संपादकीय

13-Feb-2019 11:38:14 am
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सस्ती बिजली से कंपनियों को झटका

भरत झुनझुनवाला
कोयले से बिजली बनाने वाली थर्मल पॉवर कम्पनियां परेशानी में हैं। बीते समय में केंद्र सरकार ने कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में इनकी समस्याओं को सुलझाने के लिए कमेटी बनायी थी। कमेटी ने कोयले से बिजली बनाने वाले 34 थर्मल प्रोजेक्टों के परेशानी में पडऩे का एक प्रमुख कारण यह बताया था कि बिजली के दाम गिर गए हैं। अपने देश में केंद्र सरकार ने इंडिया एनर्जी एक्सचेंज नाम का बाजार बनाया है, जिसमें बिजली की खरीद एवं बिक्री की जाती है। एक्सचेंज में बिजली के दाम उसी प्रकार चढ़ते-उतरते हैं जैसे सब्जी मंडी में। उद्यमियों ने कई प्रोजेक्टों को यह सोचकर लगाया था कि वे उत्पादित बिजली को बाजार में अच्छे दाम पर बेच लेंगे और प्रॉफिट कमाएंगे। लेकिन एक्सचेंज में बिजली के दाम गिर गए, उत्पादित बिजली को उद्यमियों को सस्ते दाम पर बेचना पड़ा और ये घाटे में आ गए।
कुछ ही वर्ष पूर्व तक देश में पॉवर कट लगातार होते थे। आज बिजली खरीदने वाले नहीं रहे। इस परिवर्तन का प्रमुख कारण है कि बिजली की डिमांड में गिरावट आई है।
वर्तमान में हमारी आर्थिक विकास दर (जीडीपी) लगभग 7 प्रतिशत दर पर टिकी हुई है। बीते चार वर्षों में इसमें वृद्धि नहीं हुई है। लेकिन इन्हीं चार वर्षों में सेंसेक्स लगभग 30 हजार से बढक़र 37 हजार तक पहुंच गया है। प्रश्न है कि विकास दर शिथिल रहने के बावजूद सेंसेक्स क्यों उछल रहा है? कारण है कि नोटबंदी, जीएसटी तथा इनकम टैक्स के खौफ से छोटे उद्यमी सहम गये हैं। छोटी कम्पनियों के बंद होने से बड़ी कम्पनियों को खुली चाल मिल गयी है। इनका धंधा बढ़ रहा है, जिसके कारण सेंसेक्स उछल रहा है। जो माल पहले छोटी कम्पनियों द्वारा उत्पादित होता था उसी का अब बड़ी कम्पनियों द्वारा उत्पादन हो रहा है। इस अंतर का बिजली की डिमांड पर प्रभाव पड़ता है। छोटे उद्यमी आज वॉशिंग मशीन, फ्रिज या एयर कंडिशनर खरीदने को उत्सुक हैं। उनका धंधा ठप होने से वे इन उपकरणों को नहीं खरीद पा रहे हैं और इन उपकरणों से बिजली की जो डिमांड पैदा हो सकती थी, वह उत्पन्न नहीं हो रही है। बड़ी कम्पनियों द्वारा अधिक लाभ कमा कर इसका वितरण डिविडेंड के रूप में शेयरधारकों को भुगतान किया जा रहा है। ये शेयरधारक मुख्यत: सम्भ्रान्त वर्ग के होते हैं। इनके घरों में वॉशिंग मशीन, फ्रिज और एयर कंडिशनर पहले ही लगे हुए हैं। अत: डिविडेंड ज्यादा मिलने से इनके द्वारा बिजली की डिमांड में कोई विशेष वृद्धि नहीं होती है। इस प्रकार छोटे उद्यमियों की परेशानी के कारण देश में बिजली की मांग में वृद्धि कम ही हो रही है।
बिजली की डिमांड कम होने का दूसरा कारण है कि देश की आय में मैनुफेक्चरिंग का योगदान कम और सेवाक्षेत्र का योगदान बढ़ रहा है। मैनुफेक्चरिंग जैसे एल्यूमीनियम तथा स्टील के उत्पादन में बिजली की खपत ज्यादा होती है। तुलना में सेवाक्षेत्र जैसे टूरिस्ट होटल अथवा सॉफ्टवेयर पार्क में बिजली की खपत कम होती है। देश की आय में मैनुफेक्चरिंग का हिस्सा कम होने से बिजली की खपत में वृद्धि नहीं हो रही है और सेवाक्षेत्र के विस्तार से बिजली की खपत में वृद्धि कम ही हो रही है। यही बिजली कम्पनियों के संकट का मुख्य कारण है।
