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19-Aug-2018 3:32:51 pm
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पीएम इमरान के लिए पाकिस्तानियों की इन वादों को पूरा करने की चुनौती

इस्लामाबाद :1 करोड़ नौकरियां पैदा करना, एक इस्लामिक कल्याणकारी देश बनाना और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तार-तार हो चुकी पाकिस्तान की छवि को सुधारना, नए प्रधानमंत्री इमरान खानके सामने अब देश से किए खुद के इन वादों को पूरा करने की चुनौती है। स्टार क्रिकेटर रहे और फायरब्रैंड राष्ट्रवादी खान ने बीते महीने हुए चुनावों में सबसे ज्यादा सीटें जीती। इस चुनाव को जीतने के लिए खान ने देश में भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाने और लोगों को गरीबी से निकालने का वादा किया। लेकिन उन्हें कई चुनौतियां विरासत में मिली है, जिनमें से आर्थिक संकट और आतंकवाद के मुद्दे पर अहम सहयोगी रहे अमेरिका के साथ खराब रिश्ते सबसे बड़ी हैं। अफगानिस्तान और भारत जैसे पड़ोसी देशों के साथ भी तनावपूर्ण रिश्ते चुनौतियों में शुमार है।

संसद में विपक्षी खान को कठपुतली बताकर और उनकी जीत के पीछे सेना के साथ गठजोड़ को कारण बता उनके खिलाफ एक महागठबंधन बनाने की राह पर हैं। हालांकि, खान लगातार चुनावों में सेना की मदद मिलने के आरोपों का खंडन करते रहे हैं।

अपने विजयी भाषण में खान ने भारत के साथ तनाव खत्म करने की बात कही तो वहीं अमेरिका के साथ परस्पर फायदेमंद रिश्तों का समर्थन किया।

विशेषज्ञ कहते हैं कि प्रधानमंत्री के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा करने वाले खान पहले नेता बनेंगे या नहीं यह प्रभावशाली सैन्य अफसरों के साथ उनके रिश्तों पर निर्भर करता है। अगर उनकी विदेश नीति सैन्य अधिकारियों से अलग होगी, तो विशेषज्ञ कहते हैं कि खान का भी वही हाल होगा जो दूसरे प्रधानमंत्रियों का हुआ और वह भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएंगे। पॉलिटिकल कमेंटेटर आमिर अहमद कहते हैं, ‘तब उनका भविष्य भी बाकी नेताओं के जैसा ही होगा।’

जनता की बड़ी उम्मीदें
संसद में बहुमत के लिए छोटी पार्टियों पर निर्भर, और सेनेट में विपक्ष का नियंत्रण, खान की गठबंधन सरकार के लिए बड़े और कड़े फैसले लेने की राह में रोड़ा बन सकते हैं।

फिर भी देश, खासतौर पर खान के युवा समर्थक अभी भी आशावान हैं कि खान भ्रष्टाचार मुक्त और समृद्ध नया पाकिस्तान बनाएंगे।

पाकिस्तान के टाइम्स अखबार के एडिटर रज़ा अहमद रूमी कहते हैं, ‘इमरान खान की सबसे बड़ी चुनौती अपने समर्थकों और वोटर्स की उम्मीदों को संभालना है क्योंकि उनके वादे चांद तोड़कर लाने जैसे हैं।’

इसी हफ्ते स्वतंत्रता दिवस के मौके पर इस्लामाबाद की सड़कों पर झंडा फहराते पाकिस्तानियों में से अधिकतर को भरोसा था कि खान वर्ल्ड क्लास अस्पता बनाने और शिक्षा व्यवस्था सुधारने के अपने वादे पूरे करेंगे, वह भी एक ऐसे देश में जहां निरक्षरता दर 40 प्रतिश से ज्यादा है।

खान की पार्टी के लिए चुनावों में स्वेच्छा से काम करने वाले शेख फरहाज कहते हैं, ‘मैंने अपनी बेटी को प्राइवेट स्कूल से निकालकर सरकारी में डाला है क्योंकि हमें भरोसा है कि पाकिस्तान बदलने वाला है।’

देश के लोग इसलिए भी उत्साहित हैं क्योंकि खान ने दशकों से सत्ता पर देश के दो परिवारों के दबदबे को खत्म करते हुए जीत हासिल की है। सड़क किनारे झंडे बेचने वाले शाह सुल्तान ने कहा, ‘हमें इमरान खान से बहुत उम्मीदें हैं। हम निम्न वर्ग के लोग हैं और मैंने खान को इसलिए वोट दिया था क्योंकि पिछले राजनेताओं ने हमारे देश के साथ क्या किया। उन्होंने हमारे देश के पास कुछ भी नहीं छोड़ा।’

बढ़ता आर्थिक संकट
लेकिन खान के कैंपेन में किए वादों को कितना पूरा किया जाएगा, यह देश की आर्थिक हालत से जांचा जा सकता है। सेंट्रल बैंक ने बीते दिसंबर से 4 बार रुपये का अवमूल्यन किया है लेकिन फिर भी मौजूदा घाटा मुद्रा को संकट की ओर ले जा रहा है, जबकि राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 6.8 प्रतिशत तक पहुंच गया है।

आर्थिक विकास लगभग 6 प्रतिशत पर चल रहा है, लेकिन इन घाटे की अस्थिरता को देखते हुए पाकिस्तान की वृद्धि में गिरावट की भविष्यवाणी करना आसान है।

खान सरकार को जल्द ही यह तय करना पड़ेगा कि चीन से और कर्ज लेना है या नहीं या फिर अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष से बेलआउट पैकेज लेना है। अगर ऐसा होता है तो 1980 के बाद से यह पाकिस्तान का 15वां बेलआउट पैकेज होगा। दोनों ही कर्जदाता पाकिस्तान से कड़े वित्तीय अनुशासन के पालन की मांग कर सकते हैं, जिसका अर्थ है खर्चे में बड़ी कटौती।खान ने अपने सरकार के पहले 100 दिन का प्लान पेश कर दिया है लेकिन पीटीआई की तरफ से प्रस्तावित अधिकांश सुधारों को पूरा होने में लंबा वक्त लगेगा।

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