि कुछ आतंकी अंतरराष्ट्रीय सीमा से घुसपैठ कर कश्मीर जाने की फिराक में है।
मुठभेड़ शुरू होने के लगभग 2 घंटे बाद चारों आतंकियों को मार गिराया गया। फिलहाल पूरे इलाके में सर्च ऑपरेशन जारी है। सीआरपीएफ जम्मू कश्मीर पुलिस और भारतीय सेना की टीमें मौके पर तैनात हैं जम्मू कश्मीर पुलिस के एक जवान घायल हुआ है जिसे हॉस्पिटल शिफ्ट किया गया है। कोटा के आसपास के पूरे इलाके में अभी भी सर्च ऑपरेशन जारी है।
जम्मू के जिला पुलिस प्रमुख एसएसपी श्रीधर पाटिल ने कहा कि लगभग 5 बजे कुछ आतंकवादियों ने नगरोटा इलाके में बान टोल प्लाजा के पास सुरक्षा बलों पर गोलियां चलाईं। वे एक गाड़ी में छिपे हुए थे। सुरक्षा कारणों से पुलिस ने नगरोटा का नेशनल हाईवे बंद कर दिया है। इस ऑपरेशन में सीआरपीएफ और एसओजी शामिल है।
एनकाउंटर के बीच उधमपुर में आतंकवादियों के बीच एक मुठभेड़ के रूप में सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। डीजीपी दिलबाग सिंह ने कहा कि इस मुठभेड़ में चार आतंकी मार गिराए गए हैं। उन्होंने कहा कि सभी आतंकी जैश-ए-मोहम्मद से जुड़े हुए थे।

म्यांमार में ईमानदारी की कमी के कारण रोहिग्याओं के प्रत्यावर्तन में देरी: मोमेन
Posted Date : 19-Nov-2020 12:59:02 pm

म्यांमार में ईमानदारी की कमी के कारण रोहिग्याओं के प्रत्यावर्तन में देरी: मोमेन

ढाका । बंगलादेश के विदेश मंत्री ए. के. अब्दुल मोमेन ने रोहिंग्या मुसलमानों के प्रत्यावर्तन में देरी की प्रमुख वजह म्यांमार में ईमानदारी की कमी को बताते हुए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से उस पर दवाब बनाने की अपील की है।
ढाका रिपोर्टर्स यूनिटी के एक समारोह में श्री मोमेन ने कहा, म्यांमार का कहना था कि वह रोहिंग्याओं को वापस बुला लेगा, लेकिन प्रत्यावर्तन के लिए दो तारीख देने के बावजूद किसी को भी वापस नहीं बुलाया। 
उन्होंने कहा कि म्यांमार किसी तरह का दबाव महसूस नहीं करता है और वह रोहिंग्याओं के प्रत्यावर्तन के मुद्दे पर बंगलादेश के बातों का जवाब नहीं देता है। उन्होंने कहा, यदि हम 100 बार इस मुद्दे पर उनसे बात करते हैं, तो वे सिर्फ दो बार जवाब देते हैं। उन्होंने कहा कि बंगलादेश रोहिंग्याओं को उनके देश भेजने के लिए पूरी तरह से तैयार है।
उन्होंने कहा, उन्होंने (म्यांमार) ने सत्यापन के बाद रोहिंग्याओं को वापस लेने की प्रतिबद्धता जताई थी, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। उन्होंने कहा कि हम मुद्दे के समाधान के लिए द्विपक्षीय, त्रिपक्षीय और बहुपक्षीय स्तर पर प्रयास कर रहे हैं।

समोआ में सामने आया कोरोना का पहला मामला
Posted Date : 19-Nov-2020 12:58:08 pm

समोआ में सामने आया कोरोना का पहला मामला

एपिया। समोआ में कोरोना वायरस (कोविड-19) का पहला मामला सामने आया है। यह जानकारी समोआ के अखबार द समोआ आब्जर्वर ने दी है। अखबार ने समोआ के प्रधानमंत्री तुइलापा सैलेल मलीएलेगाओई के हवाले से अपनी रिपोर्ट में बताया कि ऑकलैंड से गत शुक्रवार को लौटे एक नाविक को चरंटीन केंद्र में रखा गया है।
वहीं दूसरे की जांच रिपोर्ट निगेटिव आई है।मलीएलेगाओई ने बताया कि मरीज को इस समय एक अस्पताल में आइसोलेशन में रखा गया है।उल्लेखनीय है कि टोंगा तथा नौरू जैसे कुछ द्वीपीय देश कोरोना वायरसे मुक्त हैं।

तालिबानी आंतकवादी खुद को नहीं करना चाहते हैं अल कायदा से अलग
Posted Date : 19-Nov-2020 12:57:27 pm

तालिबानी आंतकवादी खुद को नहीं करना चाहते हैं अल कायदा से अलग

काबुल। अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री हनीफ अतमार ने कहा है कि तालिबानी आतंकवादी खुद को आतंकवादी समूह अल कायदा से अलग नहीं कर पा रहे हैं। अतमार ने रूसी अखबार रोसिस्काया गजेता से कहा,  दुर्भाग्य से अमेरिका तथा तालिबानी के बीच दोहा समझौता होने के बावजूद वे (तालिबानी) अल कायदा तथा विदेशी आतंकवादी समूहों से खुद को अलग नहीं करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि 20 प्रतिशत तालिबान सदस्यों का घर अफगानिस्तान में नहीं हैं।
उल्लेखनी कि अमेरिका तथा तालिबानी आतंकवादियों ने गत 29 फरवरी को दोहा में शांति समझौता पर हस्ताक्षर किया था। इसके तहत अमेरिकी सैनिकों की धीरे-धीरे वापसी के साथ-साथ अंतर-अफगान वार्ता की शुरुआत करने की बात कही गयी है। इस समझौता ने तालिबानी आतंकवादियों तथा अफगानिस्तान की सरकार के बीच बातचीत का मार्ग प्रशस्त किया था, लेकिन अभी भी दोनों के बीच तनाव बरकरार है।