संपादकीय

31-Dec-2018 12:37:55 pm
Posted Date

कौशल विकास सुनहरे भविष्य की गारंटी

जयंतीलाल भंडारी
इन दिनों देश और दुनिया में भारत के कौशल प्रशिक्षित युवाओं की मांग बढ़ रही है। भारतीय पेशेवरों की आवश्यकता बताने वाली कई और महत्वपूर्ण रिपोर्टें दुनिया और देशभर में रेखांकित हो रही हैं। ये रिपोर्टें बता रही हैं कि भारत के आईटी, मैनेजमेंट, इंजीनियरिंग, मेडिकल, लॉ, अकाउंटिंग आदि पेशेवर पढ़ाई वाले शिक्षित-प्रशिक्षित युवाओं की जरूरत बढ़ती जा रही है।
गौरतलब है कि दुनिया के ख्यातिप्राप्त मानव संसाधन परामर्श संगठन कॉर्न फेरी ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि जहां दुनिया में 2030 तक कुशल कामगारों का संकट होगा, वहीं भारत के पास 24.5 करोड़ अतिरिक्त कुशल श्रमबल हो सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2030 तक दुनिया के 19 विकसित और विकासशील देशों में 8.52 करोड़ कुशल श्रम शक्ति की कमी होगी। वहीं, दुनिया में भारत इकलौता देश होगा, जिसके पास अतिरिक्त कुशल कामगार उपलब्ध हो सकेंगे। भारत ऐसे में विश्व के तमाम देशों में कुशल कामगारों को भेजकर फायदा उठा सकेगा। इसी तरह विश्व बैंक की वैश्विक रोजगार से संबंधित नवीनतम रिपोर्ट में भी कहा गया है कि दुनिया के अधिकांश विकसित और विकासशील देशों में कामकाजी आबादी कम हो रही है। ऐसे में इन देशों में भारत के कौशल प्रशिक्षित युवाओं की मांग बढ़ रही है।
निश्चित रूप से भारत की नई पीढ़ी की चमकीली रोजगार संभावनाएं दिखाई दे रही हैं। लेकिन इसके लिए कौशल प्रशिक्षण के नए प्रयासों की जरूरत है। भारत सहित पूरी दुनिया में भारत की नई पीढ़ी की प्रतिभा क्षमता और कौशल क्षमता से संबंधित हाल ही में प्रकाशित तीन रिपोर्टों को गंभीरतापूर्वक पढ़ा जा रहा है। पहली रिपोर्ट विश्व विख्यात आईएमडी बिजनेस स्कूल स्विट्जरलैंड द्वारा प्रकाशित की गई ग्लोबल टैलेंट रैंकिंग 2018 है, जिसमें भारतीय प्रतिभाओं में कौशल प्रशिक्षण की भारी कमी बताई गई है। दूसरी रिपोर्ट भारत सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की आईटी पेशेवरों में रोजगार योग्यता की कमी से संबंधित चिंताओं पर है। तीसरी रिपोर्ट कामकाजी पेशेवरों के लिए काम करने वाली ऑनलाइन एजुकेशन फर्म ग्रेटर लर्निंग की है, जिसमें भारत में टेलेंट की कमी के कारण आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) में बड़ी संख्या में पद खाली होने की बात कही गई है।
उल्लेखनीय है कि आईटीएमडी बिजनेस स्कूल की रिपोर्ट में भारत 63 देशों की सूची में पिछले वर्ष के 51वें स्थान से दो पायदान फिसलकर 53वें स्थान पर आ गया है। इस टैलेंट रैंकिंग में स्विट्जरलैंड लगातार पांचवें साल शीर्ष पर रहा है। एशिया में सिंगापुर सूची में सबसे ऊपर है। वह 13वें स्थान पर है। चीन इस सूची में 39वें स्थान पर है। टैलेंट रैंकिंग की वैश्विक सूची में प्रतिभाओं के विकास, उन्हें आकर्षित करने, उन्हें देश में ही जोड़े रखने तथा उनकी शैक्षणिक गुणवत्ता के लिए किए जा रहे निवेश के आधार पर रैंकिंग दी गई है।
सूची में शामिल विभिन्न देशों में टैलेंट की स्थिति के बारे में भी टिप्पणियां की गई हैं। भारत के बारे में कहा गया है कि टैलेंट पूल की गुणवत्ता के मामले में भारत का प्रदर्शन औसत से बेहतर है। लेकिन अपनी शैक्षणिक प्रणाली की गुणवत्ता और सरकारी शिक्षा के क्षेत्र में निवेश की कमी के कारण निवेश और विकास के मामले में भारत सूची में शामिल सभी देशों में सबसे पीछे है। इसी प्रकार भारत सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की एक हालिया रिपोर्ट में यह बताया गया है कि भारत में 91 फीसदी आईटी पेशेवर नौकरी के योग्य नहीं हैं। वस्तुत: आईटी क्षेत्र में नई तकनीकों पर काम हो रहा है और उसके मद्देनजर भारतीय आईटी पेशेवर उपयुक्त रूप से प्रशिक्षित नहीं हैं। ऐसे में नए तकनीकी बदलावों के कारण भारतीय आईटी पेशेवरों के सामने आने वाले समय में रोजगार संबंधी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 2019 के अंत तक आईटी क्षेत्र में करीब 72 लाख नए पेशेवरों की जरूरत होगी। इनमें ग्रेजुएट और नॉन ग्रेजुएट आईटी पेशेवर दोनों शामिल हैं।
