संपादकीय

14-May-2019 1:43:14 pm
Posted Date

मौसम की चुनौतियांं

देश के एक बड़े हिस्से में भारी गर्मी पड़ रही है। कई शहरों का तापमान 46 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जा रहा है। बढ़ते तापमान का जनजीवन पर गहरा असर पड़ा है। कई जगहों पर तो स्कूल बंद कर दिए गए हैं। अब हर साल इस मौसम में यही अहसास होता है कि इस बार गर्मी पिछले साल से ज्यादा है। मतलब यह कि गर्मी साल दर साल बढ़ रही है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार 1901 के बाद साल 2018 में सबसे ज़्यादा गर्मी पड़ी थी, लेकिन अभी से यह यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इस साल औसत तापमान में 0.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है।

पिछले महीने मौसम की जानकारी देने वाली वेबसाइट एल डोरैडो ने दुनिया के सबसे गर्म 15 इलाकों की लिस्ट जारी की। ये सारी जगहें मध्य भारत और उसके आसपास की हैं। लिस्ट में जो 15 नाम शामिल हैं उसमें से 9 महाराष्ट्र, 3 मध्य प्रदेश, दो उत्तर प्रदेश और एक तेलंगाना का है। एक सामान्य राय है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण ऐसा हो रहा है। लेकिन कई विशेषज्ञ मानते हैं कि शहरों में बढ़ते निर्माण कार्यों और उसके बदलते स्वरूप के चलते हवा की गति में कमी आई है। एक राय यह भी है कि तारकोल की सडक़ और कंक्रीट की इमारत ऊष्मा को अपने अंदर सोखती है और उसे दोपहर और रात में छोड़ती है। बढ़ती गर्मी से सीधा जुड़ा हुआ है जल संकट।

महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में अभी ही सूखे जैसे हालात हो गए हैं, जबकि पिछले वर्ष इन राज्यों में अच्छी-खासी बरसात हुई थी। वर्ष 2018 में मॉनसून की स्थिति बेहतर रहने के बावजूद बड़े बांधों में पिछले वर्ष से 10-15 फीसदी कम पानी है। केंद्रीय जल आयोग द्वारा शुक्रवार को जारी आंकड़ों के अनुसार देश के 91 जलाशयों में उनकी क्षमता का 25 फीसदी औसत पानी ही उपलब्ध है। दरअसल मार्च से मई तक होने वाली प्री मॉनसून वर्षा में औसत 21 प्रतिशत की कमी आई है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार उत्तर-पश्चिम भारत में प्री मॉनसून वर्षा में 37 प्रतिशत की कमी रही जबकि प्रायद्वीपीय भारत में 39 पर्सेंट की कमी। हालांकि फोनी तूफान की वजह से हुई वर्षा ने मध्य भारत, पूर्व और पूर्वोत्तर भारत में इस कमी की भरपाई कर दी। लेकिन अल नीनो की वापसी के अंदेशे से इस बार मॉनसून के कमजोर होने की आशंका मंडरा रही है।

मौसम का अनुमान करने वाली निजी संस्था स्काईमेट वेदर ने कहा कि अप्रैल में यह कमजोर होता नजर आया था, पर इसमें फिर मजबूती के लक्षण दिख रहे हैं। जो भी हो, प्रशासन को सतर्क हो जाना चाहिए। जून में खरीफ की बुवाई शुरू हो जाएगी। देखना होगा कि किसानों को कोई दिक्कत न हो। इसी तरह गर्मी से जानमाल की क्षति रोकने के लिए भी तमाम जरूरी उपाय करने होंगे।

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