छत्तीसगढ़

09-Mar-2019 10:01:17 am
Posted Date

बिलासपुर लोकसभा सीट जीतने 25 साल से तरस रही कांग्रेस

00 भाजपा के लिए अभेद गढ़ तो कांगे्रेस के लिए चुनौती,इस बार फिर होगी जोर आजमाइश
बिलासपुर, 09 मार्च ।  बिलासपुर लोकसभा सीट भाजपा के लिए जहां अभेद गढ़ साबित हो रही है वहीं कांग्रेस के लिए यह चुनौती बनती जा रही है। बीते 25 वर्षों से इस सीट को अपने कब्जे में करने कांग्रेस जोर आजमाइश कर रही है। पर हर बार असफलता ही हाथ लगती है। चुनाव-दर-चुनाव हार का अंतर और बढ़ते जा रहा है। विधानसभा चुनाव में जिस तरह सत्ता परिवर्तन का जोर चला और बदलाव का राजनीतिक मुद्दा हावी रहा । बदलाव के इसी कश्ती पर सवार होकर कांग्रेसी इस बार जीत की गुंजाइश भी देखने लगे हैं।
चुनाव वर्ष 1951 से लेकर वर्ष 2014 के चुनाव परिणाम पर गौर करें तो यहां प्रत्याशी की छवि को मतदाताओं ने बहुत ज्यादा तवज्जो नहीं दिया है। परंपरागत मतदाताओं के साथ स्वींग वोटरों की सहभागिता हमेशा से ही इस सीट पर दिखाई देती रही है। बिलासपुर लोकसभा सीट से जिन लोगों ने प्रतिनिधित्व किया है उनमें दो या तीन नामचीन चेहरों को अपवाद स्वरूप छोड़ दें तो उम्मीदवार के बजाय मतदाताओं ने पार्टी के प्रतिबद्घता के चलते प्रत्याशियों को जीताकर दिल्ली भेजते रहे हैं। वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। भाजपा ने लखनलाल साहू को अपना उम्मीदवार बनाया था। कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री व भारत रत्न स्व.अटलबिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला को चुनाव मैदान में उतारा था। तब करुणा भाजपा की राष्ट्रीय प्रवक्ता व उपाध्यक्ष पद छोडक़र कांग्रेस में शामिल हुई थीं। लखनलाल के सामने वह न केवल बड़ा नाम था साथ ही एक बड़ा चेहरा भी । मोदी लहर में करुणा जैसे दिग्गज नेत्री भी धराशायी हो गईं। एक लाख 76 हजार वोटों के अंतर से चुनाव हार गईं। मोदी लहर में मतदाताओं व्यक्ति की छवि की बजाय पार्टी को तवज्जो दिया और भाजपा के बेनाम चेहरे को जीताकर संसद भेज दिया । वर्ष 1951 से 1991 तक इस सीट से अलग-अलग पार्टी के सांसदों ने लोकसभा में प्रतिनिधित्व किया। मसलन भारतीय राष्ट्रीय कांगे्रस,भारतीय लोकदल,इंदिरा कांग्रेस और भाजपा के प्रत्याशी चुनाव जीतकर संसद पहुंचते रहे हैं। 40 साल तक यहां के मतदाताओं ने अलग-अलग पार्टी के प्रत्याशियों को चुनाव जीतकर न केवल राजनीतिक दल वरन जीतने वाले उम्मीदवार की कड़ी परीक्षा लेते रहे हैं। चार दशक एक बड़ा बदलाव आया। प्रयोगधर्मी मतदाता एकाएक एक ही पार्टी के प्रति अपनी प्रतिबद्घता दर्शाने लगे। लोकसभा क्षेत्र के मतदाता भाजपा के इतने मुरीद हुए कि फिर कांगे्रस या अन्य दलों के उम्मीदवारों की तरफ पलट कर नहीं देखा । वर्ष 1996 से 2014 का चुनावी इतिहास इस बात का गवाह है कि भाजपा की जड़ें इस सीट में इतनी मजबूत है कि पार्टी जिसके सिर पर हाथ रख दे रही है मतदाता उस जिताकर दिल्ली भेज दे रहे हैं। एक अदद जीत के लिए कांग्रेसी रणनीतिकार तरस गए हैं।
0 किसानों की कर्ज माफी और समर्थन मूल्य के रथ पर सवार होकर दिल्ली कूच की तैयारी
विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस का वह नारा वक्त है बदलाव का ऐसा हिट हुआ कि 15 साल से राज्य की सत्ता पर काबिज भाजपा एक झटके में बेदखल हो गई । बेदखली भी ऐसी कि 16 सीटों पर जाकर सिमट गई है। कांग्रेस ने किसानों के कृषि ऋण की माफी और समर्थन मूल्य 2500 रुपये प्रति क्विंटल करने की घोषणा की थी। सत्ता पर काबिज होते ही दोनों की घोषणाओं को कांग्रेस ने पूरा कर दिया है। कर्ज माफी और समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी के रथ पर सवार होकर कांग्रेस बिलासपुर से दिल्ली कूच की तैयारी में है।
0 मोहले के नाम कीर्तिमान,राजनीति के अपराजेय योद्घा
पुन्नूलाल मोहले के नाम बिलासपुर लोकसभा सीट से लगातार चुनाव जीतने का कीर्तिमान है। वर्ष 1996 से 2004 तक वे लगातार चार बार यहां से सांसद रहे । वर्तमान में वे मुंगेली विधानसभा क्षेत्र से लगातार दूसरी बार चुनाव जीते हैं। इसके पहले जरहागांव विधानसभा से वे दो बार विधायक चुने गए थे। मोहले छत्तीसगढ़ राजनीति के ऐसे अपराजेय योद्घा हैं जिन्होंने आज तक एक भी चुनाव नहीं हारा है।
00 आंकड़ों की नजर में बिलासपुर लोकसभा सीट
0 वर्ष चुनाव जीतने वाले उममीदवार के नाम
0 1951 रेशम लाल जांगड़े कांग्रेस
0 1957 रेशम लाल जांगड़े कांग्रेस
0 1962 सत्यप्रकाश आइएनडी
0 1967 अमर सिंह कांग्रेस
0 1971 रामगोपाल तिवारी कांग्रेस
0 1977 निरंजन प्रसाद केशरवानी भारतीय लोकदल
0 1980 गोदिल प्रसाद अनुरानी कांग्रेस
0 1984 खेलनराम जांगड़े कांग्रेस
0 1989 रेशम लाल जांगड़े भाजपा
0 1991 खेलन राम जांगड़े कांग्रेस
0 1996 से 2004 तक पुन्नूलाल मोहले भाजपा
0 2009 दिलीप सिंह जूदेव भाजपा
0 2014 लखनलाल साहू भाजपा

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