छत्तीसगढ़

04-May-2019 1:29:56 pm
Posted Date

क्या राजसात किए जा रहे वाहन को उसके मालिक की जानकारी में प्रयुक्त किया गया है?

काले हीरे के काले कारोबार में पहाड़ी कोरवा की पि-कप जब्त, दोषी कौन ?
अपनों पे रहम, गैरों पे सितम की तर्ज पर वन कानून के रखवाले ?
न्यायसाक्षी/पत्थलगॉंव। विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित ‘‘कोयले में पि-कप जब्त‘‘, ‘‘आखिर कोयला लोड पि-कप का राज क्या है‘‘, जैसे शीर्षक से प्रकाशित समाचार की सच्चाई के तह तक जाने के प्रयास में जब हमारे संवाददाता परमवीर भाटिया द्वारा धरमजयगढ़ तहसील के ग्राम साजापाली के आश्रित ग्राम ‘‘आमानारा‘‘ में निवासरत देश के राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहलाने वाले पहाड़ी कोरवाओं से सम्पर्क किया और उक्त जब्त पि-कप के सम्बंध में जो जानकारी आई वो बेहद चौकाने वाली है। 
प्राप्त जानकारी के अनुसार पि-कप स्वामी पहाड़ी कोरवा बागर साय पिता बिरजु राम कोरवा एवं गांव के अन्य कुछ जानकार व्यक्तियों द्वारा बताया गया कि लगभग चार पांच माह पूर्व बाकारूमा परिक्षेत्र के तेजपुर वन परिसर रक्षक विनोद तिग्गा द्वारा लालमाटी (तेजपुर) के वन सुरक्षा समिति के अध्यक्ष उसत राम के साथ आकर गांव बागर साय कोरवा की पि-कप को किराये में वन क्षेत्रों से जब्ती लकडिय़ों की ढुलाई करने हेेतु मांगा गया, इनकार करने पर ये दोनों व्यक्ति कुछ दिनों बाद पुन: जब्ती लकडिय़ों ढुलाई (परिवहन) करने हेतु पि-कप वाहन मांगने लगे। तब पि-कप स्वामी बागर साय द्वारा अपने घर परिवार वालों से सलाह मशविरा कर गांव के कुछ व्यक्तियों के समक्ष पच्चास हजार माह में किराया तय कर दिनांक 27/10/2018 को उक्त कथित सफेद कलर की टाटा पीकप क्र0 सीजी13 - 3402 माडॅल वर्ष 2017 को उक्त वन रक्षक के विश्वास एवं भरोसे पर, और उनके झांसे में आकर, पचास हजार रूपये एडवांस बतौर लेकर उनके सुपुर्द कर दिया गया, इसके बाद पि-कप स्वामी द्वारा बार-बार फोन पर सम्पर्क कर, उक्त पि-कप के किराया का पैसा मांगे जाने पर भी नहीं दिया गया, बल्कि वर्दी के रौब में उक्त वन रक्षक द्वारा पि-कप स्वामी बागर साय को धमका दिया जाता था। बताया गया कि, वर्दी के रौब में उक्त वन रक्षक द्वारा बागर साय कोरवा को उसका उक्त पि-कप वाहन नहीं लौटाया गया, और पच्चास हजार रूपये शुरू में एक माह का एडवांस बतौर दिये जाने के बाद, से आज तक अन्य कोई रकम बतौर किराया नहीं दिया गया। 
क्या है प्रकरण
