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07-Jul-2017 11:24:33 am
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क्या वाजपेयी और आडवानी की तरह साईड लाइन किए जा सकते हैं मोदी

क्या आगे चलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी उनकी पार्टी वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की तरह साईड लाइन कर सकती है? भाजपा का मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यह कतई नहीं चाहता कि हिंदू सम्राट के रुप में उसने जिसकी छवि गढ़ कर देश के सर्वोच्च लोकतांत्रिक पद पर पहुंचाया है वह किंचित मात्र भी हिंदुत्व के एजेंडे से परे जाए। संघ प्रचारक से लेकर पंद्रह साल तक गुजरात के मुयमंत्री और फिर तीन साल से प्रधानमंत्री तक के अपने सियासी सफर में यूं तो मोदी की छवि एक आदर्श हिंदू नेता की रही है। वे हिंदुत्व के एजेंडे को फालो करते रहे हैं मगर बीच बीच में अचानक उन्हें इससे भटकते देख लोग भौंचक रह जाते हैं। अब यह उनके जैसे कद्दावर कुशल राजनीतिज्ञ की सहज स्वाभाविक वैचारिक अभिव्यित है या फिर राजनीतिक रणनीति? यदि भारत के धर्म निरपेक्ष और बहुलतावाद के पक्ष में गाहे बगाहे उनकी स्वीकारोित उन्हें आम जनमानस में एक सर्व स्वीकार्य नेता के रुप में खड़े कर सकती है तो दूसरी ओर अपने दोनों अग्रज और दिग्गज नेताओं की तरह हाशिए में जाने पर भी मजबूर कर सकती है। हाल ही में गौ रक्षा पर अपने बयान को लेकर मोदी फिर कांग्रेस के साथ अपने लोगों के निशाने पर हैं। भाजपा और कथित गौरक्षक उनके इस बयान से मायूस हैं। महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम के सौ साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि गौ रक्षा के नाम पर इंसान को मार देना कतई बर्दाश्त नहीं है। मुल्क में गाय के नाम पर बढ़ती हिंसक घटनाओं पर दुख जताते भावुक होते हुए उन्होंने कहा कि या हमें गाय के नाम पर किसी इंसान को मारने का हक मिल जाता है ? या ये गो भित है, या ये गो रक्षा है। ये गांधी विनोबा का रास्ता नहीं हो सकता । हम कैसे आपा खो रहे हैं। या मरीज की मौत हो जाए तो हम अस्पताल में आग लगा देंगे,ड़ाटरों से मारपीट करेंगे ? हम या कर रहे हैं, इन चीजों को आज बढ़ावा मिल रहा है। मौजूदा हालात पर पीड़ा होती है। इस तरह की हिंसा पर सालभर में यह उनका चौथा बयान है । इसके पहले भी मोदी ने गौरक्षा के नाम पर हिंसा करने वालों को लताड़ लगाई थी जिसके बाद गौरक्षकों ने उन्हें आड़े हाथों लिया था। इस बार भी इस वर्ग के नेता उनके बयान से जहां खिन्न हैं वहीं कांगे्रस ने इसे राजनीतिक स्टंड बताते घडिय़ाली आंसू बहाने वाला बयान बताया है। कांग्रेस प्रवता मनीष तिवारी ने तंज कसा है कि पीएम को खुद से पूछना चाहिए कि किसने इस देश में अराजकता का माहौल बनाया। वहीं महात्मा गांधी के पोते गोपाल कृष्ण गांधी ने कहा कि बयान सही है,लेकिन इसका जमीनी तौर पर भी कार्रवाई के साथ पालन किया जाना चाहिए। सालभर से बार बार मोदी का इस तरह से देश के संप्रभु और धर्म निरपेक्ष सामाजिक सद्भाव के ढांचे के पक्ष में बयान देना राजनीतिक रणनीति है, जनता और पद का नैतिक दबाव है या फिर उनकी सहज आत्म स्वीकारोित ? वत के साथ यह देखना दिलचस्प होगा । बहरहाल आरएसएस नीत अपनी पार्टी में अब तक हिंदू ह्दय सम्राट की छवि बनाने वाले मोदी यदि वाकई बदल रहे हैं तो उनका हश्र भी आगे चलकर इस लीक पर चलने वाले पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी और उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवानी की तरह हो सकता है। वाजपेयी ने गुजरात दंगों पर बतौर प्रधानमंत्री तत्कालीन मुयमंत्री नरेंद्र मोदी को बेबाकी से नसीहत देते हुए राजधर्म की याद दिलाते हुए दंगों को दुर्भाग्यजनक बताते दुख जताया था। हालांकि अपने पूरे राजनीतिक सफर में वाजपेयी की छवि कभी भी कट्टर हिंदू नेता की नहीं रही। समाजवादी सोच के होने