छत्तीसगढ़

25-Feb-2019 1:10:51 pm
Posted Date

राजिम माघी पुन्नी मेला में अल्का चंद्राकर ने अपनी प्रस्तुति दी

0 सरकार की मंशा है गढ़बो नवा छत्तीसगढ़, तो छत्तीसगढ़ में स्थानीय कलाकारों का भविष्य होगा उज्ज्वल
0 अल्का चंद्राकर ने अपने अनुभव साझा कर छत्तीसगढ़ सरकार के प्रयासों की सराहना

राजिम, 25 फरवरी । त्रिवेणी संगम में राजिम माघी पुन्नी मेला में अपनी प्रस्तुति देने आई अल्का चंद्राकर का कहना है कि प्रदेश की नई सरकार के प्रयासों से छत्तीसगढ़ में कलाकारों का भविष्य उज्ज्वल है। अल्का ने कहा कि जैसे गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ है तो कही न कहीं छत्तीसगढ़ में कलाकारों का स्थान भी बहुत उंचाई तक जाएगा और कलाकारों को एक अच्छा स्थान मिलेगा। छत्तीसगढ़ के बाहर भी छत्तीसगढ़ी वेषभूषा व छत्तीसगढ़ी संगीत, मांदर लेकर किए जा रहे नृत्य  लोग काफी उत्साह से देखते हैं तब हमें बहुत अच्छा लगता हैं।
अल्का चंद्रकार ने अपनी प्रस्तुति के बाद मीडिया से बात करते हुए कई बातें कहीं। राजनीति कलाकारों के प्रवेश पर उन्होंने कहा कि कलाकार की पहचान जो तालियों में है वह राजनीति में नहीं और ताली को वोट में परिवर्तन करना बहुत कठिन काम है। इसलिए कलाकार को कलाकार ही रहना ज्यादा बेहतर होगा, उसको राजनीति में बिल्कुल नहीं जाना चाहिए। अल्का चंद्राकर का कहना है कि फिल्म इंडस्ट्री की चमक दमक और स्टूडियों में गाने की अपेक्षा मंच पर लाइव लोगों के सामने प्रस्तुति देने में ज्यादा आनंद आता है। क्योंकि मंच में प्रस्तुति देते समय दर्शकों का उत्साह हमें अच्छा लगता है।
राजिम की पुरानी पहचान लौटी है
राजिम कुंभ का नाम परिवर्तन अल्का चंद्राकर की नजर में छत्तीसढ़ सरकार का एक अच्छा कदम है। इससे छत्तीसगढ़ की पुरानी पहचान लौटी है। राजिम के इस मेले को कुंभ का नाम देना गलत था क्योंकि यहां कुंंभ जैसा कुछ भी नहीं है। लेकिन पुराने समय से इसे पुन्नी मेला जरूर कहा जाता है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल व धर्मस्व मंत्री ताम्रध्वज साहू की पहल ने राजिम को पुरानी पहचान लौटाई है। रही स्वरूप की बात तो पहले राजिम कुंभ में आते थे अब पुन्नी मेले में आएंगे।  यहां आने से दर्शकों का प्यार वैसे ही मिल रहा है जैसे पहले मिलता रहा है। इसलिए कुंभ और पुन्नी मेले में किसी तरह से बदलाव नजर नहीं आ रहा है।
लोक संगीत का कलेवर बदल रहा है
अल्का चंद्राकर का कहना है कि हमारा प्रयास है कि छत्तीसगढ़ की परंपरा और लोक संस्कृति को बचाकर चले। यह कह सकते हैं कि कलेवर बदल गया है उस कलेवर को ध्यान में रखते हुए लोक संगीत और लोक परंपरा को नये कलेवर के साथ अगर युवाओं के सामने लाए तो वह चीजें बरकरार रहेगी और बाधाएं भी नहीं आयेंगी। इसके अलावा हम ऐसा संस्थान शुरू करना चाहते हैं जहां छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति की शिक्षा दी जाए। हमारी ओर से काम शुरू कर दिया है कि ऐसी संस्था बनाए जहां लोग केवल लोक संस्कृति और लोक गीतों व वाद्य यंत्रों की शिक्षा दी जायेगी ताकि यहां की युवा पीड़ी को छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति का ज्ञान मिल सके।
हमारी लोक कला का विदेशों में भी सम्मान
अल्का चंद्राकर का कहना है कि लोक कला एक ऐसी चीज है जो बहुत दूर-दूर तक जानी जाती है। लोक परंपरा और लोक संस्कृति को ही हम बाहर विदेषों में ले जा सकते हैं। जैसे हमारी तीजन बाई पंडवानी के माध्यम से लोक कला को विदेषों में जाकर प्रस्तुति देकर नाम कमाया है। उसकी वजह ही है लोक संस्कृति लोक परंपरा। लोक कला में इतनी शक्ति है जिसे दूर-दूर तक बिखेरा जा सकता है। छत्तीसगढ़ी फिल्मों के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि किसी भी चीज अगर लोगों को बहुतायत मात्रा में मिल जाती है तो रूचि कम होने लगती है। स्थानीय कलाकारों को राजिम माघी पुन्नी मेले में मिले मंच पर अल्का चंद्राकर ने सरकार का आभार व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि राजिम मेले में प्रदेश के लोक कलाकारों ही बुलाए जाने का निर्णय स्वागत योग्य है इससे हमारे स्थानीय कलाकारों को बेहतर मंच मिलेगा।

Share On WhatsApp