जयंतीलाल भंडारी
हाल ही में एक दिसंबर को अमेरिका में ट्रंप प्रशासन ने एच-1बी वीजा आवेदन प्रक्रिया में कुछ बड़े बदलावों के प्रस्ताव का नोटिस जारी किया है। इसमें कहा गया है कि अमेरिका में ही एडवांस्ड डिग्री हासिल करने वालों को हाई स्किल वीजा के लिए वरीयता दी जाएगी। इसके अलावा विदेशी वर्करों की नियुक्ति करने वाली कंपनियों को विदेशी वर्करों के लिए एच-1बी वीजा मांगने के लिए अब एडवांस में खुद को यूएस सिटीजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज (यूएससीआईएस) पर इलेक्ट्रॉनिकली रजिस्टर करना पड़ेगा। कहा गया है कि प्रस्तावित बदलावों के जरिए देश में कुशल और ज्यादा कमाने वाले लोगों का चुनाव आसान हो जाएगा। वस्तुत: एच-1बी वीजा एक गैर-प्रवासी वीजा है जो अमेरिकी कंपनियों को कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में विदेशी कर्मचारियों की भर्ती की अनुमति देता है।
निश्चित रूप से एच-1बी वीजा संबंधी बदलाव के नए प्रस्ताव से दूसरे देशों में पढ़ाई पूरी करने वाले पेशेवरों को अमेरिकी वीजा मिलने में मुश्किल आ सकती है। एच-1बी वीजा भारतीय पेशेवरों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है और यह वीजा प्राप्त करना भारत की नई पेशेवर पीढ़ी का सपना भी होता है। वर्ष 2017 में 67,815 वीजा भारतीयों को दिए गए, इनमें से 75.6 फीसदी आईटी प्रोफेशनल्स को मिले। ये आईटी प्रोफेशनल प्रमुखतया गूगल, आईबीएम, इन्फोसिस, टीसीएस, विप्रो, फेसबुक और एप्पल जैसी आईटी और इंटरनेट कंपनियों में नौकरी करते हैं।
अमेरिकी सरकार के अनुसार पांच अक्तूबर, 2018 तक अमेरिका में एच-1बी वीजा रखने वालों की संख्या 4,19 637 है। इनमें से तीन-चौथाई यानी 3,09,986 भारतीय मूल के नागरिक हैं। गौरतलब है कि अमेरिका के गृह सुरक्षा विभाग (डीएचएस) और अमेरिकी नागरिकता और आव्रजन सेवा (यूएससीआईएस) द्वारा संकेत दिया गया है कि उनके द्वारा एच-1बी वीजा नीति में बदलाव और इसके संबंध में जनवरी 2019 तक नया प्रस्ताव लाने की योजना बनाई जा रही है ताकि बेहतर और प्रतिभाशाली विदेशी नागरिकों को ही अमेरिका में रहने का मौका मिल सके।
यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि अमेरिका में न केवल एच-1बी वीजा प्रस्तावों में बड़े बदलाव के लिए प्रस्ताव आगे बढ़ा है, वरन अमेरिका में एच-1बी वीजाधारकों के जीवनसाथियों के लिए कार्य परमिट के लिए दिए जाने वाले एच-4 वीजा को खत्म करने की योजना को अंतिम रूप दिया जा रहा है। ऐसे में अब अमेरिका में यदि पति के पास एच-1बी वीजा है तो पत्नी को कार्य करने की अनुमति नहीं होगी। इसी तरह पत्नी के पास एच-1बी वीजा होने पर पति को कार्य परमिट नहीं मिलेगा। माना जा रहा है कि इस कदम से करीब 64 हजार से अधिक पेशेवरों को काम की अनुमति नहीं मिलेगी। गौरतलब है कि 2015 में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में जीवनसाथी को कार्य परमिट देने का फैसला हुआ था। यह फैसला इस आधार पर हुआ था कि एच-1बी वीजाधारक उच्च गुणवत्ता वाले पेेशेवर के साथ उसका जीवनसाथी भी अमेरिका में रहकर कार्य कर सकता है। दिसम्बर 2017 तक 1,26,853 एच-4 वीजा प्रस्ताव मंजूर हुए थे।
