छत्तीसगढ़

22-Dec-2018 1:04:03 pm
Posted Date

पंडित सुंदरलाल के संदेशों को आत्मसात करने की जरूरत : शैलेष

बिलासपुर, 22 दिसम्बर ।  पंडित सुंदरलाल शर्मा के विचारों का अनुसरण करना चाहिए। हमें उनके दिए संदेशों और आदर्शों को आत्मसात करने की जरूरत है। यह बातें मुख्य अतिथि नवनिर्वाचित विधायक शैलेष पांडेय ने शुक्रवार को पंडित सुंदरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय में आयोजित कुलउत्सव को संबोधित करते हुए कही।
विश्वविद्यालय के सभागार में आयोजित कुलउत्सव को संबोधित करते हुए बिलासपुर के विधायक पांडेय ने आगे कहा कि यह विश्वविद्यालय प्रदेश के लोगों के लिए उच्च शिक्षा आपके द्वार के मूलमंत्र के साथ बेहतर काम कर रहा है। दूरस्थ शिक्षा का कार्य परंपरागत विश्वविद्यालयों से ज्यादा कठिन होता है क्योंकि छात्रों के लिए पाठ्यसामग्री तैयार करना एक चुनौती होता है। कर्मचारियों के लिए शासन से समन्वय कर बेहतर करने का प्रयास करने का आश्वासन भी दिया। कार्यक्रम में अध्यक्षता कुलपति डॉ बंश गोपाल सिंह ने किया। विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ टीडी शर्मा, पूर्व कुलपति एवं मुख्य वक्ता के रूप में डॉ श्रीमती सविता मिश्रा, विभागाध्यक्ष, हिन्दी विभाग, शासकीय दुधाब महिला स्नातकोत्तर स्वाशासी महाविद्यालय, रायपुर उपस्थित रहीं। कुलपति डॉ.सिंह ने कहा कि छत्तीसगढ़ के ऐसे मनीषी के नाम पर विश्वविद्यालय का होना अपने आप में गौरव प्रदान करता है। आज जो समस्याएं है उसे दूरदृष्टा सुंदरलाल शर्मा जी ने 137-138 वर्ष पूर्व ही समझ लिया था और अछूतोद्वार, महिला उत्थान, आदिवासी उत्थान व छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना आदि के लिए संघर्ष किया। उन्होनें सुविधा संपन्न होते हुए अपने बच्चों को अनाथ बच्चों के साथ पढ़ाकर जो मिसाल कायम की उससे सीख लेने की जरूरत है। कार्यक्रम में कुलसचिव डॉ राजकुमार सचदेव, क्षेत्रीय निदेशक डॉ बी एल गोयल, मीडिया प्रभारी दीपक पांडेय सहित शिक्षक, अधिकारी एवं कर्मचारीगण उपस्थित रहे।
अछूतों को दिलाया मंदिर में प्रवेश: डॉ.सविता
मुख्य वक्ता डॉ सविता मिश्रा ने कहा कि पं सुन्दरलाल शर्मा का जीवन परिचय, उनके कार्य, उनके आर्दशों पर विस्तार से चर्चा करते हुए अपने वकतव्य में कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य का सपना देखने वाले पहले व्यक्ति है। उन्होंने इसे छत्तीसगढ़ महतारी नाम दिया था। वे एक साथ साहित्यकार, पत्रकार, चित्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं अछूतोद्वार के प्रणेता थे। राजिम में राजीव लोचन मंदिर में अछूतों को सर्वप्रथम मंदिर में प्रवेश कराने का श्रेय भी पंडित सुन्दरलाल को ही है। आजादी की लड़ाई एवं गांधी के साथ कई कार्य किए। गांधी जी उन्हे गुरू भी कहते थे। उन्होने साहित्यकार के रूप में जीवनी, साहित्य की रचना एवं धर्म ग्रंथों की भी रचना की।

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