इस बीच बीते पांच अप्रैल को किसी मुखबिर की सूचना पर अवैध कोयला से लदे उक्त पि-कप वाहन को धरमजयगढ़ के एस.डी.एम. एन.के. चौबे द्वारा ग्राम तेजपुर के समीप पकड़ लिया गया, बताया तो यह भी गया है कि सामने से आ रही अवैध कोयला लोड उक्त पि-कप को जब एस.डी.एम. साहब द्वारा अपनी टीम के साथ रोकने की कोशिश की गयी, तब पि-कप चालक एस.डी.एम. साहब की वाहन को साइड कट मारते हुए निकल गया, उक्त पि-कप का पीछा जब एस.डी.एम. साहब द्वारा अपनी टीम के साथ किया गया, तब उक्त पि-कप का चालक एवं उसमे सवार अन्य लोग पि-कप को छोड़ खड़े कर भाग गये, जिसे एस.डी.एम. साहब द्वारा जब्त कर अग्रिम कार्यवाही हेतु वन विभाग के सुपुर्द कर दिया गया। पि-कप के चालक एवं उसमें सवार अन्य लोग के पकड़ में न आने के कारण पि-कप स्वामी एवं उसमें सवार आरोपियों का पता न चल सका। 
उक्त पि-कप स्वामी पहाड़ी कोरवा बागर साय ने बताया कि जब्ती कार्यवाही के अगले दिन 6 अप्रैल को उसका बयान धरमजयगढ़ के एस.डी.एम. साहब द्वारा रेंजर के समक्ष अपने कार्यालय में लिया गया है, जिसमें मैनें उक्त जब्ती पि-कप के सम्बन्ध समस्त बातें जो कि किराया के सम्बंध में थीं, सच-सच बता दी। यह भी कहा कि, पुन: इसके पश्चात् 11 अप्रैल को साहू रेंजर द्वारा ग्राम साजापाली के वन रक्षक परिसर में मुझे बुलवाकर उक्त जब्त पि-कप के सम्बंध में मेरा बयान लिया गया है, उसे भी मैंने मेरी पि-कप को वन रक्षक तिग्गा द्वारा किराये में लिये जाने बाबत् सारी बातें सच-सच बता दी है। 
‘‘अपनों पे रहम, गैरों पे सितम‘‘
सवाल यह उठता है कि उक्त पि-कप स्वामी बागर साय जो पहाड़ी कोरवा एवं जिसे देश के राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र की उपाधि से नवाजा गया है, जो बीहड़ ग्रामीण अंचल एवं पहॅुच विहिन क्षेत्रों में निवासरत है, जो सीधे-साधे एवं सरल स्वभाव के होकर अनपढ़ एवं अज्ञानी हैं, जिनके रग-रग में झूठ बोलने का कहीं कोई स्थान ही नहीं है, क्या उक्त गरीब पहाड़ी कोरवा द्वारा अपनी पि-कप वाहन से संबंधित उक्त बातें एस.डी.एम. व संबंधित रेंजर को दिये अपने बयान में कही गयी बातें सच्ची हैं, ऐसा पीडि़त पहाड़ी कोरवा के चेहरे से ही स्पष्ट झलक रहा था। लेकिन इस सम्बंध में कोई कार्यवाही का नहीं संदेह को जन्म देता है कि आखिर क्यों सही संज्ञान नहीं लिया गया।
ग्राम तेजपुर के जानकार कुछ ग्रामीणों द्वारा खाक़ी वर्दी से डरे सहमे होते हुए, दबी जुबान से बताया गया कि उक्त वन रक्षक विनोद तिग्गा करीब एक वर्ष से यहां पदस्थ हैं, तब से इनकी गतिविधियां संदिग्ध है। यह भी कहा कि, इनके शासकीय क्वार्टर में बाहर से आये अनाधिकृत व्यक्तियों का जमावड़ा रहता है, जिनसे उक्त नाकेदार द्वारा अवैध कार्यों को अंजाम दिया जाता है, ग्रामीणों द्वारा बताया गया कि कोयले में जब्ती उक्त पि-कप नाका क्वार्टर के बगल में कई बार खड़े रहती थी, जिससे रात के अंधेरे में जंगल के काले कारोबार को अंजाम दिया जाता था, ग्रामीणों द्वारा यह भी बताया गया कि उक्त वन रक्षक द्वारा अपने सहयोगी उसतराम एवं अन्य कुछ व्यक्तियों के साथ जंगल में अवैध लकड़ी काटने वालों को पकड़ कर उन्हें जेल भेजने का भय दिखाकर, उनके