संपादकीय

15-Apr-2019 11:27:27 am
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छोटी उम्र के गहन चिंतन का दस्तावेजी चित्रण

इंटरनेट व मोबाइल की इनसानी दुनिया में घुसने से पहले डायरी लिखना अधिकतर लोगों की दिनचर्या का हिस्सा रहा है। ऐसे अनेक वाकये हैं जब डायरी महत्वपूर्ण साबित हुई। किसी के द्वारा लिखी गई डायरी कितनी विशेष साबित हो सकती है, यह जर्मन मूल की लेखिका अने फ्रांक की डच भाषी पुस्तक ‘द डायरी ऑफ ए यंग गर्ल’ से प्रमाणित होता है। 13 से 15 साल तक की आयु के बीच लिखी गई अने फ्रांक की डायरी पर आधारित हिंदी अनुवाद की गई पुस्तक ‘एक किशोरी की डायरी’ उसकी श्रेष्ठ कृतियों में से एक है।

यह पुस्तक अने की प्रतिदिन लिखी गई डायरी का हिस्सा है, जो उसने 12 जून, 1942 से एक अगस्त, 1944 की अवधि में लिखी। ये वह समय है जब नात्सी व यहूदी समुदाय की बर्बरता से उन्हें रूबरू होना पड़ा। किशोर अवस्था में कदम रखने के साथ ही अने के द्वारा लिखनी शुरू की गई यह डायरी आश्चर्यजनक रूप से उसकी परिपक्वता का प्रमाण देती है। पहले ही पृष्ठ पर 12 जून, 1942 को अने लिखती है, ‘मुझे उम्मीद है कि मैं अपनी हर बात तुम्हें बता सकती हूं, क्योंकि मैंने अपनी बातें कभी किसी से नहीं कही। मैं आशा करती हूं कि तुम मेरे लिए सुकून और संबल का एक बड़ा स्रोत बनोगी।’ इस डायरी का प्रत्येक पृष्ठ अने के जीवन के कठिन दौर का जीवंत रूप दिखाती है।

लेखिका ने डायरी को किटी नाम दिया है और प्रत्येक दिन का चित्रण इस तरह से किया है कि पाठक खुद को वर्णन के करीब पाता है। उसने बेबाकी के साथ अपनी पसंद और नापसंद का किताब में उल्लेख कर दिया। खुद व परिजनों के जीवन पर मंडराते खतरे, किशोरावस्था के बचकाना प्रेम-प्रसंगों से जुड़े वाकये, अभिभावकों की खीझ में उलझते दिनों के वृत्तांत को शानदार तरीके से बताया है।

करीब आठ दशक पहले लिखी गई पुस्तक ऐतिहासिक दस्तावेज भी है क्योंकि यह उन संस्मरणों का संकलन है, जिसमें युद्ध के हालातों के दौरान की जिंदगी के बारे में जानकारी मिलती है।

पुस्तक में किशोर अवस्था के उन प्रश्नों का भी जिक्र किया है, जिनके संबंध में सामान्यत: बड़ों से सवाल करने पर हिचकते हैं। 3 अक्तूबर, 1942 के दिन अने ‘किटी’ में लिखती है, ‘मुझे बड़े लोगों वाली पुस्तकें पढऩे की इजाजत मिल गई है। इवा का ख्याल था कि बच्चे पेड़ पर सेब की तरह फलते हैं और पक जाने पर पक्षी उनको पेड़ों से तोडक़र मां के पास ले आते हैं। लेकिन जब उसकी सहेली की बिल्ली को बच्चे हुए तो इवा ने उसे बिल्ली के अंदर से ही निकलते हुए देखा।’

लेखिका को उस दौर में 13 साल की आयु में ही अंतर्राष्ट्रीय विषयों का ज्ञान था। इसका उदाहरण उसकी डायरी में 27 फरवरी, 1943 के दिन लिखे पृष्ठ पर मिलता है। वह अपनी डायरी में भारतीय नायक मोहन दास कर्मचंद गांधी का जिक्र करते हुए लिखती हैं ‘भारतीय स्वाधीनता संग्राम के महानायक गांधी अपनी अनंत भूख हड़तालों में से एक पर हैं।’

एक पाठक के लिए पुस्तक खुद में अनेक खासियतें संजोए हुए है। मसलन, लेखिका का बचपन बड़े कष्टों की स्थिति में बीता लेकिन तमाम झंझावातों के बावजूद उसने कष्ट का दौर उत्साहपूर्वक जीया।

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