मनोरंजन

08-Dec-2023 1:11:52 pm
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द आर्चीज से नई कहानी, नए चेहरे और नई प्रतिभाएं तराशने में सफल रहीं जोया अख्तर

शाहरुख खान की बेटी सुहाना खान ने फिल्म द आर्चीज से अभिनय जगत में पदार्पण कर लिया है।न सिर्फ सुहाना, बल्कि दिवंगत अभिनेत्री श्रीदेवी और निर्माता बोनी कपूर की छोटी बेटी खुशी कपूर की भी सिनेमा की दुनिया में यह पहली परीक्षा है, वहीं अमिताभ बच्चन के नाती अगस्त्य नंदा ने भी इससे बॉलीवुड में अपनी बोहनी की है।फिल्म 7 दिसंबर को नेटफ्लिक्स पर आई है तो आइए अब ये भी जान लें कि कैसी है द आर्चीज।
इसकी कहानी अमेरिकी कॉमिक्स द आर्चीज से प्रेरित है, जिसे जोया अख्तर ने अपने अंदाज में पर्दे पर परोसा है।आर्ची (अगस्त्य नंदा) और उसके दोस्तों के इर्द-गिर्द बुनी गई इस कहानी का मुख्य आकर्षण है, शहर रिवरडेल का दिल या कह लें इतिहास द ग्रीन पार्क, जिसे तोडक़र कुछ व्यवसायी वहां होटल बनाना चाहते हैं। हालांकि, आर्ची और उसके दोस्त उन्हें ऐसा करने से रोकते हैं।अब क्या होगा इसका भविष्य, यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
60 के दशक की यह कहानी है साधारण, लेकिन इसे दिखाने का तरीका दिलचस्प है। शुरुआत में फिल्म दिलचस्पी नहीं जगाती, लेकिन जैसे-जैसे यह आगे बढ़ती है, आप इसके किरदारों और कहानी से जुड़ते चले जाते हैं। यह आपको उसी दौर में ले जाती है।
यूं तो फिल्म में स्टार किड्स से लेकर हर कलाकार का अभिनय काबिल-ए-तारीफ है, लेकिन वैरोनिका के किरदार में सुहाना और आर्ची बने अगस्त्य सभी में अलग ही चमकते हैं। सुहाना के हाव-भाव और आत्मविश्वास देख लगता है मानों वह भी अपने पिता की तरह सिनेमा के लिए बनी हैं। उनका स्टाइल और स्वैग देखते ही बनता है।उधर अगस्त्य, आर्ची के किरदार में 100 फीसदी खरे उतरते हैं। वह अपने अभिनय के साथ डांस से भी हैरान करते हैं।
बेट्टी के रूप में खुशी कपूर भी कुछ कम नहीं हैं। उनकी सादगी और सहजता खूब भाती है, वहीं वेदांग रैना (रेगी मेंटल) अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज कराते हैं। उनके अलावा युवराज मेंडा, अदिति डॉट और मिहिर आहूजा भी अपने-अपने किरदार में छाप छोड़ते हैं।
जोया ने लेखक रीमा कागती के साथ मिलकर हर एक किरदार को कहानी के मुताबिक बड़ी सूझ-बूझ से गढ़ा और चुना है। हर कलाकार से उन्होंने उम्दा अभिनय करवाया है।फिल्म देखते हुए एक खुशी महसूस होती है। यह ऐसी नहीं है, जिससे बोर हो जाएं। डांस से लेकर रोमांस, कॉमेडी और प्यार इसमें सबुकछ है। फिल्म में कई ऐसे संवाद हैं, जो दिल को छू लेते हैं।कुल मिलाकर जोया ने कॉमिक्स की एक शानदार दुनिया रची है।
फिल्म में कुछ कमियां हैं, जो न होतीं तो शायद ये और बेहतर होती। जैसे अंग्रेजी संवाद और किरदारों के नाम अंग्रेजी में होना।1960 के दौर का परिवेश, जीवन शैली, खान पान और सलीके पर जोया ने बहुत बारीकी से काम किया है। पर्यावरण का मुद्दा भी सही चुना, लेकिन वह इसकी गहराई में जाने से चूक गईं। लगता है जैसे बड़ी जल्बदाजी में उन्होंने यह निपटा दिया।कहानी मुद्दे पर आने में भी थोड़ा वक्त लेती है।
2 घंटे 23 मिनट की द आर्चीज में संगीत शंकर एहसान लॉय का है, जो अच्छा है। सुनो, से लेकर वा वा वूम फिल्म के गाने थिरकने पर मजबूर करते हैं। बॉस्?को सीजर और गणेश हेगड़े की कोरियोग्राफी ने दृश्यों को और दमदार बना दिया।
क्यों देखें- डिजिटल के इस दौर में हम इंटरनेट के इर्द-गिर्द इतने सिमट गए हैं कि किताबें पढऩे का शौक दम तोड़ रहा है। किताबों की क्या अहमियत है, यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी चाहिए, वहीं अगर युवा शक्ति पर विश्वास है और लगता है कि युवा समाज में बदलाव ला सकते हैं तो भी यह फिल्म आपके लिए है।क्यों न देखें?- किताबों के सिनेमाई वर्जन से परहेज है तो फिल्म से दूर रहें।

 

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