संपादकीय

17-Apr-2019 1:51:59 pm
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माफी से गुरेज

ब्रिटिश संसद में प्रधानमंत्री टेरीजा मे ने जलियांवाला बाग नरसंहार को ब्रिटिश-भारतीय इतिहास पर शर्मनाक धब्बा बताते हुए खेद तो जताया मगर माफी मांगने का साहस नहीं जुटाया। भारतीय अतीत के इस दर्दनाक घटनाक्रम के सौ साल पूरे होने के मौके पर यदि ब्रिटिश सरकार अपने कारिंदों की करतूतों पर माफी मांग लेती तो वाकई शहीदों की आत्मा को शांति मिलती। इससे पहले भी ब्रिटिश महारानी एलिजाबेथ-द्वितीय 1997 में जलियांवाला बाग के दौरे के दौरान कह चुकी हैं कि जलियांवाला बाग हमारे अतीत का दर्दनाक  उदाहरण है। वर्ष 2013 में भी तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने जलियांंवाला बाग स्मारक पर जाकर श्रद्धांजलि तो दी मगर इस घटना के लिये माफी नहीं मांगी। ऐसे में जब जापान व फ्रांस अपने साम्राज्यवादी मंसूबों के लिये हुए अमानवीय कृत्यों के लिये माफी मांग चुके हैं तो ब्रिटेन को ऐसा करने से परहेज क्यों है। ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल जलियांवाला हत्याकांड के एक वर्ष बाद इस कृत्य को राक्षसी बता चुके हैं मगर सरकारें ब्रिटिश साम्राज्यवाद के भयावह चेहरे के सत्य को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। यही वजह है कि ब्रिटेन से भारत के संबंध आजादी के बाद गहरे तो रहे हैं, लेकिन उनमें आत्मीयता का भाव नहीं रहा।

दरअसल, आजादी के बाद प्रवासी भारतीयों ने ब्रिटिश समाज, अर्थव्यवस्था व राजनीति में प्रभावी हस्तक्षेप किया है। यहां तक कि वे ब्रिटिश राजनीतिक दलों, खासकर लेबर पार्टी में वजनदार हैं। लेबर पार्टी के सांसद वीरेंद्र शर्मा ने भी संसद में कहा था कि यह सही मौका है जब ब्रितानी सरकार को जलियांवाला नरसंहार के लिये माफी मांगनी चाहिए। इतना ही नहीं, ब्रिटिश संसद के वेस्टमिनस्टर हाल में ब्रितानी सांसदों ने जलियांवाला बाग नरसंहार के लिये औपचारिक माफी के लिये दबाव बनाया था। यहां तक कि विपक्षी लेबर पार्टी के नेता जेरेमी कार्बिन ने कहा कि इस कांड के शहीद बिना शर्त माफी मांगे जाने के हकदार हैं। नि:संदेह ब्रिटिश सरकार को इस कांड में देश की भूमिका को स्वीकार करते हुए औपचारिक रूप से माफी मांगनी चाहिए। जो हुआ, उस सच को स्वीकार किया जाना चाहिए और शहीदों के प्रति सम्मान जाहिर करना चाहिए। यदि ब्रिटिश सरकार लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास करती है तो दुनिया के सबसे बड़े नरसंहारों में एक जलियांवाला बाग कांड के लिये बहुत पहले ही माफी मांग लेनी चाहिए थी, जैसे जापान युद्ध अपराधों के लिये माफी मांग चुका है। कुछ लोग मानते हैं कि भारतीय संसद से भी माफी की मांग उठनी चाहिए।

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