इसी तरह एनालिटिक्स मैगजीन ने ऑनलाइन एजुकेशन फर्म ग्रेट लर्निंग के साथ मिलकर जो रिपोर्ट तैयार की है, उसके मुताबिक वर्ष 2018 में भारत में एआई सेक्टर 30 प्रतिशत बढक़र 23 करोड़ डॉलर यानी करीब 1,650 करोड़ रुपए तक पहुंचा गया है। लेकिन टैलेंट की कमी के कारण मीडियम और सीनियर लेवल पर 4,000 से ज्यादा पद खाली हैं। आईटी, फाइनेंस, हेल्थकेयर और ई-कॉमर्स सेक्टर की कंपनियों में मध्यम और वरिष्ठ क्रम पर नौकरी के बड़ी संख्या में मौके बने हुए हैं।
गौरतलब है कि भारत की जनसंख्या में करीब पचास प्रतिशत से ज्यादा उन लोगों का है, जिनकी उम्र पच्चीस साल से कम है। भारत की 65 प्रतिशत आबादी 35 साल में कम आयु की है। चूंकि भारत के पास विकसित देशों की तरह रोजगार बढ़ाने के विभिन्न संसाधन और आर्थिक शक्तियां नहीं हैं, अतएव भारत की युवा आबादी ही कौशल प्रशिक्षित होकर मानव संसाधन के परिप्रेक्ष्य में दुनिया के लिए उपयोगी और भारत के लिए आर्थिक कमाई का प्रभावी साधन सिद्ध हो सकती है। इस समय रोजगार में वृद्धि के लिए विभिन्न देश अलग-अलग कदम उठा रहे हैं। दुनिया के अर्थशास्त्रियों का कहना है कि भारत में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी वृद्धि तथा आर्थिक वृद्धि से रोजगार में बड़ी मात्रा में वृद्धि नहीं हो सकती है। नई पीढ़ी के कौशल प्रशिक्षण से ही भारत में तेजी से रोजगार वृद्धि होगी।
ऐसे में जरूरी है कि भारत डिग्री के साथ टेक्निकल स्किल्स एवं प्रोफेशनल स्किल्स से दक्ष प्रतिभाओं का निर्माण करे। यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि रोजगार के मोर्चे पर रोबोट चुनौती देते हुए दिखाई दे रहे हैं। जहां रोबोट ने मनुष्य को शारीरिक क्षमताओं के मामले में पीछे छोड़ दिया है, वहीं अब दिमागी कामों के मामले में भी रोबोट इनसान को पछाड़ सकते हैं। जापान की सॉफ्ट बैंक कॉर्प जैसी दुनिया की कई कंपनियां मानवीय मस्तिष्क की तरह काम करने वाले रोबोट विकसित कर रही हैं। ये रोबोट डॉक्टर, इंजीनियर, एडवोकेट, सैनिक, प्रोफेसर, संपादक, इंजीनियर, कंप्यूटर इंजीनियर, अकाउंटेंट और सेल्समैन जैसे कई तरह के कार्य कर करेंगे। यह कहा जा रहा है कि अधिकांश रोबोटों की उत्पादकता भी मनुष्यों से लगभग 3-4 गुना ज्यादा है और इनकी गणनाएं अधिक सटीक होती हैं। एक रोबोट कम से कम 3 आदमियों के बराबर काम कर सकता है।
देश में कौशल विकास के लिए विशेष मंत्रालय गठित करके कौशल विकास के काम को गतिशील बनाने की पहल के भी आशाजनक परिणाम नहीं आए हैं। देश की नई पीढ़ी को कौशल प्रशिक्षित करने के लिए छात्रों को 9वीं कक्षा से ही व्यावसायिक पाठ्यक्रम से शिक्षित-प्रशिक्षित करना होगा। व्यावसायिक पाठ्यक्रम को स्कूली और विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना होगा। नई पीढ़ी को कौशल विकास और रोजगार की जरूरत के अनुरूप मानव संसाधन (ह्यूमन रिसोर्स) के रूप में गढऩा होगा।
आशा है कि सरकार ग्लोबल टैलेंट रैंकिंग और सूचना प्रौद्यौगिकी मंत्रालय की रोजगार योग्यता में नई तकनीकी की कमी से संबंधित रिपोर्ट में बताए गए विभिन्न पहलुओं पर विचार मंथन करके देश की नई पीढ़ी को देश और दुनिया की नई रोजगार जरूरतों के मुताबिक कौशल प्रशिक्षण से सुसज्जित करके प्रतिभाशाली बनाने की डगर पर आगे बढ़ाएगी।

 

Share On WhatsApp