से उनके बारे में लोग कहते थे कि एक अच्छा नेता गलत पार्टी में है। मगर वे आखिर तक पार्टी के प्रति निष्ठावान रहे । किंतु अपनी स ा ं प ्र द ा िय क सद्भाव की छवि की कीमत उ न् ह े ं च ु क ा न े चुकानी पड़ी । धीरे धीरे उन्हें नेपथ्य में धकेला जाने लगा। इसी तरह भाजपा के संस्थापक और इसे स्टैंड करने वाले आडवानी ताजिंदगी कट्टर संघी रहे मगर उम्र ढलने, देश की संस्कृति के साथ प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति बनने की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के साथ उन्हें यह एहसास हो चला कि गंगा जमुनी तहजीब की उपेक्षा नहीं की जा सकती है। इसके चलते उन्होंने इसकी स्वीकारोित जिन्ना की कब्र पर यानी ऐसी जगह पर की जहां से यह पैगाम सारी दुनिया में गया। मगर उनकी पार्टी इसे हजम नहंी कर पायी और यहीं से उन्हें साईड लाइन कर मोदी को आगे बढ़ाने का काम संघ और पार्टी से शुरु किया । सियासी पराभव देखिए कि आज पार्टी में राष्ट्रपति पद के सबसे प्रबल संभावित दावेदार मोदी अपने प्रतिद्वंद्वी घोषित प्रत्याशी रामनाथ कोविंद का समर्थन करने मजबूर हैं। अपने समय के इन कद्दावर नेताओं की तरह हालांकि फिलहाल प्रधानमंत्री मोदी की स्थिति नहीं है उम्र और लोकप्रियता व सियासत के हिसाब से राष्ट्रीय राजनीति में अभी उनकी शुरुआत है। पार्टी उन्हें लंबी रेस का अश्वमेघी घोड़ा मान कर चल रही है। मगर जिस हिसाब से वे संघ नीत भाजपा की हिंदुत्व की विचारधारा से बीच बीच में भटकते दिख रहे हैं, उन्हें भी धीरे धीरे वाजपेयी और आडवानी की तरह साईड लाइन किया जा सकता है। उनकी जगह अगले चुनाव में योगी आदित्यनाथ को कमान दी जा सकती है जिस तरह उन्हें यूपी का सीएम बनाया गया। संघ ने ऐसा करके उनकी छवि तराशने का काम शुरु कर दिया है। योंकि संघ कभी नहीं चाहेगा कि जिसे प्रधानमंत्री के पद पर अपने एजेंडे को पूरा करने के लिए बिठाया है वह परे जाए। अब सवाल यह है कि या देश की धर्म निरपेक्षता या मुस्लिमों के पक्ष में मोदी का बयान देना उनकी राजनीतिक मजबूरी और सुनियोजित रणनीति है या फिर वाकई उनका आत्मज्ञान जाग उठा है। या उन्हें भी प्रधानमंत्री जैसे शीर्ष पद पर बैठे यह एहसास होने लगा है कि सांप्रदायिक सद्भाव और बहुलतावाद ही भारत की संस्कृति है। इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। यानी वत के साथ एहसास और परिपवता के चलते वे अपनी पार्टी की एकपक्षीय विचारधारा से असहमत होते जा रहे हैं? यह हकीकत है,भ्रम है या फिर सियासत? विपक्ष का कहना है कि मोदी की बयानबाजी राजनीतिक और घडिय़ाली आंसू हैं? तो या वाकई में उनकी नजर मुस्लिम वोट बैंक पर है। दो साल बाद लोकसभा चुनाव, और इसके पहले मध्यप्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ जैसे दर्जनभर राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। पार्टी मोदी के बूते मुस्लिम वोट बैंक हथियाकर फिर से केंद्र और राज्यों की सत्ता पर काबिज होना चाहती है। बिहार दिल्ली,पंजाब हारने के बाद और मुश्किल से यूपी जीतने के बाद पार्टी को या यह एहसास हो चला है कि मुस्लिम वोट के बिना जीत मुश्किल है। मोदी के स्टैंड बदलने की एक वजह यह भी हो सकती है कि तीन साल में गाय चर्बी,अखलाक, पानसरे, दाभोलकर , कन्हैया, पशुवध हेतु बिक्री बंद, गौर रक्षको के मुस्लिमों पर हमले, पाकिस्तान विरोध,कलाकारों के पुरस्कार लौटाने जैसे असहिष्णुता और हिंसा मुद्दों से देश और सरकार की दुनिया में तेजी से बिगड़ती छवि। मोदी जिस हिसाब से दुनिया में जा रहै हैं और बड़े बड़े नेता भारत में अराजकता, असिष्णुता के लिए नुताचीनी कर रहे हैं,जिससे प्रधानमंत्री पर बदलने के लिए दबाव प्रतीत होता है। देश में ऐसे माहौल में पूंजी निवेश नहीं होने की भी उन्हें चिंता है। बहरहाल उनका यह बदलाव खुशफहमी है, गलतफहमी है या फिर एक सच्चाई है, यह वत 

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