संपादकीय

26-Mar-2019 11:31:51 am
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परीक्षा ही तो है जिंदगी का हर कदम

क्षमा शर्मा
पार्कों में पीले पत्तों की भरमार है। घास भी सूख सी गई है। कल तक जो हवा ठिठुराती थी, उसमें अब हल्की गर्मी आने लगी है। और सबसे बड़ी बात शाम के समय जो पार्क बच्चों के खेल और खिलखिलाहट से भरा रहता था, वह सुनसान है। बच्चों के इम्तिहान जो चल रहे हैं। गए रात तक खिड़कियों से रोशनी झरकर आती रहती है। पता चलता है कि बच्चे पढ़ रहे हैं।
हर बच्चे की चाहत है कि उसके अधिक से अधिक नम्बर आएं। वह दोस्तों से बाजी मार ले जाए। माता-पिता की उम्मीद भी यही रहती है कि उनका बच्चा सबसे ज्यादा नम्बर लाएगा और इस बहाने उनका नाम रोशन करेगा। मुश्किल यह है कि अगर अच्छे नम्बर न आएं तो कहीं दाखिला नहीं मिलता। दाखिला न मिले तो जीवन में जो कुछ करने की तमन्ना थी, वह कैसे पूरी हो। लेकिन यह भी सच है कि एक कक्षा में अगर तीस बच्चे हैं तो सब तो फर्स्ट नहीं आ सकते। कोई फर्स्ट आएगा तो कोई आखिरी स्थान पर भी रहेगा। लेकिन इस उम्र की पढ़ाई और मेहनत हमेशा काम आती है। मेहनत करने की आदत एक बार पड़ जाए तो वह हमेशा बनी रहती है। और यह भी सबने सुना ही होगा कि मेहनत का फल मीठा होता है।
लेकिन कई बार होता यह है कि अच्छे नम्बर लाने की दौड़ में बच्चे इतने लग जाते हैं कि तनाव के शिकार हो जाते हैं। स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों को तनाव के कारण तरह-तरह की बीमारियां भी हो रही हैं। वे हाई ब्लड प्रेशर और टाइप वन डायबिटीज के शिकार हो रहे हैं।
इसीलिए सीबीएसई ने बच्चों के लिए हेल्पलाइन बनाई है जहां वे विशेषज्ञों से अपनी बात कह सकते हैं। अपनी चिंताएं बांट सकते हैं। क्या करें, क्या न करें, इसकी सलाह ले सकते हैं। रेडियो पर ऐसे बहुत से कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं, जिनमें तरह–तरह के विशेषज्ञ बच्चों को राय देते हैं। बच्चे किस तरह अपनी पढ़ाई करें, जिससे कि चिंता खत्म हो सके और उनकी तैयारी भी अच्छी हो जाए, यह बताते हैं। अखबारों में ऐसे लेख छपते हैं, जो माता-पिता को गाइड करते हैं कि इम्तिहान के दिनों में वे बच्चों से किस तरह का व्यवहार करें, उनके खाने-पीने और पोषण पर ध्यान दें। और सबसे बड़ी बात कि बच्चा सही समय पर सो जाए, जिससे कि उसकी न केवल थकान मिटे, तनाव कम हो, बल्कि अगले दिन वह तरोताजा होकर इम्तिहान की तैयारी कर सके। हालांकि यह तो है कि बच्चे ही क्या, हम बड़े भी जब किसी नए काम को शुरू करते हैं तो हम में से भी बहुत से चिंता और तनाव के शिकार होते हैं।
किसी भी काम में सफल होने के लिए थोड़ा-बहुत तनाव होना, उस काम को पूरा करने की चिंता करना गलत नहीं है। क्योंकि अगर आज का काम पूरा नहीं होगा तो उसे कल करना होगा और कल कभी आता नहीं। फिर पिछले दिन का काम अगर आज करना पड़े तो आगे के सारे काम रुक जाते हैं।