हथियार जब्त कर, उनसे भारी भरकम राशि वसूल कर जब्त लकडिय़ों को शासकीय रिकार्ड में दर्ज न कर, उन्हें संबंधित वनमाफिया मित्रों को बिक्री कर दिया जाता है। दबी जुबान से गांव के ग्रामीणों द्वारा हमारे प्रतिनिधि को यह भी बताया गया कि यहां कोयले का काला कारोबार व लकडिय़ों की अवैध कटायी सब उक्त वन रक्षक विनोद तिग्गा से मिली भगत कर हो रही है। जानकार सूत्रों ने यह भी बताया कि यहां वन क्षेत्र से कोयला खोदने वाले लेबरों से पांच सौ रूपये प्रति ट्रिप, एवं लोड करने वाले वाहन पीकप व ट्रैक्टर से एक हजार रूपये प्रति ट्रिप उक्त वन रक्षक द्वारा लिया जाता है। यह काला कारोबार रात के अंधेरे में एवं कभी-कभी दिन के उजाले में भी सीजन भर किया जाता है, यहां का सारा कोयला आसपास क्षेत्रों के इंटा भट्टों में खपाया जाता है, जंगल के चारों ओर मुख्य मार्ग पर यहां ढाबों की गैर बसाहट है, जिनमें तस्करों का नेटवर्क चलता है, याने कि पकडऩे वाला कोई भी अधिकारी चारों ओर के किसी भी रास्ते से इन्हें पकडऩे की कोशिश यदि करेगा, तो तत्काल तस्करों को खबर हो जायेगी, एवं ये अपने सुरक्षित ठिकानों में पनाह ले लेंगे। यही कारण है कि उक्त काला कारोबार वन क्षेत्रों से धड़ल्ले से हो रहा है, जिसे रोक पाने का कार्य तत्काल प्रभाव से किया जाना चाहिए। 
‘‘सैंय्या भये कोतवाल, तो डर काहे का‘‘
इतना बेखौफ काला कारोबार एक वन रक्षक द्वारा वन माफिया एवं खनिज माफियाओं से साठ-गांठ कर धड़ल्ले से चलाया जा रहा है, एवं समाचार पत्रों के सुर्खियों में आने के बाद भी वन विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा कोई संज्ञान न लिया जाना भी अनेक संदेहों को जन्म देता है, वैसे भी छोटी मोटी एवं साधारण शिकायतों पर अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को बचाने की भरसक कोशिश करते हैं।  सवाल यह उठता है कि उक्त जब्त पि-कप की निष्पक्ष जांच कर संबंधित अधिकारी क्या एक गरीब पहाड़ी कोरवा एवं राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र को न्याय दिला पायेगा ? क्या दोषियों के खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही होगी? 
 
बाक्स्
वैसे भी भारतीय वन अधिनियम १९२७ के तहत् यह प्रमाणित किया जाना आवश्यक है कि आरक्षित वन में अपराध किया गया है। साथ ही यह भी कि वन अपराध में प्रयुक्त वाहन को राजसात किए जाने के पूर्व यह प्रमाणित किया जाना आवश्यक है कि क्या वाहन को उसके मालिक की जानकारी में प्रयुक्त किया गया है? ऐसे निष्कर्ष के अभाव में अधिग्रहण अथवा राजसात की कार्यवाही का आदेश न्यायोचित नहीं है, ऐसा निर्णय देवकीनंदन शर्मा वि0 प्राधिकृत अधिकारी एवं अपर वनमंडलाधिकारी वगै० में २०११ में माननीय उच्च-न्यायालय द्वारा दिया गया है।

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