0-आरबीआई का बड़ा फैसला
मुंबई ,06 जून । रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने रिएल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट सिस्टम (आरटीजीएस) और नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड्स ट्रांसफर (एनईएफटी) को नि:शुल्क करने का फैसला किया है। केंद्रीय बैंक की मौद्रिक समीक्षा समिति की बैठक के बाद गुरुवार को जारी विकासशील एवं नियामक नीति बयान’ में कहा गया है कि इसके बारे में एक सप्ताह के भीतर अनुदेश जारी किए जा एंगे। बयान के अनुसार, डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए रिजर्व बैंक द्वारा आरटीजीएस और एनईएफटी प्रणाली को शुल्क मुक्त बनाने का फैसला किया गया है। इसके बाद बैंकों को भी इस फैसले का लाभ अपने ग्राहकों को देना होगा।
फिलहाल आरबीआई आरटीजीएस और एनईएफटी प्रणाली के जरिए हुए लेनदेन के लिए बैंकों से शुल्क लेता है जिसके बदले बैंक ग्राहकों से इसके लिए शुल्क वसूलते हैं। नेटबैंकिंग के जरिये ऑनलाइन लेनदेन तीन तरीके से किया जाता है। आरटीजीएस और एनईएफटी के अलावा आईएमपीएस यानी तत्काल भुगतान सेवा की भी एक प्रणाली है जिसका शुल्क एनईएफटी से ज्यादा होता है। बयान में आईएमपीएस के बारे में कुछ नहीं कहा गया है। आरटीजीएस सिर्फ दो लाख रुपये या उससे ज्यादा की राशि के लेनदेन के लिए इस्तेमाल होता है जबकि आईएमपीएस का इस्तेमाल सिर्फ दो लाख रुपये तक के लेनदेन के लिए हो सकता है। समिति की बैठक के बाद जारी बयान में कहा गया है कि फरवरी और अप्रैल में कुल कुल मलाकर की गयी आधी फीसदी की कटौती से तंत्र में तरलता बढ़ी है, लेकिन अप्रैल और मई महीने में सरकारी व्यय में कमी आने के कारण तरलता में कमी आयी थी। जून महीने में अब तक तंत्र में अतिशेष तरलता का दैनिक औसत 66 हजार करोड़ रुपये है।
उल्लेखनीय है कि आम चुनाव के कारण अचार संहिता लागू होने से सरकारी व्यय में कमी आई थी। वर्ष 2018-19 में आर्थिक गतिविधियों में भारी कमी आई और इस दौरान सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर गिरकर 6.8 प्रतिशत पर आ गयी। इस वर्ष मार्च में समाप्त तिमाही में तो जीडीपी वृद्धि गिरकर 5.8 प्रतिशत पर आ गयी। वर्ष 2017-18 में बेरोजगारी दर भी 45 वर्ष के उच्चतम स्तर 6.1 प्रतिशत पर पहुंच गई। आर्थिक गतिविधियों में आई सुस्ती के मद्देनजर रिजर्व बैंक पर निजी निवेश में तेजी लाने के लिए पूंजी लागत कम करने का दबाव था। महंगाई अब तक रिजर्व बैंक के लक्षित दायरे में है, लेकिन जीडीपी वृद्धि में सुस्ती आ गयी है जिससे विनिर्माण और रोजगार हर क्षेत्र में शिथिलता आ गई है। समिति ने कहा कि फरवरी और अप्रैल में नीतिगत दरों में की गई कुल आधी फीसदी की कटौती से भारतीय मुद्रा में ऋण पर ब्याज में औसतन 21 आधार अंक की कमी आनी चाहिये। हालाँकि इस दौरान पुराने ऋण पर ब्याज में चार आधार अंकों की बढ़ोतरी हुई क्योंकि पुराने ऋण ऊँची दरों पर दिये गये थे।