इतना ही नहीं, ट्रंप प्रशासन ने ईबी-5 निवेशक वीजा कार्यक्रम को बंद करने का प्रस्ताव अमेरिकी कांग्रेस के सामने रखा है। ईबी-5 निवेशक वीजा कार्यक्रम के जरिए विदेशी लोगों को अमेरिका में 6.7 करोड़ रुपए तक निवेश करने के लिए ग्रीन कार्ड जारी किया जाता है। अमेरिका ईबी-5 निवेशक वीजा कार्यक्रम के तहत हर साल करीब 1०० विदेशियों को वीजा जारी करता है। इस वीजा कार्यक्रम के बंद होने से बड़ी संख्या में भारतीय निवेशक प्रभावित होंगे। इस वर्ष 2018 में 700 भारतीयों द्वारा ईबी-5 वीजा के लिए आवेदन का अनुमान है। पिछले चार साल में ईबी-5 वीजा के तहत आए आवेदनों की संख्या तीन गुनी हो गई है। भारतीयों को इस वर्ग के तहत ग्रीन कार्ड पाने के लिए करीब 3.5 करोड़ रुपए अपनी पत्नी और अविवाहित बच्चों के नाम से निवेश करना होते हैं। इसके लिए किसी तरह की पढ़ाई या अन्य पैमाने की जरूरत नहीं होती । ईबी-5 वीसा मिलने के बाद व्यक्ति अमेरिका में कहीं भी जाकर रह सकता है। अमेरिका के नागरिकता और आव्रजन सेवा विभाग का कहना है कि 20 अप्रैल, 2018 तक 6,32,219 भारतीय आव्रजक तथा उनके पति-पत्नी तथा अल्प वयस्क बच्चे ग्रीन कार्ड के इंतजार में हैं। ग्रीन कार्ड से अमेरिका की स्थायी नागरिकता मिलती है।
नि:संदेह इस समय अमेरिका में वीजा संबंधी कठोरता के कारण भारतीय पेशेवरों की मुश्किलें और चिंताएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। खासतौर से अमेरिका में सरकार की ‘बाय अमेरिकन, हायर अमेरिकन’ नीति के तहत नई-नई वीजा संबंधी कठोरता भारतीय हितों को नुकसान पहुंचाते हुए दिखाई दे रही है। अब जिस तरह अमेरिका में ट्रंप प्रशासन द्वारा जनवरी 2019 तक जो नए कठोर वीजा नियम लाए जाने हैं, उनसे भारत की आईटी (सूचना प्रौद्योगिकी) कंपनियों पर बड़े पैमाने पर असर पड़ेगा। भारतीय मूल के अमेरिकियों के स्वामित्व वाली छोटी तथा मध्यम आकार की कंपनियां भी इससे प्रभावित होंगी।
उल्लेखनीय है कि आईटी सेवा कंपनियों के संगठन नैसकॉम ने विगत दो दिसंबर को अमेरिका सरकार के हालिया प्रस्ताव को लेकर चिंता जताते हुए कहा है कि इस कदम से अनिश्चितताएं पैदा होंगी और अमेरिका में नौकरियों पर संकट आ सकता है। एच-1बी वीजा नियमों में बदलाव संबंधी प्रस्ताव को लेकर अमेरिका में आईटी कंपनियों के संगठन आईटीसर्व एलायंस ने अमेरिकी प्रशासन को चुनौती दी है। ऐसे में भारत द्वारा आईटीसर्व एलायंस के अभियान को पूरा समर्थन दिया जाना होगा। साथ ही अब अमेरिका में भारत की आईटी कंपनियों को चिंताओं से बचाने और भारतीय पेशेवरों के हितों के लिए अमेरिका सदन के डेमोक्रेट्स का उपयोग किया जाना होगा। उल्लेखनीय है कि विगत 8 नवंबर को अमेरिका के निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में अधिकतर सीटों पर डेमोक्रेट्स उम्मीदवारों के विजयी होने के बाद अब भविष्य में अमेरिकी सरकार की आव्रजन नीतियों में संतुलन स्थापित होगा। अमेरिकी कांग्रेस में डेमोक्रेट्स का बहुमत होने से ट्रंप प्रशासन के लिए भविष्य में वीजा कानून में कोई बदलाव करना आसान नहीं रहेगा। यदि नए वीजा कानून की जरूरत होगी तो ट्रंप प्रशासन को उस सदन से समर्थन की दरकार होगी।
