व्यापार

07-Apr-2023 5:52:03 am
Posted Date

डेरी उत्पादों के आयात की तैयारी, दुग्ध उत्पादन में स्थिरता के कारण आपूर्ति पर बढ़ रहा दबाव

नईदिल्ली। लगभग एक दशक के बाद भारत को दुग्ध उत्पादों के आयात पर विचार करना पड़ सकता है। देश में दुग्ध उत्पादन ठहर जाने के कारण आपूर्ति में दिक्कत आ रही है। इसलिए सरकार बाजार में पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए जरूरत पडऩे पर आयात की भी सोच सकती है।
पशुपालन एवं डेरी सचिव राजेश कुमार सिंह ने आज कहा कि पिछले वित्त वर्ष के दौरान दुग्ध उत्पादन नहीं बढ़ा। इसलिए आपूर्ति ठीक करने के लिए सरकार डेरी उत्पादों का आयात भी कर सकती है। भारत ने आखिरी बार 2011 में प्रमुख डेरी उत्पादों का आयात किया था।
सिंह ने कहा, ‘दक्षिणी राज्यों में इस समय दुग्ध उत्पादन चरम पर रहता है। वहां दूध के स्टॉक का जायजा लेने के बाद जरूरत पडऩे पर सरकार मक्खन और घी जैसे डेरी उत्पादों के आयात की मंजूरी दे सकती है।’
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार देश में 2021-22 में 22.1 करोड़ टन दुग्ध उत्पादन हुआ, जो पिछले वर्ष के 20.8 करोड़ टन से 6.25 फीसदी अधिक है।
पिछले 15 महीनों में देश में दूध की कीमतें 12 से 15 फीसदी बढ़ गई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि कीमत बढऩे का सिलसिला अक्टूबर, 2023 से पहले नहीं रुकेगा। दूध की मुद्रास्फीति सितंबर 2022 में 5.55 फीसदी से बढक़र फरवरी 2023 में 10.33 फीसदी हो गई है।
सचिव ने कहा कि वित्त वर्ष 2022-23 में मवेशियों में लंपी त्वचा रोग के कारण देश में दूध का उत्पादन प्रभावित हुआ। उन्होंने कहा कि उत्पादन स्थिर रहने के बावजूद इस दौरान घरेलू मांग में 8 से 10 फीसदी की वृद्धि हुई। कोविड महामारी के बाद भी दूध की मांग बढ़ी है।
सिंह ने कहा, ‘देश में दूध की आपूर्ति में कोई रुकावट नहीं है। स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी) का पर्याप्त भंडार है। मगर वसा, मक्खन एवं घी जैसे डेरी उत्पादों का भंडार पिछले साल के मुकाबले कम है।’
सिंह ने जोर देकर कहा कि दक्षिणी राज्यों में दूध के भंडार की स्थिति समझने के बाद जरूरत पड़ी तो सरकार मक्खन और घी जैसे डेरी उत्पादों के आयात के लिए हस्तक्षेप कर सकती है। दक्षिणी राज्यों में अब दुग्ध उत्पादन का पीक सीजन शुरू हो गया है। उन्होंने कहा कि उत्तर भारत में कमी अपेक्षाकृत कम रहेगी। इस क्षेत्र में पिछले 20 दिनों के दौरान बेमौसम बारिश से तापमान में गिरावट आई है जिससे कम दुग्ध उत्पादन का सीजन आगे टल गया है।
सचिव के अनुसार पिछले साल लंपी त्वचा रोग के कारण 1.89 लाख मवेशियों की मौत होने से उत्पादन प्रभावित हुआ। साथ ही वैश्विक महामारी के बाद के दौर में दूध की मांग बढ़ी है।

 

Share On WhatsApp