जगदलपुर, 06 मई । वर्ष 2004-05 में नक्सलियों की हिंसा उफान पर थी और इस हिंसा के विरूद्ध सलवाजुडूम का आंदोलन भी चल रहा था। इन परिस्थितियों में दक्षिण बस्तर क्षेत्र के भीतरी क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी परिवारों को नक्सलियों के आक्रोश का शिकार होना पड़ रहा था। इससे बचने के लिए और अपनी तथा अपने परिवार के सुरक्षा के लिए करीब 5000 से अधिक ग्रामीणों ने आंध्र सहित तेलंगाना आदि राज्यों में जाकर शरण ली।
आज ऐसे हजारों ग्रामीण वहां रह कर मजदूरी कर ही अपना जीवन यापन कर रहे हैं। अब ऐसे ग्रामीण परिवार अपने क्षेत्र में पुन: वापस लौटना चाहते हैं, लेकिन आज उनके पास जीवन-यापन के लिए भूमि नहीं है। ऐसे ग्रामीण परिवारों को स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता शुभ्रांशु चौधरी ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को पत्र लिखकर इन ग्रामीणों को जंगल के अधिकार, कानून की धारा 3.1 के अंतर्गत उनके मूल कब्जे के जमीन के बदले अन्यत्र कहीं भूमि प्रदान करने की मांग की है।
उल्लेखनीय है कि दक्षिण बस्तर के सुकमा जिले के मरईगुड़ा गांव के करीब 25 परिवारों ने पुन: वापिस आकर यहां अपनी व्यथा सुनाई। उन्होंने बताया कि उन्हें अब मरईगुड़ा में कोई काम नहीं मिल रहा है और 13 वर्षों के बाद उनके खेत भी पूरी तरह बंजर हो चुके हैं। इनके पास जीवन यापन के लिए शासन की तरफ से भी कोई मदद नहीं मिल रही है, ऐसी स्थिति में पुन: पड़ोसी राज्यों में जीवन यापन के लिए जाना पड़ेगा।