इसी तरह विगत 9 नवंबर को ट्रंप प्रशासन ने विधि निर्माताओं और अमेरिकी कार्पोरेट क्षेत्र को जो भरोसा दिया है कि एच-4 वीजाधारक पति या पत्नी को कार्य करने की मंजूरी रद्द करने के उसके प्रस्ताव पर जनता की राय के बाद मंजूरी दी जाएगी, उसके मद्देनजर एच-4 वीजाधारकों के हित में अमेरिकी सांसदों और अमेरिकी कार्पोरेट क्षेत्र और भारत के हितचिंतक प्रबद्ध वर्ग से समर्थन जुटाया जाना चाहिए। हमें बेहद कुशल पेशेवरों को अमेरिका में रोकने के लिए राष्ट्रपति ट्रंप के सकारात्मक रवैये का भी लाभ उठाना होगा।
शमीम शर्मा
एक बार एक संभ्रान्त महिला ने अपना फैसला भगवान को सुनाते हुए कहा कि वह पढ़ी-लिखी है, सुंदर और समृद्ध है पर वह शादी नहीं करना चाहती। भगवान उसे समझाते हुए बोले-हे बाला! तुम मेरी सृष्टि की सुंदरतम कृति हो और अकेले वह सब हासिल कर सकती हो जो तुम्हें चाहिये पर यदि कभी तुमसे कोई गलती हो गई तो दोष किसके सिर मढ़ोगी? इसलिये शादी कर लो ताकि पति के माथे दोष चिपका सको।
भगवान का उत्तर सुनकर वह औरत तो दुविधा से बाहर निकल आई पर उस महिला और भगवान का वार्तालाप सुनकर वहीं बैठा एक पुरुष अपने माथे पर हाथ रखकर बोला—प्रभु! फिर मैं किसे दोष दूंगा? ईश्वर उसे समझाते हुए बोले—अरे भाई! तुम्हारा क्या है, तुम्हारे पास तो बेहद विस्तृत क्षेत्र है। तुम तो शिक्षा से लेकर समाज, परम्परा, पर्यावरण, ट्रैफिक, कानून, राजतंत्र, अर्थतंत्र, अफसरशाही और नेताओं तक को कोस सकते हो।
शेरोशायरी की बात करें तो एक उल्लेख अक्सर मिलता है कि रोने के लिये महबूब का कन्धा चाहिये जहां सिर रखकर दिल हल्का कर सकें। पर जीवन में देखो तो कदम-कदम पर हमें एक सिर चाहिये, जिस पर अपने दोष इत्मीनान से मढ़ सकें। हमें कभी यह तो लगता ही नहीं कि हमारी छलनी में भी छेद हैं।
अपने भीतर तो वे भी नहीं झांक रहे जो रात-दिन ईश्वर का जाप कर रहे हैं। गंगा में जाकर भी हम स्नान क्रिया से अपना शरीर तो धो आते हैं पर आत्मा जस की तस रह जाती है। सभी धर्मों और आराधनाओं का सार तो एक ही है कि हमें अपने भीतर झांकना आ जाये, पर मुझे तो कोई ऐसा महानुभाव मिला ही नहीं जो इतना दिलदार हो कि स्टेज पर चढक़र कह सके कि हां यह गलती मेरी है।
बात दोषारोपण की हो तो सास तो एक सांस में बहू के मायके तक जा पहुंचती है और राजनेता विरोधियों की सात पीढिय़ों के बखिये एक पल में उधेड़ मारते हैं। इन दोनों नस्लों की उम्र दूसरों की कमियां निकालने में व्यतीत हो जाती है पर ये एक बार भीतर झांक कर देख लें तो इन्हें तत्काल आभास हो जायेगा कि पानी कहां मर रहा है।
रूस-चीन के करीब आना भी अहम
ब्यूनस आयर्स में दुनिया के आर्थिक रूप से शक्तिशाली बीस राष्ट्रों की नवीनतम बैठक को ‘टालमटोल शिखर सम्मेलन’ कहा जाए तो कोई गलत न होगा। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने रूसी राष्ट्राध्यक्ष पुतिन से मुलाकात को टाल दिया, चीन ने व्यापार युद्ध से बचने की कोशिश की, पुतिन ने यूक्रेन के साथ उलझने से बचने की कोशिश की। विश्व व्यापार संधि के मौजूदा स्वरूप में सुधार का मुद्दा उठा और जलवायु परिवर्तन को आगे बढ़ाने की चर्चा से परहेज किया। वहीं भारत को दोनों ही खेमों के बीच सामंजस्य बिठाने की कोशिश करते हुए खुद को महत्वपूर्ण स्थिति में पहुंचाने की मशक्कत करते देखा गया। हालांकि जी-20 शिखर सम्मेलन