जगदलपुर, 01 जनवरी । कुम्हड़ा की सब्जी हर किसी को नहीं भाती है, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि यही कुम्हड़ा कुटुंब पालु सब्जी भी मानी जाती है और बस्तर में तो यहां के लोग इस सब्जी को इस कारण लगाते हंै ताकि इसे अपने परिजन या समाज को भेंट कर सकें और समाज की व्यवस्था चलती रहे तथा समरसता बनी रहे। सामाजिक सब्जी के रूप में यहां समाज के सभी लोगों को सब्जी का स्वाद भी प्रदान करती है और गरीब और अमीर सभी के लिए एक समान उपलब्ध रहती है। बस्तर में इस सब्जी को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। इसी कारण आज भी ग्रामीण समुदायों में यदि कोई कुम्हड़ा की चोरी कर ले तो उसे 500 रूपए तक का अर्थदण्ड भी पटाना पड़ता है।
समाज की इस व्यवस्था से कुम्हड़ा का महत्व समझा जा सकता है और एक ओर जहां यह पूरे परिवार के सदस्यों के लिए एक ही कुम्हड़ा पर्याप्त होता है वहीं यह गरीब परिवारों को राहत भी प्रदान करता है। इसके साथ ही बस्तर में इसे औषधीय फल मान कर महत्व दिया जाता है। यही कारण है कि बस्तर के गांवों में कुम्हड़ा की बेल हर घर के छप्पर में फैली हुई दिख जायेगी। इस संबंध में वरिष्ठ अधिवक्ता और हल्बा समाज के संभागीय अध्यक्ष अर्जुन नाग बताते हैं कि बस्तर का आदिवासी समाज कुम्हड़ा को सामाजिक सब्जी मानता है। एक कुम्हड़ा को दो-चार लोगों के लिए कभी नहीं काटा जाता। आदिवासी समाज में परंपरा है कि जब किसी रिस्तेदार के घर या प्रियजन के घर सुख या दुख का कार्य होता है। लोग उनके घर आमतौर पर कुम्हड़ा भेंट करते है। बताया गया कि एक कुम्हड़ा से कम से कम 25 लोगों के लिए सब्जी तैयार हो जाती है। इसलिए कुम्हड़ा को सुलभ और लंबे समय तक सुरिक्षत रहने वाली सब्जी माना जाता है, इसलिए इसे यहां आमतौर पर दूसरों के लिए ही उपजाया जाता है।