व्यापार

11-Mar-2019 11:15:56 am
Posted Date

ऑप्टिक फाइबर एसेट्स बेचने के लिए जियो की ग्लोबल इन्वेस्टर्स से बातचीत

मुंबई ,11 मार्च । रिलायंस जियो इन्फोकॉम देश में अपने ऑप्टिक फाइबर एसेट्स में हिस्सेदारी बेचकर कर्ज घटाना चाहती है। इसके लिए ग्लोबल पेंशन, सॉवरेन वेल्थ फंड्स और इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश करने वाले लॉन्ग ओनली फंड्स से संपर्क किया गया है। कंपनी ने अमेरिका, पश्चिम एशिया और ऑस्ट्रेलिया में संभावित निवेशकों से संपर्क करने के लिए मोएलिस, सिटी और आईसीआईसीआई सिक्यॉरिटीज को इन्वेस्टमेंट बैंकिंग का काम सौंपा है। यह जानकारी इस मामले से वाकिफ सूत्रों ने दी है।
रिलायंस फाइबर एसेट्स को अलग करके एक कंपनी बनाना चाहती है, जो सेल और लीजबैक या इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (इनविट) मॉडल के तहत इससे फंड जुटाएगी। कंपनी इनविट का स्पॉन्सर बने रहना चाहती है और नई कंपनी में कम से कम 15 पर्सेंट हिस्सेदारी रखना चाहती है। अगर ऐसा होता है तो 85 पर्सेंट बची हुई हिस्सेदारी पांच ग्लोबल इनवेस्टर्स को बेची जाएगी। कहा जा रहा है कि इसके लिए कनाडा पेंशन प्लान इन्वेस्टमेंट बोर्ड (सीपीपीआईबी), सीडीपीक्यू, अबू धाबी इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी, कतर इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी, कुवैत इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी, किंगडम होल्डिंग्स, खजाना, आलियांज और मैचयरी सहित दूसरे निवेशकों से संपर्क किया गया है। जियो के फाइबर एसेट्स की कीमत 6-7 अरब डॉलर होने का अनुमान है। 
निवेशकों से अभी शुरुआती स्तर की बातचीत हो रही है और मैनेजमेंट मीटिंग्स आने वाले कुछ हफ्तों में होने की उम्मीद है। कंपनी नए वित्त वर्ष के मध्य तक इस डील को पूरा करना चाहती है। इस खबर को लेकर पूछे गए सवालों पर जियो के प्रवक्ता ने कुछ भी कहने से मना कर दिया। 
दिसंबर 2018 च्ॉर्टर के रिजल्ट के बाद जनवरी में रिलायंस के अधिकारियों ने फाइबर और टावर बिजनस को अलग करके जियो डिजिटल फाइबर प्राइवेट लिमिटेड और रिलायंस जियो इन्फ्राटेल प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी बनाने की बात कही थी। इसे फाइबर और टावर एसेट्स से सेल एंड लीजबैक मॉडल या इनविट के जरिए फंड जुटाने का कदम माना गया था। खबर है कि रिलायंस जियो इन्फ्राटेल को कनाडा की निवेशक ब्रुकफील्ड को बेचा जा सकता है। 
दुनिया की सबसे बड़ी ऑल्टरनेट एसेट्स मैनेजर में से एक ब्रुकफील्ड, आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल, रसेल मेहता के फैमिली ऑफिस, पूनावाला फैमिली के साथ मिलकर अंबानी की ईस्ट वेस्ट पाइपलाइन को 2 अरब डॉलर में खरीद रही है। वह इस एसेट को एक अलग इनविट में ट्रांसफर करेगी। रिलायंस के जॉइंट चीफ फाइनैंशल ऑफिसर (सीएफओ) श्रीकांत वेंकटचारी ने जनवरी में रिपोर्टर्स को बताया था, हम अलग-अलग निवेशकों को जोडऩा चाहते हैं, जो इन कंपनियों को चला सकें। इसका मतलब यह भी है कि ये एसेट्स रिलायंस की बैलेंस शीट से हट जाएंगी, जिससे हमारी देनदारी कम होगी।

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