० बांस की लाठ को लाटा देवता मानकर इसका उपयोग जात्रा, मेला व धार्मिक आयोजनों में किया जाता है
जगदलपुर, 18 दिसंबर । पर्यावरण बचाने के लिए आज पूरी दुनिया में अभियान चल रहे हैं और वनों को बचाने तथा अपने आसपास पेड़ लगाकर स्वच्छता का माहौल बनाने के लिए प्रयास किया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर बस्तर के अबुझमाड़ क्षेत्र में स्थानीय आदिवासी बांस की जरूरत के लिए पहले बांस वनों की पूजा अर्चना करते हैं और आवश्यकता अनुसार बांस की कटाई करते हैं। इसके साथ ही पुराने पेड़ों के स्थान पर नये पौधों को भी लगाया जाता है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार बस्तर के अबुझमाड़ क्षेत्र में प्राचीन काल से स्थानीय आदिवासी अपने गांव के पास लगे बांस के घने जंगल को अनुशासित होकर बचाने का कार्य कर रहे हैं और इस बांस के जंगल से केवल धार्मिक उपयोग के लिए ही इसकी कटाई करते हैं। अपनी आजीविका के लिए वे वृक्षों को महत्वपूर्ण समझते हैं और उनका प्रयास लगातार वनों क रक्षा करने में होता है।
अबुझमाड़ के ग्राम ताड़ोनार में ऐसा उदाहरण देखने के लिए आज भी आ रहा है। यहां के ग्रामीण समीप ही बसे बांस के घने जंगल को देवी के प्रति समर्पित कर इसकी बरसों से रक्षा कर रहे हैं। आस पास के सैकड़ों गांव के लोग अपने गांव में धार्मिक मान्यता अनुसार पूजा अर्चना के लिए यहीं के बांस के जंगल से बांस ले जाते हैं। इसके अलावा अबुझमाड़ में कई स्थानों पर ग्रामीणों द्वारा कुछ जंगलोंं को देवी के लिए समर्पित कर इसका संरक्षण करते हैं। इस जंगल के बांस का उपयोग लाटा देवता व डोली देव के लिए किया जाता है। बांस की लाठ को लाटा देवता मानकर इसका उपयोग जात्रा, मेला व अन्य होने वाले धार्मिक आयोजनों में किया जाता है। इस प्रकार पर्यावरण को बचाने के लिए अबुझमाड़ के ग्रामीणों का योगदान अत्यधिक है और धार्मिक दृष्टि से क्षेत्र की जंगलों को चिंहित कर इनका संरक्षण आज भी ग्रामीण कर रहे हैं। इसी के साथ-साथ नदी, नालों, झरना या तालाब का उपयोग भी वे धार्मिक दृष्टि से इसे महत्वपूर्ण मानकर प्राचीन काल से अनुशासित तरीके से कर रहे हैं।