छत्तीसगढ़

23-Mar-2019 1:03:54 pm
Posted Date

निरीह-निर्दोष ग्रामीणों को विस्फोट से उड़ाकर नक्सलियों ने मानवता को किया शर्मसार

बस्तर में नक्सली या तो पागल हो गए अथवा होशोहवास खो बैठे हैं
जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में सक्रिय नक्सली या तो बौखलाकर पागल हो गए हैं अथवा अपने होशोहवास खो बैठे हैं। पुलिस, उनके मुखबिरों, ग्रामीणों के खून से होली खेलते-खेलते अब निरीह, निहत्थे ग्रामीणों को विस्फोट से उड़ाकर नक्सली अपनी विकृत हो रही मानसिकता का परिचय दे रहे हैं। नक्सलियों का यह घिनौना कृत्य घोर निंदनीय है।
विचारधारा से भटक गए नक्सली
नक्सलियों के वर्तमान ओछे कारनामें यह इंगित करते हैं कि, उनकी आदर्शवादिता, शोषण, अत्याचार के खिलाफ अलख जगाने की दुहाई निहायत ढोंग व मिथ्या प्रचार है। सरकार एवं पुलिस के खिलाफ जुल्म व अत्याचार के आरोप जड़ी हु़ई विज्ञप्तियां प्रसारित करने वाले स्वयं कितने आदर्शवादी हैं, यह कल रात नैमेड़ विस्फोट की घटना से स्वयं प्रमाणित हो जाता है। 9 ग्रामीणों के प्राण छीनने धमाका कर नक्सलियों ने जुल्म-अत्याचार की सारी मर्यादाएं फलांग कर मानवता को भी शर्मशार कर दिया है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि वे अपने मूल उद्देश्य, सिद्धांत तथा विचारधारा से विचलित और विमुख हो गए हैं। जरायम पेशा मानसिकता के तत्वों ने अब नक्सलवाद की कमान थाम ली है। 
नक्सली यदि ऐसी ही घिनौनी कारगुजारियों को अंजाम देते रहेंगे तो जनता की रही-सही सहानुभूति से भी हाथ धो बैठेंगे। 
सोची समझी कार्रवाई
यह सर्वविदित है कि नक्सलियों का सूचना तंत्र बेहद मजबूत तथा तेज है माना जाता है, इसीलिए वे सरकार तथा पुलिस पर लगातार भारी पड़ रहे हैं। सुसंगठित सूचना तंत्र के बावजूद उन्होंने वाहन में सवार 9 ग्रामीणों को मौत की नींद सुलाने का प्रयास किया। जब उन्हेें मालूम था कि वाहन में ग्रामीण ही सवार हैं, तो फिर ऐसी नासमझी आखिर क्यों की गई। यानि यह समझा जाए कि सोची-समझी रणनीति के तहत ही ग्रामीणों की जान लेने की कोशिश की गईं। 
क्यों मौन हैं नक्सली नेता
शोषकों एवं वर्ग शत्रुओं का सफाया ही नक्सलवादी क्रांति की आत्मा का मु य लक्ष्य था, परंतु वर्तमान तथाकथित आंदोलन में सिर्फ और सिर्फ लूटपाट, हिंसा, आतंक, अत्याचार, अपहरण तथा खून खराबे का बोल-बाला दिखलाई दे रहा है। समकाल में उनका मकसद भले-बुरे कार्यों के निष्पादन के लिए रास्ता साफ करने की नीयत से दहशत फैलाना है। क्या निरीह ग्रामीणों की हत्या कर आतंक के नाम ऐसा बर्बर असहिष्णु तंत्र खड़ा करना ही नक्सलवादी आत्मा का लक्ष्य था ? ऐसे मामलों में नक्सलियों के दिग्गज नेताओं की चुप्पी यह दर्शाती है कि शायद उन्होंने बस्तर में ऐसे दुष्कृत्यों की स्वीकृति दे दी है। 6 दशक पूर्व जब नक्सलवाद के बस्तर में कदम पड़े थे, तब शायद बस्तरवासियों को इस बात की रंच मात्र की कल्पना नहीं थी कि, उनके द्वारा दिए गए मौन समर्थन का उन्हें इतना गंभीर व भयानक खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
अपनी छोटी सी भूल की इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी।
कौन से जन्म का बदला
पिछले कुछ माह से नक्सली आतंकी हरकतों से बस्तरवासी त्रस्त हो चुके हैं। समझ नहीं आता कि वे बस्तरवासियों से किस जन्म का बदला ले रहे हैं। पुलिस व उनके मुखबिरों के खून से होली खेलते-खेलते नक्सली अब आम जनों से भी दुश्मनों जैसा बर्ताव करने लगे हैं। जिस बस्तर ने उन्हें शरण दी और खाद पानी से सींचकर फलने-फूलने का बेहतर अवसर दिया, अब उन्हीं हिमायतियों से दुश्मनों जैसा आचरण करने पर उतारू हो गए हैं। 
किस जनता के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं
गौरतलब है कि नक्सलियों की आतंकी कारगुजारियों से वैसे भी बस्तर में हाहाकार मचा हुआ है। कहीं संक्रामक बीमारियों से पीडि़त सैकड़ों ग्रामीण इलाज व दवाईयों के न पहुंच पाने से अकाल मौत का ग्रास बन रहे हैं तो रोजगार छीन जाने से तथा गांवों तक राशन न पहुंचने से भूख रूपी दैत्य उन्हें अपनी आगोश में समेटता जा रहा है। सैकड़ों लोगों को मौत की बांहों में भिजवाकर, हजारों हाथों को बेरोजगार कर तथा भूखों के मुंह से रोटी का निवाला छीनकर नक्सल सरकार से किस जनता की भलाई के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं, यह प्रश्न अब विचारणीय बन गया है।  यह कहने में कोई संकोच नहीं होता कि क्रांतिकारी आंदोलन अब भटके तथा गुमराह लोगों की आतंकी कमाई का जरिया बन गया है।

 

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