छत्तीसगढ़

29-Apr-2019 1:14:23 pm
Posted Date

घरघोडा मे कोयले के अवैध कारोबार पर पुलिस का नहीं नियंत्रण

एसपी अग्रवाल की उम्मीद पर खरे नहीं  उतर रहे घरघोडा टीआई
रायगढ़। जिले मे कोयले के अवैध खनन व परिवहन के मामलों मे माइनिंग तथा पुलिस प्रशासन के तमाम दावे फेल नजर आ रहे हैं। इसका खुला नजारा घरघोडा मे देखा जा सकता है जहाँ  अवैध कोयले से लदे दर्जनों वाहनों की धरपकड के बावजूद काले हीरे का अवैध खनन ,परिवहन जोरों पर हैं। 
जानकारी के मुताबिक सत्ता परिवर्तन के बाद सफेदपोशों की सह पर कोयले के कारोबारियों की पौ बारह हो चली है। दर्जनों की संख्या मे कोल माफिया घरघोडा के आस पास चिमटापानी,कुडुमकेला,तिलाईपाली,बरौद,चोटीगुडा, समेत दर्जनों किगांवों से इतनी मात्रा मे कोयले का अवैध खनन कर रहे हैं कि कुछ इलाकों मे तालाबनुमा गड्ढे तक हो गये हैं। खबर यह भी है कि सरकारी तंत्र की लापरवाही के कारण कोल माफिया ग्रामीणों को भी काले धंधे मे संलग्न किये हुये हैं। इनमे कुछ को भयाक्रांत कर तो कुछ को लोभ दिखाकर कोयले के अवैध कारोबार मे लगाया गया है।
घरघोडा क्षेत्र मे सफेदपोशों की सह पर फल फूल रहे  कुख्यात कोल माफियाओं के रसूख का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां  अवैध कोल खनन व परिवहन करते पकड़े गये ज्यादातर मामलों मे वाहनों को बगैर कार्यवाही किये छोड़ा गया है। वहीं  रसूखदारों के आगे पुलिस के बौने कद की मिसाल भी घरघोडा के पूर्व  टीआई राठौर की मनोदशा से समझी जा सकती है जो सफेदपोशों के दबाव मे अपना त्याग पत्र देने का मन बना चुके थे, जिन्हें बाद मे मान मनव्वल कर स्थानांतरण किया गया। इस वाक्ये के बाद अब घरघोडा थाने मे पदस्थ नये थाना प्रभारी भी कोल माफियाओं के रसूख के आगे पहले ही हथियार डाल बैठे जान पडते हैं। खनिज सम्पदा के इस मनमाने दोहन पर न तो माइनिंग न ही वन विभाग  और न ही पुलिस प्रशासन कोई कारगर कार्यवाही करने मे समर्थ नजर आ रहा है। ऐसे मे हर रात घरघोडा क्षेत्र कोल माफियाओं के अवैध कारोबार का गढ़ बनता जा रहा है।
वैसे तो जिले मे पिछले कुछ समय से पुलिस का मुखबिर तंत्र अव्यवस्थित है लेकिन घरघोडा  और खासकर कोल प्रभावित क्षेत्रों मे पुलिस का मुखबिर तंत्र  फिलहाल पूर्णत: निष्क्रिय दिखाई दे रहा है। अब इसके पीछे की वजह भले और कुछ भी हो लेकिन घरघोडा मे पूरी रात कोयले का अवैध खनन व परिवहन होने के बावजूद पुलिस विभाग के कान पर जूं तक न रेंगना आश्चर्यजनक है । हालांकि  पुलिस के सूत्र  इसे मुखबिर तंत्र की कमजोरी बताकर विभागीय मुस्तैदी पर खड़े होते सवालों से बचते नजर आते हैं लेकिन बड़ा सवाल यह भी है कि यदि इसी तरह अंचल मे कोल माफिया  वन और खनिज सम्पदा का मनमाफिक दोहन करते रहेंगें तो पुलिस अधीक्षक के उस दावे का क्या होगा जो अतिउत्साह मे उन्होंने  कोल के अवैध कारोबार को बंद करने के संबंध मे सार्वजनिक तौर पर देते हुये थाना प्रभारियों पर भरोसा जताया था। हालांकि पुलिस की कार्यप्रणाली पर इसलिये भी संदेह होना लाजिमी है क्योंकि पखवाड़े भर पहले एक आईएएस पर जानलेवा हमला करने वाले एक फरार खनन माफिया को पुलिस अमला अब तक नहीं खोज पाया है। दूसरी तरफ इस मामले मे सियासी आरोप - प्रत्यारोप भी खनन माफियाओं के पॉलिटिकल कनेक्शन की खुलकर गवाही देते हैं। ऐसे मे कानून के डंडे की लाचारी बखूबी समझी जा सकती है। 
क्या कहते हैं पुलिस अधीक्षक   
कोयले के अवैध कारोबार पर सख्त  कार्यवाही के लिये हर क्षेत्र के थाना प्रभारियों को निर्देशित किया गया है। जहाँ  सूचना मिल रही है वहां  आवश्यकता अनुसार माइनिंग व वन अफसरों के साथ संयुक्त आपरेशन भी किये जा रहे हैं। पिछली कुछ कार्यवाही मे अवैध कोयले के स्टाक भी जब्त हुये हैं। पुलिस पर किसी तरह का कोई दबाव नहीं  है।  

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