जगदलपुर, 20 जनवरी । बस्तर जिले के एकमात्र राष्ट्रीय उद्यान जिसे देखने सिर्फ प्रदेश में ही नहीं बल्कि समूचे देश के पर्यटकों के अलावा विदेशी पर्यटक भी पहुंचते हैं, लेकिन राष्ट्रीय उद्यान के अधिकारियों की लापरवाही के कारण प्रकृति का अनुपम उपहार कचरे के ढेर में बदलता जा रहा है। राष्ट्रीय उद्यानों के सरंक्षण एवं संवर्धन के लिए नियुक्त मुख्य वनसंरक्षक सामान्य वन क्षेत्रों के साथ-साथ राष्ट्रीय उद्यान के भी प्रभारी होने के कारण उद्यान क्षेत्र लगातार बदहाली की कगार में समाते जा रहे हैं।
बस्तर संभाग में संयुक्त प्रदेश के कार्यकाल से जिले की कांगेर घाटी की जैव विविधता को दृष्टिगत रखते हुए 80 के दशक में इस क्षेत्र को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया था। इसके साथ-साथ बीजापुर क्षेत्र में इंद्रावती टायगर रिजर्व तथा वन भैंसा अभ्यारण तथा पामेड़ अभ्यारण घोषित किये गये थे। बस्तर जिले में स्थित कांगेर घाटी की प्राकृतिक गुफाएं एवं तीरथगढ़ जलप्रपात देखने ना सिर्फ प्रदेश के लोग पहुंचते हंै बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों के अलावा विदेशी सैलानी भी आते हैं। पार्क क्षेत्र मेें हजारों रूपये समिति द्वारा प्रवेश शुल्क एवं पार्किग के नाम पर वसूला जा रहा है। उद्यान क्षेत्र के इन अधिकारियों की इस अनदेखी के कारण प्लास्टिक का जो जमावाड़ा हो गया है वह बरसात के दौरान नाले में बहकर समूचे पार्क क्षेत्र में फैलता है, जिससे पार्क का पर्यावरण भी प्रदूषित हो रहा है, परंतु अधिकारियों की आपसी खींचातानी से पार्क क्षेत्र बर्बादी की कगार पर समाता जा रहा है।