० बस्तरवासियों की जीविका का एक बड़ा आधार है यह कल्प वृक्ष
जगदलपुर, 22 दिसंबर । नशीली शराब के लिए मशहूर महुए का पेड़ केवल नशे के लिहाज से नहीं, बल्कि इसकी उपयोगिता की वजह से आदिवासियों के लिए किसी कल्प वृक्ष से कमतर नहीं साबित होता है। महुए का फूल ही नहीं, बल्कि इसके फल, बीज भी आमदनी का जरिया हैं, तो पत्ते का इस्तेमाल दोना पत्तल के तौर होता है।
मार्च से अप्रैल महीने में टपकने वाले महुए का फूल बीनने पूरा कुनबा इसमें लगा रहता है। जून महीने में इन्हीं गुच्छों में टोरा फल पककर तैयार हो जाता है, जिसकी सूखी गिरी से तेल निकाला जाता है। एक पेड़ हर सीजन में औसतन 5000 रुपए तक की आमदनी देता है। अकेले दक्षिण बस्तर में ही लगभग 3 लाख महुए पेड़ हैं।
बस्तर संस्कृति के विशेषज्ञ राकेश पांडे एवं कृष्णा राव नायडू की मानें तो महुए की शराब में एल्कोहल होता है, जो पेट्रोल की तरह ज्वलनशील पदार्थ है। इससे वाहन कुछ देर चल सकता है। स्थानीय निवासी राजकुमार मोदी के मुताबिक 40 किमी दूर से इसका इस्तेमाल कर बाइक जगदलपुर तक पहुंचा चुके हैं। महुआ केवल नशे के लिहाज से नहीं बल्कि और भी तरीकों से इस्तेमाल होता है। क्षेत्र के आदिवासी परिवार महुआ बीनकर परिवार चलाते हैं।
महुए के सुखाए फू ल का इस्तेमाल आंध्र के भद्राचलम समेत बड़े शहरों में प्रसाद के तौर पर उपयोग में लाया जाता है। इसमें एनीमिया नियंत्रण की असाधारण क्षमता होती है, जिसकी वजह से पुराने समय में आदिवासी इसे सुखाकर, भूनकर खाद्य पदार्थ के तौर पर इस्तेमाल करते थे।
उपयोगी फूलशराब बनाने में और इसके बेचकर आजीविका कमाने में फल के गूदे का इस्तेमाल पौष्टिक सब्जी बनाने में, बीज की गिरी से निकलने वाला तेल खाद्य तेल और प्रसाधन के तौर पर इस्तेमाल, पत्ते का दोना पत्तल बनाने में, तना का जलाऊ लकड़ी के तौर पर किया जाता है। महुए का इस्तेमाल प्रसाद और पौष्टिक लड्डू बनाने और इससे जैविक ईंधन बनाने की राह तलाशने पर ग्रामीणों को नशे की बजाय अच्छे इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।