संपादकीय

14-Dec-2018 12:20:51 pm
Posted Date

सेमीफाइनल के निष्कर्ष

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों ने जहां लंबे अर्से बाद कार्यकर्ताओं को कांग्रेस मुख्यालय पर पटाखे फोडऩे-गुलाल उड़ाने का मौका दिया है वहीं भाजपा नेतृत्व के माथे पर चिंता की लकीरें ?उभार दी हैं। निश्चित रूप से छत्तीसगढ़ के चुनाव परिणाम चौंकाने वाले हैं, मगर बाकी परिवर्तन आशाओं के अनुरूप ही रहे। यह बात माननी पड़ेगी कि मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान तीन बार सत्ता में रहने के बावजूद राज्य के बड़े नेता के रूप में कायम हैं। राष्ट्रीय स्तर पर निश्चित रूप से राहुल गांधी का कद ऊंचा हुआ है। विपक्षी नेता के रूप में उनकी स्वीकार्यता इन चुनाव परिणामों के बाद बढ़ेगी। विपक्ष सत्तापक्ष पर और मुखर हमलावर होगा। राजस्थान में पांच साल में सत्ता परिवर्तन की इबारत स्पष्ट पढ़ी जा रही थी, मगर जैसा कि कयास लगाया जा रहा था कि भाजपा का सूपड़ा साफ हो जायेगा, वैसा नहीं हुआ। भाजपा नेतृत्व नुकसान के दायरे को कम करने में सफल रहा। कहीं न कहीं राजस्थान व मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी में सत्ता के कई ध्रुव होने और ग्रासरूट स्तर पर संगठन की कमजोरी के चलते आकांक्षाओं के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाई।
यहां यह तथ्य विचारणीय है कि यदि राजस्थान व मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार गंवाने के बावजूद लाज बचा पाई तो कहीं न कहीं कांग्रेस के विभिन्न धड़ों द्वारा टिकट बंटवारे में सावधानी बरतने में चूक हुई। तेलंगाना में टीआरएस ने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया। वहां के. चंद्रशेखर राव का समय से पहले चुनाव कराने का दांव काम कर गया। पार्टी ने पूर्ण बहुमत हासिल करके राज्य में कांग्रेस- टीडीपी गठबंधन को किनारे कर दिया। भाजपा तो इस राज्य में सत्ता की दौड़ में पहले ही हाशिये पर थी। कांग्रेस की वापसी को लेकर बड़े-बड़े निष्कर्ष देने वाले चुनाव पंडितों को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पूर्वोत्तर में मिजोरम में कांग्रेस का आखिरी किला भी ध्वस्त हो गया। कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे ललथनहावला दोनों जगहों से चुनाव हार गये। यहां मिजो नेशनल फ्रंट सत्ता की सबसे बड़ी दावेदार के रूप में उभरा। नि:संदेह इन चुनाव परिणामों ने जहां कांग्रेस समेत विपक्ष को नया उत्साह दिया वहीं भाजपा को भी आत्ममंथन का मौका दिया है। यह भी कि यदि बढ़ते जनाक्रोश को थामा नहीं गया तो वर्ष 2019 के आम चुनावों में राजनीतिक तस्वीर बदलते देर नहीं लगेगी। सहयोगी दलों के किनारा करने को एक चेतावनी के रूप में लिया जाना चाहिए। वैसे आकांक्षाओं के अनुरूप विकास व बदलाव न मिलने पर जनता द्वारा बदला हुआ जनादेश देना लोकतंत्र की खूबसूरती ही है।

 

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