० 21 दिसम्बर को महात्मा गांधी के प्रथम छत्तीसगढ़ आगमन की शतकीय वर्षगांठ पर विशेष
धमतरी, 20 दिसंबर । उन्नीसवीं सदी के पूर्वाद्र्ध में जब पूरा भारतवर्ष अंग्रेजों की निरंकुशता और गुलामी के खिलाफ एक साथ उठ खड़ा हुआ था, ऐसे में छत्तीसगढ़ के तत्कालीन रायपुर सूबे की छोटी सी तहसील धमतरी भी इससे अछूती नहीं रही। दासता की बेडिय़ों से छुटकारा पाने यहां के रणबांकुरों ने भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। कण्डेल नहर सत्याग्रह, जंगल सत्याग्रह जैसे ऐतिहासिक आंदोलनों का आगाज इसी धरती के वीर सपूतों ने किया। धमतरी की पावन धरा पंडित सुंदरलाल शर्मा, बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव, नारायणराव मेघावाले, नत्थूजी जगताप, नारायणराव दीक्षित जैसे महान् स्वतंत्रता संग्राम सैनानियों की जन्म व कर्मभूमि रही है, जिसने आजादी की शैशवावस्था से लेकर गौरवशाली युवावस्था देखी है। कण्डेल नहर सत्याग्रह भारत के प्रमुख स्वतंत्रता आंदोलनों में से एक है, जिसकी वजह से फिरंगी हुकूमत को अपने कठोर फैसले से पीछे हटना पड़ा और अपनी दमनकारी नीतियों को बदलना पड़ा। 21 दिसम्बर 1920 को महात्मा गांधी ने धमतरी पहुंचकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ उक्त आंदोलन की पूर्णाहुति दी।
छत्तीसगढ़ में जल संघर्ष का इतिहास पुराना है। यह सर्वविदित है कि कंडेल नहर सत्याग्रह की घटना ब्रिटिश सरकार के क्रूर फरमान का नतीजा थी। अंग्रेजी सरकार के हुक्मरानों ने जिस तरह आदेश को लागू करवाने के लिए जोर-जबरदस्ती और अमानवीयता का नमूना पेश किया था, उससे संघर्ष को अधिक बल मिला। छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में रहने वाले लोगों ने अहिंसक आंदोलन किया और अपने अदम्य साहस, धैर्य व अनुशासन की मिसाल कायम की।
कंडेल नहर सत्याग्रह : वर्ष 1920
धमतरी का कंडेल सत्याग्रह छत्तीसगढ़ के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। राष्ट्रीय चेतना के विकास में धमतरी तहसील अग्रणी रहा है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय चेतना का प्रकाश यहीं से दैदीप्यमान हुआ था। पं. सुंदरलाल शर्मा, पं. नारायणराव मेघावाले और बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव ने यहां आजादी की अलख जगाई। कंडेल नहर सत्याग्रह एक स्वतंत्र संघर्ष था। कंडेल के किसानों ने अगर अंग्रेजी शासन के हुक्म की तामील की होती तो संभवत: गांधीजी वर्ष 1920 में छत्तीसगढ़ नहीं आते।
कंडेल का घटनाक्रम
कंडेल माडमसिल्ली बांध के नजदीक बनाए गए नहर के मार्ग में स्थित है। ब्रिटिश सरकार किसानों से सिंचाई कर की वसूली करती थी। किसानों पर दबाव था कि वे अंग्रेज सरकार से 10 साल का करार करें। हालांकि अनुबंध की राशि इतनी अधिक थी कि इससे सिंचाई के लिए गांव में ही एक विशाल तालाब बनाया जा सकता था। इसलिए किसान अनुबंध के लिए तैयार नहीं थे। इस ग्राम के किसानों के इस निर्णय को ब्रिटिश सरकार ने प्रतिष्ठा का मुद्दा बना लिया। कंडेल छोटेलाल श्रीवास्तव की पैतृक संपत्ति थी। धमतरी की नई पीढ़ी को तराशने में बाबू साहब की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उन्हीं के सुझावों पर किसान दस वर्षीय करार के लिए तैयार नहीं थे। प्रशासन किसानों की आड़ में बाबू साहब को सबक सिखाने की मंशा रखता था। इसकी सूचना मिलने पर छोटेलाल श्रीवास्तव ने ग्रामीणों से एक साथ बैठक की जिसमें सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि जुर्माना नहीं दिया जाएगा। साथ ही इस अन्याय के विरोध में सत्याग्रह करने का फैसला किया गया। इस फैसले को तहसील के नेताओं का भी समर्थन प्राप्त था।
जब मवेशियों की खरीदी करने नहीं आया कोई भी आगे...