में भारत महत्वपूर्ण निर्धारक नहीं होता। भारत-रूस-चीन (आईआरसी) शिखर सम्मेलन 12 वर्षों के बाद हुआ जो यह दर्शाता है कि भारत क्षेत्रीय दृष्टिकोण से पड़ोस में संवाद और संपर्क बढ़ाने का इरादा रखता है। जिस तरह से जापान और अमेरिका ने भारत को शामिल करने के लिए आखिरी पल में अपने द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन का विस्तार किया, इससे भारत की भारत-प्रशांत क्षेत्र में अपनी महत्ता और अहमियत का पर्याप्त संकेत तो मिला ही है।
वहीं जापान-भारत-अमेरिका के बीच त्रिपक्षीय संबंधों में प्रगति भी उम्मीद के हिसाब से ठीक ही रही। इसके अलावा, हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में चीनी प्रभुत्व को एक दायरे में सीमित रखने के लिहाज से भारत और उसके सहयोगियों की प्रगति जारी है। हालांकि, रूस और चीन के साथ रचनात्मक कूटनीति के लिए भारतीय भूमिका को लेकर कोई खास उत्साह नहीं नजर नहीं आया। उनके साथ संबंधों को आगे बढ़ाने का कार्य भारत पर छोड़ दिया गया है। आरआईसी शिखर सम्मेलन का सबसे उल्लेखनीय परिणाम रहा आतंकवाद के साथ मिलकर काम करने की इच्छा। भारत, रूस और चीन तीनों ही देश इस्लामी आतंकवाद से प्रभावित देश हैं। इन देशों के बीच सर्वसम्मति से शंघाई सहयोग संगठन को विस्तारित करना चाहिए और पाकिस्तान पर शांति के प्रभावी प्रयासों का दबाव भी कायम होना चाहिए, जो एक सदस्य भी है। यह परिस्थितियों पर मंथन का मौसम है और भारत स्वयं को केंद्र में रखने में कामयाब रहा है।
बीते शनिवार जी-20 देशों की शिखर बैठक संपन्न हुई और इस सोमवार से पोलैंड के कातोविस शहर में संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) की 24वीं कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (कॉप-24) शुरू हो गई। अलग-अलग रूपों में तकरीबन पूरी दुनिया की नुमाइंदगी करने वाले इन दोनों आयोजनों की शुरुआत कड़वाहट भरे माहौल में हुई, पर नई उम्मीदों की गुंजाइश इनके होने भर से बनी हुई है। जी-20 की बैठक के दौरान अलग-अलग देशों से जुड़ी कई सकारात्मक खबरें आईं, लेकिन जिस एक बात को लेकर दुनिया राहत की सांस ले सकती है, वह यह कि बैठक के बाद जो साझा बयान जारी हुआ, उसमें कुछ ठोस बातें भी हैं। बेशक, यह बयान अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं था। कई विशेषज्ञ इसे कमजोर बता रहे हैं। लेकिन जिस तरह से पापुआ न्यू गिनी में हुई एशिया पैसिफिक इकनॉमिक कोऑपरेशन की शिखर बैठक कोई साझा बयान ही जारी न कर सकी, और इससे पहले जी-7 देशों की बैठक अमेरिका के विरोध के चलते बगैर संयुक्त घोषणापत्र जारी किए ही समाप्त कर दी गई, उसे देखते हुए यह भी कम नहीं है कि जी-20 में शामिल सारे देश एक बयान पर सहमत हुए। एक अन्य महत्वपूर्ण घटनाक्रम यह हुआ कि अमेरिकी और चीनी राष्ट्राध्यक्षों ने आपस में बातचीत की और चीनी सामानों पर आयात शुल्क 10 फीसदी से बढ़ा कर 25 फीसदी करने के अमेरिकी फैसले पर अमल तीन महीने के लिए टाल दिया गया। जी-20 के बैठक स्थल से आई ये दोनों खबरें आश्वस्त करती हैं कि निराशा बढ़ाने वाले मौजूदा माहौल में हालात सुधरने की संभावना अभी बची है। यह संदेश कॉप-24 की बैठक के लिहाज से भी महत्वपूर्ण है, जो अमेरिका के