छत्तीसगढ़

17-Dec-2018 11:10:03 am
Posted Date

3 हजार साल पुराने मृतक स्तंभ आज भी मौजूद हैं बस्तर में

जगदलपुर, 17 दिसंबर ।  जिले के कई गांवों में आज भी तीन हजार साल पुराने मेगालिथिक कल्चर की छाप मृतक स्तंभों के रूप में दिखाई दे जाती है। ये प्रथा करीब तीन हजार साल पुरानी है और विश्व के कई हिस्सों में दिखती है।
संभाग के सभी जिलों सहित बीजापुर जिले के गंगालूर गांव में पोटामपारा में भी कतार में मृतक स्तंभ दिखाई दे जाते हैं। ये स्तंभ मुरिया जनजाति के घर के मुखियों के होते हैं। गांव के एक स्कूली छात्र अर्जुन हेमला बताते हैं कि पोटामपारा में एक ही स्थान पर घर के बुजुर्गों के अंतिम संस्कार स्थल पर ये पत्थर दूर पहाड़ से लाकर गाड़ दिए जाते हैं। गांव की ही महिला श्रीमती अंजलि भोगाम बताती हैं कि ये प्रथा आज भी जीवित है। कब्र में शव को दफनाने के दो या तीन दिन बाद पूरा गांव जुटता है और यहां एक पत्थर उध्र्व गाड़ दिया जाता है। एक ही पारे के स्तंभ एक ही स्थान पर होते हैं।
ये कतार में गाड़े जाते हैं। ये दिवंगत बुजुर्गों की याद दिलाते रहते हैं। इस बारे में बस्तर के मानवविज्ञानी डॉ राजेन्द्र सिंह बताते हैं कि बस्तर ही नहीं बल्कि दक्षिण भारत और बर्मा में भी ऐसी ही प्रथा है। ये तीन हजार साल पुरानी महापाषाण काल से चली आ रही है। उन्होंने बताया कि इस पत्थर को गाडऩे के पीछे ये मान्यता भी होती है कि मौत के बाद उस व्यक्ति का ये घर होता है। ज्ञात हो कि बीजापुर जिले के विभिन्न गांवों में ऐसे पत्थर दिखते हैं हालांकि वक्त के साथ इनमें कुछ बदलाव भी आने लगा है।

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