संपादकीय

08-Feb-2019 12:03:42 pm
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विकराल बेरोजगारी

हाल ही में लीक हुए बेरोजगारी के आंकड़े और राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के कार्यवाहक चेयरपर्सन व एक सदस्य के इस्तीफे के बाद भले ही नीति आयोग ने सफाई दी हो, मगर उभरती तस्वीर चिंताजनक है। चुनावी साल में इस रिपोर्ट का लीक होना और एक समाचारपत्र द्वारा प्रकाशित करने से विपक्ष को मोदी सरकार को घेरने का एक मुद्दा मिल गया है।?रिपोर्ट के अनुसार भारत में बेरोजगारी की दर 6.1 फीसदी है जो कि 1970 के दशक के बाद सबसे ज्यादा है। इससे पहले वर्ष 2011-12 में यह 2.2 फीसदी थी। यूं तो इस ?आंकड़े की वृद्धि में कई राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय कारक भी हैं, मगर यह केंद्र सरकार की कार्यशैली की ओर भी इशारा करती है। दरअसल, भारतीय नौकरशाही व अर्थव्यवस्था का स्वरूप रोजगार सृजन गतिशील नहीं बनाता है, मगर सरकारों के कुछ फैसलों ने समस्या को विस्तार दिया। ऐसा भी नहीं है कि बेरोजगारी सिर्फ मोदी सरकार के पिछले चार साल के कार्यकाल के दौरान ही बढ़ी हो। मगर मोदी सरकार के दौरान वर्ष 2016 में नोटबंदी के फैसले ने स्थिति पर प्रतिकूल असर डाला। सरकार ने पांच सौ और हजार के नोट बंद किये तो इसका असंगठित क्षेत्र पर बुरा असर पढ़ा। इसी तरह कृषि क्षेत्र पर भी प्रतिकूल असर पढ़ा। दरअसल, इन क्षेत्रों में लेनदेन नकदी पर आधारित होता है। छोटे कारोबार ज्यादा प्रभावित हुए उन्होंने कारोबार बचाने के लिये नौकरियां कम की। इस तरह वर्ष 2017 में जीएसटी को अव्यावहारिक रूप से लागू करने से छोटे कारोबारों पर प्रतिकूल असर पड़ा और रोजगार का संकुचन हुआ।
विपक्ष लगातार सरकार के इन दो फैसलों से बेरोजगारी बढऩे के आरोप लगाता रहा है। दरअसल, बेरोजगारी का यह आंकड़ा नोटबंदी व जीएसटी के बाद जुलाई, 2017 व जून, 2018 के बीच का है। इस रिपोर्ट को जारी न करने देने का आरोप लगाते हुए हाल ही में राष्ट्रीय संख्यिकी आयोग के कार्यकारी चेयरपर्सन व एक सदस्य ने इस्तीफा दिया था। भारत को युवाओं का देश कहते हैं, मगर इन हाथों को काम न दे पाना हमारी नाकामी ही कही जायेगी। लीक रिपोर्ट में शहरी क्षेत्र में 15 से 29 साल के 18.7 पुरुष व 27.2 फीसदी महिलाएं काम की तलाश में थीं। वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में ?इसी आयु वर्ग में 17.4 पुरुष व 13.6 फीसदी महिलाएं काम की तलाश में थीं। वर्ष 2014 के आम चुनाव में रोजगार एक बड़ा मुद्दा था और हर साल दो करोड़ लोगों को रोजगार दिलाने का वादा भाजपा की तरफ से किया गया था। जबकि हकीकत इसके विपरीत नजर आ रही है, जो विपक्ष को सरकार के विरुद्ध हमलावर होने का मौका देता है। नि:संदेह बेरोजगारी की समस्या पिछली सरकारों के समय भी थी। इसके लिये मौजूदा समय में रोजगार सृजन के गंभीर प्रयासों की जरूरत है।?सवाल हमारी शैक्षिक प्रणाली पर भी उठते हैं जो युवाओं में ऐसा कौशल विकसित नहीं कर पाती जो उद्यमशीलता का मार्ग?उन्मुख करे। देश के नीति-नियंताओं को स्थिति को गंभीरता से लेते हुए भविष्य की रोजगार उन्मुख नीतियों को प्राथमिकता देनी होगी। कालांतर में बेरोजगारी से उपजा असंतोष समाज में अशांति का कारक भी बन सकता है।

 

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