जगदलपुर, 05 जनवरी । बस्तर के झीरम घाटी में माओवादियों व्दारा पांच साल पहले कांग्रेस के दिग्गज नेताओं सुरक्षा कर्मियों सहित 29 लोगों की निर्मम हत्या पर लगातार राजनीति होती रही है। कांग्रेस ने लगातार इस नरसंहार के लिए भाजपा सरकार और सुरक्षा व्यवस्था यानी लोकल पुलिस को कटघरे में खड़ा किया है। कांग्रेस लम्बे अरसे से इस घटना और कांग्रेस के अनुसार षडय़न्त्र की सीबीआई व्दारा जांच की मांग करती रही है। हालांकि इस घटना की जांच एनआईए के व्दारा की जा चुकी है साथ ही एक न्यायिक जांच आयोग में भी नौ बिन्दुओं पर लगातार सुनवाई जारी है।
बहरहाल कांग्रेस की सरकार में मुख्यमंत्री बनते ही भूपेश बघेल ने झीरम मामले की पुन: जांच का ऐलान किया है और अब बस्तर आईजी के नेतृत्व में एक दस सदस्यीय एसआईटी का गठन कर जांच प्रारम्भ की जाएगी। इस पूरे मामले की समूची फाईल नेश्नल इन्वेस्टिगेशन एजेन्सी के पास है। इन दस्तावेजों और फारेन्सिक रिपोर्ट को एनआईए इस एसआईटी को देगी या नहंीं और देगी तो कब तक देगी यहां सवाल यह नहीं है। सवाल है कि कांग्रेस जिस क्षेत्रीय पुलिस को इस घटना का दोषी ठहराती रही है और मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग करती रही है तो फिर उसी स्थानीय पुलिस की एसआईटी से जांच क्यों कराना चाहती है?
आज जब राज्य में कांग्रेस की सरकार है तो विधान सभा में झीरम मामले की जांच सीबीआई से कराने का प्रस्ताव पास कर मामले की सीबीआई जांच क्यों नही कराती? एक और सवाल यह उठता है कि झीरम काण्ड के समय केन्द्र में कांग्रेसनीत यूपीए की सरकार थी और सीबीआई भी यूपीए के अन्डर में ही थी, तब कांग्रेस इस मामले की सीबीआई जांच क्यों नही करवा पाई? जब एनआईए इस घटना की लम्बी और सूक्ष्म जांच के बाद भी किसी साजिश या षडय़न्त्र का पता नहीं लगा पाई तो स्थानीय पुलिस की एसआईटी अब सवा पांच साल बाद इस घटना में कौन से नये साक्ष्य ढूंढ पाएगी?