छत्तीसगढ़

10-Feb-2019 12:18:41 pm
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देश के सबसे बड़े बाघ राष्ट्रीय उद्यान में एक भी बाघ नहीं

0 यहां बाघों पर न कभी शोध हुआ, न ही इनके रहवास के बारे में जानने की कोशिश 
जगदलपुर, 10 फरवरी । आपको जानकर ताज्जुब होगा कि बस्तर स्थित देश की सबसे बड़ी बाघ परियोजना इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान में एक भी बाघ नहीं है। हालांकि इस राष्ट्रीय उद्यान में असली नस्ल के वन भैंसा सहित कई जानवर मौजूद हैं। बाघ परियोजना में वर्षों से कार्यरत कर्मचारियों ने एक भी बाघ को देखा तक नहीं है। सारी स्थिति का आंकलन करने के बाद टायगर रिजर्व कंजर्वेशन ऑर्थोरिटी ने बजट देना बंद कर दिया है। 
बीजापुर इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान बाघ परियोजना के अनुविभागीय अधिकारी आरएस वट्टी ने बताया कि वर्ष 2018 में इंद्रावती टायगर रिजर्व बीजापुर की ओर से एक रिपोर्ट तैयार कर नेशनल टायगर कंजर्वेशन ऑर्थोरिटी को भेजी गई थी। यहां 12 बाघ होने के साक्ष्य में मददेड़, कुटरू, कोर, पासेवाड़ा, सेंन्डा व पिल्लुर जैसे रेंजों में किये गये सर्वे में साक्ष्य के आधार पर रिपोर्ट बनाई गई है। उनमेें बाघ का पंजा, मल व उसके शिकार के साक्ष्य शामिल हैंं। रामसेवक वट्टी ने बताया कि अक्टूबर 2018 में टायगर होने की एक रिपोर्ट नेशनल टायगर कंजर्वेशन ऑर्थोरिटी को भेजी गई थी, लेकिन एनटीसीए रिपोर्ट को नहीं मान रही है। उन्होंने आगे बताया कि इसके चलते ही नवम्बर में राष्ट्रीय बाघ अभिकरण मद को नेशनल टायगर कंजर्वेशन ऑर्थोरिटी ने रोक दिया है। 
वैज्ञानिक तरीके से होती है गणना - वट्टी 
श्री वट्टी ने बताया कि बस्तर की बाघ परियोजना, देश के सबसे बड़े बाघ परियोजना में शामिल है, जिसका क्षेत्रफ ल 2000 वर्ग किलो मीटर है। इस उद्यान क्षेत्र में 55 गंाव हैं और इनकी आबादी लगभग पांच हजार के करीब है। उन्होंने बताया कि हर चार सालों में होने वाले वन्य प्राणियों की गणना वैज्ञानिक तरीके से की जाती है। गणना जीपीएस सिस्टम से कनेक्ट होती है और इसकी मानिटरिंग देहरादून से की जाती है। उन्होंने बताया कि इस बार बाघों की गणना के लिए रिजर्व क्षेत्र में  कुल 54 टे्रक  लाइन बनाये गए थे और हर लाइन दो किलोमीटर तक डाली गयी थी, इनकी मानिटरिंग देहरादून से हो रही थी। उन्होंने बताया कि टायगर के विचरण करने का एरिया करीब बीस किलोमीटर तक होता है। 
बाघों के लिए सुरक्षित पनाहगाह नहीं रहा उद्यान - प्राणी विशेषज्ञ
प्राणी विशेषज्ञ राकेश पांडे एवं अब्दुल वहाब खान ने बताया कि इस राष्ट्रीय उद्यान में बाघों के संरक्षण  के लिए कोई योजना नहीं है। बस्तर में बाघों का घर कहलाने वाला इंद्रावती टाईगर रिजर्व बाघों के लिए सुरक्षित पनाहगाह नहीं रह गया है, इसलिये बाघों की संख्या लगातार घटकर समाप्त हो गयी है। टायगर रिजर्व का यह इलाका पूरी तरह से माओवादियों के कब्जे में हैं। इस इलाके में घुसने की हिमाकत विभाग भी नहीं करता। यहां के बाघों पर न कभी शोध हुआ है और न किसी प्राणी विज्ञानी ने इनके व्यवहार या फि र रहवास के बारे में जानने की कोशिश की है। बाघों के संरक्षण के नाम पर केवल टायगर रिजर्व नाम दे दिया गया। 
पूर्व में आया बजट कहां खर्च हुआ - वर्मा 
बस्तर प्रकृति बचाओ समिति के संस्थापक शरदचंद वर्मा ने कहा कि बाघ परियोजना में बाघ नहीं होना एक चिंतनीय विषय है और इस पर गहन अध्ययन होना चाहिए। उन्होंने बताया कि 1984 में जब वन भैंसा को बचाने के लिए एक योजना तैयार की गयी थी, उसी दौरान शेरों की अधिक संख्या को देखते हुये टायगर प्रोजेक्ट बनाया गया था, जिसके कारण लगातार केन्द्र से बजट मिलता था। उन्होंने सवाल भी उठाया कि पूर्व में आया बजट कहां खर्च हुआ यह समझ से परे तो है ही साथ ही शोध का भी विषय है।  

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