वाशिंगटन। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने प्रशासन में विवादास्पद नियुक्तियों को लेकर एक बार फिर चर्चाओं में हैं। दरअसल, ट्रंप प्रशासन ने आतंकवाद से संबंधित आरोपों में 13 साल जेल में बिताने वाले पूर्व जिहादी इस्माइल रॉयर को व्हाइट हाउस के धार्मिक स्वतंत्रता आयोग के सलाहकार बोर्ड का सदस्य नियुक्त किया है।
इसके अलावा एक और पूर्व जिहादी शेख हमजा यूसुफ को भी इसी बोर्ड का सदस्य नियुक्त किया गया है।
2003 में इस्माइल पर आतंकवाद से संबंधित अपराधों का आरोप लगाया गया था। इनमें अमेरिका के खिलाफ युद्ध छेडऩे की साजिश रचने और अल-कायदा और लश्कर-ए-तैयबा को सहायता प्रदान करना शामिल था।
रिपोर्ट के अनुसार, 2004 में उसने विस्फोटकों के इस्तेमाल में मदद करने के आरोप भी स्वीकार किए थे। इस मामले में इस्माइल को 20 साल की सजा हुई थी और वो 13 साल जेल में रहा है।
इस्माइल का जन्म सेंट लुईस में हुआ था। अमेरिकी डिपोर्टमेंट और जस्टिस के मुताबिक, इस्लाम धर्म अपनाने के बाद इस्माइल बोस्नियाई शरणार्थियों के साथ काम करने लगा।
इसके बाद वह गृहयुद्ध लडऩे के लिए बोस्निया चला गया।
रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2000 में इस्माइल पाकिस्तान गया, जहां वो लश्कर-ए-तैयबा के संपर्क में आया।
इसके बाद वह वर्जीनिया में लोगों को आतंकी संगठन में शामिल होने के लिए प्रेरित करने लगा। उसे 2017 में जेल से रिहा किया गया था।
शेख हमजा कैलिफोर्निया में जैतुना कॉलेज का सह-संस्थापक है।
सूत्रों के अनुसार, शेख हमजा हमास और मुस्लिम ब्रदरहुड से जुड़ा हुआ है। उनका कहना है कि 9/11 से 2 दिन पहले यूसुफ ने जमील अल-अमीन के लिए पैसे जुटाने का कार्यक्रम आयोजित किया था।
अल-अमीन पर एक पुलिस अधिकारी की हत्या का मुकदमा चल रहा था।
लूमर के अनुसार, शेख हमजा पर इस्लामिक जिहादियों और प्रतिबंधित आतंकी समूहों से संबंध होने का आरोप है।
व्हाइट हाउस ने कहा, इस्माइल वर्तमान में धार्मिक स्वतंत्रता संस्थान में इस्लाम और धार्मिक स्वतंत्रता कार्रवाई टीम के निदेशक हैं। 1992 में इस्लाम धर्म अपनाने के बाद उन्होंने पारंपरिक इस्लामी विद्वानों के साथ धार्मिक विज्ञान का अध्ययन किया है और एक दशक से ज़्यादा समय तक गैर-लाभकारी इस्लामी संगठनों में काम किया है। रॉयर ने धर्मों के बीच शांति को बढ़ावा देने के लिए गैर-लाभकारी संगठनों के साथ काम किया है।
2023 में एक साक्षात्कार में इस्माइल ने कहा था, मुझे लश्कर-ए-तैयबा के लोग पसंद थे। मैं बिन लादेन के सख्त खिलाफ था और अल-कायदा को चरमपंथियों के समूह के रूप में देखता था। मुझे बताया गया कि लश्कर-ए-तैयबा कोई चरमपंथी समूह नहीं है और वे सऊदी इमाम का अनुसरण करते हैं। मैंने मुसलमानों को लश्कर में शामिल होने और कश्मीर में उनके साथ प्रशिक्षण लेने के लिए प्रोत्साहित किया। प्रशिक्षण बहुत गंभीर नहीं था, यह पर्यटन जैसा अधिक महसूस हुआ।
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