कुछ दिन पहले एक शोध में यही कहा गया था कि जीवन में थोड़ा-बहुत तनाव बुरी बात नहीं है। यह हमें काम करने को तो प्रेरित करता ही है, आने वाली चुनौतियों से जूझने के लिए भी तैयार करता है। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा हो, जिसे मुश्किलों का सामना न करना पड़ा हो। इसलिए इम्तिहान के दिनों में अगर बच्चे थोड़ी-बहुत चिंता करते भी हैं तो यह उनके भविष्य के लिए अच्छा है, मगर तब तक जब तक कि वे थोड़ी ही देर चिंतित हों, हमेशा चिंता में न डूबे रहें। उन्हें यह बताना भी जरूरी होता है कि इम्तिहान आज शुरू हुए हैं, तो खत्म भी होंगे। इसके अलावा उनकी मेहनत रंग लाएगी। पहले प्राइमरी कक्षाओं और उसके बाद बारहवीं तक की पढ़ाई ही वह रास्ता है जिस पर चलकर वे आगे इंजीनियर, डाक्टर बनेंगे। शिक्षक, समाजसेवी बनेंगे। बहुत से आईएएस और आईपीएस तथा अन्य सेवाओं में सफलता प्राप्त करेंगे।
वैसे भी आज के बच्चे जब बड़े होंगे तो उन्हें जीवन की तमाम मुश्किलों और चुनौतियों का सामना करना ही पड़ेगा। रिसर्च कहती है कि जिन बच्चों को बहुत प्यार से पाला जाता है, कभी डांटा-डपटा नहीं जाता, जिंदगी की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार नहीं किया जाता, वे जब बड़े होते हैं तो मामूली बातों पर डरते हैं। उनका आत्मविश्वास बहुत कम होता है। वे अक्सर अपने काम को खुद करने के मुकाबले किसी और का कंधा तलाशते हैं। और किसी मुश्किल का सामना करने के मुकाबले उससे बच निकलने का रास्ता ढूंढ़ते हैं। इसलिए बच्चों को बचपन से इस बात के लिए भी तैयार किया जाना जरूरी है कि इम्तिहान तो क्या, कोई भी चुनौती हो तो उससे डरें नहीं।
जो जूझते हैं, वे ही आगे बढ़ते हैं, उन्हीं के रास्ते आसान होते हैं। जो डरते हैं, बचकर भागते हैं, वे कहीं नहीं पहुंच पाते। आपने देखा होगा कि बहुत से माता-पिता बच्चों के सामने अपनी आर्थिक स्थिति का बयान बहुत बढ़ा-चढ़ाकर करते हैं। वे बजाय इसके कि बच्चे से कहें कि खूब पढ़ो-लिखो मेहनत करो, कहते हैं कि तू किसी बात की चिंता मत कर। तेरे लिए हमारे पास इतना है कि सात पुश्तें खा सकें। ऐसी बातें बच्चे पर बहुत बुरा असर डालती हैं। जब उसके सामने माता-पिता की कही बातें झूठ और कोरी गप साबित होती हैं तो उसकी निराशा का ठिकाना नहीं रहता।
विशेषज्ञ कहते हैं कि बच्चे भविष्य के नागरिक हैं। वे जो देखते हैं, वही सीखते हैं। माता-पिता उन्हें वह सिखाएं जैसा वे उन्हें बनाना चाहते हैं। जिंदगी सीधी सडक़ नहीं, ऊबडख़ाबड़ रास्ता है। जिस पर कभी गड्ढे मिलते हैं, कभी ट्रैफिक, कभी इतनी मारामारी कि इसका सामना करना पड़ता है। बच्चों को इम्तिहान भी यही सिखाते हैं कि जैसा अब कर लोगे, समय का सदुपयोग करोगे, अपनी सेहत का ध्यान रखोगे और किसी बात से घबराओगे नहीं, तभी आगे बढ़ोगे। जिंदगी तो तुम्हारी राह देख ही रही है। इसलिए इम्तिहानों की मेहनत और उससे उपजे तनाव से डरने के मुकाबले उसका सामना करो।

 

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