छत्तीसगढ़

23-Jan-2019 12:23:29 pm
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बस्तर की जीवन रेखा इन्द्रावती हो रही प्रदूषित

जगदलपुर, 23 जनवरी । बस्तर जिले की प्राणदायिनी इन्द्रावती नदी के किनारे शवों को जलाकर उनके अवशेष पानी में बहा दिए जाते हैं तथा वहीं पर आसपास झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले नित्यकर्म के बाद शौच तथा नहाना धोना करते हैं तथा जानवरों को नहलाते हैं इतना ही नहीं ट्रक तथा कार धोने वाले गाड़ी नीचे उतारकर उसकी धुलाई करने में लग जाते हैं, जिससे पेट्रोल डीजल पानी में मिलकर भारी प्रदूषण उत्पन्न करता है, यही पानी बिना शोधित किए नलों के जरिए शहर की प्यास बुझाता है गर्मी के दिनों में प्रदूषित जल से पीलिया तथा डायरिया आदि बीमारी के होने की संभावना रहती है इसके अलावा कभी कभी तो नल के पानी से कीड़े और केंचुए तक आते हैं। 
जोरा संगम के बाद वर्ष में 6 माह तक इन्द्रावती का जलस्तर बहुत कम हो जाता है यहां तक की नदी में ग्रामीण तथा बच्चे सायकल चलाकर पार करते हैं और क्रिकेट आदि भी खेलते हैं। जोरा नाले के संगम के कारण दिसम्बर माह तक नदी का प्रवाह समाप्त हो जाता है। उड़ीसा से बहकर आने वाली भस्केल नदी छत्तीसगढ़ की सीमा में करनपुर के नजदीक इन्द्रावती में मिलती है, जिसके कारण थोड़ी बहुत सांसें इन्द्रावती की जीवनदायिनी के रूप में चलती हैं। शासन ने इन्द्रावती एनीकट निर्माण की स्वीकृति दे दी थी तथा इसके निर्माण के लिए स्थल का चयन मुक्तिधाम के ठीक नीचे किया गया था, किन्तु भविष्य में जल संक्रमण के लिए खतरा उत्पन्न होने संभावना से जगदलपुर का बुद्धिजीवी वर्ग इसका विरोध कर रहा था। अधिक लागत आने तक देकर शासन ने मुक्तिधाम के नीचे ही इसका निर्माण करवा दिया था। जल के शुद्धिकरण हेतु यदि कोई संयंत्र नहीं लगाया गया तो यह बात तो तय है कि अशुद्ध पेयजल के संकट से शहरवासियों को कोई निजात नहीं मिलेगी। 
इसके अलावा जैसा की छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने घोषणा की थी कि यदि उड़ीसा जोरा नाला तथा इन्द्रावती की समस्या नहीं निपटायेगा तो उड़ीसा की तरफ जाने वाली महानदी का पानी रोक दिया जाएगा। उड़ीसा सरकार से कई बार निवेदन करने पर भी वह इस ओर ध्यान नहीं दे रही है अत: उसे सबक सिखाने महानदी का जल रोकना ही पड़ेगा। अन्यथा भविष्य में इन्द्रावती नदी मर जाएगी और उसके पानी से जीवित बस्तर के वैभव चित्रकोट और तीरथगढ़ भी आने वाली पीढ़ी के लिए नानी-दादी की कहानी ही साबित होंगे। बस्तर पर्यटन पर भी इसका बहुत बुरा असर होगा। गौरतलब है कि चित्रकोट की 8 से अधिक जलधाराओं में से केवल 3 ही अभी शेष रह गई हैं। कहीं यह भविष्य की बात न रह जाए अगला विश्वयुद्ध अगर हुआ तो वह पानी के लिए ही होगा। 

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