संपादकीय

16-Apr-2019 2:31:58 pm
Posted Date

नए मिजाज के अफसर

केंद्र सरकार ने अपने विभिन्न मंत्रालयों में 9 प्रफेशनल्स को संयुक्त सचिव के रूप में नियुक्त किया है। इनमें से ज्यादातर प्राइवेट सेक्टर से हैं। नौकरशाही को नया रूप देने के मकसद से पिछले साल सरकार ने लैटरल एंट्री के जरिए लोगों को उच्च प्रशासनिक सेवा में मौका देने का निर्णय किया था। इसका मतलब अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ बिना यूपीएससी की परीक्षा दिए भी जॉइंट सेक्रटरी जैसे पदों पर नियुक्त हो सकते हैं।

पिछले साल जून में इसके लिए आवेदन मंगाए गए थे जिसका परिणाम आ गया है। इस तरह लैटरल एंट्री के जरिए नियुक्त हुए अधिकारियों की पहली खेप अपनी जवाबदेही संभाल रही है। नौकरशाही में बदलाव की जरूरत अरसे से महसूस की जा रही है। कई लोगों का आरोप रहा है कि सिविल सेवा की परीक्षा का ढांचा ही ऐसा हो गया है जिसमें रट्टू तोते या किताबी कीड़े ज्यादा सफल हो रहे हैं और उनका आमतौर पर समाज के यथार्थ से कोई लेना-देना नहीं होता है। फिर सामाजिक-आर्थिक स्थितियां भी इतनी बदल गई हैं कि अब विकास कार्य के लिए कई तरह के विशेषज्ञों की जरूरत है।

इन्फोसिस के संस्थापक एन. आर. नारायणमूर्ति ने तो यहां तक कहा था कि आईएएस को समाप्त कर उसकी जगह इंडियन मैनेजमेंट सर्विस का गठन किया जाना चाहिए जिसमें अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञों को रखा जाए। कुछ लोगों का मानना था कि इस ढांचे को पूरी तरह खत्म करने के बजाय इसे लचीला बनाया जाए, इसलिए 2005 में पहले प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट में नौकरशाही में लैटरल एंट्री का प्रस्ताव पहली बार आया।

वैसे यह कोई एकदम नई बात नहीं है। पहले भी सरकार में उच्च स्तर पर सिविल सेवा से बाहर के लोगों को रखा जाता रहा है। इसके सबसे बड़े उदाहरण पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह रहे हैं जिन्हें 1971 में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त किया गया था जबकि खुद डॉ. सिंह ने प्रधानमंत्री बनने के बाद रघुराम राजन को अपना मुख्य आर्थिक सलाहकार नियुक्त किया था। राजन यूपीएससी से चुनकर नहीं आए थे।

न्यूजीलैंड, ब्रिटेन, अमेरिका जैसे कई देशों में भी ऐसी नियुक्तियां होती हैं। भारत में यह प्रयोग नौकरशाही में व्यापक परिवर्तन ला सकता है। वर्तमान सिस्टम में शुरू से ही एक अधिकारी इतने तरह के चौखटों के बीच से गुजरता है कि उसमें यांत्रिकता आ जाती है। यही वजह है कि नौकरशाही में कल्पनाशीलता और जोखिम लेने की प्रवृत्ति का अभाव है। अलग-अलग क्षेत्रों से आए विशेषज्ञ इसमें जीवंतता ला सकते हैं। वे योजनाओं को लीक से हटकर नए तरीके से अमल में ला सकते हैं लेकिन समस्या यह है कि ये लोग लीक पर चलने के आदी अधिकारियों के समूह से घिरे रहेंगे। उनसे ये कितना काम ले पाएंगे, यह देखने की बात होगी। इन नए अफसरों के लिए अनुकूल माहौल बनाना होगा। अगर ये कुछ असाधारण कर सके तो यह प्रयोग देश के लिए बेहद उपयोगी साबित होगा।

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