पेरिस पर्यावरण समझौते से हटने की घोषणा के बाद से बेमानी लगने लगी है। पर्यावरण बचाने के उद्देश्य से होने वाली इस सालाना बैठक में दुनिया के सभी देश अपने प्रतिनिधि भेजते हैं। इस बार हो रही 24वीं बैठक में सबसे अहम मसला है पेरिस जलवायु समझौते को अमल में लाने के तरीकों पर सहमति कायम करना। पेरिस समझौते की अहमियत इस बात में थी कि पहली बार दुनिया के सभी देश ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन रोकने को लेकर अपनी तरफ से कुछ न कुछ योगदान करने को तैयार हो गए थे। इसे झटका तब लगा जब अमेरिकी राष्ट्रपति ने पिछले साल अचानक इस सहमति से बाहर निकलने का ऐलान कर दिया। राहत की बात यह है कि कोई और देश इस उकसावे में नहीं आया है। अमेरिका को मनाने की कोशिशें अब तक भले ही नाकाम रही हों, पर बाकी दुनिया अपनी बात पर कायम है। राजनेताओं की यह प्रतिबद्धता कितनी मजबूत है और कितनी दिखावटी, इसकी जांच होनी बाकी है, लेकिन वक्त ने हमें सिखाया है कि विवेक की आवाज देर-सबेर अपना असर जरूर दिखाती है। अमेरिका के 13 राज्यों का ट्रंप सरकार के फैसले से हटकर पेरिस समझौते से जुड़ाव दिखाना यह बताता है कि इस सुपरपावर को भी अंतत: अपना रवैया बदलना होगा।
रेनू सैनी
मानव संबंधों में कुशलता प्राप्त करने के लिए उसी प्रकार प्रयत्न करना पड़ता है, जिस प्रकार की-बोर्ड को सीखने के लिए प्रयास करने पड़ते हैं। जिस व्यक्ति को पियानो बजाना आता है तो वह कोई भी धुन बजा कर दर्शकों को चकित कर सकता है। अब आप सोचिए कि यदि पियानोवादक इसे बिना सीखे बजाने का प्रयत्न करेगा तो वह धुन को भी सुरीला नहीं बजा पाएगा। बिल्कुल यही स्थिति मानव संबंधों के साथ भी है।
व्यक्ति जीवन में अनेक व्यक्तियों से मिलता है और सभी अलग-अलग तरह के होते हैं। यदि उनसे व्यवहार करने के लिए व्यक्ति अलग-अलग तरीके सीखने का प्रयास करेगा तो इसमें उसका बहुत अधिक समय और ऊर्जा लगेगी। इसके विपरीत यदि वह मानव संबंधों के कुछ बुनियादी सिद्धांतों को सीख जाएगा तो वह हर तरह के मानव संबंधों में कुशल बन जाएगा। व्यक्ति संगीत के कुछ बुनियादी राग सीखता है और इनका लगातार तब तक अभ्यास करता है जब तक उसकी अंगुलियां उनकी अभ्यस्त नहीं हो जातीं। जब व्यक्ति निरंतर अभ्यास से की-बोर्ड चलाने में कुशल हो जाता है तो फिर वह थोड़े से अभ्यास और ज्ञान से ही कठिन से कठिन संगीत की रचना कर सकता है और उसे बजा सकता है।
प्रत्येक संगीत रचना दूसरे संगीत से भिन्न होती है जबकि पियानो में सिर्फ 88 कुंजियां होती हैं और स्केल में केवल आठ तानें होती हैं। ये 88 कुंजियां और स्केल की आठ तानें ही मधुर संगीत और शब्दों की बुनियाद होती हैं। इसी तरह कुशल मानव संबंध बनाने के लिए अलग-अलग चालें नहीं बल्कि मानव संबंधों की बुनियाद में निपुणता हासिल करनी होती है। व्यक्ति स्वयं को फिट रखने के लिए व्यायाम करते हैं, जिम जाते हैं और ब्यूटी पॉर्लरों का भी प्रयोग करते हैं। वे अनेक सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग करके स्वयं को खूबसूरत एवं आकर्षक बनाते हैं लेकिन मानव संबंधों की तकनीक को कैसे खूबसूरत और सफल बनाया जाए, इस ओर ध्यान नहीं देते। इसलिए वे अक्सर कई कार्यों और व्यवसायों में फेल हो जाते हैं।
