आज के मुख्य समाचार

04-Mar-2024 8:00:58 pm
Posted Date

पैसे लेकर सदन में वोट देने वाले सांसदों-विधायकों पर अब चलेगा केस, सुप्रीम कोर्ट ने पलटा 1998 का फैसला

नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने 1998 के पीवी नरसिम्हा राव मामले के फैसले को खारिज कर दिया है और कहा है कि सांसदों और विधायकों को रिश्वत के बदले विधायिका में वोट देने पर कानूनी कार्रवाई से छूट नहीं है। बेंच ने कहा है कि ये सर्वसम्मति का फैसला है और सुप्रीम कोर्ट छूट से असहमत है। 1998 के फैसले में कहा गया था कि अगर सांसद और विधायक रिश्वत लेकर सदन में वोट देते हैं तो उन्हें मुकदमे से छूट होगी।
सीता सोरेन बनाम भारत सरकार’ मामले में सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने ये फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 105(2) और 194(2) के तहत सांसद और विधायकों को हासिल विशेषाधिकार की व्याख्या कर रहा है। फैसला सुनाने वाले जजों में सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं।
कोर्ट के सामने सवाल था कि रिश्वत के बदले सदन में भाषण या वोट देने के मामलों में क्या जनप्रतिनिधि कानूनी मुकदमे से छूट का दावा कर सकते हैं या नहीं? 1998 के अपने ही फैसले पर सुप्रीम कोर्ट को दोबारा से विचार करना था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विधायिका के किसी सदस्य की ओर से भ्रष्टाचार या रिश्वतखोरी सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी को खत्म कर देती है।
इस तरह सांसद या विधायक सदन में मतदान के लिए रिश्वत लेकर मुकदमे की कार्रवाई से नहीं बच सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 1998 के नरसिम्हा राव जजमेंट के अपने फ़ैसले को पलट दिया है। 1998 में 5 जजों की संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से तय किया था कि रिश्वतखोरी के ऐसे मामलों में जनप्रतिनिधियों पर मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता।

 

Share On WhatsApp