अपने देश में इण्डिया एनर्जी एक्सचेंज में हर समय बिजली की खरीद और बिक्री होती रहती है। प्रात:काल और सायंकाल बिजली की मांग ज्यादा होती है और इस समय बिजली के दाम लगभग 4 रुपये प्रति यूनिट हैं। रात्रि और दिन में बिजली की डिमांड कम होती है और बिजली के दाम लगभग 3 रुपये प्रति यूनिट हैं। इन दामों के सामने बिजली की उत्पादन लागत ज्यादा है।
जलविद्युत परियोजनाओं द्वारा बिजली का उत्पादन प्रात:काल और सायंकाल किया जाता है। इन्हें 4 रुपये प्रति यूनिट का दाम मिलता है। लेकिन इनकी उत्पादन लागत लगभग 7 रुपये प्रति यूनिट आती है। 7 रुपये में बिजली उत्पादन करके 4 रुपये में बेचना इनके लिए घाटे का सौदा है। तुलना में कोयले से चलने वाले थर्मल सयंत्रों द्वारा 24 घंटे बिजली सप्लाई की जाती है। इन्हें रात्रि और दिन का 3 रुपए का रेट मिलता है जबकि इनकी उत्पादन लागत लगभग 5 रुपये पड़ती है। 5 रुपये में उत्पादन करके 3 रुपये में बिजली को बेचना इनके लिए घाटे का सौदा है। इसलिए ये बिजली कंपनियां संकटग्रस्त हो रही हैं।
प्रश्न है कि हम इस दल-दल में कैसे फंसे? इस समस्या की जड़ ऊर्जा मंत्रालय की संस्था सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी में है। इस अथॉरिटी द्वारा आने वाले वर्षों में बिजली की डिमांड के अनुमान प्रकाशित किये जाते हैं। इन अनुमान के आधार पर उद्यमी थर्मल एवं हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट लगते हैं और बैंक इन्हें ऋण देते हैं। अथॉरिटी बिजली की डिमांड के अनुमान बढ़ा-चढ़ाकर पेश करती है। उदाहरणत: वर्ष 2003-04 में अथॉरिटी द्वारा दिए गये अनुमान की तुलना में वास्तविक डिमांड 30 प्रतिशत कम रही थी। इस कृत्रिम डिमांड को पूरा करने के लिए देश के उद्यमियों ने बिजली संयंत्र लगाये जो इस कृत्रिम डिमांड के फलीभूत न होने के कारण आज संकट में पड़ गये हैं।
कहा जा रहा है कि बिजली बोर्डों की खस्ता हालत के कारण बिजली की डिमांड कम है। यह बात नहीं जमती है क्योंकि बिजली बोर्डों की हालत में पहले से सुधार हुआ है। दूसरा कथित कारण कोयले की अनुपलब्धि है। लेकिन कोयले में भी पूर्व की तुलना में सुधार हुआ है। अत: इन कारणों से संकट पैदा हुआ हो यह बात गले नहीं उतरती।
सच यह है कि मैन्युफेक्चरिंग के लिए देश को बिजली की जरूरत कम है क्योंकि हमारा विकास मुख्यत: सेवाक्षेत्र से हो रहा है, जिसमें बिजली की डिमांड कम होती है। खपत के लिए भी बिजली की डिमांड कम है क्योंकि छोटे उद्यमियों पर संकट है और इनके द्वारा बिजली की खपत नहीं बढ़ रही है। अत: इस समस्या को हल करने के लिए सरकार को पहले छोटे उद्यमियों को पुनर्जीवित करने के लिए पॉलिसी बनानी पड़ेगी। साथ-साथ वर्तमान में थर्मल और हाइड्रो पॉवर प्लांट जो संकट में हैं, उन्हें छोड़ देना चाहिए। इन्हें पुनर्जीवित करने के लिए पैसा नहीं देना चाहिए। वर्तमान में सौर ऊर्जा का दाम लगभग 3 रुपये प्रति यूनिट हो गया है। इसलिए आने वाले समय में सौर ऊर्जा से हमको अपनी बिजली की जरूरतें पूरी करना ज्यादा अनुकूल पड़ेगा। थर्मल और हाइड्रो का सूर्यास्त हो रहा है और इसे अस्त हो जाने देना चाहिए।

 

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