किसी भी कार्य और व्यवसाय की सफलता मानव संबंधों के की-बोर्ड पर टिकी होती है। यदि आपको मानव संबंधों का की-बोर्ड अच्छी तरह चलाना आता है तो आप बाधाओं में भी अवसरों को उत्पन्न कर सकते हैं जबकि मानव संबंधों के की-बोर्ड का ज्ञान न होने पर अवसर भी रुकावट बनकर मार्ग में खड़े हो जाते हैं। मानव संबंधों के की-बोर्ड का ज्ञान होने पर आप कठिन से कठिन समस्या और परेशानी को भी सहजता से दूर कर सकते हैं और स्वयं अनेक पीड़ाओं और परेशानियों से बच सकते हैं।
मानव संबंधों के कई की-बोर्ड हैं। जैसे जिस व्यक्ति के साथ आपको अपना कार्य या व्यवसाय बढ़ाना है, उसमें रुचि लें। केवल अपनी ही न गाते रहें, अपितु उसकी भी सुनें। केवल प्रशंसा और रुचियां ही नहीं अपितु आपको उनकी परेशानियां भी धैर्यपूर्वक सुननी चाहिए। सामने वाले को प्रभावित करने के लिए यह अनिवार्य है कि आप भी उससे प्रभावित हों। यदि आप बात करते समय स्वयं को उससे बेहतर साबित करने का प्रयास करेंगे तो दूसरे व्यक्ति को इस बात का यकीन हो जाएगा कि आपसे भविष्य में उसे कोई सहयोग नहीं मिलने वाला। इसलिए बात करते समय सामने वाले से प्रभावित होकर अपने चेहरे पर सकारात्मक भाव लाएं।
लोगों को उसी रूप में स्वीकार करने का प्रयत्न करें, जैसे वे हैं। यदि आप उन्हें बदलने का प्रयत्न करेंगे तो आप न कभी मित्र बना पाएंगे और न ही कभी साझेदारी में अच्छा व्यवसाय कर पाएंगे। जब आप उन्हें उनके मूल स्वरूप में स्वीकार कर लेते हैं तो वह दूरी समाप्त हो जाती है और व्यक्ति आपके अनुसार चलने के लिए तैयार हो जाता है। जबरदस्ती किसी को सुधारा अथवा परिवर्तित नहीं किया जा सकता। व्यक्ति का समर्थन करें। समर्थन मिलने पर व्यक्ति के अंदर उत्साह जाग्रत हो जाता है और धीरे-धीरे वह वास्तव में प्रशंसनीय कार्य करने लगता है। जब भी कोई आपसे अपनी समस्या का समाधान पूछे तो उसे केवल परामर्श ही न दें, अपितु उसे यह अहसास कराएं कि समस्या के समाधान तक पहुंचने में आप उसके साथ हैं। ऐसा करने से पीडि़त व्यक्ति को संबल मिलता है। ऐसा करने से आप न केवल एक अच्छा मित्र पा सकते हैं बल्कि अपने मानव संबंधों को मजबूत बनाने में भी प्रगाढ़ता हासिल कर सकते हैं।
‘अंडरस्टैंडिंग फियर इन अवरसेल्वज़ एंड अदर्स’ में बोनेरो ओवरस्ट्रीट कहती हैं कि भावनात्मक समस्याओं की जड़ हमेशा दूसरों के साथ हमारे संबंधों में बाधक होती है। इसलिए इन समस्याओं को दूर करने के लिए मानव संबंधों के की-बोर्ड का अभ्यास करें। अभी से मानव संबंध के की-बोर्ड पर अभ्यास करिए और फिर जीवन के हर पड़ाव पर मुस्कुराते हुए आगे बढि़ए।
विश्वनाथ सचदेव
गांधीजी की प्रार्थना सभा में जो भजन अक्सर गाए जाते थे, उनमें एक नरसी का वैष्णव जन वाला गीत था, जिसमें पराई पीर को समझना धार्मिक होने की एक शर्त मानी गई थी और दूसरा ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम’ वाला वह गीत था, जिसमें एक ईश्वर की परिकल्पना को स्वर दिया गया था, होंगे तब भी कुछ लोग, जिन्हें ईश्वर और अल्लाह को एक कहने में कुछ कष्ट होता होगा पर उदार धार्मिक वृत्ति वाले किसी भी व्यक्ति को यह भजन गाए जाने पर एतराज नहीं था। आज भी गांधी के ये दोनों भजन बड़ी आस्था और तन्मयता से गाए जाते हैं। धार्मिक सद्भाव का एक संदेश देते हैं ये भजन। ‘एकं सत विप्रा: बहुधा वदंति’ में विश्वास करने वाली भारतीय मनीषा में भला ईश्वर या अल्लाह या गॉड को याद करने पर किसी को क्या आपत्ति हो सकती है।
