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0 गौ पालक दूध का मतलब साधने में मशगुल
रायपुर, 02 जनवरी । गौ माता की सेवा को लेकर आए दिन स्वयंसेवी संस्थानों एवं गौशालाओं को चलाने वाले लंबे चौड़े दावे करते है जबकि वास्तविकता कुछ और ही है। शहर में घनी बस्ती क्षेत्रों से लेकर पाश कालोनियों एवं आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से लगी जी ई रोड में रात भर कडक़ड़ाती ठंड में गौ माताएं सडक़ों पर भटककर बीमार हो रही है। अनेक क्षेत्रों से मिली जानकारी के अनुसार शहर के पशुपालकों के लिए नगर निगम द्वारा कोई स्थायी नियम होने के कारण केवल दूध दुहने तक ही गौ माता की जिम्मेदारी उठाई जाती है। इसके बाद गौ माता को सडक़ों पर भटकने के लिए छोड़ दिया जाता है। अनेक लोगों ने इस पर कड़ी आपत्ति व्यक्त की है। साथ ही नगरीय निकाय विभाग के मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया से रात में भटकने वाली गौ माताओं के मालिकों के खिलाफ नियमानुसार कार्यवाही करने की मांग की है।
गौरतलब है कि पशुपालकों का मतलब सिर्फ गौ माता के दूध देने तक है जबकि गौ माता को आध्यात्मिक एवं पौराणिक संदर्भो में सबसे उंचा स्थान दिया गया है। मृत्यु कार्य में गौ दान की व्याख्या का धार्मिक महत्व है। इसके बाद भी गौ माता की उपेक्षा इस बात को प्रमाणित करती है कि इंसान अपने मतलब को साधने में इतना मशगुल हो गया है कि उसे मूक गौ माता की पीड़ा भी समझ में नहीं आती या जानबूझकर वह अपना मतलब निकलने के बाद गौ माता को सडक़ों पर भटकने के लिए छोड़ देता है। यह विचार पं. रमाशंकर पाण्डेय ने चर्चा के दौरान व्यक्त किये।
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