संपादकीय

20-Apr-2019 2:13:16 pm
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चैत में काल वैशाख

मंगलवार की शाम देश के मध्य-पश्चिमी क्षेत्रों में आए तूफान के चलते 64 लोगों की जान चली गई, लगभग इतने ही लोग घायल हुए और काफी संपत्ति का नुकसान हुआ। तूफान का सबसे बड़ा प्रकोप राजस्थान और मध्य प्रदेश को झेलना पड़ा जहां क्रमश: 25 और 21 लोगों के मारे जाने की खबर है। इसके अलावा गुजरात में 10 और महाराष्ट्र में तीन लोगों की जान इस तूफान की भेंट चढ़ी। जान के अलावा खेती का भी काफी नुकसान हुआ और जगह-जगह खेतों में खड़ा या कटकर बांधे जाने को पड़ा गेहूं खराब हो गया। मंड़ाई के बाद मंडियों में पहुंचे गेहूं को भी इस तूफान ने निशाना बनाया।

चुनावी माहौल चल रहा है तो थोड़ी बहुत राजनीतिक गर्मागर्मी के बाद जान और माल के लिए मुआवजे का ऐलान भी जल्दी हो गया। मौसम विभाग ने इस तूफान की वजह पश्चिमी विक्षोभ को बताया है। उसका कहना है कि तेज गर्मी से अरब सागर के ऊपर मंडरा रही नमी जब बंगाल की खाड़ी से आने वाली पूर्वी हवाओं से मिली तो इस तूफानी परिघटना का जन्म हुआ। बहरहाल, मौसम विभाग की मानें तो तूफान का खतरनाक दौर अब पीछे छूट चुका है और आने वाले दिनों में एक बार फिर गर्मी में तेज बढ़त की संभावना है। उत्तर भारत में खासकर वैशाख या मई का महीना तेज तूफानों के लिए जाना जाता है, जिसका सबसे बुरा प्रभाव पूर्वी प्रांतों में देखा जाता है। प. बंगाल में इस्तेमाल होने वाले काल वैशाख शब्द से इनकी भयावहता का अंदाजा मिलता है।

लेकिन इधर कुछ सालों से न सिर्फ तूफानों का समय थोड़ा पहले खिसक आया है, बल्कि इनकी दिशा भी बदली हुई सी लग रही है। गर्मी के तूफान अब पश्चिम से आने लगे हैं और इनकी तीक्ष्णता कभी अप्रैल तो कभी मार्च में ही देखी जाने लगी है। वैसे गेहूं की फसल के लिए पछुआ हवा और पश्चिमी विक्षोभ को वरदान माना जाता है। इसके बगैर गेहूं की खेती की कल्पना भी मुश्किल है। लेकिन जलवायु वैज्ञानिक लगातार बता रहे हैं कि मौसम चक्र में आ रहा बदलाव भारत समेत पूरे दक्षिण एशिया में गेहूं की फसल के लिए खास तौर पर नुकसानदेह साबित हो रहा है। अच्छा होगा कि हमारे मौसम

विज्ञानी खुद को केवल महीने-दो महीने की भविष्यवाणी तक सीमित रखने के बजाय मौसमों के पैटर्न में आ रहे दीर्घकालिक बदलावों को भी समझें और किसानों को उनके मुताबिक फसल चक्र में बदलाव का सुझाव दें। इस बीच अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा की रिपोर्ट में भी धरती की सतह का तापमान पिछले पंद्रह सालों से लगातार बढ़ते जाने की पुष्टि की गई है। इसकी वजह से ग्लेशियर गलते हैं तो बाढ़ आती है और वायुमंडल में ठंडी-गर्म हवाओं की टकराहट से तूफान आते हैं। ग्लोबल वार्मिंग की इस विभीषिका को हमें देर-सबेर अपनी राष्ट्रीय कार्यसूची के शीर्ष पर लाना ही होगा।

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