पर कुछ लोगों को आपत्ति है। कुछ दिन पहले राजधानी दिल्ली में कर्नाटक संगीत के जाने-माने कलाकार टी.एम. कृष्णा का एक कार्यक्रम आयोजित किए जाने की घोषणा हुई थी। कृष्णा अपने गीतों में ईश्वर, अल्लाह और गॉड तीनों को एक साथ याद करते हैं। सूफी गीत भी गाते हैं, पराई पीर को समझने का संदेश भी देते हैं, ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम’ के स्वर भी गुंजाते हैं और यीशु को भी याद करते हैं। सर्वधर्म समभाव की बात कहने वाले इस कार्यक्रम को ‘एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया’ के आर्थिक सहयोग से आयोजित किया जा रहा था। लेकिन निर्धारित तिथि से दो-चार दिन पहले अचानक भारत सरकार के इस संस्थान ने ‘कुछ जरूरी काम’ में व्यस्तता के नाम पर इसे स्थगित करने की घोषणा कर दी। इस घोषणा में यह नहीं बताया गया था कि कार्यक्रम की अगली तारीख क्या है। यह स्थगन कोई अनहोनी बात नहीं थी। कार्यक्रम कई बार स्थगित करने पड़ते हैं, फिर आयोजित हो जाते हैं। पर, टी.एम. कृष्णा के इस कार्यक्रम का स्थगित होना सामान्य बात नहीं थी। कुछ खास था इस स्थगन में कि विश्व प्रसिद्ध गायक को यह कहना पड़ा कि वे किसी के भी आमंत्रण पर दिल्ली में यह कार्यक्रम करने को तैयार हैं। और फिर दिल्ली सरकार के आमंत्रण पर उन्होंने यह कार्यक्रम किया भी।
महत्वपूर्ण है केंद्र सरकार के एक संस्थान द्वारा स्थगित किए गए कार्यक्रम को दिल्ली की ‘आप’ पार्टी की सरकार द्वारा आयोजित किया जाना, पर इससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि टी.एम. कृष्णा के कार्यक्रम को केंद्रीय सरकार के एक संस्थान द्वारा ‘जनता के पैसों’ से आयोजित किए जाने का विरोध करने वालों ने संस्थान को बाध्य किया था कार्यक्रम न करने के लिए। इन तत्वों को शिकायत कृष्णा द्वारा ईसाई गीत गाने से थी। उनका यह मानना है कि टी.एम. कृष्णा ‘राष्ट्र-विरोधी’ हैं। इसीलिए ये तत्व सोशल मीडिया पर कर्नाटक संगीत के इस पुरोधा का विरोध कर रहे थे। इस विरोध को आज ‘ट्रॉल’ किया जाना कहते हैं और यह तत्व इतने ताकतवर हो गए हैं कि ‘एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया’ को कार्यक्रम से अपने आप को अलग करना पड़ गया।
इस कार्रवाई के पीछे कुछ भी कारण बताए जा रहे हों पर है यह एक सेंसरशिप ही। इस तरह की कार्रवाई, दुर्भाग्य से, हमारे यहां कोई नई बात नहीं है। सरकारें पुस्तकों पर प्रतिबंध लगाती रही हैं, कला प्रदर्शनियों के आयोजन रोके जाते रहे हैं, कलाकारों और लेखकों को प्रताडि़त किया जाता रहा है। इसी प्रवृत्ति के चलते एम.एफ. हुसैन को अपना देश छोडक़र जाना पड़ा था और मुरुगन जैसे तमिल साहित्यकार को ‘अपने साहित्यकार’ की ‘आत्महत्या’ की घोषणा करनी पड़ी थी।