अंग्रेजी सरकार के फैसले के खिलाफ गांव-गांव में जनसभाओं का आयोजन किया जाने लगा। ब्रिटिश सरकार के झूठ का पुलिंदा लोगों के सामने खुलने लगा। लगातार चल रही इन गतिविधियों से प्रशासन बौखला गया और आनन-फानन में जुर्माना वसूलने और मवेशियों की जब्ती-कुर्की के आदेश जारी कर दिए गए। जब्त पशुओं को धमतरी के इतवारी बाजार में नीलामी के लिए लाया गया, मगर एक भी व्यक्ति बोली लगाने आगे नहीं आया। लोग समझ चुके थे कि यह सिंचाई विभाग की अन्यायपूर्ण कार्रवाई थी। यह सिलसिला क्षेत्र के अन्य बाजारों में भी दोहराया गया। हर जगह प्रशासन को असफलता मिली।
छोटेलाल श्रीवास्तव के नेतृत्व में तहसील भर में सिंचाई विभाग के खिलाफ अलख जग गई थी। प्रशासन न तो जुर्माना वसूल कर पा रहा था और न ही पशुओं के चारा-पानी की व्यवस्था कर पा रहा था। इस तरह पशु भी बीमार होने लगे। प्रशासन के सामने यह एक नई समस्या थी। दोनों पक्ष झुकने के लिए तैयार नहीं थे। सितम्बर 1920 के पहले सप्ताह में छोटेलाल श्रीवास्तव, पं. सुंदरलाल शर्मा और नारायणराव मेघावाले की उपस्थिति में कंडेल में सभा हुई। इस सभा में सत्याग्रह के विस्तार का निर्णय लिया गया।
सत्याग्रह पर मार्गदर्शन के लिए गांधीजी को किया पत्राचार
अंग्रेजों के अत्याचार भी बढऩे लगा, साथ ही सत्याग्रह भी। इस तरह पांच महीने बीत गए। कंडेल सत्याग्रह के समय महात्मा गांधी बंगाल के दौरे पर थे, तब उन्हें पण्डित सुंदरलाल शर्मा ने छत्तीसगढ़ आने का न्यौता दिया, जिस पर उन्होंने सहर्ष स्वीकृति दी। 20 दिसम्बर को गांधीजी खिलाफ आंदोलन के प्रणेता मौलाना शौकत अली के साथ रेलगाड़ी से रायपुर पहुंचे। यहां पर उत्साही जनता को गांधी चौक में संबोधित किया। अगले दिन 21 दिसम्बर को कार से सुबह 11 बजे महात्मा गांधी धमतरी पहुंचे। स्थानीय मकईबंध चौक (वर्तमान में मकई चौक) में उनका ऐतिहासिक स्वागत हुआ। यहां पर अधिक भीड़ होने की वजह से गुरूर के व्यापारी उमर सेठ ने गांधीजी को कंधे पर बिठाकर जानी हुसैन बाड़ा सभा स्थल के मंच तक पहुंचाया।
गांधीजी ग्रामीणों के इस आंदोलन से खासे प्रभावित हुए। इससे पहले, कि गांधीजी के धमतरी आगमन पर आंदोलन को और हवा मिलती, सत्याग्रह को बड़े पैमाने पर फैलता देख अंग्रेजी शासन बौखला गया। अंग्रेजों ने हाथ खड़े कर दिए। ग्रामीणों की गौधन संपदा जिन्हें अग्रेजों ने जब्त कर ली थी, वापस कर दी गई। साथ ही जुर्माने की वसूली भी तत्काल रोक दी गई। अंतत: कण्डेल के किसान विजयी हुए और सत्याग्रह सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। इस तरह कण्डेल का यह आंदोलन सत्याग्रहियों की अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ एक बड़ी जीत थी, जिसे देश इतिहास कभी विस्मृत नहीं कर पाएगी।