हमारे संविधान ने हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया है। हर नागरिक को अपनी बात कहने का अधिकार है। यह सही है कि स्वतंत्रता का मतलब असीमित उच्छृंखलता नहीं है। मर्यादा में रहकर हम अपनी स्वतंत्रता का उत्सव मनाते रह सकते हैं। विचार-वैभिन्य हमारे जनतंत्र की खूबी है। हजार फूलों का साथ-साथ खिलना हमारी सुंदरता है। लेकिन पिछले एक अर्से से असहमति के अस्वीकार की अजनतांत्रिक प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। टी.एम. कृष्णा जैसे कलाकार के कार्यक्रम को रोकने की कोशिश इसी प्रवृत्ति का एक उदाहरण है किसी को भी राष्ट्र विरोधी कह देना एक सामान्य-सी बात हो गई है
कहा यह जा रहा है कि टी.एम. कृष्णा एक कलाकार होने के साथ-साथ ‘एक्टिविस्ट’ भी हैं। शब्दकोश के अनुसार, अंग्रेज़ी के इस शब्द का अर्थ है ‘सक्रियतावादी।’ सामान्य बोलचाल में इस सक्रियता का मतलब सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय होना माना जाता है। पर इस सक्रियता के विरोधी इसे राष्ट्र-विरोध मानते हैं। यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है। इसी प्रवृत्ति के चलते कभी किसी विश्वविद्यालय में ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ दिख जाती है और कभी साहित्य अकादमी का विरोध करने वाले ‘अवार्ड वापसी गैंग’ के सदस्य घोषित कर दिए जाते हैं। यह संभव है, और शायद है भी कि कलाकार टी.एम. कृष्णा के कुछ राजनीतिक विचार हों, लेकिन राजनीतिक विचार या फिर भिन्न राजनीतिक विचार अपराध कैसे हो सकते हैं? यदि कोई राष्ट्र विरोधी काम करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए, पर किसी को भी राष्ट्र विरोधी घोषित करने का अधिकार कुछ लोगों को कैसे मिल सकता है?
जहां तक धार्मिक प्रतिबद्धता का सवाल है, देश के हर नागरिक को अपनी आस्था और विश्वास के साथ जीने का अधिकार है। हमारा संविधान तो अपने धर्म के प्रचार का अधिकार भी देता है। लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि दूसरे के धर्म का अपमान किया जाए। भारतीय समाज बहुधर्मी है, बहुभाषी है। यहां सदियों से भिन्न मतों-विचारों, मान्यताओं वाले लोग साथ-साथ रहते आए हैं। यह विभिन्नता हमारी ताकत है, हमारी सुंदरता भी। लेकिन सच्चाई यह भी है कि हमारे समाज में असहिष्णुता पनप रही है। धर्म के नाम पर लेखकों, कलाकारों, संगीतज्ञों के विरुद्ध एक खतरनाक वातावरण बनाया जा रहा है। सच पूछा जाए तो वह राष्ट्र विरोधी नहीं है जो ईश्वर, अल्लाह, गॉड के गीत गाता है। राष्ट्र-विरोधी वह है जो इस धार्मिक सद्भावना को किसी भी तरह से चोट पहुंचा रहा है।
किसी भी कलाकार की राजनीतिक व सामाजिक सक्रियता पर किसी को आपत्ति हो सकती है, पर यह आपत्ति उसकी कला को प्रतिबंधित नहीं कर सकती। यहीं यह बात भी समझनी होगी कि किसी सरकार का विरोध करने का मतलब देश का विरोध करना नहीं होता। टी.एम. कृष्णा का संगीत सुनाना उनका अधिकार है और उसे सुनने का अधिकार भी देश के नागरिक को है। इस दृष्टि से देखें तो दिल्ली की सरकार ने कार्यक्रम को आयोजित करके केंद्र की सरकार का दायित्व निभाया है। सरकारों का दायित्व है कि राम-रहीम के नाम पर नफरत फैलाने वालों पर अंकुश लगाएं। ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम’ का गांधीजी का संदेश उस धार्मिक सद्भावना की पहली शर्त है जो भारतीय समाज को परिभाषित करती है। इस संदेश को सही अर्थों में समझने-समझाने की जरूरत है।